जन्नत में बहता लहू
डॉ. मुकेश ‘असीमित’
गंगापुर सिटी, (राजस्थान)
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ख़बर आई है-
धरती के स्वर्ग में,
शबनम की जगह
बारूद बरस रहा है।
गुलमोहर की टहनियों
पर खून टपक रहा है।
पहाड़ियों की गोद में सोए
अट्ठाईस सपने
सिर्फ़ इसलिये तोड़ दिए गए
कि उन्होंने काफ़िर
होना चुना था।
आम आदमी-
जिसकी पूरी दुनिया
बीबी, बच्चे और रोटी की
महक से महफूज़ होती है,
उसे नहीं पता-
‘काफ़िर’ कौन होता है?
उसे ये भी नहीं पता
कि किसी और की
जन्नत की लालसा में
उसका जीवन नर्क
बना दिया जाएगा।
वो दरिंदा इंसान-
जिसकी आँखों में
७२ हूरों की परछाइयाँ हैं,
और शराब की
नदी का बुलावा,
वो भूल बैठा है-
कि जन्नत किसी मासूम
की लाश पर नहीं मिलती।
किताबें भी कभी
रोती होंगी शायद-
जब उनके अक्षरों से
हत्या के फतवे गढ़े जाते हैं।
जब प्रेम की आयतें,
नफरत की गोलियों
में बदल जाती है...