चांदनी
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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एक रात यूं ही नील गगन में'
नीलकमल सी चांदनी ने।
मुस्कुराई थी अचानक़़
थोड़ी सीहर कर चांदनी ने,
अचानक दर्द छेड़ थोड़ी सी
पवन सिसक कर बिखर गई।
मरमराती रात में
सुनहली सी चांदनी।
इस पूर्णता की विछोह में,
अपूर्णता की भ्रांति
टिमटिमाती जुगनू की,
गूंज रही थी क्रांति।
इस धरा की सरहदों पर,
बिखेर दी थी क्रांति।
घटाटोप अंधकार में,
जंगली गुफाओं में,
समुंद्री गर्जनाओ मे,
होगी अनेकों क्रांति
अंधकार में प्रकाश की,
होगी महाआरती।
स्वर्ण युग आएगी गुनगुनाती चांदनी।
सभी हंसेगे साथ-साथ।
मुस्कुराती चांदनी।
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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम - गंगापीपर
जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार)
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