तामस की कारा
भीमराव 'जीवन'
बैतूल (मध्य प्रदेश)
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खपी पीढ़ियाँ सपनों में ही,
हुआ न उजियारा।
कब तक हो भिनसारा भाई,
कब तक भिनसारा।।
तेल चुका ढिबरी का सारा,
बाती राख हुई।
आसमान तक अँधियारे की,
हँसमुख साख हुई।।
सधन हुई है दिन-प्रतिदिन ही,
तामस की कारा।।
नकबज़नी में रोटी के,
नख, घिस-घिस टूट गए।
पुस्तक का घर मावस के
कुछ, गुंडे लूट गए।।
चौराहों पर बेकारी का,
चीख रहा नारा।।
श्वास-श्वास पर पूरब के हैं,
प्रतिबंधित पहरे।
जब-जब सोचे निकले बाहर,
पाँव धसे गहरे।।
खर्च हो गया भूख-प्यास पर,
दम-खम था सारा।।
स्वर्ण-श्रंखला में बँध घंटे,
भूल गए बजना।
आठ पहर विरुदावलियाँ ही,
उनको जो भजना।।
रुद्ध हुई गंगा यमुना की,
समरस जलधारा।।
परिचय :- भीमराव 'जीवन'
निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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