खुदा की रहमतो में हम
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अंजुमन मंसूरी 'आरज़ू'
छिंदवाड़ा म. प्र.
गुज़ारें फिक्र करके किस लिए दिन वहशतों में हम।
सदा महफूज़ रहते हैं ख़ुदा की रहमतों में हम॥
ज़हन में इल्म रोशन है जिगर में हौसला रोशन।
ख़ुदा का है करम नाज़िल, नहीं है ज़ुल्मतों में हम॥
नहीं है फासले तुमसे न कोई दूरियां या रब
ख़यालों में हो तुम ही तुम तुम्हारी कुर्बतों में हम॥
जहन्नुम ज़ीस्त कर सकती नहीं तल्ख़ी ज़माने की।
तसव्वुर गर तुम्हारा हो तो हैं फ़िर जन्नतों में हम॥
यकीं ख़ुद पर भी तुम पर भी तो इक दिन देखना रहबर।
करेंगे मंज़िलें हासिल तुम्हारी सोह्बतों में हम॥
न औरों की कमी देखें गिरेबां झांक लें अपना।
तो सारी ज़िंदगी अपनी गुज़ारें राहतों में हम॥
ग़ज़ल नज़्में क़त'अ नग़में तुम्हारी ही नवाज़िश है।
क़लम पर इस करम से ही तो हैं अब शोह्रतों में हम॥
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लेखिका परिचय :-
नाम - सुश्री अंजुमन मंसूरी आरज़ू
माता - श्रीमती आयशा मंसूरी
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