Friday, May 2राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

चौसर की यह चाल नहीं है
गीत

चौसर की यह चाल नहीं है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** चौसर की यह चाल नहीं है, नहीं रकम के दाँव। अपनापन है घर- आँगन में, लगे मनोहर गाँव।। खेलें बच्चे गिल्ली डंडे, चलती रहे गुलेल। भेदभाव का नहीं प्रदूषण, चले मेल की रेल।। मित्र सुदामा जैसे मिलते, हो यदि उत्तम ठाँव। जीवित हैं संस्कार अभी तक, रिश्तों का है मान। वृद्धाश्रम का नाम नहीं है यही निराली शान।। मानवता से हृदय भरा है, नहीं लोभ की काँव। घर-घर बिजली पानी देखो, हरिक दिवस त्योहार। कूके कोयल अमराई में, बजता प्रेम सितार।। कर्मों की गीता हैं पढ़ते, गहे सत्य की छाँव। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्र...
डरा-डरा हिरना
गीत

डरा-डरा हिरना

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द दृगों से ऊलजलूल से। टपक रहे महुए के फूल-से।। बंधन की डोरी थी काटना। भूल गए खाई को पाटना।। ढँके रहे नभ में बन श्वेत घन, पटी उम्र दुखड़ों के धूल से। सूरज का वादा था झाग-सा। फैल गया जंगल में आग-सा।। हरी-हरी घास बिछी बाग में, डरा डरा हिरना पर रूल से।। आसपास काटों के गाँव हैं। हरे - भरे छालों के पाँव हैं।। नदी रखे तिनके से द्वेष अब, बह के हम दूर हुए कूल से।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
राम शरण में चल रे मनवा
भजन, स्तुति

राम शरण में चल रे मनवा

कमल किशोर नीमा उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** राम शरण में चल रे मनवा, जीवन सफल बनायें। राम शरण में सभी मंगल, मन को मत भटकाये। राम शरण में... राम शिवम् है राम सत्य है, सब देवता उनमें समाये। राम की स्तुति करने पर, संग सारे देवता पूजे। राम नाम है सब हितकारी, परम सुख बोध कराम्। महादेव भी बैठे समाधि, राम में ध्यान स्थान। राम शरण में… राम नाम अमृत की शोभा, भाग्य बिना नहीं मिलेगा। बारम्बार जन्म ले जीव, फिर धरा पर आये। राम ही दाता राम विधाता, जिसके मन ये समाये। राम की महिमा गाने वाले, घर-घर पूजे जाये। राम शरणम्… राम सनातन सच्चिदानंद, मार्ग सुगम दिखलायें। राम राज्य की परिकल्पना से, मन हर्षित हो जाये। राम कृपा उस पर हो जाये, जो भजन राम के गाये। चरण वन्दना करो भव सागर तर जाये। राम शरण में … परिचय :- कमल किशोर नीमा पिता : मोतीलाल जी नीमा जन्म द...
नव बना रहे हिंदुस्तान
कविता

नव बना रहे हिंदुस्तान

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** संवत विक्रम, करते हैं तुम्हें नमन। "नाल" बन सूर्य राजा संग लाये नव चितवन। है नवागत गुड़ीपड़वा, चैत्र उत्सव का जलवा, बैसाखी देती मन पुरवा। राजीवलोचन आये पलना झूलेलाल की हुंकार महान नवरोज़ की भी है शान अमृतफल से लाड गया उद्यान। आ गया, नव पल्लव, नव धान। वसुधैव कुटुंबकम् की तुम पहचानो। नव निधि साथ के लिए, नव बना रहे हिंदुस्तान। संवत विक्रम "नाल" कहलाते हैं और स्वामी सूर्य भगवान हैं परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, ...
चल फिर मिलते हैं
कविता

चल फिर मिलते हैं

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** दो दोस्त, एक साथ पढ़ाई, एक साथ शैक्षणिक प्रगति, एक सामान्य, एक में महत्वाकांक्षा अति, हुई पढ़ाई पूरी, पर जिंदगी की असल परीक्षा अधूरी, एक जल्द कुछ करना चाहता था, एक सोच समझ आगे बढ़ना चाहता था, पहले ने किसी और की दरी उठाना शुरू किया, कालांतर में बड़े नेता का महत्वपूर्ण पद हासिल किया, दूसरे ने रात दिन अलख जगाना शुरू किया, खुद को समाज और मिशन को सौंप दिया, पहले वाले की एक आवाज पर सैंकड़ों लोग इकट्ठे होते थे, जिनके सपने उनके पीछे पूरे होते थे, दूसरा इकट्ठा होने का आह्वान कभी नहीं करते थे, जागृति फैला दूसरों को जगाते और खुद भी संवरते थे, जब दोनों मिलने पहुंचे तो दृश्य अद्भुत था, पहला बेरोकटोक कहीं भी जाता था, दूसरा समस्या देख उसे दूर करने रुक जाता था, आप ही बताओ कौन कामयाब है, एक सत्ता...
वो पुरुष ही है
कविता

वो पुरुष ही है

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** वो पुरुष ही है जिसने साथ निभाया जन्म से मरन तक वो पुरुष ही है जो साथ चला ठिठुरन से जलन तक।। वो खुल कर ना हंसा ना रोया अब्र से कब्र तक खुद को संभाल कर रखा जब्र से सब्र तक।। चलता ही रहा वह सवेरे से रात तक थका नहीं कभी चलती उखड़ती सांस तक।। खुद को संभाले रखा घटते-बढ़ते रक्तचाप तक माथे का पसीना पोंछते और देह को मरोड़ते ताप तक।। किरदार को निभाया खूब नींद से लेकर जाग तक रहा सदैव मर्यादा में हंसी और ऊंचे विलाप तक।। असफलता पर कटी नाक तक और सफलता पर रोती आंख तक।। हर अवसर पर जन्मदिन से ब्याह तक खुद से जुड़े सारे रिश्तों के निबाह तक।। सहज सरल स्वभाव से लेकर अक्खड़ तक धुंए से लेकर उड़ते धूल धक्कड़ तक।। घर के काम लेकर दफ्तर तक उम्र पांच से लेकर पच्चहत्तर तक।। हर रिश्ते को दिल से ...
चिंतन
कविता

चिंतन

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** चिंतन से चिंता मिटे, ध्यान से मिटे अवगुण, प्रभु नाम से मिट जाये ८४ के फन्द। नींद से शरीर स्वस्थ रहे, चलने से नहीं करे परहेज़, खान-पान से खून बढे, सब रोगों का अंत, गीता से प्रभु ज्ञान मिले, मिटे शोक संताप, रामायण से आदर्श चरित्र, घर-घर हो जाये राम। योग से सब भोग भगे, सुंदर रहे शरीर, हनुमान से भूत भगे, काया हो जाए पवित्र। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "साहित्य शिरोमणि अंतर्राष्ट्रीय समान २०२४" से सम्मानित ४. १५००+ कविताओं ...
कौन हैं ये लोग
कविता

कौन हैं ये लोग

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** कौन हैं ये वृद्ध लोग एक बूढ़ा आदमी एक बूढ़ी औरत! कहने को इनके पास कोई अपना नहीं होता, ये दूसरों के बच्चों में खुद की औलाद का बचपन ढूंढते हैं! ये वृद्ध लोग अक्सर रेलवे-स्टेशन और एयरपोर्ट पर नजर आते हैं कभी कोई इन्हें लेने या छोड़ने नजर आता है! ये सदैव बूढ़े और कमजोर ही दिखते हैं व्हील चेयर और लाठी इनका सहारा होते हैं! जब ये समर्थ और इनके हाथ भरे होते हैं, इनके आसपास लोग होते हैं, हाथ खाली होते ही बोझ बन जाते हैं! इनकी रफ़्तार धीमी होती है, जिंदगी की दौड़ में पीछे छूट जाते हैं! जीवन भर सही राह पर चलते धर्म-कर्म निभाते, उम्र के इस पड़ाव पर अपना वज़ूद ढूंढते हैं, और एक दिन इस दुनिया से कूच कर जाते हैं!! परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी पति : श्री राकेश कुमार च...
धरा भी तू ही गगन भी तू
स्तुति

धरा भी तू ही गगन भी तू

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* धरा भी तू ही गगन भी तू मरुस्थल तू मधुवन भी तू सागर भी तू है ज्वार भी तू पार भी तू ही अपार भी तू आदि भी तू अंत भी तू... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. मान्य भी तू अमान्य भी सरल कठिन सामान्य भी अनुराग भी तू विराग भी काल तू ही विकराल भी अंत भी तू ही अनन्त भी शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. सुधा भी तू है गरल भी तू अतीत अद्य तू कल भी तू सृजन ही तू विनाश भी तू आस भी तू विश्वास भी तू दिग भी तू दिगन्त भी.... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. सृजन भी तू सृष्टि भी तू अगोचर है तू दृष्टि भी तू विषपायी तू भुजंग भी तू हिमाद्री है तू अनंग भी तू गहन निशा तू प्रात भी तू स्नेह है तू है संघात भी तू पतझर भी तू बसंत भी.... शक्तिमाम्....शक्तिमाम्. परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० ...
चंचल
कविता

चंचल

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** दृग चंचल मन चंचल चंचल बिटिया, गौरी चंचल मृग चंचल, मृग दृग चंचल आखेट के लिए आते हिंसक के पग चंचल। चंचल सरिता, झरना चन्चल जल की बून्दे, फुहारे चंचल भागती चंचल रश्मि छाया सगं। चंचल पवन, चंचल अग्नि पतझड चंचल पथ पर पडे पर्ण चंचल। पर पर स्थिर, धैर्यवान धरा इन सब को सवारती है सम्भालती है आश्रय देती है मानव जगत के लिये जीव जगत के लिये। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवाणी इंदौर से भी रचनाएं प्रसारित होती रह...
चतुरंग
कविता

चतुरंग

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जब अपने ही शतरंज का खेल-खेलने लगते हैं तो पराया भी अपने लगने लगते है। जब हमदर्द ही दर्द देने लग पड़ते हैं तो बेदर्द भी हमदर्द लगने लगते हैं। जब फूल भी चुभने लगते हैं तो दर्द भरे कांटे भी अपने लगने लगते हैं। जब बिना कसूर के भी लोगों नासूर जैसे चुबने लगे तो कसूर भी अपने लगने लगते हैं। जब मिठास भरे लोग भी कड़वाहट उगलने लगते हैं तो कटु वाणी भी मधुर स्वर लगने लगती हैं। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी र...
झंझावात
कविता

झंझावात

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** जब वायुमंडल में प्रचंड रूप से आंधी और तूफान आता है। यही मौसम झंझावात कहलाता है। ******* चमकती है आकाश में बिजली और ओले भी बरसते है। चारों तरफ होता है पानी पानी बादल भी गरजते है। ******* जब जब झंझावात आता है मुल्क में बर्बादी आती है। और हमारे जीवन को अस्त व्यस्त कर जाती है। ******* झंझावत प्रकृति का प्रकोप है जब हम प्राकृतिक साधनों का दुरुपयोग करते है तो झंझावत आता है। और यही फिर प्रकृति का प्रकोप कहलाता है। ******* रखें पर्यावरण का ध्यान तभी हम झंझावात से बच पायेंगे। नहीं तो व्यर्थ में जन-धन की हानि पायेंगे। ********* झंझावात कभी कभी हमारे जीवन में भी आते है। यदि हम सावधान न रहें तो बड़ी तबाही कर जाते है। ******** परिचय : डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" निवासी : चिनार-२ ओमेक्स पार्क- वुड...
गिनते रहिये दिन
कविता

गिनते रहिये दिन

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आता है जब कुछ कुछ खालीपन महसूस होता है, दिल गुजरे जमाने को याद कर रोता है, जो सिर्फ यादों में ही रहेगा, दुबारा आ जाऊं वक्त नहीं कहेगा, इधर समय गुजरता जाएगा, आयु साल दर साल घट जाएगा, कम होता जाता है दबदबा, कोई बचता नहीं मुंहलगा, आपको आपसे ही कोई नहीं मिलायेगा, गुजरा पल-पल पल तड़पायेगा, रहने लगेंगे सिर्फ यादों के सहारे, एक छोर में खुद तो दूसरे छोर में बाकी सारे, समझना न समझना खुद के ऊपर होगा क्योंकि बतियाएंगे रोज नदी के धारे, यदि किया है कुछ ऐसा काम, जो रख दे बरसों तक नाम, तो सफल रहेगा किसी का भी जीना, कब भागना पड़े सब छोड़ तब तक गिनते रहिये दिन, साल, महीना। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाण...
ख़ुद को बचा ख़ुदी से
ग़ज़ल

ख़ुद को बचा ख़ुदी से

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** वज़्न- २२१ २१२१ १२२१ २१२ अरकान- माफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईल फ़ाइलुन ख़ुद को बचा ख़ुदी से बचे ही रहेंगे हम। कल भी भले थे सबके भले ही रहेंगे हम।। साज़िश तमाम हो रही सच को मिटाने की। मिटने न देंगे सच को अड़े ही रहेंगे हम।। होता नहीं रईस कभी जो अमीर है। पैदा हुए रईस बने ही रहेंगे हम।। नफ़रत है उनके दिल में हमारे लिए भरी। अच्छा करेंगे फिर भी बुरे ही रहेंगे हम।। हमको गिराने वाले तो ख़ुद गिर गए निज़ाम। जब तक ख़ुदा है साथ उठे ही रहेंगे हम। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) भारत शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित कर...
तर्क
कविता

तर्क

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* दुनिया के सबसे सुन्दर फूल की तरह खिलता है, एकदम मानवीय प्यार की तरह, मेहनत की ज़मीन पर उगे अनुभव के पौधे पर शोभा पाता है तर्क मेहनत करने वालों के पास। तर्क सुन्दर होता है क्योंकि वह बताता है कारण का कार्य से सम्बन्ध वह बताता है चीजों के होने के बारे में, गतियों के रहस्यों के बारे में। बताता है वह रहस्य, अन्धकार और कृत्रिमता तथा निरुपायता से मुक्ति के बारे में इसलिए ज़रूरी है तर्क करना और लोगों को बताना तर्क के बारे में। जो चाहते हैं दुनिया को चलाना ऐसे ही जैसे कि वह चल रही है वे डर जाते हैं जब हम शुरू करते हैं तर्क करना I परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इं...
भटकते युवक
गीत

भटकते युवक

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** भटक रहे हैं युवक राह से, करें शत्रु का वरण। अंधा युग रखता है जैसे, दलदल में नवचरण।। भूले रीति संस्कार को सब, भूले प्रणाम नमन। ज्ञान ध्यान की बात नहीं, उजड़ा आस का चमन।। मात-पिता का आदर नहीं, कहाँ मिलेगी शरण। भूले सभ्यता संस्कृति भी, करते बैठे नकल। राग आलापें सब विदेशी, नाम न लेते असल।। आचरण में खोट भी उनके, करते नारी हरण। नशे में डूबे नवयुवक अब, मूल्यों का बस पतन। मोल लेते कई बीमारी, करें होम यह बदन।। जिंदा जलते होश नहीं कुछ, दुखद सब समीकरण। तेज़ाबी माहौल हुआ सब, होती रहती जलन। नित दुर्घटना करें शहजादे, देखो बिगड़े चलन।। घिसटे पहियों में भविष्य फिर, हुआ मान भी क्षरण। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्...
होली में हो ली
कविता

होली में हो ली

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** होली में हो ली, कौन किसके साथ हो ली, सास, ससुर के साथ हो ली, जेठानी, जेठ के साथ हो ली, नंदन, नंदोई के साथ हो ली, भाभी, भैया के साथ हो ली देवरानी, देवर के साथ हो ली, और बाकी जिसका मन पड़ा वह उसके साथ हो ली, बचे हम दोनों हम महाकाल की गैर देखने इनके साथ हो ली मिल गए सब महाकाल की गैर में, खुली पोल सबकी, कौन किसके साथ होली में हो ली, कोई ठंडाई, कोई भांग, कोई रगड़ा, कोई गोली होली में गोली और गोली में हो ली, आया नशा होली के रंगों में महाकाल की टोली। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन...
फंटूस – बाल गीत
गीत, बाल कविताएं

फंटूस – बाल गीत

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** बिना बात ही लगा ठहाके, आओ करें हम गप सटाके। खा बतासे, फोड़ पटाखे, फटी जींस पे नाच दिखाके। रंग जमाके, ढंग बनाके, हिप्पी जैसा, बाल बढ़ाके। चमक-चमाके, झनक-झनाके, आज करें हम, धमक-धमाके। इन पर, उन पर रोब लगाके, नदिया-पोखर, घूम-घुमाके। कंची-कंचा, तड़क-तड़ाके, पतँग उड़ाके, पेंच लड़ाके। दनक दनाके, रनक बनाके, मारें छक्का, बैट उठाके। अक्कड़-बक्कड़, लाल-बुझक्कड़, हमसे है ना कोई बढ़कर। सावधान! ना तुम टकराना, बड़े-बड़ों को दें हम टक्कर। झूल- झुलाके, पेंग बढ़ा के, गुल्ली प डंडा दें जमाके।। तोला-मासा और छटाकें, डेका-सेमी, पढ़ें-पढ़ाके। अंत-अक्षरी-बोल, रटाके, वीरगान की तान सुनाके। ढनक- ढनाके, टनक- टनाके, ढोल पे ताशा दे घुमाके।। परिचय :-  बृजेश आनन्द राय निवासी : जौनपुर (उत्तर प्रदेश) सम्मान : राष्...
शक्ति
कविता

शक्ति

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मकड़ियों के जालो में बैठी भूखी मकड़ियां इंतजार करती कीट पतंगों का कब फंसेंगे ये जाल में ठग लोग भी बनाते ठगने का जाल कोई न कोई फंसेगा झूठ फरेबों के जाल में। मकड़ियां सूने घरों में ज्यादा बनाती जाले ठग भी कुछ ऐसा ही करते जहाँ हो सूनी सड़क हो या घर मकड़ियों का किसी से वास्ता नहीं होता उन्हें अपने काम से मतलब ठगो से बुद्धिजीवी इंसान कैसे ठग जाते ? और फंस जाते कीट पतंगों की तरह उनके रचे हुए जाल में। दीपावली पर सफाई में महिलाये कर देती मकड़ियों के जाले साफ़ इंतजार है महिलाएं कब करेगी इन ठगो को साफ़ क्योंकि कुछ मर्दो को मेहनत करना नहीं आता मेहनत की रोटी क्या होती उन्हें मालूम नहीं जबकि ठगी रोकने का काम बुद्धिजीवी मर्दो का है ठगी पर अंकुश नहीं लगा पाए जब मर्द महिलाओं पर ही अब विश्वास बचा है शेष उनक...
मुक्त होने का समय
कविता

मुक्त होने का समय

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** अब किस बात का इंतजार है, क्या आपका दिल नहीं बेकरार है, हजारों वर्षों तक दबे कुचले हो जीने से घुटन महसूस नहीं हो रही, आधी आबादी क्यों चिरनिद्रा सो रही, अब और कितने समय तक खुद से जोर नहीं लगाओगे, हाथ जोड़े-घूंघट काढ़े कब तक चुप रह पाओगे, प्रभात आपके लिए भी हो गया है, देखी भाली हो इस दुनिया को आपके लिए कुछ भी नहीं नया है, लूटा गया मान सम्मान, हक़ अधिकार, देखो आज भी यहीं है, बदले स्वरूप सारी देनदारियां एक-एक कर गिनने का समय है, एकपक्षीय सोच वालों से सब कुछ छीनने का समय है, इतनी बदल चुकी दुनिया क्या आज से स्वयं जुड़ने का मन नहीं करता, उड़ रही है नारियां अन्य देशों की क्या आपका मन उड़ने को नहीं करता, साम, दाम, दंड, भेद से है जो बिछाया गया जाल उसे आगे आ खुद से काटो, ड्योढ़ी लांघने का ये अच्छा समय है ...
महाकुंभ महिमा
गीत

महाकुंभ महिमा

प्रो. डॉ. विनीता सिंह न्यू हैदराबाद लखनऊ (उत्तरप्रदेश) ******************** गंगा जमुना और सरस्वती तीनों हैं इक साथ में तीनों नदियों का संगम है तीर्थ राज प्रयाग में १. उज्जवल श्यामल पानी मिलकर बहे निर्मल जल धारा कण -कण में है इसके अमृत, कितनों को है तारा ब्रह्मा-शिव का तेज समाया इस निर्मल जल धार में २.इस तीर्थ महिमा की गाथा वेदों ने है गायी यहाँ ऋषि और मुनियों ने हैं कितनी सिद्धियाँ पायीं ज्ञान मिले अध्यात्म जगे संगम के पुण्य प्रताप में ३. भारद्वाज मुनि का आश्रम यहाँ प्रभु राम जी आए थे माता सीता और लक्ष्मण संग में आशीष पाए थे प्रभु राम ने चरण पखारे इस निर्मल जल धार में ४. दरस परस कर महाकुंभ में पुण्य प्रताप जगा लो पावन इस जल की धारा में मन का मैल मिटा लो पाप कटे संताप मिटे इस पावन जल की धार में परिचय :- प्रो. डॉ. विनीता सिंह निवासी : न्यू हैदराबाद लखनऊ (उ...
विश्व जल दिवस पर चौपाई-छंद
चौपाई, छंद

विश्व जल दिवस पर चौपाई-छंद

धर्मेन्द्र कुमार श्रवण साहू बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** आज विश्व जल दिवस मनाओ, सब जनता को यह परखाओ। अब जन जागरूकता लाओ, गली खोर अभियान चलाओ।। जल बिन मछली तड़पे कैसे, प्राण वायु बिन मरते जैसे। एक बूँद का कीमत जानो, कितना महत्व इसको मानो।। आओ प्यारे सब मिल गाओ, बचाने का संकल्प उठाओ। अब जन जागरूक हो जाओ, जल संरक्षण मिशाल लाओ।। पानी के बिन यह जग सूना, जीव जंतु है प्रकृति नमूना। बेकार की अब इसे न बहाओ, आसपास को स्वच्छ बनाओ।। जल बचाव का नियम बनाओ, जल-जंगल-जमीन महकाओ। पेड़ लगाकर छाया पाओ, खुशहाली जीवन हर्षाओ।। जल बिन सावन भादो कैसा, धरा तृषित अनावृष्टि जैसा। धरती मैय्या हरियाली पाओ, पानी बचाने घर-घर समझाओ।। *श्रवण* मनन कर लिख चौपाई, जल ही जीवन समझो भाई। हँसी खुशी महोत्सव मनाओ, अब प्रतिज्ञाबद्ध हो जाओ।। परिचय :- धर्मेन्द्र कुमार श...
बू
कविता

बू

विष्णु बैरवा भीलवाड़ा (राजस्थान) ******************** (लोगों की ईर्ष्या की दुष्प्रवृति पर प्रहार) जिस दिन मिला पुरुस्कार बू आ रही थी मिली नौकरी जिस दिन मुझको बू तब भी आ रही थी कुछ जलने की एक दिन चौपहिया क्रय कर लाया मानो, आग भभकने लगी बू सातवें आसमां पर थी कल हो गई कल दुर्घटना मुझपे माहौल सुगंधित है मानो खिल गए सैकड़ों पुष्प साथ में। परिचय :  विष्णु बैरवा निवासी : गांव- बराटिया, ब्लॉक- भीलवाड़ा, (राजस्थान) कथन : मैं कल्पनाओं को शब्दों में पिरोने का प्रयास करता हूँ । हिंदी साहित्य की विशालता का बखान किया करता हूँ । घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी...
डम-डम डमरू दिगम्बरा
भजन

डम-डम डमरू दिगम्बरा

डाँ. बबिता सिंह हाजीपुर वैशाली (बिहार) ******************** डम-डम डमरू दिगम्बरा, देवाधिदेव भगवान! जयति-जयति जगदीश्वरा। कर त्रिशूल कर्ण कुण्ड, जपता रहे मन पंचाक्षर! जयति-जयति जगदीश्वरा। भाल चन्द्र तन बाघम्बरा, शिवम् सत्यम् सुन्दरा ! जयति-जयति जगदीश्वरा। अंग विभूति छवि मनोहरा, नमामि सदा शिव शंकराय! जयति-जयति जगदीश्वरा। जगत सर्जन प्रलयंकरा, नाथ दयानिधि दानिशवरा! जयति-जयति जगदीश्वरा। सरल हृदय मेरे कालेश्वर, हे जटाधारी अभयंकरा! जयति-जयति जगदीश्वरा। पार्वती पति प्राणेश्वरा, विश्वनाथ विश्वंभरा! जयति-जयति जगदीश्वरा। श्री नीलकंठ सुरेश्वर, चन्द्रमौलि चिदम्बरा! जयति-जयति जगदीश्वरा। नागेन्द्रहारा हे गंगाधारा, जय-जय महायोगीश्वरा! जयति-जयति जगदीश्वरा। परिचय : डाँ. बबिता सिंह निवासी : हाजीपुर वैशाली (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि...
उपहार
कविता

उपहार

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** मानव तन का मोल है जाना? ईश्वर की रचना को पहचाना, अनमोल कीमती शरीर की संरचना, आँख, नाक और कान की रचना, अंग-अंग की कीमत है जानी? इसकी कीमत नही पहचानी, प्रभु का उपहार बडा़ अनमोल। लाख करोड़ अरबो भी कम, अपने को नि:शुल्क अर्पण है, करे इफाजत इस तन मन की, कंचन से कोमल तन-मन की, नही मिलेगा यह दोबारा, चाहे कर ले जतन तू सारा, धन्यवाद दे प्रभु को आज, मुक्ति का साधन ये हे महान। शीशे का देखो यह तन, रखे जतन से जैसे रत्न, अच्छे कर्मो का ज्ञान तू रख ले, प्रभु का हरदम ध्यान तू कर ले, धन्यवाद दे सौ-सौ बार, कितना कीमती मानव तन का उपहार। परिचय : किरण पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय स...