शिक्षण-संस्थान
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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शारीरिक श्रम से मांसपेशियो को।
फैलाता हूं, सिकुड़ाता हूँ
मरोड़रता हूँ नस नस को
दिलोजान से पसीने से नहलाता हूँ।
शरीर की गंदगी को
रोम-रोम की छिद्र से
बाहर निकालने में सक्षम
बनाने की कोशिश करता हूँ
मानसिक श्रम से ही सही व्यक्तित्व
का विकास नहीं होता
श्रम की दो चक्रों पर
जिंदगी की गाड़ी को धकेलता हूं।
लक्ष्य की ओर निगाहें दौड़ाकर
कर्म पथ की चौराहों पर यें, गीत गुनगुनाता हूं
शिक्षण संस्थान में, योग, श्रम की सही पहलुओं को
समझाता हूं अपनाता हूं
चबाता हूं श्रम की पत्तों को
किमती कीड़ा बन, रेशम उठ जाता हूं
पसीने की हर-बूंद पर
एक -एक, कविता, बनाता हूं।
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लेखक परिचय :- नाम - ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम - गंगापीपर
जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार)
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