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पद्य

कुदरत का पैगाम
कविता

कुदरत का पैगाम

केशी गुप्ता (दिल्ली) ********************** रो रहा है आसमां देख धरती का हाल दंगाइयों के हाथ से पिट रहा यूथ यहां पथ भ्रमित है दिशा चल रही नफरत की हवा खेल रहे भविष्य से आज के पहरेदार दबा रहे जज्बातों को खींच दिलों में दीवार लड़ा रहे एक दूजे से धर्म के पहरेदार गरज रहे हैं मेघ भी देख कर यह अत्याचार ना बांटो इंसान को रहने दो इंसानियत कुदरत यह दे रही चीख चीख कर पैगाम . परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका निवास - द्बारका, दिल्ली आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अप...
कर्तव्य
गीत

कर्तव्य

संजय जैन मुंबई ******************** दीये का काम है जलना। हवा का काम है चलना। जो दोनों रुठ जाएंगे। तो मिट जाएगी ये दुनिंया।। गुरु का काम है शिक्षा देना। शिष्य का काम शिक्षा लेना। जो दोनों भटक जाएंगे। तो दुनियाँ निरक्षक हो जायेगी।। पुत्र का काम है सेवा करना। मातपिता का काम है पालन पोषण करना। जो दोनों एक दूसरे से मुंह मोड़ लेंगे। तो सारी दुनिंया बदल जाएगी।। इसलिए संजय कहता है, करो अपने कर्तव्यों का पालन। तभी सुंदर बन सकता, अपना ये वतन। इसलिए हमारा देश विश्व मे सबसे न्यारा है। जहाँ हर महजब के लोग हिल मिलकर रहते है।। जहाँ हर........।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहि...
या खुदा
कविता

या खुदा

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा। मैं अपने ईमा पे कितना उतरा हूँ खरा। कितने लोगों को आई पसंद मेरी अदा। में कितनो को भाया अभीतक, और कौन मुझपे हुआ फिदा।। कितनो के लिए मैं अच्छा हूँ, और कितनो के लिए हुआ बुरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... फिक्र नही फरिश्तों में गिनती हो मेरी। सब खुश रहे बस यही विनती है मेरी।। फिर भी आज दर्द का एहसास क्यों हुआ, ये किसने मेरे पीठ पीछे घोंपा है छुरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... बंदगी की तेरी मैंने रात दिन यहां। में तेरी चौखटों पे फिरा यहां वहां।। में अपनों की खुशी तुझसे मांगता रहा, रखना तू मेरे अपनो को बस हरा भरा। या खुदा तू मुझे बता तो दे ज़रा... इस जहां में कोई भी उदास न रहे। मजबूरी के नाम पर उपवास न रहे।। मिले ना कोई मांगता भीख भी यहां, सभी के सर पे छत हो सभी को आसरा। या खुदा तू मु...
हमे बचालो
कविता

हमे बचालो

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** धरती पर पड़ी नववर्ष की पहली किरण ओस की बूंदो के आइने में अपना आकार देख कह रही - ओस बहन तुम बड़ी भाग्यवान हो जो कि मुझसे पहले धरती पर आ जाती हो तुम्हे तो घास बिछोने और पत्तो के झूले मिल जाते है । मै हूँ की प्रकृति /जीवों को जगाने का प्रयत्न करती रहती हूँ किंतु अब भय सताने लगा है फितरती इंसानो का जो पर्यावरण बिगाड़ने में लगे है और हमें भी बेटियों की तरह गर्भ में मारने लगे है आओ नव वर्ष की पहली किरण औंस की बूंद और बेटी हम तीनों मिलकर सूरज से गुहार करें हमे बचालो। . परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशि...
आशावादी ‘बीस’
दोहा

आशावादी ‘बीस’

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** अगणित अनुभव दे गया, विगत वर्ष 'उन्नीस'। चौखट पर आकर खड़ा, आशावादी 'बीस'। मीठी यादों से मिला, भावुक बीता वर्ष। नूतन सन् को दे गया, आसन-मुकुट सहर्ष। कुछ खोया कुछ पा लिया, हमने पिछले साल। बिदा समय हमसे हुआ, चलकर अपनी चाल। कभी सुमन सम है समय, कभी लगे यह शूल। कभी सुखद अनुकूल है, कभी दुखद प्रतिकूल! नहीं एक जैसी रहे, सतत काल की चाल। कभी सरल सहयोगिनी, कभी विषम विकराल। काटो तो कटती नहीं, दुख की लम्बी रात। सहता है कोमल हृदय, पीड़ा के आघात। समय-साधना से मिले, बड़े-बड़े उपहार। समय सफलता-मंत्र है, समय महा उपचार। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, ...
यह ज़िन्दगी
कविता

यह ज़िन्दगी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** न जाने क्यों चलते चलते, यह ज़िन्दगी ठहर जाती है। त्याग कर प्राचीनता, नवीनते में झांकती आंखें, छोड़ कटुता, मधुरता को तलाशती आंखें, न जाने क्यों स्वयं गुम हो जाती हैं। न जाने क्यों चलते........ हंसते अधर, अठखेलियां करते थिरकते पांव, तपती धूप से तड़प कर, किसी तरु की ढूंढते छांव, न जाने क्यों इनमें शिथिलता आ ही जाती है। न जाने क्यों....... खिलखिलाते होंठ जब नकार बदहवासियों को, मनाते जश्न जब त्याग उदासियों को, न जाने क्यों आंखे विद्रोही हो जाती हैं। न जाने क्यों....... उडें उन्मुक्त हो, परिंदों से, विस्तृत गगन में, भरे मस्त हो उड़ाने, तितली सी चमन में, न जाने क्यों मस्तियां अवरोधित हो जाती है। न जाने क्यों....... मदमस्त भाव उभरते हैं हृदय पट पर, उभरते हैं नये रंग चित्र पट पर, न जाने क्यों चलती लेखनी सिहर जाती है। न जाने क्यों चलते चलते ज़िन्दगी...
कोई हमारा न हो सका
ग़ज़ल

कोई हमारा न हो सका

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** हमको कभी किसी का सहारा न हो सका।। दरिया ए इश्क में कई गोते लगा लिए अपने क़रीब कोई किनारा न हो सका।। मिलने की कोशिशें भी कई उनसे की मगर उनकी नज़र का कोई इशारा न हो सका कितना उनसे प्यार उन्हें कैसे हम कहें उनसे ज़ियादा कोई प्यारा न हो सका।। दिल में हमारे हर लम्हा उनका मुक़ाम है उनसा मुक़ीम कोई दुबारा न हो सका ग़र नहीं तो ज़िन्दगी जीना मुहाल है। उनके बिना"शलभ"का गुज़ारा न हो सका।। . परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्...
अजनबी – अपने
कविता

अजनबी – अपने

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** अजनबी के मोहब्बत से डर गई। अपनों के नफरत से डर गई। किसी के इजहार से डर गई। अपनों के इनकार से डर गई। इसी डर से न अजनबी की हुई, ना अपनों की। दूसरों पर विश्वास ना किया और अपनों की बेवफाई से डर गई । मैं ढूंढती रही सारी रात ,सुबह को और अंधेरे के गहराई से डर गई। . परिचय :-  नाम - चेतना ठाकुर ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल प...
बसंत
कविता

बसंत

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** बसंत जब आती है। कोयल गीत गाती है। इठलाती है डाली पे आम्र मंजरी में छुप छुप गुप चुप नहीं, आलाप तीब्र कूक की। डाली पे छुप गाती है। बसंत की परिधान में मुस्कान नव नव आता है। अतिरंग में वहिरंग हो। नवरंग जब आता है। निराशा में आशा पतन में उत्थान नवताल नव छंद किसलय से वासंती जब मुस्कुराता है। बसंत के आगमन से सृष्टि नव आता है। मुरझायी हुयी कलियों में कोपल मे नव गंध नव सुगंध भाता बसंत जीवन सूचक है। बसंत अंत मरणासन्न कुछ काल तक ही आता है। ब्रह्म बेला में प्राणदायिनी वायु बन। सुगंध के झरोखों से प्रिये सी अभिनंदन करती हैं। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी ...
उनसे कह दो
ग़ज़ल

उनसे कह दो

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** उनसे कह दो फिर दिलकश बाहर लाया हूँँ लुट गया था जो उनका करार लाया हूँँ उनको देख लूँ बस इतनी सी तमन्ना लेकर जिंदगी से मैं कुछ लम्हे उधार लाया हूँँ उदास क्यों हो क्या जख्म देने बाकी है कदम बढ़ाओ खंजर लो आबदार लाया हूँँ यकीं नहीं तो बस एक नजर काफी है अपनी गुमनामी का एक इश्तिहार लाया हूँँ नुमाइश क्या करूं छोड़ो भी छिपे रहने दो हजारों जख्म है उनमें से बस दो-चार लाया हूँँ मयकदे में जो आया तो तन्हाँ नहीं आया साथ मैं और भी इश्क के बीमार लाया हूँँ इबादत कर रहा हूं मानकर उनको खुदा "शाफिर" तिजारत वो करें उनके लिए बाजार लाया हूँँ . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित क...
चंद लम्हो का हूँ मेहमान
कविता

चंद लम्हो का हूँ मेहमान

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। ढूंढता रहता हूँ अक्सर एक पल सुकून का। जवाब देने लगा अब कतरा कतरा खून का। भीड़ दुनिया की मुझे रास नही आती है। अब तो खुशियां भी मेरे पास नही आती है।। करके अपनों को मैं हैरान चला जाऊंगा... चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। करता रहता हूँ सफ़र रात दिन कमाने को। लोग पीछे पड़े ज़िन्दगी की जंग हराने को।। फिर भी रुकता नही मैं कभी थकता नही। चंद रुपयों के लिए मैं कभी बिकता नही।। करके तेरी गली सुनसान चला जाऊंगा... चंद लम्हो का हूँ मेहमान चला जाऊंगा। में हूँ दुनिया से परेशान चला जाऊंगा। दिल के हालात बयां करने को अल्फ़ाज़ नही। मेरी ये ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नही।। मैं तो हूँ खुद्दार बड़ी शान से रहना है मुझे। बेहरहम दुनिया से बस यह...
जन्मदिन तुम्हारा
कविता

जन्मदिन तुम्हारा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** जन्मदिन हैं तुम्हारा, यह मेरा पैगाम हैं तुमको जीना जिंदगी अपनी, सब कुछ भूल कर के तुम। अपने अरमानों को पूरा करना, हौंसलों से तुम सब कुछ भूल करके, एक नई शुरुआत करना तुम। अनुभव के ज्ञान से, निष्कर्ष पर पहुंचना तुम ज़िन्दगी का हर एहसास अपनी दृष्टिकोण से देखना तुम। ओंस की बूंदों के जैसें, तुम ही गिरना, तुम संभालना, अपनी ही चेतना से सब कुछ भूल कर के एक नई शुरुआत करना तुम। अब तक जो बितायी ज़िन्दगी, उसे याद रखना तुम किन्तु खुद को मत मिटाना, यह सदैव याद रखना तुम। किसी के यादों में, बातों में, नजरों में, अब उठने की कोशिश मत करना तुम छोड़ दो रूठना, मनाना, जताना, अग्नि परीक्षा देना तुम। ज़िन्दगी एक सफर हैं, अब किसी के लिए रुकना नहीं तुम सब कुछ भूल कर, एक नई शुरुआत करना तुम। जन्मदिन तुम्हारा हैं यह मेरा पैंगाम हैं तुमको जीना ज़िन...
नव वर्ष मे
कविता

नव वर्ष मे

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** नव वर्ष मे, नव रुप मे, नव नवल मे, नव कमल मे, नव रंग मे, नव तरंग मे, नव उदय मे, नव राग मे, नव गीत मे, नव प्रीत मे, नव उमंग मे, नव उज्जवल मे, नव नभ मे, नव सुर्य मे, नव रीति मे, नव नीति मे, नव जीत मे, नव प्रवाह मे, नव दिशा मे, नव दर्पण मे, नव ज्योति मे, नव पूजा मे, नव देश मे, नव काल मे, नव साल मे, नव चेतन मे, नव गीत मे, नव छंद मे, नव कविता मे, नव कहानी मे, नव जीवन मे, नव प्रसंग मे, नव स्नेह मे, नव प्रेम मे, नव शब्द मे, नव ज्ञान मे, नव संगीत मे, नव ताल मे, नव उम्मीद मे, नव सौगात मे, नव आश मे, नव साँस मे, नव अवसर मे, नव चाह मे, नव स्फूर्ति मे, नव थकावट मे, नव पथ मे, नव पहचान मे, नव धर्म मे, नव जात मे, नव सोच मे, नव संकल्प मे, नव नूतन वर्ष मे, नव उपहार मे, नव सुबह मे, छांव में, नव वर्ष की, नव क्षण मे, नव रोशनी की, नव उल्लास मे, नव म...
समय
कविता

समय

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** समय को समझो समय को जानो समय को अपना प्रिय मित्र मानो समय का ख्याल करो खुद से ये सवाल करो समय अगर गुजर गया तब ना इसका मलाल करो पाषाण से कड़ा है कौन रत्न से जड़ा है कौन भिक्षुक हो या भूप यहाँ समय से बड़ा है कौन . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने चलभाष पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी ...
साथ मिले तो
गीत

साथ मिले तो

संजय जैन मुंबई ******************** तेरे प्यार का मुझको, यदि मिले जाए आसरा। तो जिंदगी हंसकर के, गुजर जाएगी यू ही। दिल के अंधेरे में एक, प्रकाश की किरण जलेगी। और मेरा अकेलापन, शायद दूर हो जाएगा।। तुझे देखकर दिल, मेरा धड़कने लगा है। बुझे हुए दीये, फिर से जलने लगे है। कुछ तो बात है तुममें जो दिल की धड़कन हो मेरी। तभी तो उजड़े हुए बाग को, फिरसे खिला दिया तुमने ।। दिलों का मिलना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तुमसे प्यार होना भी, एक इत्तफाक ही तो है। तभी तुम बार बार मेरे, सपनो में आते जाते हो। ये कोई इत्तफाक नही, तेरे दिल में भी कुछ तो है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहु...
मां वाणी … कुंडलिया
छंद

मां वाणी … कुंडलिया

शरद मिश्र 'सिंधु' लखनऊ उ.प्र. ********************** मां वाणी कुछ दीजिए, ऐसा आशीर्वाद। भारत भू से हो सके, खत्म सभी उन्माद। खत्म सभी उन्माद, जिहादी हिंसा रोको, यदि मानें वह नहीं, उन्हें काली बन ठोकों, फेंक रहे जो पत्थर, हिंसक मूढ़ अनाड़ी। भर शुभत्व दो, उनके मन में भी मां वाणी। . परिचय :-  नाम - शरद मिश्र 'सिंधु' उपनाम - सत्यानंद शरद सिंधु पिता का नाम - श्री महेंद्र नारायण मिश्र माता का नाम - श्रीमती कांती देवी मिश्रा जन्मतिथि - ३/१०/१९६९ जन्मस्थान - ग्राम - कंजिया, पोस्ट-अटरामपुर, जनपद- प्रयाग राज (इलाहाबाद) निवासी - पारा, लखनऊ, उ. प्र. शिक्षा - बी ए, बी एड, एल एल बी कार्य - वकालत, उच्च न्यायालय खंडपीठ लखनऊ सम्मान - सर्वश्रेष्ठ युवा रचनाकार २००५ (युवा रचनाकार मंच लखनऊ), चेतना श्री २००३, चेतना साहित्य परिषद लखनऊ, भगत सिंह सम्मान २००८, शिव सिंह सरोज स्मारक संस्थान सम्मान २०१९ संपादन - द...
मंगलमय
कविता

मंगलमय

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** तू क्षणभंगुर होते हुए भी अनंत का हिस्सा है, आकाश, वायु, जल पृथ्वी, अग्नि ने सुनाया वो किस्सा है। मोल तेरा कुछ भी नही परन्तु तू है अनमोल बिखरा दे हवा में अपनी सुगंध तेरी आत्मा परमात्मा का ही हिस्सा है। आदित्य रश्मियों कर स्वागत अंतस के तमस को बाहर कर तू अखंड ज्योति का ही हिस्सा है। ज्ञान के भवसागर से हो कर जाते है मार्ग उन्नति के, नव वर्ष की शुभघडी लिख रही तेरा ही मंगलमय किस्सा है। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अ...
पिता तुल्य दूजा नहीं
दोहा

पिता तुल्य दूजा नहीं

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पिता जनक शिक्षक गुरू, रक्षक पालनहार। पिता तुल्य दूजा नहीं, नमन करे संसार। पिता पुण्य पग-पग करे, हरे सकल अवसाद। सन्तानें होकर बड़ी, करतीं वाद-विवाद। दुःखी स्वयं रहता मगर, करता सुख संचार। जनक तुल्य संसार में, करे कौन उपकार। बापू बाबा पितृ पिता, दादा डैडी तात। बाबूजी अब्बू सभी, पापा के अर्थात्। मात-पिता शिक्षक प्रथम, पथदर्शक अनमोल। त्यागों का इतिहास वे, कष्टों का भूगोल। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और अंग्रेज़ी साहित्य), बी• एससी•, बी• एड•, एलएल•बी•, साहित्य रत्न, कोविद कार्यक्षेत्र ~ सेवानिवृत प्राचार्य सामाजिक गतिविधि ~ मार्गदर्शन और प्रेरणा लेखन विधा ~ कविता,गीत, ग़ज़ल, मु...
प्यार
कविता

प्यार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** दिन का सवेरा है प्यार हवा का झोंका है प्यार दिल की धड़कन है प्यार उगता सूरज है प्यार नदी की धार है प्यार तूफान की आहट है प्यार चेहरे की मुस्कान है प्यार दीपक की लौ है प्यार आग का दरिया है प्यार दो दिलों का समर्पण है प्यार कुछ कर गुजरने का जुनून है प्यार आगे प्यार को क्या नाम दें एक मीठा सा एहसास है प्यार एक दूसरे पर मर मिटने का नाम है प्यार .... . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अमर उजा...
दर्द-ए-ग़म
ग़ज़ल

दर्द-ए-ग़म

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** जब भी दर्द-ए-ग़म मिला हम सोचते रहे कब कैसे और कब मिला हम सोचते रहे शायद उम्मीद ए वफ़ा लगा रखी थी हमने मिली बेवफाई तो वजह हम खोजते रहे राज ए मोहब्बत जो ना बता सके उसे ख्वाबों में उससे बाराहा हम बोलते रहे रूख ए मौसम साखे गुल सा बदन मेरा यू अर्रजे नियाजी इश्क को हम रोकते रहे इश्क मोहब्बत माना एक छलावा है बीना गुनहगार समझ खुद को ही हम कोसते रहे. परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दुर्ग छत्तीसगढ़ कार्य : चिकित्सा रुचि : लेखन कथा लघु कथा गीत ग़ज़ल तात्कालिक परिस्थिति पर वार्ता चर्चा परिचर्चा लोगों से भाईचारा रखना सामाजिक कार्य में सहयोग देना वृद्धाश्रम अनाथ आश्रम में निशुल्क सेवा विकलांग जोड़ियों का विवाह कराना उपलब्धि : विभिन्न संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मान द्वारा सम्मानित टीवी ...
नव वर्ष
कविता

नव वर्ष

कुमार जितेन्द्र बाड़मेर (राजस्थान) ******************** विश्वास चारों ओर अंधेरा छाया, अंधविश्वास का है पहरा। रखे विश्वास की बागडोर, होगी रोशनी नई किरणों से। मिट रहा है घनघोर अंधेरा, आज है नया साल हमारा।। संघर्ष तप रे कोमल कोमल हृदय, इंसान की स्वार्थ ज्वाला में। तप रे मृदु-मृदु तन, सूर्य की तीक्ष्ण ज्वाला में। बीत रहा है संघर्ष का अंधेरा, आज है नया साल हमारा।। उल्लास प्रातः काल नई किरणों से, पंछियों की प्यारी सी गूँज से। फूलों की महकती खुशबू से, रंगीन सवेरा बोल रहा है। नए साल के उल्लास में, मिलकर करे अभिनन्दन।। . परिचय :- नाम :- कुमार जितेन्द्र (कवि, लेखक, विश्लेषक, वरिष्ठ अध्यापक - गणित) माता :- पुष्पा देवी पिता :- माला राम जन्म दिनांक :- ०५. ०५.१९८९ शिक्षा :-  स्नाकोतर राजनीति विज्ञान, बी. एससी. (गणित) , बी.एड (यूके सिंह देवल मेमोरियल कॉलेज भीनमाल - एम. डी. एस. यू. अजमेर) निवास...
नया साल नया ज़माना
कविता

नया साल नया ज़माना

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** नये साल का आ गया नया ज़माना, विगत साल पर, आँसू, नहीँ बहाना, अनुभव अनेक मिले होंगे, तुम्हेँ, जीवन मेँ उन्हेँ कभी न भूल, ज़ाना, दिन तो आते रहते, हैँ, झन्झावातोँ के, दिल मज़बूत कर, कभी न घबराना, जिंदगी मेँ ज़ब आयेँ, खुशियोँ के दिन, दोस्तोँ के संग, मस्ती मेँ खिलखिलाना, मुफलिसी के दौर, गुजर रहे, लोगोँ संग, कुछ अमुल्य क्षण भी, ज़रूर बिताना, साल तो क्या आयेंगेँ और चले जायेंगेँ, सभी लोगोँ के संग, सरलता से पेश आना . परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रका...
नव वर्ष अभिनंदन
कविता

नव वर्ष अभिनंदन

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** अभिनन्दन मन मंगल मय हर क्षण हो उत्सव। विप्लव आप्लावित हो, आर्त बने स्यंम कलरव। वर्षित नेह पूर्ण तम, कर दे सचराचर को। दिवा स्वपन को सत, रूपक दे सतत वर्ष नव। पर दुःख से है कंपित, सुख में भी हर्षित हों। चहुँ दिसी समता व्यापत, द्बेष का ना हो उदभव। भाव प्रबल पुष्टित हो, भ्रम हो स्वतः पलायन। उठे त्याग की अभिलाषा, परि पूरित हो भव। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान और सुशीला देवी सम्...
कैलेण्डर बदल गया
कविता

कैलेण्डर बदल गया

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** कैलेंण्डर बदल गया और कुछ नहीं हुआ। समय आगे बढ़ गया बच्चों की उम्र बढ़ गई और कुछ नहीं हुआ। माॅ॑–बाप के जीने की उम्र थोड़ी कम हो गई और कुछ नहीं हुआ। रिटायर मेंट की उम्र थोड़ी कम हो गई और कुछ नहीं हुआ। पोते/पोतियों की शादी की उम्र हो गई और कुछ नहीं हुआ। बचपन की मस्ती जवानी की यारी कैलेंण्डर जब जब बदला थोड़ा याद आया और कुछ नहीं हुआ। मौसम भी वहीं हैं लोग भी वहीं हैं बस कुछ नए चेहरे आ गए और कुछ नहीं हुआ। परम्परा भी वहीं हैं संस्कृति भी वहीं हैं बस थोड़ा सा जीवन जीने का तरीका बदल गया हैं और कुछ नहीं हुआ। सोच भी वहीं हैं जज़्बात भी वहीं हैं बस लोगों में संवेदना थोड़ी कम हो गई हैं और कुछ नहीं हुआ। दोस्त भी वहीं हैं दुश्मन भी वहीं हैं सपने भी वहीं हैं मंजिल भी वहीं हैं बस इक्सवीं सदी का बीसवां वर्ष लग गया हैं। और कुछ नहीं हुआ।। . ...
नया वर्ष
कविता

नया वर्ष

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। अपने लिए, संकल्प पर दृढ़ रहूं। यह पैगाम लेकर, २०२० आया है। नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। रह गया जो, वो बात बीती। उन कमीयों को, पूरा करने, २०२० आया है। नया वर्ष, नया उत्कर्ष, लेकर आया है। कड़वाहट को, दूर करने, अविश्वास में, विश्वास भरने। नाकारात्मकता को, दूर करने। मन में, संकल्प भर लाया है। नया साल, नयी बातें, नया- पन लाया है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक क...