सूक्ष्म दानव
माधुरी व्यास "नवपमा"
इंदौर (म.प्र.)
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एक सूक्ष्म से दानव ने,
फिर से है- हाहाकार मचाया!
काल के विकराल गाल में,
बन कोरोना ग्रास आया।
प्रचंड रूप से उसने फिर,
मौत का ताण्डव दिखाया।
एक सूक्ष्म से दानव ने,
फिर से है- हाहाकार मचाया!
भय व्याप्त चहुँ दिशा में,
करुण रुदन मन ने छुपाया।
इसके विभत्स रूप ने फिर,
मानव शक्ति को लाचार बनाया।
एक सूक्ष्म से दानव ने,
फिर से है- हाहाकार मचाया!
चाँद आग उगलता गगन में,
तारों ने हो अंगार बरसाया।
हरेक के मन का कोना-कोना,
झुलस उठा बेचैन सिसकाया।
एक सूक्ष्म से दानव ने,
फिर से है- हाहाकार मचाया!
मृतबन्धु,वत्स, माता-बहनों से
चिर- विरह का दुख दिखाया,
करुण- चीत्कारों से इसने फिर,
हाय! प्रभु कैसा दिल दहलाया।
प्रवेश किया जब इसने तन में,
निकट को विकट बनाया।
सबसे पास था उसको फिर,
खुद से दूर बहुत दूर हटाया।
एक सूक्ष्म से दानव ने,
फिर से है- हाहाकार मचा...