आलोक प्रखर होता है
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रचयिता : विनोद सिंह गुर्जर
अंबर से टकराकर।
रविरश्मि कुछ गाकर।
वैभव नभ के लाकर।
प्रकाश अमर होता है।।...
आलोक प्रखर होता है ।।...
बचपन में स्वप्न संजोना ।
धैर्य युवा में खोना।
देख बुढापा रोना।
जीवन नश्वर होता है।।...
आलोक प्रखर होता है ।।...
वंशी मधुर बजाना।
स्वर साधक बन पाना।
चित्त में राग सजाना।
मनमोह असर होता है।।...
आलोक प्रखर होता है ।।
परिचय :- विनोद सिंह गुर्जर आर्मी महू में सेवारत होकर साहित्य सेवा में भी क्रिया शील हैं। आप अभा साहित्य परिषद मालवा प्रांत कार्यकारिणी सदस्य हैं एवं पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इंदौर आकाशवाणी केन्द्र से कई बार प्रसारण, कवि सम्मेलन में भी सहभागिता रही है।
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