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पद्य

भारत भूमि
कविता

भारत भूमि

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** ये धरा है सनातनी अजर अविनाशी, इसी धारा से उपजे थे वेद और पुराण, इसी पर कहा जाता है, वसुधै कुटुम्बकम, जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान। जो भी आया देश विदेश से रम गया यहाँ पर परदेशी को भी स्वदेशी मान लिया यहाँ पर सभी ने निज आस्था से पूजन किया यहाँ पर हिंसा का उत्तर अहिंसा दे दिया गया यहाँ पर सत्य छुप नही सकता जान गयी दुनिया जहान आओ करे उसका वंदन गाये स्वागत गान जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। अयोध्या व सरयू की आज दूर हुई पीर सदियों से बह रहा था उनके नयनो से नीर आओ सब मिल कर धर्म निभाएं मानवता का हम पुजारी अहिंसा के दो परिचय सदाशयता का तहजीब के लिए कर रही गंगा, जमुना आव्हान करो साथ साथ अब चल कर पूरे भारत के अरमान। जन्मे थे यहाँ राम, कृष्ण ये सत्य है महान।। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा :...
बस थोड़ा सा इन्सान बनो
कविता

बस थोड़ा सा इन्सान बनो

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बस थोड़ा सा इन्सान बनो कभी तो तुम भगवान बनो गरीबों पर जरा रहम करो बस थोड़ा सा इन्सान बनो मजहब सबका एक है झगड़ो ना परेशान बनो भीड़ भरी इस दुनिया मे बस थोड़ा सा इन्सान बनो ये धरती है बड़ी खूबसुरत तुम ऐसे ना शैतान बनो दो पेड़ लगा दो फूलों के बस थोड़ा सा इन्सान बनो नारी का चीर हरण करके तुम ऐसे ना हैवान बनो स्त्री का सम्मान करो तुम बस थोड़ा सा इन्सान बनो . . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३...
साथ-साथ
कविता

साथ-साथ

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** आम जन नहीं है परेशान मन्दिर और मस्जिद से कब सोच में आती उसे राम लला की जन्मभूमि और कब याद आता बाबरी का मस्जिद।। उसकी सोच में तो है मंहगाई का अस्तित्व।। पत्नी डूबी इस फिक्र में क्या बने रोटी के साथ सब्जी या फिर दाल क्योंकि इस भाव में नहीं दे सकती दोनो साथ-साथ ।। पति की सोच सिमटी है ईद और दिवाली पर क्या दिलाउं परिवार को उपहार के नाम पर।। काफी मशक्कत के बाद भी दे नहीं सकता नये कपड़े और मिठाइयों के डब्बे पूरे परिवार को साथ साथ ।। बेटा भी तो समझ नहीं पा रहा क्या करें कम व्यय में कौन सी डिग्री कर पायेगी उसका उद्धार मां की ईच्छा अभिलाषा पिता के ईमानदार सपने कैसे पूरे होंगे साथ साथ।। अचानक मिला एक समाचार रामलला को भूमि मिल गई मस्जिद को भी मिला जमीन बस इक पल थम गई सबकी सोच और विचार मिले साथ साथ।। अचानक घर की लक्ष्मी का स्वर गुंजायमान...
कसक
कविता

कसक

रेशमा त्रिपाठी  प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश ******************** व्यक्ति के अंदर स्वयं से टकराने की अहम भावना जो उसके उत्तेजित स्वर द्वारा व्यक्त होती हैं वह हैं ‘कसक' मनुष्य के असमर्थता का भाव समर्थता में प्रदर्शित करने की गतिविधि की क्रियान्वित विधि हैं ‘कसक' वर्ग विहीन समाज की कल्पना में गतिशील मानव के विकास की बाधा में उत्पन्न होने वाले टकराव का भाव हैं ‘कसक' धनलोलुपता निरीह जनता के शोषण के विरुद्ध उठने वाली आवाज को दमन करती हुई रेखा में प्रस्फुटित ना हो पाने वाला स्वर् हैं ‘कसम' हृदय के उद्गार को स्वच्छंद रूप से अभिव्यक्त ना दे पाने का भाव हैं ‘कसक' अपने और अपनों के बीच स्पष्ट दृष्टिकोण ना रख पाने का भाव हैं ‘कसक' छल और प्रवचन में ऐश्वर्यवादी मनुष्य का दास बनने का भाव हैं ‘कसक' सामंती व्यवस्था को देर तक ना सहन कर पाने का भाव हैं ‘कसक' दंडनीय कार्यों का न्याय न कर पाने पर विध...
रोशन कर लूं
कविता

रोशन कर लूं

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** गर तू आए मुझसे मिलने, तो ये रास्ते रोशन कर लूं। गर आकर, हाथ थामे मेरा, तो दिल में छिपे जज्बात, रोशन कर लूं। तेरा इंतजार है मुझको, तू आए तो ये रास्ते, फूलों से भर दूं। गर तुझे थोड़ा सा भी, अंधेरा लगे, अनगिनत दीप जलाकर, तेरे रास्ते रोशन कर दूं। बिछा कर बैठी है "सुरेखा" पलके तेरे इंतजार में, तू कहे तो चरागों से, तेरी राहें रोशन कर दूं। गर तू आए मुझसे मिलने.... तो ये रास्ते रोशन कर लूं...!! . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल, हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य त...
मन दिखता है….
कविता

मन दिखता है….

संजय जैन मुंबई ******************** मुझे राह दिख, लाने वाले मेरे मन। कभी राह खुद तुम, यूही न भटकना। मुझे राह....…...। मोहब्बत में जीते, मोहब्बत से रहते। मोहब्बत हम सब, जन से है करते। स्नेह प्यार की दुनियां, हम हैं बसाते। मुझे राह........।। न भेद हम करते, जाती और धर्म में। न भेद करते, ऊंच और नीच में। में रखता हूँ समान भाव, अपने दिल में। मुझे राह..........।। हमे अपनी संस्कृति, को है बचना। दिलो में लोगो के, प्यार है जगाना। अपनी एकता और अखंता बचाना। मुझे राह .........।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रह...
जीवन साकार करूंगी मैं
कविता

जीवन साकार करूंगी मैं

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** पितु -मात आशीष को, सफल सदा करूंगी मैं। शूल को फूल बना, जीवन साकार करूंगी मैं।। नेक कर्म कर जगत में, यश को प्राप्त करूंगी मैं । छल कपट से दूर रह, जीवन साकार करुंगी मैं।। वसुधैव कुटुंबकम भावना, सदा अपनाऊंगी मैं। मर्यादा को अपनाकर, जीवन साकार करूंगी मैं।। मन निराकार सपने साकार, कड़ी मेहनत करूंगी मैं। अपनी हर गलती स्वीकार, जीवन साकार करूंगी मैं ।। खुशियों का दमन कर, आशियाना ना बनाऊंगी मैं। सत्य पथ अपनाकर, सदा जीवन साकार करूंगी मैं।। पेड़ आदर्श बना, देश हित सर्वस्व न्योछावर करूंगी मैं। देश को प्रगति पथ पहुंचा, जीवन साकार करूंगी मैं।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक म...
जीता भाई चारा
कविता

जीता भाई चारा

ओम प्रकाश त्रिपाठी गोरखपुर ********************** हिन्दू जीता न मुस्लिम जीता जीता भाई चारा । आओ मिलकर के सब बोले हिन्दुस्थान हमारा।। मिलकर हिन्दू मुस्लिम सब मन्दिर मस्जिद निर्माण करें, राम और अल्लाह के जैसे सब जन जन को प्यार करें। इसीलिए तो सब हैं कहते हिन्दुस्तान जग से न्यारा, आओ मिलकर.....।। एक बनेंगे, नेक बनेंगे मिलजुल कर हम काम करेंगे, परम वैभवी हो मां मेरी सब मिलजुल यह जतन करेंगे। कभी नहीं टूटेगा यह हम सबका भाईचारा आओ मिलकर.....।। वर्षों के झगड़े को भी मिलकर हमनें सुलझा डाला, विश्व पटल पर शान्ति, अहिंसा का परचम फहरा डाला। गूंज उठा है अन्तरिक्ष मे श्री राम का नारा। आओ मिलकर.....।। . लेखक परिचय :-  ओम प्रकाश त्रिपाठी आल इंडिया रेडियो गोरखपुर आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
चुभो के जहरीले नश्तर
कविता

चुभो के जहरीले नश्तर

शाहरुख मोईन अररिया बिहार ******************** सबब कोई हो हम फलक का गिला नहीं करते, सच है हम अब दोस्तों से ज्यादा मिला नहीं करते। चुभो के जहरीले नश्तर उसने जख्मी किया हमको, सब देखे हैं वो तभी हम कोई फैसला नहीं करते। अब के दौर में कुछ सय्याद, कुछ जल्लाद है, दुश्मन है जान के, दिल से वो मिला नहीं करते। दौलत, शोहरत, इज़्ज़त, सबकुछ लुटाया उसपे, वो हसीन कातिल है कभी वफ़ा नहीं करते। तमाम बंदिशों की जंजीरे तोड़ के आया था मैं, इश्क वाले जाने हैं मोहब्बत में लोग क्या नहीं करते। मजनू, रांझा, रोमियो, फरहाद, अपने दौर के आशिक थे, लैला, हीर, जुलिये,शीरी, वो होती तो क्या नहीं करते। दामने इश्क पे लगें दाग़, बरसाए दुनियां ने पत्थर, नफरत करने वाले शाहरुख़ किसी का भला नहीं करते। . लेखक परिचय :- शाहरुख मोईन अररिया बिहार आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं...
आज न रोको
कविता

आज न रोको

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** आज न रोको इन कदमो को, आगे आगे बढ़ जाने दो, तोड़ के बन्धन पिंजरे का, दूर गगन मे उड़ जाने दो। बहुत पी लिए गम और आंसू, अब जी भर मुस्काने दो । जो राह तलाशी है अब हमने, उस मन्जिल को पा जाने दो। तू लड़की है, तू पत्नी है, तू माँ है, तू बेटी है बाली, बन्दिश अब हट जाने दो। बढ़ने दो प्रगति राह पर, हमे करिश्मा करने दो। आसमान के चाँद को छूलें, नापे गहराई सागर क , पंछी जैसे भरे उडा़ने, परवाह नही अब तूफानो की, भिड़ जायेंगे झंझावातों से, अब पंख मेरे खुल जाने दो। नभ मे ऊपर उड़ जाने दो। न मानूं कोई अब रोक टोक, मेरे मन को खिल जाने दो। झेले झंझावात बहुत हर कष्ट सहे, जो मिले मुझको, इक पल चैन का न पाया मैने, जो रूप दे दिया था मुझको, अब जियूँ सिर्फ खुद की खातिर, अब खुद को खुद मे जी लेने दो, अब छोड़ चुकी मै नासमझी, कुछ मुझे प्रगति कर लेने दो। कुछ मुझे .... . लेखक पर...
कौमी एकता का दीप जलाइये
कविता

कौमी एकता का दीप जलाइये

राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी (राज.) ******************** आइये कौमी एकता का दीप जलाइये। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई एक हो जाइये।। राष्ट्र के विकास की बात को समझाइये। जाति मजहब पन्थ के फसाद भूल जाइये।। एक रंग खून का है सभी को ये बताइये। यूँ ही व्यर्थ की लड़ाई में वक्त न बिताइये।। विविधता में एकता का दिव्य संदेश फैलाइये। अखण्डता व एकता की फिर मिसाल बनाइये।। एक महाशक्ति हिन्दुस्तान को फिर से बनाइये। हर हाथ को रोजगार कैसे मिले सबको बताइये।। गीता बाइबिल कुरान गुरुग्रंथ सबको पढ़ाइये। मानव को अब थोड़ी सी इंसानियत सिखाइये।। वसुधैव कुटुम्बकम की सब में भावना जगाइये। मानव धर्म है सबसे ऊँचा दिल मे इसे बसाइये।। . लेखक परिचय :- राजेश कुमार शर्मा "पुरोहित" भवानीमंडी जिला झालावाड़ राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित कर...
कृष्ण काव्य
कविता

कृष्ण काव्य

रागिनी सिंह परिहार रीवा म.प्र. ******************** मैं कब कहती हूँ कि, तुम प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे, आरजू बहुत हैं। मोहन मुझे अपने नजर में उठा कर रखना, अपनो के नजर में गिले शिकवे बहुत हैं। मैं रोज मीरा बनना चाहती हूँ, मगर जहर के प्याले में तुम नजर नहीं आते।। मेरा दिल दिनकर की रस्मिरथि जैसा, जितना रूह को हवा दो, उतना मझल जाय। मेरी मोहब्बत को हरिदास की गीत समझो, जितना सुनो बस उतना तो आ जाओ। मैं सूर, रसखान तो लिख नही सकती, मगर आंखो के पल्को के आश्को से तो मोहब्बत बया करती हूँ। हम तो शिकायत करते हैं, कि मोहब्बत मिला नही , हे मोहन.... तेरी मोहब्बत लिखने बैठी तो अँगुलियाँ कापती हैं। तुने राधा को चाहा, मीरा ने तुझे चाहा, और तुम रुक्मिणी के हो गये। मैं कब कहती हूँ कि प्रकट हो जाओ, लेकिन तुमसे आरजू बहुत है.... राधे राधे सिर्फ मोहन.... . परिचय :- रागिनी सिंह परिहार जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१ पि...
भूलाकर गाँव
कविता

भूलाकर गाँव

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** भूलाकर गाँव को तूने, शहर में घर बनाया है। खो गया रंगीनियों में, अपनों को बिसराया है।। गाँव के लोग भोले, दिल में प्यार बसता है। उनकी हर बात में सिर्फ, अपनत्व बरसता है।। शहर की जिंदगी, चारदीवारी में रहता है। अपनों बीच सदा, वह अकेला होता है ।। गांव के लोग सुख-दुख में, पास होते हैं । गांव एक आवाज में, चौपाल पर होता है।। पैसा तूने शहर में, रह बहुत कमाया है। अपनों बीच, तू सदा ही रहा पराया है।। हर बात गाँव के लोग, अपनों को बताते हैं। आए जब विपदा तो, मिल बैठ निपटाते हैं।। अकेला तू रोता, नहीं कोई ढ़ाढस बंधाता है। शहर लोग सिर्फ, दिखावटी प्यार जताते हैं।। लौट आ अब भी, तेरी हम राह तकते हैं। भूला सारे गिले-शिकवे, तुझे गले लगाते हैं।। तेरे आने से पुराने दिन, फिर लौट आते हैं। गाँव गलियों में, फिर हम धूम मचाते हैं।। एक बार बचपन को, हम फिर जीते हैं। गा...
काम पर लगो चलो
कविता

काम पर लगो चलो

विवेक सावरीकर मृदुल (कानपुर) ****************** उम्र की ढलान को, मन की थकान को भूल कर उठो चलो, काम पर लगो चलो।। मंजिलों को पाना है, तो चलने का जतन करो लोग जुड़ें खुद बा खुद, ऐसा आचरण करो काफिला जुटाओ मत, पथ का तुम चलन बनो भूल कर………… कायरों की तरह, यूँ पलायन मत करो कर्म करो डूब कर, थोड़ी हिम्मत धरो बात ऐसी बोलो के, सबके उद्धरण बनो भूल कर………… रात है न इसलिए, कष्ट लग रहे बड़े पर सुबह के सामने, होंगे कैसे ये खड़े ? तुम उजाले के लिए, सूर्य की किरण बनो भूल कर…………   लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल जन्म :१९६५ (कानपुर) शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये, उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रं...
प्यार में कुछ तो है
कविता

प्यार में कुछ तो है

संजय जैन मुंबई ******************** प्यार को प्यार से जीतो कोई बात होगी। दिल को दिल से मिलाओ, तो कोई बात होगी। दोस्ती करना है तो, दुश्मन से करके देखो? खत अगर लिखा है तो उसे दुश्मनों के पते पर भेजो।। जिंदगी तेरी एक का, एक बदल जाएगी। बंद किस्मत भी तेरी, एक दिन खुल जाएगी। मन के बुझे दीपक भी, तेरे सब जल जाएंगे। बस दिल की आवाज़ को, दिल से सुनकर देखो।। प्यार की आस हर, दिल को होती है। हर दिल की पुकार, दिल को पता होती है। तभी तो मन कि आंखे, दिल वाली को ढूंढती है। और दिल के खाली स्थान को, प्यार के रंग से भर देती है।। इसलिए संजय कहता है, कि प्यार में कुछ तो होता है। कुछ तो होता है...।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्...
मॉब लीचिंग
कविता

मॉब लीचिंग

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** घर की जरूरतों की जुगाड़ के लिए घर से निकला था वो रोटी, कपड़ा, बच्चों की किताबें और कुछ मामूली सपनो की ताबीर चाहता था वो। दरवाज़े की दहलीज पर देख बीवी की आँखों मे डर के साये उसके हाथ पे अपना हाथ रख हल्के से मुस्कुराया था वो। अपने शहर की मिट्टी तंग गलियों, आबोहवा और बदलते मौसम से भली भांति वाकिफ़ था वो कई गलियों का चक्कर लगाते काम की तलाश में शहर के उस छोर पर पहुंच गया था वो। किसी ने पांच सौ रुपये का नोट थमाते कहा मेरी मवेशी चरनोई तक छोड़ आ हथेली में पांच सौ का नोट भींचे घर का चूल्हा जलता देख बच्चों को किताबें पढ़ता देख मवेशी हाँकने लगा था वो। अचानक न जाने क्यों कैसे सैकड़ो की भीड़ में वो घिर गया जिस्म का पोर पोर तार तार हो बेजान जमी पर गिर गया था वो हथेली में अब भी नोट भिंचे दहलीज़ पर मुन्तज़िर दो आंखों घर की जरूरतों, किताबो की फिक्र से दू...
स्त्रीत्व की स्वाधीनता
कविता

स्त्रीत्व की स्वाधीनता

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** स्त्रीत्व की स्वाधीनता को पहचानने लगी है वो स्वयं में स्व को ढूंढकर खुद में जीने लगी है वो अति गहरे जख्म दिये सतत इन अपनों ने उसे इन बनावटी रिश्तों में उलझ उबने लगी है वो। चाहती है अंतर्सात कर ले गहरे जख्मों को वो झेल जाए जीवन के कठोर झंझावातों को वो सहेजे रिश्तों के जाल जिसने घायल किया उसे डर है रिश्ते सहेजते चटक कर न टूट जाए वो मानस में पडे़ अतीत के नींव को कैसे उखाडे़ वो कटुता से व्यथित मन को किस तरह संभालें वो उपदेश वही दे रहे हैं जिन्होंने घायल किया उसे सुन उनके आदर्शवाद व्यग्रता से खिन्न हुई है वो। छल प्रपंच की कटुता से ओतप्रोत हो चुकी है वो छद्दम जीवन अब नहीं व्यतीत कर सकती है वो दुख के क्षणों ने अंतर्आत्मा में संबल दिया है उसे चट्टान बन स्व को समेटने में माहिर हो गई है वो। स्त्रीत्व की स्वाधीनता को सही पहचान देगी वो आत्मविश्वास क...
फिर ये नजर हो न हो
कविता

फिर ये नजर हो न हो

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** फिर ये नजर हो न हो, मै और मेरी तनहाई, नजर आएगी, तुम तेरा मुस्कुराता, चेहरा यू खिलखिलाता, नाम तेरा पूजते रहूं, फिर ये नजर हो न हो! जिंदगी की खेल में, फूलों के मेल में, कलियों के साथ, गुलाबो के हाथ, तू मुझे सम्मान दो, या मुझे उफान दो, मै मिलेगा फिर तुमसे, फिर ये नजर हो न हो! रात की बात में, दिन की याद में, दोस्तो के साथ में, हसीनाओं के हाथ में, आंख की आशुओ में, दिल की धड़कन में, याद आ जाए तुम, फिर ये नजर हो न हो! . लेखक परिचय :-  नाम - रूपेश कुमार छात्र एव युवा साहित्यकार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी ! निवास - चैनपुर, सीवान बिहार सचिव - राष्ट्रीय आंचलिक साहित्य संस्थान प्रकाशित पुस्तक - ...
आज़ गुलिस्ताँ मेँ
गीत

आज़ गुलिस्ताँ मेँ

सुभाष बालकृष्ण सप्रे भोपाल म.प्र. ******************** आज़ गुलिस्ताँ मेँ, सुंदर पुष्पहार देखा, प्रकृति का मनोरम सा उपहार देखा, वन श्री सँपन्न है, विविध फलोँ से वन प्रांतर के जीवोँ का, आहार देखा, भागते हैँ, मैदानोँ मेँ, निर्भय वन्य जीव, घास मेँ छिपे, बाघ का, प्रहार देखा, सदियोँ से बसे थे, ज़ो आदिवासी ज़न, उजडते जंगलोँ मेँ, उन्हेँ निराहार देखा, गरज़ परस्त बनी इस दुनिया मेँ, दोस्त, हर दिन इंसान का बदलता व्यवहार देखा . लेखक परिचय :-  नाम :- सुभाष बालकृष्ण सप्रे शिक्षा :- एम॰कॉम, सी.ए.आई.आई.बी, पार्ट वन प्रकाशित कृतियां :- लघु कथायें, कहानियां, मुक्तक, कविता, व्यंग लेख, आदि हिन्दी एवं, मराठी दोनों भाषा की पत्रीकाओं में, तथा, फेस बूक के अन्य हिन्दी ग्रूप्स में प्रकाशित, दोहे, मुक्तक लोक की, तन दोहा, मन मुक्तिका (दोहा-मुक्तक संकलन) में प्रकाशित, ३ गीत॰ मुक्तक लोक व्दारा, प्रकाशित पुस...
धरती का चाँद
कविता

धरती का चाँद

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** दूधिया चाँद की रौशनी में तेरा चेहरा दमकता नथनी का मोती बिखेरता किरणे आँखों का काजल देता काली बदली का अहसास मानो होने वाली प्यार की बरसात तुम्हारी कजरारी आँखों से काली बदली चाँद को ढँक देती दिल धड़कने लगता चेहरा छूप जाता चांदनी की परछाई उठाती चेहरे से घूँघट निहारते मेरे नैंन दो चाँदो को एक धरती एक आकाश में आकाश का चाँद हो जाता ओझल धरती का चाँद हमेशा रहता खिला क्योंकि धरती के चाँद को नहीं लगता कभी ग्रहण . परिचय :- नाम :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ - मई -१९६२ (उज्जैन ) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में निरंतर पत्र और रचनाओं का प्रकाशन, प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक ", खट्टे मीठे रिश्ते उपन्य...
याद करना हमारी
कविता

याद करना हमारी

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** थमती सांस के साथ, यह आंसू भी थम जायेंगे, चलती है सांस जब तक, इनको भी बहने दो यारो। यह महफिल भी होगी यह नगमे भी होगे, यह फिजाऐ यह बहारे भी होगी, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो न आँख खुलेगी न होठ हंसेगे न पांव चलेगे न हम रुकेगे, चार कांधो पर हमे उठा लेना यारो। आयेगी हर ऋतु समय समय पर, सावन भी बरसेगा समय समय पर, पर भीगने को हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। महफिल भी होगी टोली भी होगी, यारो की अपनी हमजोली भी होगी, तलाशोगे हमको, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। खिलेगा बौर आम तरुओ पे जब जब महक से दिशाऐ खिलखिला उठेगी, आमो की बगिया मे सब ही मिलेंगे, पर हम न होगे, तब याद करना हमारी भी यारो। तब याद ...................।। . लेखक परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की ...
तेरे संग जीना मरना
कविता

तेरे संग जीना मरना

संजय जैन मुंबई ******************** जीना मरना तेरे संग है। तो क्यो और के बारे में सोचना। मिला है तुम से इतना प्यार। तो क्यो गम को गले लगाना। और हंसती खिलखिलाती जिंदगी, को भला क्यो रुलाना। अरे बहुत मिले होंगे तुम्हे प्यार करने वाले। पर दिल से मोहब्बत करने वाला में ही होगा।। आज दिल कुछ उदास है। चेहरे पर भी उदासी का राज है। कैसे कहूँ में बिना देखे दिल मानता नही है। इसलिए कब से बैठा हूँ, तेरे दीदार के लिए। पर तुम हो जो, नजर ही नही आ रहे। इसलिए आंखे और दिल दोनों उदास है।। तुझे क्या कहूँ में अब, कुछ तो तुम्ही बता दो। उदास दिल मे, कोई दीप जला दो। और दिल के अँधेरेपन, को तुम जगमगा दो। और वर्षो की प्यास को, आज बुझा दो। और अपने दिल की, आवाज़ को हमे सुना दो।। . लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लि...
तू दोस्त बन
कविता

तू दोस्त बन

वीणा वैष्णव कांकरोली ******************** तू दोस्त बन, या दुश्मन बन। कुछ भी बन, चल जाएगा।। भूल से भी, चमचा बना। जीवन में, दुःख तू पाएगा।। चमचे की, तुम बात न पूछो। हर बर्तन, खाली कर जाएगा।। जीवन में अगर, तुम्हारे आया। जीवन नर्क, वह बना जाएगा।। दूर ही रहना तुम, इन चमचों से। यह किसी का, नहीं हो पाएगा।। मीठी मीठी, बातें कर तुझसे। राह भ्रमित, तुझे कर जाएगा।। अपनों से दूर, तुझे वो कर। करीब गैरों को, वो ले आएगा।। अच्छे बुरे की, पहचान करना। कौन तुम्हें, अब सिखलाएगा।। विचारों को वो, तेरे गंदा कर। जहर दिमाग, भर जाएगा।। कहती वीणा, विवेक काम ले। सदा चमचों से, तुम्हें बचाएगा।। . परिचय : कांकरोली निवासी वीणा वैष्णव वर्तमान में राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय फरारा में अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कवितायें लिखने में आपकी गहन रूचि है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक...
ईश का आशीष
कविता

ईश का आशीष

अंजना झा फरीदाबाद हरियाणा ******************** जीवन की अविरल धारा में चाहिए यदि ईश का आशीष क्यों आडंबरपूर्ण विधान में आस्था औ पूजा के नाम पर श्रद्धाहीन विचारों के जाल में जकड़ देते हो अपने आप को मन के अवसाद को दूर करने की अतृप्त इच्छा मे बंधकर लटका देते हो न मूल प्रकृति औ मौलिक चेतना को सूली पर। अंतस्थ की जागृति औ ताजगी हेतु करते हो न बुनियादी भूल क्यों चढा देते हो इक आवरण धर्म आस्था व्रत औ परंपरा का। मंत्रोच्चार से करना है अगर स्वयं को स्वच्छ और पवित्र तो भीगो न इस संकल्प से जो भर दे सकारात्मक ऊर्जा। चाहते हो मूल्यवादी जीवन दमित कर दो आसुरी प्रवृति जागृत करो न दैवीय संस्कार ध्यानस्थ हो जाओ क्षमा भाव में फिर नहीं घिरोगे आडंबर से प्रवाहित होगी न अंतर्मन में सतत ही सकारात्मक उर्जा हो जायेगा सार्थक मंत्र स्नान। जीवन के अविरल धारा में मिलेगा तभी ईश का आशीष। . परिचय :-  नाम : अंजना झ...
रणबांकुरे
कविता

रणबांकुरे

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। मां,बहन, बेटी उनसे, बिछुड़ने की नही पीर थी। वह भी रांझा किसी के, उनकी भी कोई हीर थी। पर देशप्रेम की बंधी, उनके मन में कड़ी जंजीर थी। ऐसे वीर सपूत मीटे देश पर, वीरांगना के जाये थे। जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। दीपावली के दीप जले, होली की कहीं अबीर थी। वीर बांकुरे मिले देश को, भारत की तकदीर थी। आजाद देश की शान बने वह, ऐसी तस्वीर थी। हमारे लिए बदन पर उनने, अनगिनत कोड़े खाये थे। जंजीरों में बंधकर भी वह, जी भर कर मुस्काये थे। देश पर बलिदान होकर, मन में बहुत हरषाये थे। लेखिका परिचय :- नाम - माया मालवेन्द्र बदेका पिता - डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय माता - श्रीमती चंद्रावल...