बेकार लड़का
शिवदत्त डोंगरे
पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश)
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बेकार लड़का
माँ से नहीं डरता
पिता से नहीं डरता
और न ही मौत से
बेकारी के दिनों में
उसका सारा डर मर गया।
सिगरेट के दाम से लेकर
दोस्तों के चेहरों तक
बहुत कुछ बदल गया
दीवार से उतरे हुए
पुराने कैलण्डर
की तारीखें चली गईं
अखबार की रद्दी के साथ
थूकने के अलावा
क्या बचा है
बेकार लड़के के पास
जबकि दिन
बहुत छोटे हो गए हैं
और ठंडी हवा
गालों में चुभती है।
बाज़ार की चिल्ल-पों
धूल भरी गलियों के सूनेपन
और अपनी पीठ पर टिकी
कस्बे की आँखों से बचता
देर रात पहुंचता है वह घर
नींद में बड़बड़ाते पिता
न जाने कब सुन लेते हैं
किवाड़ों पर दी गई थाप
पिता की दिनचर्या में
शामिल हो गई है
दरवाजे की हलचल
सिर झुकाकर उसका
सामने से गुजर जाना
कुछ शब्दों के हेरफेर से
जमाने का बिगड़ना
और अरे मेरे भगवान कह
फिर सो जाना...