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पद्य

पहलवान
कविता

पहलवान

डाॅ. हीरा इन्दौरी इंदौर म.प्र. ******************** मूंछो पे दे रहे हो बहोत ताव पहलवान। कुछ दम है तो अखाड़े में आ जाव पहलवान।। हरेक से अकड़ते हो ताकत के जोम में। कुछ अपनी हड्डियों पे तरस खाव पहलवान। मुझसे मुकाबला कोई आसान काम है। पिस्ते बदाम और अभी खाव पहलवान।। जनता हो काँग्रेस हो या कोई पार्टी। जिसमें जगह हो घुसने की घुस जाव पहलवान।। धन्धे की नौकरी की तुम फिक्र ना करो। जबतक मिले हराम की तुम खाव पहलवान।। बजरंग के हो चेले तो एक काम तुम करो। जाओ कोई पहाड़ उठा लाव पहलवान।। स्टूडियो के फोटोग्राफर ने ये कहा। फोटो तो सीना तान के खिंचवाव पहलवान।। पत्नी तुम्हारी करती है किस तरह तुमसे बात। "हीरा" का देखो मुँह नहीं खुलवाव पहलवान।। . परिचय :-  डाॅ. "हीरा" इन्दौरी  प्रचलित नाम, डाॅ. राधेश्याम गोयल जन्म दिनांक : २९ - ८ - १९४८ शिक्षा : आयुर्वेद स्नातक साहित्य लेखन : सन १९७० से गीत, हास्य, व्यंग्य, गजल,...
मैं और उसका मैं
कविता

मैं और उसका मैं

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं पंखुरियों सा बिछता रहा वो शूल सा चुभता रहा खिले थे एक ही शाख पर न वो पास था, न दूर मैं। मैं, मैं को कुचलता रहा वो, मैं को पालता रहा छोटे से जीवनपथ पर न वो झुका, न तना मैं। मैं समय धारा में बहता रहा वो, मैं की अग्नि में जलता रहा हो कैसे अग्नि पानी-पानी न वो चिंता तुर, न चिंतामुक्त मैं मैं दूध पिलाता रहा वो जहर उगलता रहा लिए अपना अपना स्वभाव न वो थका, न मैं। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां...
न्याय
कविता

न्याय

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** हमारे देश का ये एक अभिशाप है प्रत्यक्षदर्शी भी अन्धे बन जाते है फिर ऐसा लगता है मेरे देश का ये कैसा इन्साफ है? ये कैसा इन्साफ है? न्याय न्याय वो करते जाते जिनके सर पर ना छत है ना आस है न्याय फिर मिल जाता है उनको सत्ता, पैसा और महल जिनके पास है ये कैसा इन्साफ है? ये कैसा इन्साफ है? प्रशासन भी साथ उन्ही का देती जिनसे उनकी पैसों की बुझती प्यास है न्याय कहाँ मिलता है उसको जिन्हे रोटी, कपड़ो की हमेशा तलाश है ये कैसा इन्साफ है? ये कैसा इन्साफ है? देख देख कर ये दुर्गति होता दुख मुझे अपार है भ्रष्टाचार अगर कम नही हुआ तो एक दिन भारत का विनाश है ये कैसा इन्साफ है? ये कैसा इन्साफ है? पर कुछ तो अच्छा हुआ देश मे अब दिख रहा कुछ साल में मोदी जी अगर रहे सलामत हो रहा उनका बेहतर प्रयास है अब होता इन्साफ है। अब होता इन्साफ है। . परिचय :- ...
हसीं मौसम
कविता

हसीं मौसम

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** हसीं मौसम का आनंद, आप अपनों संग लिजिए। गैरों संग मजे कर, अपनों को दर्द कभी ना दीजिए।। मौसम कोई भी हो, उसे हसीं मौसम बना लीजिए। ठंड बहुत ज्यादा हो, अलाव जला आनंद लीजिए।। इसी बहाने कुछ पल, अपनों से आप बातें कीजिए। बड़े बुजुर्गों के अनुभव को, साझा आप कीजिए।। जिंदगी में कभी भी, उदास आप ना रहा कीजिए। है बहुत छोटी, हर पल आनंद से जिया कीजिए।। कुछ यादें, जाने से पहले आप अमिट छोड़ दीजिए। जग याद करें, ऐसा कुछ तो आप काम कीजिए।। सुबह शाम चक्कर में, जिंदगी तमाम ना कीजिए। मिला है अनमोल जीवन, इसे सार्थक कीजिए।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ ...
जोरू का गुलाम
कविता

जोरू का गुलाम

अमित राजपूत उत्तर प्रदेश ******************** मात पिता की सेवा ना कर जोरू की बाहों में सो गया ! बेकार है तेरा जीवन तू तो जोरू का गुलाम हो गया ! जोरू कहे तो हां में हां मां बाप कहे तो ना करते हो ! मां बाप से अपने डरते नहीं पर जोरू से तुम डरते हो ! डूब मरो चुल्लू भर पानी में तेरा जीवन शर्मसार हो गया ! भूल गया है मात पिता को तू जोरू का गुलाम हो गया ! भूल गया जन्म देने वाली उस मां को ओर जोरू पे मरते हो ! छोड़ दिया मात बाप को बुढ़ापे में जोरू की जी हजूरी करते हो ! नर्क बना कर जीवन मां बाप का जोरू के सपनों में खो गया ! अब शर्म नहीं आती तुझे क्योंकि तू जोरू का गुलाम हो गया! . परिचय :- अमित राजपूत उत्तर प्रदेश गाजियाबाद आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी क...
लुप्त हुआ अब सदाचरण
कविता

लुप्त हुआ अब सदाचरण

संतोष नेमा "संतोष" आलोक नगर जबलपुर ********************** लुप्त हुआ अब सदाचरण है बढ़ता हर क्षण कदाचरण है आशाओं की लुटिया डूबी स्वार्थ सिद्धि में नर हर क्षण है निशदिन बढ़ते पाप करम अब कलियुग का ये प्रथम चरण है अपनों की पहचान कठिन है चेहरों पर भी आवरण हैं झूठ हुआ है हावी सब पर सच का करता कौन वरण है कब तक लाज बचायें बेटी गली गली में चीर हरण है देख देख कर दुनियादारी "संतोष" दुखी अंतःकरण है . परिचय :-  संतोष नेमा "संतोष" निवासी : आलोक नगर जबलपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर ...
यादों के सहारे
गीत

यादों के सहारे

संजय जैन मुंबई ******************** पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। तुझे याद है कि नहीं, मुझे कुछ पता नही। तेरी बेरुखी अब मुझसे, नहीं देखी जा रही। तुझे कुछ पता है कि में कैसे जी रहा तेरे बिना।। मुझे मालूम होता कि, मोहब्बत में ये सब होगा। तो में निश्चित ही ये दिल, किसी से भी न लगता। मगर मोहब्बत कोई करता, नही सोच समझकर। ये दिल तो अपने आप, किसी से लग जाता है।। मोहब्बत का दस्तूर ही, कुछ ऐसा होता है। किसको खुशीयाँ देता है, तो किसको गम भी देता है। यही तो जिंदगी का सही, चक्र जीवन में चलता है। किसको प्यार मिलता है, किसको नफरते मिलती।। मोहब्बत करने वालो का, अलग ही अंदाज होता है। पुरानी यादों के सहारे, जीये जा रहा हूँ मैं। और जामने के दर्द को पिये जा रहा हूँ अब तक।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई मे...
नया साल
कविता

नया साल

परमानंद निषाद छत्तीसगढ, जिला बलौदा बाज़ार ******************** उगते हुए सूरज का निकलना नया साल है। उदय होते सूरज का ढल जाना नया साल है। किसी भूखे को खाना खिलाना नया साल है। किसी प्यासे को पानी पिलाना नया साल है। सपनों को सच कर दिखाना नया साल है। भ्रष्टाचार को मिटाना नया साल है। रोगी की सेवा करना नया साल है। अनपढ़ को शिक्षा देना नया साल है। बेरोजगार को रोजगार देना नया साल है। पर्यावरण को स्वच्छ बनाना नया साल है। शादी मे दहेज ना लेना नया साल है। कन्या हत्या ना करना नया साल है। बेटा-बेटी मे भेद ना करना नया साल है। किसी बेसहारा को सहारा देना नया साल है। गिरते हुए को थामना नया साल है। फूल का डाली से मुरझा कर गिर जाना नया साल है। बीते हुए बुरे पलों को भूलाकर आगे बढ़ना नया साल है। कामयाबी की शिखर पर पहुंचकर नई ऊंचाईयों को छुना नया साल है। बुढ़े मां-बाप का सहारा बनकर उन्हे गले लगाना नया साल ...
एक शहीद की पत्नी का दर्द
कविता

एक शहीद की पत्नी का दर्द

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** ये चूड़ी ये कंगन अब भाते है नही मुझको, जब से इस देश के लिए खोया है तुझको। ना चैन है ना सुकून है ना नींद आती है, अब बस तुम्हारी याद में सारी रात जाती है। वो सजने संवरने के ख़ाब सताते नही मुझको...। जब से इस देश के लिए खोया है तुझको। ये चूड़ी ये कंगन... बैवा हूँ, अबला हूँ, अकेली हूँ शहर में। आती रहती हूँ अक्सर लोगों की नज़र में। सोचती हूँ बच्चों को लेकर गांव चली जाऊं मैं। मगर वहां भी कोई नही फिर कहाँ जाऊं में। अब बच्चों के खिलौने दिलायेगा कौन? मैं रूठ जाऊंगी तो अब मनाएगा कौन? अब खुदको समझाने के तरीके आते नही मुझको...। जबसे इस देश के लिए खोया है तुझको। ये चूड़ी ये कंगन... वो मेरे जन्मदिन पर बाहर खाने पर जाना, वो दिवाली पर बेग भरकर पटाखे, मिठाई लाना। वो करवाचौथ पर तुम्हारा घर जल्दी आ जाना, खुदके बारे में न सोच बस हमे सबकुछ दिलाना।...
अँग्रेजी की आग
कविता

अँग्रेजी की आग

भारत भूषण पाठक धौनी (झारखंड) ******************** एक आग कल भी लगी थी। एक आग आज भी लगी है।। कल आग अंग्रेजों ने लगाया। आज अँग्रेज़ी ने लगा रखी है।। अँग्रेज़ी का खेल तो देखिये हुजूर। जीवित पिता को डेड बना डाला। भला इसमें उस पिता का क्या कसूर।। कल तक जो बेटा चरणों तक झूकता था। आज घुटनों पर ही रुक जाया करता है।। कल पिता की चलती थी जो अंगुली पकड़ कर। आज उंगली छुड़ाती बरबस ही दिख जाती है।। कल लोगों में प्रेम भरपूर दिख जाता था। आज प्रेम का व्यवसाय सा दिखता है।। एक आग कल लगाई थी भारत को बनाने को। एक आग आज लगाई जाती है भारत को मिटाने को।। कल लोग गुलाम थे पर मन में आजादी थी। आज जब आजादी है मन में सिर्फ बरबादी है।। . परिचय :-  नाम - भारत भूषण पाठक लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत ' निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड) कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्य...
इस संसार में
कविता

इस संसार में

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** यह सोचा मैंने इस संसार में अकेला हूं मैं यूं कहने को यहां। मेरे साथ प्रकृति की सन्नाटा चिरपरिचित झींगुर की आवाज। काली स्याह रात कभी धवल धूसर चांदनी जिसकी दूधिया प्रकाश। फिर भी इस सब के बीच अपने आप को अकेला और तन्हा पाता हूं अपने आप को। सोचता हूं यहां कोई अपना होता बोध करा पाता उसे अपने अंतस की गहराइयों को सृजनशील मानव अपनी राह खुद बनाते हैं। उस पथ पर बढते चले जाते हैं। उद्धत अविराम कर्म पथ पर सृजनशीलता की परिचय देते हैं। अपने एहसास के अनगढ पत्थरों को अपनी कल्पनाओ की पैनी छैनी तथा कर्मठता की हाथौड़ो से प्रहार कर नई जीवंत मूर्ति तराश लेते सृजनशीलता तो प्रकृति की अटूट नियम है। प्रकृति की शक्ति को नियंत्रित करने की व्यर्थ कोशिश की गई है। उनकी भाव भंगिमा ओं के साथ छेड़छाड़. करके मानव महा विनाश की ओर निर्बाध अपनी गति को बढ़ाई। . परिचय :-...
आपके लबों से
कविता

आपके लबों से

केदार प्रसाद चौहान गुरान (सांवेर) इंदौर ****************** देख कर लगता है की। गुलाब ने भी। आपके लबों से।। लाली चुराई होगी। देख कर आपका सौंदर्य।। पूर्णिमा की चांदनी भी। शरमाई होगी।। बादलों में घूमते हुए। जैसे यह जल भरे बादल।। है वैसे ही आपकी आंखों का। यह सुंदर काजल।। पेड़ों पर झूमती लताओं का वेश। ऐसे ही सुंदर लग रहे हैं आपके केस।। देखकर यह सुंदर परिदृश्य। बदल गया सारा परिवेश।। फूलों से सज कर जैसे। झुक गई हो डाली।। वैसे ही आपकी। सुंदरता है निराली।। . परिचय :-  "आशु कवि" केदार प्रसाद चौहान के.पी. चौहान "समीर सागर"  निवास - गुरान (सांवेर) इंदौर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप कर...
सूरज की किरणें
मुक्तक

सूरज की किरणें

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हुई प्रकृति में उद्घोषित भोर! धीरे-धीरे बढ़ा धरा पर शोर! हुआ तिरोहित तम आया आलोक, सूरज की किरणें छाईं चहुँ ओर! धीरे-धीरे बीती रात! आख़िर तम ने खाई मात! फैली लाली चारों ओर, दिनकर लाया सुखद प्रभात! पूर्व में हो रहा है रवि उन्नत ! रश्मियों से हुआ तिमिर आहत! जागृत-प्रकाशित हैं जड़-चेतन, कर रहे हैं प्रभात का स्वागत! किरणों से संसार सजाया सूरज ने। अंधियारों को दूर भगाया सूरज ने। जीव धराशाई थे और अचेतन भी, महा जागरण गीत सुनाया सूरज ने। हो गई है यामिनी की हार तय! तिमिर का होने लगा है सतत् क्षय! प्राणियों में चेतना का शोर है, हो रहा है पूर्व में दिनकर उदय! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन...
रे माधो
कविता

रे माधो

लज्जा राम राघव "तरुण" बल्लबगढ, फरीदाबाद ******************** रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. मन की तनिक लगाम खींच, फिर सोई आत्मा जागे। रे माधो सुख है दुख के आगे।.. मन तुरंग पर चढ रावण ने सीता जाय चुराई। हनुमत संग सुग्रीव लिए श्री राम ने करी चढ़ाई। देख सामने मौत दुष्ट को नहीं समझ में आई। फिर राम लखन ने जा लंका की ईंट से ईंट बजाई। लंका भस्म हुई सारी सब छोड़ निशाचर भागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।.. बाली ने कर घात भ्रात से पाप किया था भारा। भाई की घरवाली छीनी नाम सुमति था तारा। गदा युद्ध प्रवीण बालि सुग्रीव बिचारा हारा। राम सहायक बने तुरत पापी को जाय संहारा। बड़े बड़े बलवान सूरमा काल के गाल समागे। रे माधो! सुख है दुख के आगे।. भक्ति में हो लीन 'ध्रुव' तारा बन नभ में छाये। शबरी की भक्ति वश झूठे बेर राम ने खाए। भागीरथ तप घोर किया गंगा धरती पर लाये। दानव सुत प्रह्लाद बचाने भू पर विष्णु आये। "विष...
ख़त की ख़ुशबू
कविता

ख़त की ख़ुशबू

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** मन करता है ख़त लिख दूँ। ख़ुशबू ..... फूलों में भर दूँ। रोज़ सफ़लता पाता हूँ। फ़िर भी क्यों अकुलाता हूँ? वो बात नहीं मोबाइल से। लफ्ज़ लफ्ज़ हैं घायल से। सन्देश खतों में प्यारा था। अद्भुत.......दौर हमारा था। थी ख़ुशबू बहुत प्रसूनों में। थी ठंडक, मई और जूनों में। क़ायनात जभी मुस्काती थी। बरसात तभी हो जाती थी। घूँघट में चाँद सुहाना था। माहौल पूरा दीवाना था। माँ बाप धरोहर होते थे। दुख में गोदी में सोते थे। अब कहाँ प्यार है अपनों में? शुभता गायब है सपनो में। मोबाइल ने ख़त ख़त्म किये। जी भर कर कोई नहीं जिये। नक़ली फूलों में प्यार नहीं। रिश्तों का कोई सार नहीं। यादें अब बहुत सतातीं हैं। दिल की दिल में रह जाती हैं। लिख दो ख़त पहले जैसा तुम। उस युग में लौट चलें हम तुम। बिजू का मन फ़रियाद करे। ख़त लिख कर यूँ कुछ याद करे।   परिचय :- डॉ. बी....
फिर भी मै पराई हूँ
कविता

फिर भी मै पराई हूँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** कैसी ये दुनिया है हरजाई जिसने ये एक शब्द बनाई मैं कौन हूँ घर कहाँ है मेरा सब कहते मुझको तो पराई जब मैं इस धरती पर आई सबकी लाड़ से मुस्काई सब ने फिर मुझे याद दिलाया लड़की तो होती है पराई ये क्या अम्मा तु ही बता दे तु तो अपना राज जता दे या तुझ मे भी वही बात समाई तु भी मुझको कहे पराई फिर सब ने मुझे किया विदाई साजन के घर डोली चढ़ आई सबसे मिल जुल घर तो बसाई फिर भी मैं कही गई पराई ये तो पिया का घर कहलायी ससुराल मे भी मै कही गई पराई भगवान ने ही ये नियम बनाई औरतों के लिये घर कहाँ बनाई . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने ह...
हिन्दी हमारा स्वाभिमान
कविता

हिन्दी हमारा स्वाभिमान

डॉ. अर्चना राठौर "रचना" झाबुआ म.प्र. ******************** अंग्रेजी अनिवार्यता है मगर हिन्दी हमारी माता है, अंग्रेजी विदेशी भाषा है, मगर हिन्दी मातृभाषा है। उपयोग इसका अधिक करें, माता का सम्मान करें, मातृ भाषा है हमारी, सदैव इस पर अभिमान करें। भूल रहे सब कलियुगी बच्चे, हिन्दी हमारी भाषा है, विदेशी अंग्रेजी भाषा को ही, समझें अपनी भाषा है। चल रहा षडयंत्र ये कैसा क्या मासूम समझता है, मात-पिता को भी क्या समझ नही कुछ आता है। बाहरी कार्यों के लिये उपयोग की भाषा अंग्रेजी है, मगर न बोले हिन्दी घर पर ऐसी क्या मजबूरी है। देश कोई भाषा का अपनी करता नही अपमान है, करता जो अपमान वो सिर्फ अपना हिन्दुस्तान है। आजादी को प्राप्त करके, हो गये वर्ष पिचहत्तर हैं, बुखार चढ़ा अंग्रेजियत का, मानसिक ये गुलामी है। महत्वपूर्ण क्यों हिन्दीं है, बच्चों को हमें बताना है, बिल्कुल मां जैसी है हिन्दी, उनकोे ये समझाना है...
अंतर्मन में ज्योति जलाएँ
कविता

अंतर्मन में ज्योति जलाएँ

संतोष नेमा "संतोष" आलोक नगर जबलपुर ********************** अंतर्मन में ज्योति जलाएँ। आओ तम को दूर भगाएँ।। पग पग पर अवरोध बहुत हैं। लोगों में प्रतिशोध बहुत है।। आओ मिलकर द्वेष हटाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। छल, प्रपंच, पाखंड ने घेरा। लोभ, मोह का सघन अंधेरा।। मन से तृष्णा दूर भगाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। असल सत्य को जान न पाये। स्वयं अहंता से इतराये।। क्षमा, दया, करुणा अपनाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। चिंतन और चरित्र की सुचिता। परोपकार आचार संहिता।। अंतर से हँसे मुस्काएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। अनीति का तिरस्कार करें हम साहस का संचार करें हम "संतोष" यह कौशल अपनाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। सब मिल ऐसे कदम बढ़ायें। दिव्य गुणों को गले लगायें।। आओ तम को दूर भगाएँ। अंतर्मन में ज्योति जलाएँ।। . परिचय :-  संतोष नेमा "संतोष" निवासी : आलोक नगर जबलपुर आप भी अपनी कवित...
हर्ष, आनन्द
मुक्तक

हर्ष, आनन्द

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** विश्व के हर देश में उत्कर्ष होना चाहिए। हर कुटी हर इमारत में हर्ष होना चाहिए। दूर हो दुनिया से सब दुख,दुराशय एवं दुराव, समापित भू से समर-संघर्ष होना चाहिए। ज़िन्दगी में हर्ष हो, आमोद हो, आनन्द हो। अब कहीं संसार में संग्राम हो ना द्वन्द हो। हों विवादित विषैले वचनों के सब व्यापार बन्द, मनुज के हर शब्द में हो अमिय या मकरंद हो! कच्चे घर में चूल्हे होते थे माटी के! आदी थे सब परंपरागत परिपाटी के! कितनी मीठी लगती थी मक्का की रोटी, कितने थे आनन्द मालवा की बाटी में! एक ओर दीपों की जगमग, दूजी ओर अंधेरा भी है! कहीं जश्न है ख़ुशहाली का, कहीं दुखों का डेरा भी है! कहीं स्नेह का रत्नाकर है,कहीं स्नेह का गहन अभाव, कहीं कमी है कुछ तेरी भी, कहीं दोष कुछ मेरा भी है! . परिचय - साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्...
सूत्रधार
कविता

सूत्रधार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** हमारी आंखों में तुम, हमारे सपनों में तुम, कजरे की धार में तुम, मेरे माथे की बिंदिया में तुम, मांग का सिंदूर हो तुम, और तुम ही से हैं हम, वो और कोई नहीं, प्रियतम तुम ही तो हो, हमारे कंगन हो तुम, हमारे बिछूएं हो तुम, हमारा सोलह सिंगार हो तुम..,. हमारे दिल की धड़कन में तुम, हमारी सांसों में तुम, हमारे दिल की आरजू हो तुम, हमारी सौगातो का खजाना हो तुम, मेरी चाहत हो तुम, मेरी इबादत हो तुम, मेरी आहट हो तुम, मेरी परछाई हो तुम, सातों जन्म में, कदम से कदम मिलाकर, चलने वाले, मेरी हमसफर हो तुम... और कोई नहीं मेरे जीवन के सूत्रधार हो तुम....!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहा...
मजाक न बनाये
कविता

मजाक न बनाये

संजय जैन मुंबई ******************** तेरी यादों को अब तक, दिल से लगाये बैठा हूँ। सपनो की दुनियां में, अभी तक डूबा हुआ हूँ। दिल को यकीन नही होता, की तुम गैर की हो चुकी हो। और हकीकत की दुनियां से, बहुत दूर निकल गई हो।। मूनकिन नहीं की, मोहब्बत परवान चढ़ेंगी। तुम तो उसे दिल से, चाह रहे हो। पर उसकी निगाह, किसी ओर पर लगी हैं। और उसे लुभाने के लिए, तुम्हारे दिल से खेल रही हो।। अक्सर ऐसा देखा गया, मोहब्बत किसी और से। और दिल्लगी किसी, ओर से करते है। और अपनी निगाहों से दो को घायल करते है। ऐसे लोग प्यार मोहब्बत को खेल समझते हैं। और जमाने के लोग इन्हें मूर्ख समझते है।। क्योकिं ऐसे लोग, प्यार का मतलब जानते नहीं। फिर भी दिल की बातें करते हैं। और मोहब्बत को मजाक बनाते हैं। और अपनी जग हासाई खुद करवाते है।। . परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करी...
बौनी उड़ान
कविता

बौनी उड़ान

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है । ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है। आसमां को छूने की तमन्ना नही है दिल मे अनपढ़ो को आसमान से मिलवाने ले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... पर्वतों पर चढ़ जाऊँ ये चाहत नही है मन मे माँ पिता के चरणों तक ही जा कर रुक जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये सोचती नही हूँ कि भगवान मिले मुझको हँस कर मिलूँ मै सब से और मुझे जिन्दगी से चले जाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... लिखती हूँ मैं शब्दों को पिरोती हूँ मोतियों की तरह ये तो बस एक झोपड़ी है मुझे कविताओं का महल बनाना है। ये उड़ान अभी बौनी है मुझे ऊपर बहुत ही जाना है.... ये थकान अभी थोड़ी है मुझे अन्त समय तक निभाना है.... . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लह...
हम दोनों
कविता

हम दोनों

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हम दोनों में कोई विशेष फर्क नही है । तू स्वार्थी मैं भी तू लालची मैं भी तू धूर्त मैं भी तू कमीना मैं भी तू दगा बाज़ मैं भी तू कपटी मैं भी तू अवसरवादी मैं भी तू झगड़ालू मैं भी तू ईर्ष्यालू मैं भी बस एक ही बात में हम अलग है तेरी प्राथमिकता धर्म है मेरी देश। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com प...
बना के ग़ज़ल तुझको
गीत

बना के ग़ज़ल तुझको

दीपक्रांति पांडेय (रीवा मध्य प्रदेश) ****************** इक बना के ग़ज़ल तुझको हम गाएंगे। छोंड़ करके शहर तेरा हम जाएंगे।। कर ले दो चार प्यारी मधुर कोई बात। फिर ना आऐगी ऐसी सुहानी सी रात।। दूर रह के भी नज़दीक हम पाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। प्यार मे यूँ बिछड़ना ज़रूरी भी है। दूर रह के महकना ज़रूरी भी है।। लाख कर ले तू कोशिश हम याद आएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। यह परीक्षा तुम्हारी हमारी भी है। कितनी मीठी मधुर अपनी यारी भी है।। वादा है तेरी महफ़िल मे हम छाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। कुछ यूं हीं दूर रहकर भी जीते हैं हम। यह जहर भी जुदाई का पीते हैं हम।। सब्र कर मिलने के दिन, भी हम लाएंगे। छोड़ कर के शहर तेरा हम जाएंगे।। . परिचय :- दीपक्रांति पांडेय निवासी : रीवा मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोट...
खुशखबरी
कविता

खुशखबरी

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** उसका गुनाह इतना सा जब जुल्म हुआ तब ख़ामोश थी शायद इसलिए कि आज्ञापालन की उम्र थी सोच में उसके भावना कि प्रबलता थी हम उम्र की संख्या भी शून्य थी जीवन में सन्नाटा इतना था कि खुद की सांसों से डर लगता था उसे धूत्तकार, धिक्कार, बन्दी सा बचपन मैं एक बोझ हूँ, कोई इंसान नहीं उसकी कोई चाहत नहीं, कोई सपने नहीं इस बात से परेशान होकर हर दिन थोड़ा–थोड़ा सा हृदय आह्लादित करती एकाकीपन में खुद से बातें करती किसी ने बताया एक दिन! मुस्कुराहट हर मर्ज की दवा हैं उसने मुस्कुराना भी सीख लिया आदत ऐसी डाली मुस्कुराने कि हर लब्ज पर अब मुस्कान हैं उसके उस मुस्कान ने उसे महान बना डाला लोगों की नजरों में गुनेगार बना डाला वह ‘वह’ नहीं रही आदर्श की प्रतिमूर्ति उसे बना डाला मुस्कान ने उसे हर दिन ऐसा पाला अब लगता हैं वह मुस्कान भी बूढ़ी हो गई हैं मुस्कुरात...