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कल और आज की सोच

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रचयिता : संजय जैन

कल ने कल से कहाँ,
कल मिलोगे क्या तुम।
आज सुनकर कल पर
हंस पड़ा।
कल ने पूछा आज से
तुम क्यो हंसे ?
तो आज ने कल से कहाँ
यही सुनते आ रहे वर्षो से।
पर जिंदगी में कल कभी
आता ही नही।
और तुम कल मिलने को
बुला हमे रहे।।

इस कल कल के चक्कर में पड़कर।
न जाने कितने लोग ने दम तोड़ दिया।
और न जाने कितने लाइन में है खड़े।
पर कल तेरा कल कभी नही आयेगा।।

आज में जीने वाला आज में जीता है।
तभी तो खुशाल वो सदा रहता है।
कल वाला काल की चक्की में।
पिस्ता रहता हैं कल के चक्कर में।
इसलिए आज कल को,
देखकर बहुत मुस्कराता है।।

कल को छोड़ो तुम आज को देखो तुम।
कल न किसी का हुआ
और न कल होगा।
इसलिए आज में ज्यादा
होता है वजन।
और जिंदगी कल से,
आज में खुश होती है।।
इसलिए आज में जीने वाले छूते है,
सफलता की हर मंजिल को।।

.लेखक परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं बहुत सारे अखबारों-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहती हैं। ये अपनी लेखनी का जौहर कई मंचों पर भी दिखा चुके हैं। इसी के चलते कई सामाजिक संस्थाओं द्वारा इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। आप मुम्बई के नवभारत टाईम्स में ब्लॉग भी लिखने के साथ – साथ मास्टर ऑफ़ कॉमर्स की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले संजय जैन कॊ लेख,कविताएं और गीत आदि लिखने का बहुत शौक है, आप लिखने-पढ़ने के ज़रिए सामाजिक गतिविधियों में भी हमेशा सक्रिय रहते हैं।


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