बेखबर
अनुराधा बक्शी "अनु"
दुर्ग, छत्तीसगढ़
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विचारों का बहाव बार-बार
तुम्हारे तरफ मुड़ जाता है।
जैसे यादों का सावन वहा
बरस रहा हो और मैं यहां भीग रही हूं।
परवाह किए बगैर कि तुम्हारे
मन में मैं हूं या नहीं।
तुम्हारे ना रहने से पूरा शहर ही
वीरान हो जाता है।
स्क्रीन पर तुम्हें देखने
मोबाइल बार-बार उठाना।
उंगलियों का मैसेज
टाइप करके मिटाना।
इस बात से बेफिक्र कि
तुम्हें मतलब नहीं इन सब से।
मन तुम्हें ही क्यों चाहता है।
जिंदा है तुम्हारे हाथों की छुअन जो,
अनजाने टकराया मेरे हाथों से।
उस स्पर्श ने सिर्फ मुझे छुआ।
इस बात से बिल्कुल बेफिक्र तुम।
मैं सिर्फ तुम्हारे लिए और तुम
बिलकुल...! बेखबर... ! बेखबर... ! बेखबर...!
परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु"
निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़
सम्प्रति : अभिभाषक
घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।
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