सिर्फ लाल
रूपेश कुमार
(चैनपुर बिहार)
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मेरी माँ ने एक बार कहा था,
बेटे जहा गणतंत्र का झंडा,
फहराया जाये,
२६ जनवरी को,
वहां ! उस जश्न मे मत जाना,
उस झण्डे के नीचे मत जाना,
ये सफेदपोश,
उस झण्डे को दागदार कर दिये है,
हर साल इसकी छाया मे,
इसके साथ बलात्कार करते है,
जर्जर बना दिये है इसे,
अब टूटने ही वाली है -यह आजादी !
सुनो बेटे ! यह सुनो बेटे ! सुनो-
यह गीत किसी कवि का है -
"बाहर न जाओ सैया,
यह हिन्दुस्तान हमारा,
रहने को घर नही है,
सारा जहां हमारा है",
रेडियो पर सुनते ही यह गीत,
मै ठठा कर हंसा था,
और माँ से कसम लिया था-
जब तक मै मुखौटे नोचकर,
इनका असली रूप/तुम्हारे सामने,
नही रखूँगा,
लानत होगी मेरी जवानी की,
धिक्कार होगा मेरे खून का,
इस झण्डे को,
अब बिल्कुल लाल करना होगा माँ,
तुम मुझमे साहस भरो,
लाल क्रांति का आहवान दे रही है माँ,
ताकि तिरंगे के नीचे कोई रंग न हो,
कोई रंगरे...