अँग्रेजी की आग
भारत भूषण पाठक
धौनी (झारखंड)
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एक आग कल भी लगी थी।
एक आग आज भी लगी है।।
कल आग अंग्रेजों ने लगाया।
आज अँग्रेज़ी ने लगा रखी है।।
अँग्रेज़ी का खेल तो देखिये हुजूर।
जीवित पिता को डेड बना डाला।
भला इसमें उस पिता का क्या कसूर।।
कल तक जो बेटा चरणों तक झूकता था।
आज घुटनों पर ही रुक जाया करता है।।
कल पिता की चलती थी जो अंगुली पकड़ कर।
आज उंगली छुड़ाती बरबस ही दिख जाती है।।
कल लोगों में प्रेम भरपूर दिख जाता था।
आज प्रेम का व्यवसाय सा दिखता है।।
एक आग कल लगाई थी भारत को बनाने को।
एक आग आज लगाई जाती है भारत को मिटाने को।।
कल लोग गुलाम थे पर मन में आजादी थी।
आज जब आजादी है मन में सिर्फ बरबादी है।।
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परिचय :-
नाम - भारत भूषण पाठक
लेखनी नाम - तुच्छ कवि 'भारत '
निवासी - ग्राम पो०-धौनी (शुम्भेश्वर नाथ) जिला दुमका(झारखंड)
कार्यक्षेत्र - आई.एस.डी., सरैयाहाट में कार्य...