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पद्य

फेसबुक
कविता

फेसबुक

मनकेश्वर महाराज "भट्ट" मधेपुरा (बिहार) ******************** फेसबुक का दौर चल रहा है सुबह, शाम, दोपहर होने का कैसे मॉर्निंग, आफ्टरनून, एंवनिग करने का खेल हो रहा है नमस्कार, प्रणाम से देखों कैसे लोग बोर हो रहे है सब-सब से मौन होकर देखों फेसबुक पर शौर हो रहे है एक लड़की के पीछे देखों कितने आदमखोर सुबह शाम हो रहे है दूसरे की बहन पर देखों कैसे अभद्र भाषा की टिप्पणी छोड़ रहे है। रात दिन ऑनलाइन होकर देखों कैसे औरत की व्यवस्ता को तौल रहे है मित्र बने नहीं देखों कितने कॉल मैसेज हो रहे है। उफ देखों ये कैसा घिनौना खेल हो रहा है उधर देखों लड़का लड़की की आईडी से कैसे मिलन जोड़ हो रहे है ये कैसा आधुनिकता का भोर हो रहा है।   परिचय :-  मनकेश्वर महाराज "भट्ट" साहित्यकार , शिक्षक मधेपुरा , बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकत...
तू नजर आया
कविता

तू नजर आया

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** रात को जब चांद में, मुझे तू नजर आया रात में बस ख्वाब में, मुस्कुराता नजर आया। ख्वाबों में तेरा चेहरा, यूं पास नजर आया इश्क मोहब्बत का चढ़ता, खुमार नजर आया। किस से कहें दिले, जज्बात ए दास्तां किस्सा कई बार बहुत, पुराना याद आया। तुझे भी तो ये चांद कहीं, दिखता होगा बता ..क्या उसमें तुझे मेरा, चेहरा कभी नजर आया। जमाने को जब भी देखा, इन निगाहों ने मुझे चारों तरफ बस, तू ही तू नजर आया। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य ...
रात भर
ग़ज़ल

रात भर

प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) (मुजफ्फरनगर) ******************** रात भर आपकी याद आती रही चाँदनी मेरे दिल को जलाती रही मानिन्दे शमाँ मैं भी जलता रहा लौ शमाँ की मुझे आजमाती रही उनकी आँखों की मय का असर देखिए ज़िंदगी उम्रभर लडखडाती रही साँसें उनके बिना मैं भी गिनता रहा एक आती रही एक जाती रही जिसपे मरते रहे हो के अंजान सी उनकी ज़ल्फें यूँ ही बल खाती रही बेवफा वो रहे फिर भी क्यूँ आजतक उनकी तस्वीर हमको रुलाती रही वो गये जब से "शाफिर" क्यूँ आँखें तेरी झूठ की आड में मुस्कुराती रही . परिचय :- प्रमोद त्यागी (शाफिर मुज़फ़्फ़री) ग्राम- सौंहजनी तगान जिला- मुजफ्फरनगर प्रदेश- उत्तरप्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
गणतंत्र दिवस पर
कविता

गणतंत्र दिवस पर

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** गणतंत्र दिवस पर सच्चाई की कविता पढ़ने आया हूँ। उन नालायक़ के गालों पर एक थप्पड़ जड़ने आया हूँ। जिनने मारा था, थप्पड़ उस दिन, सैनिक के गालों पर। था शर्मसार बेज़ार देश .......... नाली के कीड़े सालों पर। घाव हरा होना ही था, बच्चा बच्चा थर्राया था। गद्दारों के हाथों ने, तब झंडा पाक उठाया था। आग लगेगी मुल्क जलेगा, महबूबा फुफकारी थी दिल्ली की गद्दी, क्रोधित हो बहुत खूब हुंकारी थी। औलादें पढ़ें विदेशों में, दिल्ली में घर बनवा डाला। निर्दोष बिचारे बच्चों को पत्थर का बैग थमा डाला। अरे तुम्हारी मक्कारी ने दिल्ली को बिल्ली बना दिया। थी नाइंसाफ़ी ज़ालिम की, हर इक़ पण्डित को भगा दिया। है लिस्ट बड़ी संतापों की, गिन गिन कर बदला लिया नहीं। हर पत्थर का गिन कर ज़वाब, शायद हाक़िम ने दिया नहीं। ये तय है तेरे कर्मों का फल इक साथ मिला तो खलता है। कश्मीर मुक्त, ल...
सिर्फ लाल
कविता

सिर्फ लाल

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** मेरी माँ ने एक बार कहा था, बेटे जहा गणतंत्र का झंडा, फहराया जाये, २६ जनवरी को, वहां ! उस जश्न मे मत जाना, उस झण्डे के नीचे मत जाना, ये सफेदपोश, उस झण्डे को दागदार कर दिये है, हर साल इसकी छाया मे, इसके साथ बलात्कार करते है, जर्जर बना दिये है इसे, अब टूटने ही वाली है -यह आजादी ! सुनो बेटे ! यह सुनो बेटे ! सुनो- यह गीत किसी कवि का है - "बाहर न जाओ सैया, यह हिन्दुस्तान हमारा, रहने को घर नही है, सारा जहां हमारा है", रेडियो पर सुनते ही यह गीत, मै ठठा कर हंसा था, और माँ से कसम लिया था- जब तक मै मुखौटे नोचकर, इनका असली रूप/तुम्हारे सामने, नही रखूँगा, लानत होगी मेरी जवानी की, धिक्कार होगा मेरे खून का, इस झण्डे को, अब बिल्कुल लाल करना होगा माँ, तुम मुझमे साहस भरो, लाल क्रांति का आहवान दे रही है माँ, ताकि तिरंगे के नीचे कोई रंग न हो, कोई रंगरे...
बुजुर्गो की वसीयत
कविता

बुजुर्गो की वसीयत

मनीषा व्यास इंदौर म.प्र. ******************** प्रयास यही है कि ये उम्मीद बची रहे। बुजुर्गो की दी वसीयत बची रहे। तिनका तिनका पिरोकर जो संस्कार रूपी मोती पिरोए थे। उन मोतियों की माला बची रहे। बच्चों के बीच दूरियां न हो ...... इसके सिवा एक मां को चाहिए भी नहीं कुछ। पल पल फूलों की पंखुड़ियों सा संजोकर समेटी है ये छोटी सी दुनिया। दौलत हो न हो पर ये मोहब्बत बची रहे। बिखरे फूलों का अस्तित्व नहीं है। कहते है परिंदों के झुंड भी बिखरकर खो जाते हैं। बिना संस्कारों के घर बिखर जाते हैं। संस्कार न जाने कब गुलाब सी माला पिरो जाते हैं। बुजुर्गों की दी धरोहर बची रहे। प्रयास यही है कि ये आस बची रहे।   परिचय :-  मनीषा व्यास (लेखिका संघ) शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत) रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा लेखन, पंजाबी पत्रिका सृजन का अनुवाद, रस-रहस्य, बिम्ब (शोध पत्र), मालवा ...
तेरी पायल की झनकार
कविता

तेरी पायल की झनकार

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। दबे पैर आ जाना तेरा चुपके से हर बार।। तेरी खनकती चूड़ियां भी मेरा होंश उड़ाती है। तेरे आने का एहसास पल पल मुझे दिलाती है। तेरी बिंदिया भी मुझको चुपके से करती प्यार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। तेरे आने से पहले तेरी खुशबू की महक आती है। छा जाता है नशा मेरी आंखे भी बहक जाती है।। तेरी आँखों का काजल भी करता है इकरार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। पागल मुझे बनाता है तेरे माथे का टीका। दुनिया का सारा श्रृंगार तेरे आगे है फीका। तेरे कान के झुमके ही बस करते है इनकार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। हाय तेरा बाजूबंद और ये मांग का सिंदूर। ये दोनों तुझसे मुझको होने नही देते दूर। तेरे मंगलसूत्र से ही तो बसा मेरा संसार... भूले से ना भूलूं तेरी पायल की झनकार। पहन नाक ...
भला कोई क्या लिखेगा
कविता

भला कोई क्या लिखेगा

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** नन्ही परी को गुड़िया के सिवा कोई क्या कहेगा उसे अपनी कहानी में परियों के सिवा कोई क्या लिखेगा। गुड़िया शब्द में उसे बांधना बहुत आसान हैं किन्तु! उसके अल्हड़पन में पीछे मातृत्व भाव पर कोई क्या लिखेगा।। गुड़िया को गुड़िया कहना बहुत आसान हैं उसी गुड़िया का कौमार्यं चित्रण करना बहुत आसान हैं। उसे प्रकृति का श्रृंगार औ वसुन्धरा लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! सीता के त्याग और धैर्यं का द्वंद्व कोई क्या लिखेगा।। मीरा के भक्ति का सार कोई क्या लिखेगा शबरी के प्रेमानुभूति का भाव कोई क्या लिखेगा। माँ के वात्सल्य भाव को लिखना बहुत आसान हैं किन्तु ! उसके प्रसव पीड़ा का दर्द रूपी प्रेम कोई क्या लिखेगा।। सच तो यह हैं एक नन्ही परी ही सृष्टि का निर्माण हैं भला इसे शब्द में कोई कितना कहेगा लड़की हैं ! बस इसी स्वरूप में इसे लिखना बहुत आस...
जिंदगी खेल नहीं
कविता

जिंदगी खेल नहीं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों, का कोई मेल नहीं है। जिंदगी खेल नहीं।। रोटी, कपड़ा और मकान के सवालों में, जिंदगी इस कदर, बे-कद्र हो जाती है। जिंदगी में तब, जीने के लायक, एहसास जैसी चीज, बचती ही नहीं। जिंदगी खेल नहीं सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं।। बचपन, जवानी और बुढ़ापे की, समस्याओं में बस, त्रासदी का, अलग -अलग ही सही, पर एहसास है..... वही। संघर्ष से, कोई बचा नहीं हर पल। जिंदगी के सामने है, हर रोज खड़ी, एक जंग नई। जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का कोई मेल नहीं। जिंदगी खेल नहीं। हर शख्स अपने वजूद से, परेशान है ...।। काश होता .....यह। वह ..............नहीं। लेकिन मुश्किलों का, सफर थमता ही नहीं। क्योंकि.....जिंदगी खेल नहीं। सपनों और हकीकतों का, कोई मेल नहीं। जिंदगी सपनों से, दिल बहलाती है। उसी आस पर, बद-से-बदत...
अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो
कविता

अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** भारतवासी सुमन, वतन है उपवन अपना भारत! प्यारा घर है भारत अपना, आँगन अपना भारत! सारे जग में है सबसे मनभावन अपना भारत! सकल सृष्टि में इसकी सौरभ,चन्दन अपना भारत! भारत वर्ष स्वतंत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! रहे पक्षधर सदा अम्न के,नहीं किसी पर किया आक्रमण! विवश किया गया जब हमको,किए शस्त्र तब हमने धारण! सदा विजय के झंडे गाड़े, लड़े नहीं हम कभी अकारण! अमर शहीदों की जय गाथा, गाता रणभूमि का कण-कण! 'सत्यमेव' का मंत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! 'जनता द्वारा जनता हेतु जनता का' यह त॓त्र हमारा! हिन्दू-मुस्लिम-सिक्ख-ईसाई, सबका है यह देश सहारा! सब मिल-जुल हो गए एक,जब-जब हमलावर ने ललकारा! अपनी संगठन शक्ति से ही, दुनिया का हर दुश्मन हारा! राष्ट्र प्रेम संयत्र अमर हो! अपना प्रिय गणतंत्र अमर हो! दायित्वों-अधिकारों का समिश्रण अपना ...
गणतंत्र
कविता

गणतंत्र

सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" इंदौर म.प्र. ****************** अर्थ नहीं है तंत्र बता दो, देश का ऐसा मंत्र है । लाख शहीदों की वेदी पर, बना हुआ गणतंत्र है ।। न्याय दंड का मोल यहां पर, चांदी के बल होता है। अन्यायी आजाद रहे यहां, हरिश्चंद्र अब रोता है ।। देश में कुर्सी ईश्वर से भी, बढ़कर समझी जाती है। कुर्सी पूज रहे हैं नेता, कुर्सी उनकी साथी है। न्याय नहीं सरकार नहीं, फिर कैसे देश स्वतंत्र है।। अर्थ नहीं है तंत्र बता दो, देश का ऐसा मंत्र है। लाख शहीदों की वेदी पर, बना हुआ गणतंत्र है।।   परिचय :-  सुश्री हेमलता शर्मा "भोली बैन" निवासी : इंदौर मध्यप्रदेश जन्म तिथि : १९ दिसम्बर १९७७ जन्मस्थान आगर-मालवा शिक्षा : स्नातकोत्तर, पी.एच.डी.चल रही है कार्यक्षेत्र : वर्तमान में लेखिका सहायक संचालक, वित्त, संयुक्त संचालक, कोष एवं लेखा, इंदौर में द्धितीय श्रेणी राजपत्रित अधिकारी के रूप ...
खत चिट्ठी
कविता

खत चिट्ठी

डॉ. बीना सिंह "रागी" दुर्ग छत्तीसगढ़ ******************** याद आते हैं वह दिन जब हम हाथों से खत लिखा करते थे एक एक अक्षर से जैसे प्रेम स्नेह नेह के पुष्प खिला करते थे मास दो मास मैं कागज की जमीन पर मन की बातें लिख पाते थे जिसके नाम का संदेशा होता था वह खुशी से फूले नहीं समाते थे प्रिया की प्रेम भरी पाती पढ़कर प्रियवर झूम कर इतराते थे संदेशा हो अपने संतान का तो माता-पिता हृदय से मुस्कुराते थे डाकिया डाक लाया का इंतजार करना बढ़ा अच्छा लगता था पोस्टकार्ड हो या लिफाफा मे लिखा प्रेम ही सच्चा लगता था हमने माना खत के आने जाने में वक्त की अपनी मजबूरी थी फिर भी संबंधों में पावन खुशबू और दिलों में ना कोई दूरी थी हम कुछ पागल कुछ नादान हर हाल में इंसान हुआ करते थे याद आते हैं वह दिन जब हम हाथ से खत लिखा करते थे. परिचय :- डॉ. बीना सिंह "रागी" निवास : दु...
बासी रोटी
ग़ज़ल

बासी रोटी

प्रेम प्रकाश चौबे "प्रेम" विदिशा म.प्र. ******************** बासी रोटी, प्याज नौन से। उतरत नइं है, कहें कौन से? बहुएं सुनें न मोड़ी-मोड़ा, को सुन रओ है? रोएं जौन से। गईया खों अब, चरबन नइयां, पौवा पे, आ गई पौन से। हम ने खाये दूध निपनिया, हम पुसात जा, निरे धौंन से? घर-घर में मटयारे चूल्हे, कहो "प्रेम" का भलौ मौन से? . परिचय :-  प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ - "पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत...
तुम्हारे बिना
कविता

तुम्हारे बिना

संजीत कुमार गुप्ता चैनपुर, सिवान, (बिहार) ******************** अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ आ तुझे मैं गुनगुनाना चाहता हूँ . कोई आँसू तेरे दामन पर गिराकर बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ . थक गया मैं करते-करते याद तुझको अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ . छा रहा है सारी बस्ती में अँधेरा रोशनी हो, घर जलाना चाहता हूँ . आख़री हिचकी तेरे ज़ानों पे आये मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ. . परिचय :-  संजीत कुमार गुप्ता  छात्र : बी.एस सी (मैथ ऑनर्स) व्यवसाय : गुप्ता साइकिल स्टोर निवासी : चैनपुर, सीवान (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजि...
राज
कविता

राज

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मैं अपनी दोस्ती के जज्बात, लफ्ज़ों में लिखती रही, बेचैन होकर रात भर, करवटें बदलती रही। आ रहे थे ख्वाब तेरे रात भर, मैं चांद में तुझको यूं ही ढूंढती रही। कब की बिखर जाती, गर तू साथ ना होता, तेरी दोस्ती के सजदे में, मैं सर झुकाती रही। तेरे इश्क ने रंग अपने, बदले कई बार, मैं हर बार बिखरे रंगों को, समेटती रही। मुझे विश्वास था अपने दोस्त पर, मैं दोस्ती की सीपी में, मोती सी कैद होती रही। मेरा दोस्त समंदर से गहरा लगा, मैं दोस्ती की गहराई के राज, ढूंढती रही।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिं...
ऋतु चक्र
कविता

ऋतु चक्र

श्याम सुन्दर शास्त्री (अमझेरा वर्तमान खरगोन) ******************** घनघोर घटाओं का अंबर में विचरण, बारिश से पुरित धरा, आंगन। विदाई का आ गया क्षण, शीत से हुई बदन की ठिठुरन। सूर्य का मकर में आगमन, हर्षित हुआ जन मन। पतंग का आकाश में उड्डयन, हिलोरें ले रहा है तन। जैसे आकांक्षाओं का गगन में भ्रमण, पुलकित हो रहा चमन सुमन। वसंत प्रवेश के बता रहा लक्षण पादप करेंगे नव पल्लव आवरण। रंगों से सराबोर होगा तन वसन, ग्रीष्म से होगा फिर काया तपन। प्रकृति का अद्भुत यह रचन, ऋतुओं का यह चक्रण। . परिचय :- श्याम सुन्दर शास्त्री, सेवा निवृत्त शिक्षक (प्र,अ,) मूल निवास:- अमझेरा वर्तमान खरगोन शिक्षा:- बी,एस-सी, गणित रुचि:- अध्यात्म व विज्ञान में पुस्तक व साहित्य वाचन में रुचि ... आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर ...
जीवन धारा
कविता

जीवन धारा

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** बहती जाये जीवन धार, सुख मे साथी क ई हजार दुःख मेंं बंद सभी के द्वार। मन कहता बैरागी होजा, मन कहता रंगों में खोजा, छलना मय संसार। दुःख में बंद सभी के द्वार। पगले अर्थ समझ जीवन का, सर्जन और विसर्ज तन का, होना है हर बार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। तन से रिश्ता नहीं प्राण का, रामायण गीता कुराण का, मर्म यहीं हैं सार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। ज़ी आशा लेकर तू कल की, रुके नहीं गति जीवन जल की, बहती जाये धार। दुःख मे बंद सभी के द्वार। . . परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में ...
अन्तर्मन
कविता

अन्तर्मन

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** अन्तर्मन की सूनी बगिया में, फूल खिले अरमानों के, झूम उठा मन हुआ वावरा फूटे स्त्रोत तरानों के। भेदी चादर घोर तिमिर की, चन्द्र किरण अब चमक उठी, शुष्क वाटिका में अब फ़िर से पुष्प वल्लरी बिहन्स उठी। सुप्त रहें खोये खोये, उन भंवरों की गुंजार उठी मनुहारी तितली की आभा, हर बगिया गुनगुना उठी। बहे बासन्ती ‌व्यार सुहानी मतवाली बन लहक-लहक, नीलगगन में इतराते वो पंछी प्यारे चहक-चहक, पुरवैया के झोंकों से उड़े चुनरिया गोरी की करें सहेली हंसी ठिठोली, नयी नवेली दुल्हन की ! प्रियतम संग गोरी मुस्काये, पल पल जाये वहक-वहक, झुक-झुक जाये लाज से नयना, आंचल जाये ढलक-ढलक। . परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी ...
नियोजित शिक्षक
कविता

नियोजित शिक्षक

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** आज शिक्षक की क्या हालत हो गई है। सभी विद्यालय जैसे आज अदालत हो गई है। हर छोटी मछली बड़ी मछली का शिकार बन रही है। शिक्षा देना बच्चों को सरकारी व्यापार बन रही है। नेता भी लगे हैं अपनी उल्लु सीधा करने में। चापलूसों की क्या कहे भला हम जो लगे हैं जेबी भरने में। घर परिवार की ना सोचें और उजड़े उपवन बनते हैं। इनमें भी है खुब खराबी अब क्या क्या मैं बयाँ करुँ? काम है चने चबाना फिर क्यों ना मैं उनका सम्मान करूँ? हे भगवान तुझे ही क्या कभी इनसे कुछ दुश्मनी हुई थी? क्या तेरा नेताओं से भर भर घुटने बनी हुई थी? हर क्षेत्र में हर कार्य में अधिकारी निकाले इनका फरमान। फिर आज क्यों आज जमाने में मिलता नहीं इनको सम्मान। . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी ...
मेरी माँ मेरा आधार
कविता

मेरी माँ मेरा आधार

संजय जैन मुंबई ******************** कितना मुझे हैरान, परेशान किया लोगों। पर मकसद में वो, कामयाब हो नहीं पाये। क्योंकि है माँ का आशीर्वाद, जो मेरे सिर पर। इसलिए तो बड़ी से बड़ी, मुश्किलों से निकल जाता हूँ।। धन दौलत से ज्यादा, मुझे मेरी माँ प्रिये है। तभी तो मैं भागता नहीं, पैसों के लिए कभी। पैसा और सौहरत हमें, बहुत मिलती रहती है । क्योंकि मेरे साथ, मेरी मां जो रहती है।। पैसों की खातिर में अपनी, मां को छोड़ सकता नहीं। चाहे मुझे पैसा और सौहरत, बिल्कुल भी न मिले। पर मुझे पता है माँ से बढ़कर, संसार में कुछ भी नहीं। इसलिए तो मेरी माँ ही, मेरे जीवन का आधार है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hi...
औरत
कविता

औरत

आशा जाकड़ इंदौर म.प्र. ******************** पराधीनता का है नाम न उसकी कोई पहचान न अपना कोई काम उसका कुछ अपना नहीं सोचा हुआ सपना नहीं जन्म से मृत्यु तक अधीन अन्यथा है वह श्री विहीन है देवी, पूज्यनीया और जननी, जो अपने लिए नहीं, औरों के लिए जीती है। आंखों में आंसू लेकर, औरों को खुशियां देती है। ममता, त्याग, दया की देवी पल-पल, जीती-मरती है। पढ़ी-लिखी होने पर भी, पुरुषों से कम आती जाती है। दहेज के कारण आज भी, भ्रूण हत्या का शिकार होती है। बचपन से लेकर मरण तक जीवन भर चुप रह सहती है। घर-परिवार को संभाल कर, देश की बागडोर भी संभालती है। पर, परतंत्रता में ही उसका अस्तित्व है। स्वतंत्र होकर तो और भी परितंत्र है। वो बेटी, बहना, पत्नी, मां बनती है, तभी तो औरत का गहना पहनती है। आदर्श की बलिवेदी पर वही आग में झोंकी जाती है पवित्रता की आड़ में, वही छली जाती है। सांसें ...
दहेज प्रताड़ना का दंश
कविता

दहेज प्रताड़ना का दंश

विमल राव भोपाल म.प्र ******************** एक नई नवेली दुल्हन को कुछ लोगों ने क्या सिला दिया बाबुल के अंगना से लाकर पीहर में उसको "ज़ला" दिया क्या होते हैं रिश्तें नाते उन गददारो ने भुला दिया कितनी तड़फी होगी बेहना जब उसको जिन्दा ज़ला दिया चीखी-चिल्लाई होगी वो क्या पूरी बस्ती बेहरी थी जब धुआँ उठा होगा घर में दिन में भी, रात अँधेरी थी कोई आ जाता, पानी लेकर दरवाजा तोड़, बचा लेता घरमें भी सब मौजूद रहे कोई तो, आग भुजा देता जिस पति पर विश्वास किया उसने (अंजु ) को जला दिया बेहना की बातो में आकर पत्नी को क्या सिला दिया उसकी हर एक चीख पिता के मन को बहुत सताती हैं जिस माँ ने उसको जनम दिया उसकी छाती भर आती हैं कितनी मेहनत से, पाला था उस माँ ने अपनी, बेटी को एक पल में उसने जला दिया पापा की प्यारी बेटी को ये काम कमीनो वाला हैं कोई कुत्ता ही कर सकता हैं द्रोपति का चीर हरण जग में कोई दुस्...
जिन्दगी
कविता

जिन्दगी

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** जिन्दगी के पन्नों में, ना जाने कब क्या हो, कही मौत का पता नहीं, कही जान का अता नहीं। सिर्फ रह जाती हैं, नीलाम्बर सी याद्दे, इन यादों का एहसास, ना जाने कब दफन हो जाएँ। वक्त के साथ चलो, जिंदगी के मेलों मे, मधुर वाणी के अमृत की, जीवन चरिचार्थ हुईं। . परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - मेरी कलम रो रही है कुछ सहित्यिक संस्थान से सम्मान प्राप्त ! आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हि...
मातृभूमि
कविता

मातृभूमि

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मातृभूमि तुम्हें नमन, यहां की माटी है चंदन, ये हिंदुस्तान है मेरा। हमारे दिल की है धडकन, मां के चरणों में वंदन, ये हिंदुस्तान है मेरा। वंदे मातरम धड़कन दिल की, राष्ट्र की आराधना है, ऊर्जा देने वाला गीत है, भारत मां की वंदना है, कफन बांधकर निकले घर से श्वास नहीं गिना करते, देश की हिफाजत करना भी, पूजा और अर्चना है, तो तिरंगा हो कफन हमारा, बस यही अरमान, ये हिंदुस्तान है मेरा। मां के दामन पर कभी भी, दाग नहीं लगने देंगे, जो वो गए मस्तक धरती पर, मान नहीं घटने देंगे, स्वतंत्रता की ज्योत जल रही, उसे नहीं बुझने देंगे, मर भी जाएं तो ये तिरंगा, कभी नहीं झुकने देंगे, तो मां के सर का ताज तिरंगा वीरों का सम्मान, ये हिंदुस्तान है मेरा, ये हिंदुस्तान है मेरा। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ...
मां शारदे
कविता

मां शारदे

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। मैं दीन-हीन अति पामर। मुझ पर कृपा दृष्टि कर दे मां शारदे तू मुझ पर कृपा कर दे। श्वेत वासिनी मां तू अंतस मे विज्ञान-ज्ञान भर दे। तू महामूर्ख कालीदास को छन में महाकवि बनाया। ज्योतिपुंज भर दे। दीन पर दया कर दे। झंकृत कर दो तू अपनी वीणा की तारें वाणी में ओज भर दे। अलंकृत हो मेरा भी जीवन तू कृपा दृष्टि कर दें। श्वेत कमल पर आसन तेरी मां मुझ पर कृपा कर दे। . परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindiraksha...