रंग वो जो दिखता है
मनीषा व्यास
इंदौर म.प्र.
********************
रंग...!
रंग वो जो दिखता है,
या रंग वो जो चढ़ता है।
दिखता तो नीला या
लाल,
या राधा के गालों पर गिरधर गोपाल।
वो होली का गुलाल या साम्प्रदायिकता का काल
वो केसरी जो हनुमान का, या रावण के अभिमान का।
प्रदर्शन में मांग का,
नेताओं के स्वांग का,
होली में भांग का।
सुहागन की मांग का।
भगत सिंह की आजादी का।
कसाब की बर्बादी का।
खेतों में हरियाली का।
तिरंगे में खुशहाली का।
मां की ममता का,
सैनिक की क्षमता का।
मीरा में भक्ति का,
राम में शक्ति का।
शहरों में दंगों का,
गांव में मन चंगों का।
रंग वो जो दिखता है
या रंग वो जो चढ़ता है।
तिरंगे के तीन हैं।
सबके अपने दीन हैं।
फिर भी सुख दुःख सहते हैं।
हम भारत वासी मिलकर रहते हैं।
परिचय :- मनीषा व्यास (लेखिका संघ)
शिक्षा :- एम. फ़िल. (हिन्दी), एम. ए. (हिंदी), विशारद (कंठ संगीत)
रुचि :- कविता, लेख, लघुकथा ...
























