काहे का अभिमान रे मानव
ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
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काहे का अभिमान रे मानव,
काहे का अभिमान।
जल्दी ही है होने वाला
इस माया का अवसान, रे मानव,
इस माया का अवसान।।
क्या अभिमान करे है तू,
इस तन, मन और यौवन का।
पर तुझको कैसे ज्ञान नही,
नश्वरता मय इस जीवन का।।
कितने आये राजा महाराजा,
कितने आये साधू सन्त।
क्या कभी बचा वे पाये खुद को
क्या नही हुआ है उनका अंत।।
या दौलत की बात करे तू
यह भी तो है कितनी चंचल।
कितनी भी अकूत सम्पदा,
पर कभी रहे न स्थिर, अचल।।
केवल तेरे कर्म हैं सच्चे,
और सभी के प्रति अपनापन।
इससे ही तू करले प्रेम,
यही है तेरा जीवन धन।।
अतः बचा ले इनको तू,
और इन्हीं का रख तू ध्यान।
और अपने तन और अपने धन का,
कभी न करना तू अभिमान।।
परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता)
निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सु...






















