रिश्वत ! पर कुछ बोल
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रचयिता : शिवम यादव ''आशा''
! जनाब !
रिश्वत माँगी नहीं दी जाती है
जब तक अपनी दी हुई रिश्वत से
अपने ही इशारों पर सारे काम
होते रहें,
हम मुँह खोलने की कोशिश भी
नहीं करते हैं
बङी रिश्वत देने वाला तुम्हारे
काम को रोककर अपना काम
करवा या नौकरी पा लेता है
उस दिन हम रिश्वत का ढिंढौरा
पीटने लगते हैं
ओ रिश्वत की साए में पलने वाले जनाब
अब जरा अपने दिल पर हाथ
रखिए
कितने योग्य लोग आपकी रिश्वत
के तले अपनी योग्यता साबित
नहीं कर पाए
और आप रिश्वत के दम पर
यहाँ तक चले आए
कितनों के दिल दुखाए हैं आपकी रिश्वत ने
ये आपको नहीं पता
ये हम आम लोगों से पूँछों.....
लेकिन हकीकत ये है
इस रिश्वत को पालते भी हम हैं
और मिटाने की कोशिश भी करते हम हैं
पोषते भी हम हैं
इसको बलवान भी हम बनाते है
जिस दिन रिश्वत की छुरी खुद पर
चल जाती है उस दिन इसे
कोशते भी हम हैं
रिश्वत अच्छी भी है
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