स्त्री तुम बुद्ध नहीं बन पाई
श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
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बुद्ध बनना
कितना सरल,
कितना कठिन,
किन्तु स्त्री तुम कभी
बुद्ध नहीं बन पाई !
अनेक दायित्व निभाती,
तिल तिल मरती,
फिर भी सब क्यों
त्याग नहीं पाई
स्त्री बुद्ध नहीं बन पाई !!
सारे रिश्तों को छोड़कर,
सारे बंधन तोड़कर,
कर्तव्य अपना भूलकर,
क्यूँ नही जा पाई,
स्त्री तुम
बुद्ध नहीं बन पाई !!
करोडों बार
अपमानित हुई,
बार बार प्रताडित हुई,
उजली तुम्हरी
चादर फिर भी
भी दागदार हुई,
स्त्री तुम क्यों
बुद्ध नहीं बन पाई !!
संसार को तुमने
जन्म दिया,
फिर भी मूढ़ कहलाई ,
ज्ञान-ध्यान-तप की खातिर,
घर-आंगन क्यों
छोड़ नहीं पाई,
स्त्री तुम
बुद्ध नहीं बन पाई !!
यशोधरा बनी, सीता बनी
द्रौपदी और अहिल्या भी
सच-शांत की पूजनीय
प्रतिमा होकर भी
स्त्री तुम
बुद्ध नहीं बन सकीं!!
परिचय :- श्रीमती क...






















