हमसफर
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निधि मिश्रा
पाण्डेय खरेया,गोपालगंज
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एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है,
हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है।
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नजरे मिलते ही सुर्ख होठों पे मुस्कान आना,
लगता है बिजली गिराने के इरादे लिए बैठे है।
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पाबंदी है मेरे कदमों पे राहे-अंजान निकलने को,
क्योंकि उनकी सायरी के मुझे चाँद समझ बैठे है।
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खफा होके खुदा भी सोचे बस सवाल यही,
की ये हुस्न या कोई बला बना बैठे है।
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"निधि" में होता है विकास अक्सर जाने है जहां,
अपनी हर सफर का उसे हमसफर बना बैठे है।
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एक झलक देखते ही होश गवां बैठे है,
हलचल सी हुई है सीने में जैसे दिल लगा बैठे है।
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लेखक परिचय :-
नाम:- निधि मिश्रा
पेशा : गृहणी
निवासी : पाण्डेय खरेया, गोपालगंज (बिहार)
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