माज़रत चाहता हुँ
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मुनीब मुज़फ्फ़रपुरी
माज़रत चाहता हुँ मैं तुझसे
अब तेरी कम इधर निगाहें हैं
तुझ से वाबसता अब नही हुँ मैं
मुख़्तलिफ़ तेरी मेरी राहें हैं
वसल का ख़्वाब ख़्वाब ही रखिए
क्या तबस्सुम है क्या अदाएँ हैं
किस तरह पासबाँ सुकून मिले
राह तकती अभी निगाहें हैं
इसलिए कोई आ न जाए कहीं
हम ने अक्सर दिए जलाएँ हैं
क्या ताअस्सूर है यार लहजे में
किस तजस्सुस में आप आएँ हैं
लेखक परिचय :-
नाम: मुनीब मुजफ्फरपुरी
उर्दू अंग्रेजी और हिंदी के कवि
मिथिला विश्वविद्यालय में अध्ययनरत, (भूगोल के छात्र)।
निवासी :- मुजफ्फरपुर
कविता में पुरस्कार :-
१: राष्ट्रीय साहित्य सम्मान
२: सलीम जाफ़री अवार्ड
३: महादेवी वर्मा सम्मान
४: ख़ुसरो सम्मान
५: बाबा नागार्जुना अवार्ड
६: मुनीर नियाज़ी अवार्ड
आने वाली किताबें :-
१: माँ और मौसी (उर्दू और हिंदी ग़ज़ल)
२: रिदम की दुनिया (अंग्रेजी कविता)
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