Monday, May 26राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

मत भड़काओ दंगे यारो
कविता

मत भड़काओ दंगे यारो

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** मत भड़काओ दंगे यारो, इन सबसे कुछ मिलता नही। बस होता है दुश्मनी का फ़ैलारा, और अमन का कमल खिलता नही। गर मिलकर रहेंगे हम सब एक, तो निपटे सुकून से काम अनेक। रखना ही है तो दिल मे रखिये, शांति धैर्य और अपना विवेक।। मेरा देश सोने की चिड़िया, था, है और अब भी रहने दो। रखो भरोसा ईक दूजे पर, कोई कुछ भी कहे कहने दो।। आपस मे ना बैर पालना, रहना हमेशा सच के साथ। करे कोई गर पीछे से घात, फिर भी करना प्रेम से बात। बापू सा समझाने वाला, अब कोई मिलता नही। मत भड़काओ दंगे यारो, इन सबसे कुछ मिलता नही। बस होता है दुश्मनी का फ़ैलारा, और अमन का कमल खिलता नही। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके न...
नई सुबह आ रही
कविता

नई सुबह आ रही

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। खेत की माटी बोल रही, ओ कर्मवीर उठ जाओ। प्राणों में अब हुंकार भरो, मेहनत की फसल उगाओ। नई रोशनी आरही अंधविश्वास दूर भगेंगे नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। जीत उसे हासिल होती, आशा के बल पर जीते। बाधाओं को दूर हटाके, वे नील गगन छू लेते। कर्म-आँधी चलरही श्रम- फूल खिलेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे।। सारे बंधन तोड कर, नई ऊर्जा से भर दें। खौफ का साया जहाँ, हौंसलों के पंख दे दें। नई लहर आ रही आत्मविश्वास जगेंगे। नई सुबह आ रही विश्वास दीप जलेंगे। चुनौतियों का सामना करो, भाग्य भरोसे बैठो नहीं। पुरुष हो पुरुषार्थ करो , बाधाओं से डरो नहीं। कर्मभूमि सज रही ज्ञानदीप जलेंगे। नव उमंग जाग रही नये गीत रचेंगे।। परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एव...
सुन्दरता
कविता

सुन्दरता

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** सुन्दरता सूरत में नही सुन्दरता गुण में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। कोई दिखती गोरी चिट्टी किसी के नैन तीखे हैं लेकिन उसकी कुरुपता ये कि वो बड़ो की इज्जत ना सीखे है सुन्दरता सूरत में नहीं सुन्दरता खुन में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। कितने मर मिटे नारी पर कितने घर बर्वाद हुये लेकिन सच्चा हृदय छोड़ भटक गया तु मृगनैयनी पर सुन्दरता सूरत में नही सुन्दरता प्रेमधुन में होती है जो पहचाने सच्चा प्रेम जौहरीपन उनमें होती है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहान...
कविता सुगंध
कविता

कविता सुगंध

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुगंध है व्याप्त वायु में रोम रोम को पुलकित करता तन मन को बेसुद्ध करता सरस सांस में है समाहित यह नव बसंत उत्सव जैसा खिल चुके हैं पुष्प वृंद सब आम्रकुंज में आती मंजर लता कुंज में नव पल्लव झूम रही गेहूं की बाली सरसों खिलीं कुम-कुम जैसा सुगंध है व्याप्त वायु में रोम-रोम को पुलकित करता फुदक रही है गौरैया भी गुटूर गुं की प्रणय गीत भी गा रही है वय कबूतरी। फैली धरा पर अनुपम आभा भंवरे समूह में गुंजन करते पुष्प सभी है शर्माती चुम रहे हैं ओष्ठ पुष्प का हो हो कर सब मतवाले डोल रहे हैं पुष्प डाल सब चुबंन से है थर्राते . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य...
मेरी पहचान
कविता

मेरी पहचान

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** ओ पिता! जबसे चले गये हो बहुत दूर और लोग कहते हैं कि तुम अब नहीं हो जबकि तुम अधिक रहते हो पास मेरे सुबह की धूप में दिखती है तुम्हारी हँसी छाँव में तुम्हारा वात्सल्य झलकता है शाम दिखाती है शिविर को लौटते हुए पसीने से नहाए लहुलुहान योद्धा की छवि रात को एक चिंताग्रस्त बाप बन जाती है ओ पिता! नहीं जानता था तुम्हारे जाने से पहले कि तुम्हारी यादें धँस चुकी हैं मेरे अंतर्मन में और घुल चुकी है मेरी धमनियों शिराओं में इतनी गहरी कि मेरे हर शब्द में बोलोगे केवल तुम ओ पिता! भरोसा है मुझे कि जब इस आपा-धापी से भरे जीवन में भावनाओं का सूखा पड़ जाएगा और भले बने रहने की नहीं बचेगी कोई सूरत तुम नेमत की बारिश की तरह आओगे और मेरी इंसानियत की फसल को सूखने से बचा लोगे ओ पिता! नहीं ला दूंगा तुम्हें नकली विशेषणों से नहीं करूंगा वृथा यशोगान भले ही नहीं मानूंग...
मलाल
कविता

मलाल

अमरीश कुमार उपाध्याय रीवा मध्य प्रदेश ******************** मलाल बस इतना था खयाल बस इतना, कि अभी साथ-साथ रहना था अभी कुछ दूर तक चलना था, एक बार अभी मिलना था कुछ उनसे और भी कहना था, मलाल बस इतना था।   परिचय :- अमरीश कुमार उपाध्याय जन्म - १६/०१/१९९५ पिता - श्री सुरेन्द्र प्रसाद उपाध्याय माता - श्रीमती चंद्रशीला उपाध्याय निवासी - रीवा मध्य प्रदेश शिक्षा - एम. ए. हिंदी साहित्य, डी. सी. ए. कम्प्यूटर, पी. एच. डी. अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताए...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पावन पर्व। हम भारतीय करते इस पर गर्व। तिल गुड़ की है इसमें मिठास दूर करती रिश्तों की खटास। तिल- गुड़ रखते काया निरोग खाओ-खिलाओ तिलगुड़-भोग। प्रेम-भाव से खूब उड़ाओ पतंग हिल-मिल रहो सभी के संग। गुड़ से मीठे रिश्ते महकते रहें परस्पर सम्बन्ध चहकते रहे। जीवन में खुशियों का रंग भरदे वासंती खुशनुमा उल्लास भरदे। रखो ऊँचा उठने की स्वकामना दूसरों को आगे बढ़ने की प्रेरणा। संक्रांति पर सभी को शुभकामना उउन्नति सफलता यश की कामना ।।   परिचय :- आशा जाकड़ (शिक्षिका, साहित्यकार एवं समाजसेविका) शिक्षा - एम.ए. हिन्दी समाज शास्त्र बी.एड. जन्म स्थान - शिकोहाबाद (आगरा) निवासी - इंदौर म.प्र. व्यवसाय - सेन्ट पाल हा. सेकेंडरी स्कूल इन्दौर से सेवानिवृत्त शिक्षिका) प्रकाशन कृतियां - तीन काव्य संग्रह - राष्ट्र को नमन...
जुबां से निकलेगा
कविता

जुबां से निकलेगा

संजय जैन मुंबई ******************** आज कल कम ही नजर आते हो। मौसम के अनुसार तुम भी गुम जाते हो। कैसे में कहूँ की तुम मुझे बहुत याद आते हो।। दर्द दिल में बहुत है किस से व्या करू। हमसफ़र बिछड़ गया। अब किसका इंतजार करू। अब जो भी मिलते है वो हंसते और हँसाते है। पर दिल के दर्द को वो बड़ा देते है।। तेरी यादों को सीने से लगाये रखा है। बीती बातो को दिल में सजाये के रखा है। अब तेरे दिल में क्या है मेरे लिए। वो तो तुझे ही पता होगा।। एक बार प्रेम से कोई शब्द बोलकर देखो। तेरा दिल फिर मेरे लिए मचलेगा। और जो दिल में तुमने दावा के रखा है। कसम उस खुदा की वो तेरे ही जुबा से निकलेगा।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी...
हर्ष, आनन्द और खुशी
मुक्तक

हर्ष, आनन्द और खुशी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** विश्व के हर देश में उत्कर्ष होना चाहिए। हर कुटी हर इमारत में हर्ष होना चाहिए। दूर हो दुनिया से सब दुख,दुराशय एवं दुराव, समापित भू से समर-संघर्ष होना चाहिए। ज़िन्दगी में हर्ष हो, आमोद हो, आनन्द हो। अब कहीं संसार में संग्राम हो ना द्वन्द हो। हों विवादित विषैले वचनों के सब व्यापार बन्द, मनुज के हर शब्द में हो अमिय या मकरंद हो! कच्चे घर में चूल्हे होते थे माटी के! आदी थे सब परंपरागत परिपाटी के! कितनी मीठी लगती थी मक्का की रोटी, कितने थे आनन्द मालवा की बाटी में! एक ओर दीपों की जगमग, दूजी ओर अंधेरा भी है! कहीं जश्न है ख़ुशहाली का, कहीं दुखों का डेरा भी है! कहीं स्नेह का रत्नाकर है,कहीं स्नेह का गहन अभाव, कहीं कमी है कुछ तेरी भी, कहीं दोष कुछ मेरा भी है! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म ...
फिर तैयारी रख
ग़ज़ल

फिर तैयारी रख

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** परवाना सरकारी रख। राग सभी दरबारी रख।। दाल रखी तरकारी रख। रोटी गरम करारी रख।। आग जले चाहे दिल में। होठों पर फुलवारी रख।। जैसे मिसरी घोली हो। बोली मीठी प्यारी रख।। करजा लेने दैने की। दूर अलग बीमारी रख।। नंगा नाचे सङकों पर। कुछ तो परदादारी रख।। बात सही तेरी लेकिन। कुछ तो बात हमारी रख।। गीत गजल पढना है तो। "हीरा" फिर तैयारी रख।। . परिचय :-  डाॅ. राधेश्याम गोयल, प्रचलित नाम डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद स्नातक साहित्य लेखन : सन १९७० से गीत, हास्य, व्यंग्य, गजल, दोहे लघु कथा, समाचार पत्रों मे स्वतंत्र लेखन तथा विभिन्न पत्रिकाओं में रचनाओं का पचास वर्षों से प्रकाशन अखिल भारतीय कविसम्मेलन, मुशायरों में शिरकत कर रचना पाठ, आकाशवाणी तथा दूरदर्शन पर रचना पाठ विभिन्न साहित्यिक सामाजिक संस्थाओं द्वारा सम्...
जागो तो
कविता

जागो तो

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जागो, जागो अब तो जागो मंदिर के घंटा घड़ियालों से नही जागे, न जागे गुरुजन की वाणी से अब तो जागो अधर्म के बढ़ते भीषण कोलाहल से जागो जागो अब तो जागो। सोते को जगाना सरल है पर तु तो पलके मूंदे लेटा है कब खोलेगा आँखे अपनी रिपु घर की चौखट से आ सटा है अपने लिए न सही संतानों के लिए तो जागो जागो ,जागो अब तो जागो। सोते रहने में घर गया था चला गया देश था डिगते ही स्वधर्म से सर्वस्व जाता रहा स्वामी से हो गया चाकर चाकरी करता रहा जगा रही वेदों की ऋचाएँ स्वर्णिम इतिहास की गाथाएं कह रही माटी भारत की अब तो जागो जागो, जागो अब तो जागो। हिमालय के मान के लिए गंगा के सम्मान के लिए ब्रह्मपुत्र की आन के लिए कश्मीर के वरदान के लिए कन्याकुमारी की शान के लिए मेवाड़ के अभिमान के लिए देवालयों के उत्थान के लिए अधर्म पर धर्म के रण के लिए गुरुगोविंद के बलिदान के लिए प्र...
नाज
कविता

नाज

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** मुझे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत ही नाज है। चाहने वाले तो उन्हे बहुत है मगर उनके दिल पर सिर्फ मेरा ही राज है मुझे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत ही नाज है। उन्हे देखूँ उन्हे चाहूँ उनके साथ चलती जाऊँ अब अन्त समय तक बस यही काज है मुझे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत ही नाज है। लाख शोहरत पा भी लूँ दुनिया में साथ उनके चलना ही मेरे सर का ताज है मुझे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत ही नाज है। उड़ने भी लगूं गगन में पंछी की तरह उनकी हथेली ही मेरी परवाज है मुझे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत नाज है। कितने ही गीत लिखूँ मैं अपनी कलम से हर गीत में छुपा हुआ उनका ही साज है हमे कुछ और जमाने से क्या उन पर मुझे बहुत ही नाज है। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कवि...
अंजुमन छोड दे
ग़ज़ल

अंजुमन छोड दे

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** इस नये हिंद की अंजुमन छोड दे अब तु अपना पुराना चलन छोड दे सिर्फ मिट्टी नहीं हर गुल है अज़ीज़ ख़ुशबू बन के महक या चमन छोड दे टुकड़े टुकड़े बिखर जायेंगे जिस्म के बंद मुठ्ठी के चैनों-अमन छोड दे नाज़ है जिन परों पे उखड जायेंगे ख़ैर है अब इसी में गगन छोड दे दोस्ती में दगा की जो आदत तेरी तु जो करता रहा आदतन छोड़ दे इश्क करना तुझे ना हो मुमकिन अगर फिर ये झूठी मुहब्बत का फन छोड़ दे सब कुर्बान है इस वतन के लिए "शाफिर" के लिए बस कफन छोड़ दे . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताए...
हिंदी मेरा अभिमान
कविता

हिंदी मेरा अभिमान

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** हिंदी मेरा प्यार है हिंदी मेरा अभिमान हिंदी मेरा व्यवहार है हिंदी स्वाभिमान हिंदी सरल सहज और मीठी जुबान है लोगों को फिरअंग्रेजी पर क्यों है गुमान हिंदी है मेरे माथे की बिंदी है मेरा श्रृंगार हिंदी मेरे सभ्यता संस्कृति की है पहचान भाषा में प्रख्यात और विख्यात है हिंदी क्यों जूझ रही है पाने को अपना स्थान हिंदी सुर है सरगम है संगीत है ताल है हिंदी से ही मेरा हिंद और मेरा हिंदुस्तान . परिचय :-  डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलांग जोड़ियों का विवाह कराना उपलब्धि : विभिन्न संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय...
रिमझिम-रिमझिम
कविता

रिमझिम-रिमझिम

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** रिमझिम-रिमझिम आओ फूहारों, मीठे गीत सुनाओं फुहारों। प्यारी-प्यासी इस धरती पे। प्रेम का जल बरसाओं फूहारों।। रिमझिम-रिमझिम आओं फूहारों। धान के खेत की आस पूजादों। पपीहे-चातक की प्यास बुझादों। प्रेमी-मन भीगे संग-संग। पुलकित सपनों को, आस बंधा दो। रिमझिम-रिमझिम आओं फूहारों।। मिलन के राग, सुनाओं फूहारों। सा-रे-गा-मा को सुरों में भरके। मचले मन में, तरंग उठाओं। बचपन भी, भूलकर सारे बंधन। कहों .......आ के कागज़ की नाव चलाओं। सबकी आंखों में, उल्लास बन छा जाओं। सूखी धरा हरी-भरी कर जाओं। रिमझिम-रिमझिम सावन आओं।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
मन के घर मे ठहरो
कविता

मन के घर मे ठहरो

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मन के घर में आकर ठहरों, देखो जग फिर क्या करता हैं। तूफानों से घिरा समुन्दर, कब तक नाँव किनारे बाँधे, पार पहुँचना इसके पहले जब तक सूरज सीमा फाँदे। तुम किश्ती में बैठो भर ही देखो तूफा क्या करता है। चुभते शूलों का है आंगन कैसे कोई रास रचायें, घणी घटा तम का हैं शासन, बोले कैसे खुशी मनायें, तुम मेरी बाहें बँध जाओ, देखो तम फिर क्या करता है। मन के घर में आकर ठहरों, देखों जग फिर क्या करता हैं। बुझी नहीं है प्यासी आशा फिर भी कल पर सांसे रोके, जीवन के घटियां पिंजरे से, पंछी उड़ जाने से रोके, तुम मुझकों अपनों मे घोलो, देखो यम फिर क्या करता हैं। मन के घर में आकर ठहरों, देखें जग फिर क्या करता हैं। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान...
लक्ष्य
कविता

लक्ष्य

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** धनुष से छूटा बाण कब पथ पर रुकता है, तुम तो लक्ष्यपथ के बाण हो, लक्ष्य तक पहुंचे बिना फिर तुम्हें नहीं ठहरना उठो और प्रयत्न करो रुको नहीं जब तक मंजिल पर न पहुंचो। मन की सकारात्मक्ता नई राह दिखाती है। आशाएं भी जगाती हैं तुरंत राह पर चलो। कार्य जो किए निर्धारित अंजाम देना है फ़ौरन। सीखने की प्रक्रिया को तुम रुकने न देना। तरक्की तुम्हारे क़दमों में होगी पथ पर विश्राम ना करना। कड़ी मेहनत का विकल्प नहीं कोई। कामयाबी छिपी है इसमें, तुम्हें उसी आवरण को खोजना।   परिचय :-  नाम :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा के लघु कथाकारो पर शोध कार्य, कविता, ऐंकर, लेख, लघुकथा, लेखन आदि का पत्र-पत्रिकाओं...
बिरहनी
कविता

बिरहनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बिरहनी इस चांदनी में ज्योति पुंज से तू खड़ी हो। इस धरा पर विपुल स्वर्ग सा मलयानिल फिर मंद गति से। रुक रुक कर बहती है। विरहनी इस धवल चांदनी में ज्योति पुंज सी तू स्थिर हो। बोलो सदियों की चुप्पी तोड़ो कब से मौन व्रत में तुम? चंचलता को रोक खड़ी हो। सृष्टि तो अविराम गति से सदियों से गतिमान बनी है। तुम प्रेरक हो जीवन सुधा की चांदनी फिर सकुचाई देखो। देखो चंपा जूही बेला रजनीगंधा ने ली अंगड़ाई। तेरी बंदन में मग्न रजनी है। नीले अंबर के तारक गण भी बिखरे हैं नभ में अति सुंदर। सुदूर क्षितिज में उज्जवल तारे तुझे देखकर विहंस रहे हैं। नीले अंबर के नीचे" विरहनी" नील मणी सी तू अति सुन्दर हर पल नूतन दिखती हो। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
लाख बचालो मुझसे खुदको
कविता

लाख बचालो मुझसे खुदको

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** लाख बचालो मुझसे खुदको, फिर भी तुम पर मेरी नज़र। संग गैरो के प्रीत लगाकर, मुझपे क्यों ढा रहे हो कहर।। छोड़के तुम क्यों चले गए हो, क्या बुरा लगा था मेरा शहर। अब ढूंढता रहता गली गली, अब देखती रस्ता मेरी नज़र।। कोई कहता पागल आवारा, कोई नदी दिखाता कोई नहर। कोई भेजे मंदिर कोई गुरद्वारा, कोई मुझे रोकता एक पहर।। तुम गैर नही थे मेरे लिए, तुमतो थे मेरी जान ए जिगर। जो हाथ दिया था प्रेम रस, वो निकला मीठा एक ज़हर।। गर था नही संग रहना मेरे , क्यों दिल मे चलाई मेरे लहर। देकर तो देखते मौका मुझे, कुछ मुझपर भी कर देते महर।। . परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। आपके द्वारा अभी त...
शिद्दत
कविता

शिद्दत

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे चाहा, तुझे पाया पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे पाया, तुझे अपना बनाया है पूरी शिद्दत से। जब भी अपना बनाया, तेरी हुई मैं पूरी शिद्दत से। जब भी तेरी हुई, तुझ में समाई पूरी शिद्दत से। जब भी तुझ में समाई, तुझमें रब नजर आया पूरी शिद्दत से। जब भी रब नजर आया, तुझ पर खुदा का नूर बरसा पूरी शिद्दत से। जब भी तुझे देखा, तुझे चाहा पूरी शिद्दत से।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरं...
हिंदी भाषा
कविता

हिंदी भाषा

संजय जैन मुंबई ******************** हिंदी ने बदल दी प्यार की परिभाषा। सब कहने लगे मुझे प्यार हो गया। कहना भूल गए आई लव यू। अब कहते है मुझ से करोगी..। कितना कुछ बदल दिया हिंदी की शब्दावली ने। और कितना बदलोगे अपने आप को तुम। हिंदी से शोहरत मिली मिला इसी से ज्ञान। तभी बन पाया एक लेखक महान। अब कैसे छोड़ दू इस प्यारी भाषा को। ह्रदय स्पर्श कर लेती जब कहते है आप शब्द। हर शब्द अगल अलग अर्थ निकलता है। तभी तो साहित्यकारों को ये भाषा बहुत भाती है। हर तरह के गीत छंद और लेख लिखे जाते है। जो लोगो के दिलको छूकर हृदय में बस जाते है। और हिंदी गीतों को मन ही मन गुन गुनाते है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक म...
मकर संक्रांति
कविता

मकर संक्रांति

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मकर संक्रांति का पर्व आया मिलजुलकर पर्व मनाएंगे। तिल गुड़ की मीठास संग, हम खुशी जताएंगे। मौज-मस्ती करेंगे हम, मन में विश्वास जगायेंगे, रंग बिरंगी पतंग डोर संग, आसमान में उड़ाएंगे। स्वर्णिम किरणों को छूने, लहराकर ऊपर चढ़ जाए, इंद्रधनुष रंगों में रंगकर, तूफानों में नाच दिखाएं। मंजिल का तो पता नहीं, नील गगन की रानी कहलाए, आसमान में बेखबर, आजादी संग उड़ती जाए। जब जब पेच लड़ा वह भी , लड़ने में जुट जाए , कट जाए या लूट जाए , तो वह निराश हो जाए। ऊंचाइयों का सपना, दिल ही दिल में रह जाता, अपने अस्तित्व को बचाने, फिर से धरती पर आ जाए। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानि...
विरह कुंड में हुए हवन
कविता

विरह कुंड में हुए हवन

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। नेह का नीड़ उड़ा ले गयी स्वारथ की जो बही पवन। पागल करके हमको कहती इस पागल का करो जतन। खुश हैं हम ओस की बूंदों में सागर संग तुम, रहो मगन। प्रेम भाव जो उठे थे मन में अब विरह कुंड में हुए हवन। सब कुछ तुमको सौंप दिया मिला ना तुम से अपनापन। फिर से तुम्हारी ही यादों का जो बादल घिर-घिर आया है। मैं सोचा इस पल को जी लूं कितनों ने पत्थर लहराया है।   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कव...
एक दिन ज़रूर होगा
कविता

एक दिन ज़रूर होगा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। मेरे अपनो को भी मुझ पर बेइंतहा गुरुर होगा। उड़ने की कोशिश में हूँ बिना पंखों के आसमान में, हौसलों ने दिया साथ तो छा जाऊंगा जहान में, मेरी नज़्म का एक दिन, तुम्हारे होठों पर सुरूर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। चलता ही रहता हूँ अपनी मंज़िल की तलाश में, आलोचक बहुत है मगर होता नही निराश में, देखना एक दिन आयेगा, जब दामोदर मशहूर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। कोई कहता है तू तो पागल हो गया है, ना जाने कोनसी दुनिया मे तू खो गया है, ये तो मेरा ख़्वाब है, कोई दौलत नही जो गुरुर होगा... ये एक दिन में नही होगा मगर एक दिन ज़रूर होगा। सर्वरस धारा का एक दरिया है ये, दिल की बात कहने का ज़रिया है ये, मैं तो यूँ ही लिखता रहूंगा, अगर तुम्हे मंजूर होगा......