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पद्य

खिसियानी बिल्ली
कविता

खिसियानी बिल्ली

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कर नहीं पा रहा कुछ भी छोटा है तो छोटा ही सोचे, हंस-हंस कर लोग बोले खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बहुत उम्मीद पाल, जल्द बदल सकता है हाल सोच नेताजी ने चुनाव लड़ा, होकर निर्दलीय खड़ा, घोषणाएं बड़ा-बड़ा, सेवा की आस में चुनाव में पड़ा, पर ये क्या किस्मत निकला सड़ा, जमानत जप्त करा शर्म से गड़ा, सात पीढ़ी के लिए तो थे सोचे, पर खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। बड़े साहब से थी मधुर संबंध की चाह, शायद निकल आये तरक्की की राह, चापलूसी में गुजर रही जिंदगी पर किस्मत निकला श्याह, साहब दोस्ती न सका निबाह, असमंजस है अब किस तरीके से साहब का मोर पंख खोंचे, खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे। परिचय :-  राजेन्द्र लाहिरी निवासी : पामगढ़ (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रच...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

किरण विजय पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** बादलों से आलिंगन करते पर्वतों की श्रृंखला है अपार। ऊंचे ऊंचे पर्वतो के मध्य श्वेत झरनों की धार। ऊँचे पर्वतो से यात्रा करके मिलते हैं धरती से आज। हर पल मे बरसते देखो एक पल मै ओझल हो जाते, अपने आंचल में है समेटे बादलो का बिखर रहा है जाल। हरियाली अपने यौवन पर फल-फूल रहे हैं झाड़। कभी गरजते कभी बरसते कभी मौन हो जाते आप। देख नजारा प्रकृति का टकटकी लगाये अखियां आज। देखो दृश्य ओझल ना हो जाये स्वर्ग उतरा धरती पर आज। परिचय : किरण विजय पोरवाल पति : विजय पोरवाल निवासी : सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) शिक्षा : बी.कॉम इन कॉमर्स व्यवसाय : बिजनेस वूमेन विशिष्ट उपलब्धियां : १. अंतर्राष्ट्रीय साहित्य मित्र मंडल जबलपुर से सम्मानित २. अंतर्राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन से सम्मानित ३. राष्...
बांके बिहारी
स्तुति

बांके बिहारी

डॉ. राम रतन श्रीवास बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ******************** किंचित चिंतन चीते मन में प्रभु, राही को त्राहि हुए सब ग्रामा। भय क्लेश सबे दुनिया अरु, जन-जन आश तुम्ही हो श्यामा।। सीस शिखी उर-बाहु प्रलंब, कमल नैन, बंकिम दृग भौंहें। कर मुरली लकुटी धरी लाठी, ग्वाल बाल गौ सुन्दर सोंहैं।। मायापति के माया को न जाने, खरारी नित नव नाच नचावें। आन बसों "राधे" मन मंदिर, ग्वालिन यमुना तट बाट जोरावें।। राह खरो वहशी दरिंदा एक, गोपिन व्याकुल हुए परमात्मा। कहत "राधे" बांके बिहारी को नाम, त्राण मिटाओ वसुधा विश्वात्मा।। परिचय :-  डॉ. राम रतन श्रीवास निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़) साहित्य क्षेत्र : कन्नौजिया श्रीवास समाज साहित्यिक मंच छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष सम्मान : कोरबा मितान सम्मान २०२१ (समाजिक चेतना एवं सद्भाव के क्षेत्र में) शिक्षा : हिन्दी साहित्य (स्नातकोत्तर) अतिरिक्त : रेल प...
भारत का कीर्ति नाद
छंद

भारत का कीर्ति नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ऋषि मुनियों का देश यहाँ पर मेघ सुधा बरसाते। स्वर्ग त्याग देवता कुटी में बसने को ललचाते।। कवियों की यह धरा जहाँ भावना अछल उठती है। यहाँ सृजन के लिए स्वयं लेखनी मचल उठती है।। अविनाशी वह ब्रह्म यहाँ नव लीलाएँ रचता है। ले-ले कर अवतार स्वयं माँ की गोदी भरता है।। नदियाँ गातीं गीत यहाँ हर झरना भजन सुनाता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत माता।।१।। जिसके बच्चे बचपन से ही रण रचना करते हैं। जबड़े पकड़ बबर सिंहों के दाँत गिना करते हैं।। कच्ची कली खेलती हँसती मर्दानी बन जाती। अबला बाला रण में झाँसी की रानी बन जाती।। मरे हुए पति को जीवित करने को अड़ जातीं हैं। यहाँ नारियाँ सत के बल पर यम से भिड़ जातीं हैं।। यहाँ प्रकृति की हंँसी देखकर मुकुलित मन इतराता। इसीलिए प्राणों से प्यारी लगती भारत म...
महत्व सिंदूर का
छंद

महत्व सिंदूर का

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** महत्व सिंदूर का समझ वो सके न कभी, सैलानियों का पूछ धर्म चुन-चुन मार रहे। बार बार खाके मार अक्ल न आई कभी, आतंकी ठिकानो में अब ढूंढ ढूंढ मार रहे। प्रहार सिंदूर का वो सह न सके कभी भी, नंगे, भूखे हरकतें अब, कायराना कर रहे। अब तक बच रहे, अब बच न पाएंगे कभी, सिंदूर का बदला "श्याम" सिंदूर से कर रहे। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - कोदरिया महू (म.प्र.) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
कल नही आज
कविता

कल नही आज

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कल नही आज आज नही अभी अभी नही इसी क्षण भावो के सागर की लहरे कूल से टकराती स्याही बन लेखनी मे उतरती कागज पर कुछ लिखती लेखनी यही है हाँ यही है कवि की कविता की कहानी। सूरज की किरणो से आगे कवि हेदय भाव भावो के बवन्ङर को नव रसो का स्पर्श कविता को श्रृंगारित करता गाता जाता कवि सरिता के कूल किनारे वीर गान आनन्द गान गाता जाता अपनी मस्ती मे कुछ हंसाता कुछ रूलाता जाता। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत करती रही आकाशवा...
हिंद वतन आजादी है
छंद

हिंद वतन आजादी है

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** (ताटंक छंद, देश प्रेम) संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। पत्ते, डाली, तना, जड़ यात्रा, हरियाली जता रही है। संकल्प से सिद्धि के प्रकल्प, दीवाली दिखा रही है। आजाद राष्ट्र आवाम को, स्वाभिमान सिखा रही है। दिया तले तम साबित करने, बैठे कुछ जल्लादी है। उनको विरोध द्रोह तर्क की, कड़वी दवा पिला दी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी है। बस देश प्रगति की गाथा ही, हिंद वतन आजादी है। दोनों आंख सलामत फिर भी, विकास गर्व नहीं भाता। पर काने अंधे मानव भी, माटी में पर्व मनाता। पड़ोसी गोद में पलते जो, दंभ शान ही दिखलाता। स्वाभिमान भारत दर्शन से, उनको क्या पाबंदी है। सुनो! विश्व सम्मान से भारत, अव्वल पथ आसंदी है। संस्कारों के महा वतन में, कर्म-धर्म आजादी...
हिंदी
दोहा

हिंदी

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** कोमल है कमनीय भी, शुभ्र भाव रसखान। यशवर्धक मन मोहिनी, हिन्दी सरल सुजान।। भाग्यविधाता देश की, संस्कृति की पहचान देवनागरी लिपि बनी, सकल विश्व की जान।। अधिशासी भाषा मधुर, दिव्य व्याकरण ज्ञान। सागर सी है भव्यता, निर्मल शीतल जान।। सम्मोहित मन को करे, नित गढ़ती प्रतिमान। पावन है यह गंग-सी, माॅंग रही उत्थान।। आलोकित जग को किया, सुंदर हैं उपमान। अलख जगाती प्रेम का, नित्य बढ़ाती शान।। उच्चारण भी शुद्ध है, वंशी की मृदु तान। सद्भावों का सार है, श्रम का है प्रतिदान।। पुष्पों की मकरन्द है, शुभकर्मों की खान। भारत की है अस्मिता, शुभदा का वरदान।। पुत्री संस्कृत वाग्मयी, लौकिक सुधा समान। स्वर प्रवाह है व्यंजना, माँ का स्वर संधान।। दोहा चौपाई लिखें, तुलसी से विद्वान। इसकी शक्ति अपार पर, करते हम अभिम...
चेतावनी
छंद

चेतावनी

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हर ओर धुँआँ ही धुँआँ मात्र संयोग नहीं, परिणाम निकल कर आए हैं आजादी के। चल पड़ी तोड़ कर अनुशासन यह आबादी, जिस पथ पर पसरे राग बड़ी बर्बादी के।। कहने को कुछ भी कहो आपकी मर्जी है, शायद कुछ भाग्य उदित हों अवसरवादी के। पर हम सचेत करते हैं तुम को यह कहकर, ये लक्षण हैं उन्मादी और फसादी के।। यूँ स्वतन्त्रता का अर्थ नहीं स्वच्छन्द रहो, जीवन संयम के साथ बिताना जीवन है। खुद पर कानूनों नियमों का अंकुश न रखा, तो पराधीन बाहों में जाना जीवन है।। सुनने में कड़ुआ लगे-लगे तो लग जाए, जनता के हक का हरण, बहाना जीवन है। चल रहीं चालबाजियाँ उधर अपने हित में, युग के सुधार का नाम निशाना जीवन है।। नीतियाँ अधमरीं पड़ीं स्वार्थ के वशीभूत, इस त्याग भूमि पर क्या जाने क्या हवा चली। भर लिए खजाने लोगों ने कर लूटमार,...
सु आस है हिंदी
कविता

सु आस है हिंदी

राधेश्याम गोयल "श्याम" कोदरिया महू (म.प्र.) ******************** युग-युग से स्वर्णिम भारत का इतिहास है हिंदी, भारत मां के कण-कण में एक प्यास है हिंदी। हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। अखिल विश्व में मां भारती की शान है हिंदी, शहीदों ने गाया वंदे मातरम गान ही हिंदी। जन-जन के अंतर्मन का आभास है हिंदी....हर घर । रिश्तों को निभाने का सच्चा मार्ग है हिंदी, मनोभाव दिखाने का अच्छा मार्ग है हिंदी। कवियों के अंतर्मन मन का आभास है हिंदी...हर घर सभी भाषाओं में उत्कृष्ट लिए भाव है हिंदी, हमारी संस्कृति के सिर पे गहरी छांव है हिंदी। भारत के संविधान का विश्वास है हिंदी....हर घर गीतों, छंदों और कविता का गान है हिंदी, हिंदी के सिर पे बिंदी का सम्मान है हिंदी। गीतों में सार "श्याम" के अब खास है हिंदी, हर घर के जन-जन की सु आस है हिंदी।। परिचय :- राधेश्याम गोयल "श्याम" निवासी - ...
हिन्दी मस्तक की बिंदी
गीत

हिन्दी मस्तक की बिंदी

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** हिन्दी हितकर है सदा, हिन्दी तो अभियान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में तो आन है, हिन्दी में तो शान है। हिन्दी नित उत्कृष्ट है, हिन्दी सदा महान है।। हिन्दी अपनायें सभी, यही आज अरमान है। कला और साहित्य है, भरा हुआ यशगान है।। हिन्दी गीत, कुंडलिया, कविता, चौपाई की शान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में है उच्चता, मनुज सभी इसको मानें। हिन्दी का उत्थान सदा हो, हिन्दी को सब ही जानें।। हिन्दी पर अभिमान हमें हो, हिन्दी अपनायें सब। हिंदी से हम प्रीति लगा लें, मंगलगीत सुनायें सब।। वह हर हिंदी के पथ में जो सचमुच चतुर सुजान है। हिन्दी है मस्तक की बिंदी, हिंदी तो सम्मान है।। हिन्दी में सामर्थ्य भरा है, हिन्दी में है वेग भरा। हिन्दी में ...
मातृभाषा का महोत्सव
कविता

मातृभाषा का महोत्सव

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** हिंदी है दिल की जुबां, हिंदी है जन-गान। भारत माँ की वाणी है, इसका ऊँचा मान।। माटी की खुशबू लिए, बोले हर इंसान। गंगा-जमुनी संस्कृति की, हिंदी पहचान।। तुलसी की चौपाइयों में, सूर की रसधार। कबिरा के दोहों में बसी, जीवन की पुकार।। मीरा के पद झंकारित हों, भक्तिरस का गीत। भारतेंदु का जागरण हो, हिंदी का संगीत।। प्रेमचंद की कहानियों ने, जग में दिया प्रकाश। साहित्य के हर पृष्ठ पे, हिंदी का इतिहास।। महादेवी के भावों में, कोमलता का गीत। दिनकर की गर्जना में है, ओजस्वी संगीत।। रसखान की राधा बानी, रही प्रेम की धुन। हिंदी का उत्सव यही, हिंदी का अभिमान। संविधान की गोद में, राजभाषा का मान। विश्वपटल पर गूंजती, भारत की पहचान।। आज तकनीकी युग में भी, हिंदी लहराए। मोबाइल की स्क्रीन पर भी, हिंदी ही छाए।। कीबोर्ड स...
उड़ान
कविता

उड़ान

डॉ. रागिनी सिंह परिहार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** सपनों में अगर चाहिए उड़ान तो सुनो गुरु ज्ञान के बिना संभव नहीं सुनो बचपन में मां ने मुझको चलना सिखाया उंगली पकड़ के मेरी सही रास्ता दिखाया जब थोड़ी सी बड़ी हुई विद्यालय पहुंचाया गुरुओं के बीच मुझको नादान बताया फिर गुरुओं ने हमारी हमें मंजिल है दिखाया के से कबूतर ज्ञ से ज्ञानी मुझको सिखाया थोड़ी और बड़ी हुई तो विषय वस्तु बट गए हिंदी,गणित,विज्ञान का मतलब समझ गए पर आज तक अंग्रेजी समझ आई ना हमें A फॉर एप्पल Z फॉर ज़ेबरा समझ आया ना हमें प्रथम गुरु मेरी मां बनी जिसने दिया है जन्म उस जन्म को साकार बनाया है गुरुजन अबोध है अज्ञान है अंधकार में है हम आपके सानिध्य से चीनू बाई, कल्पना चावला बने हम बस आरजू यही कि देश में हर नारी का हो नारित्व हर घर में लक्ष्मीबाई हो हर घर में विवेकानंद सपनों म...
दिल हूं हिंदुस्तान की
कविता

दिल हूं हिंदुस्तान की

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** सरल, सहज, सुमधुर वचन संस्कृत से पाया अपना जीवन सकल जगत् को मोह रही है अंक मेरे अपार शब्द शक्ति सहेज रही बोलियों को बनकर मातृशक्ति नवीन तकनीक के लगाकरपंख मैं तो छूने आकाश चली हिंदी कहते मुझको दिल हूं हिंदुस्तान की राजभाषा बन हिन्द की राष्ट्रभाषा बनने की तमन्ना मैं कर रही परिचय :- डॉ. निरुपमा नागर निवास : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@g...
अभिव्यक्ति
मुक्तक

अभिव्यक्ति

डॉ. रीना सिंह गहरवार रीवा (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों हो विशेष दिवस बस एक अपनी मां को मां, कहने का। ये भाव कहां से आया कौन इसे है लाया। हम सब भारतवासी पहचान हमारी हिंदी। मां को मां ही मानो सम्मान हमारा हिंदी। मां तो मां होती है हो चाहे दिवस कोई भी। सम्मान करें हम सबका, पर अभिमान हमारा हिंदी। आधार बनी अभिव्यक्ति का है भान हमारी शक्ति का। सम्मान करो सब इसका, क्योंकि है शान हमारी हिंदी है शान हमारी हिंदी। परिचय :- डॉ. रीना सिंह पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर, रीवा (मध्य प्रदेश) शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छा...
आधुनिक व्यक्तित्व
कविता

आधुनिक व्यक्तित्व

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** बहुत कुछ लिखते हैं लिखने वाले मगर लिख नहीं पाते अपने गुनाहों को कभी। बहुत कुछ कहते हैं कहने वाले मगर कह नहीं पाते अपने जुर्मो को कभी। बहुत कुछ सुनाते हैं सुनाने वाले मगर सुना नहीं पाते अपनी कमियों को कभी। बहुत कुछ दिखाते है दिखाने वाले मगर दिखा नहीं पाते दबे हुए जज्बातों को कभी। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
हिंदी
कविता

हिंदी

शशि चन्दन "निर्झर" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत मां के माथे की बिंदिया है हिंदी। कलकल करती पावन सरिता है हिंदी। सूर की अमृत वाणी, कबीर की साखी है हिंदी, तुलसी की माला मीरा के पदों की झांकी है हिंदी।। उर्दू की प्रिय बहना, संस्कृत की बिटिया है हिंदी, वेद पुराणों में वर्णित गंगाजल की लुटिया है हिंदी।। हम सबका अभिमान, खुसरो ने गढ़ी है हिन्दी, काली ने मढ़ा जिससे वो, कौस्तुभ मणि है हिंदी।। सरल,सहज,सुरमयी, धवल वीणावादनि शारदा है हिंदी, मनका मनका रची अक्षय, ज्ञान की वर्णमाला है हिंदी।। धरा से नीलाभ तक, स्वच्छंद विचरती पवन है हिंदी , मधुकर सा सुशोभित, पुष्पित हराभरा उपवन है हिंदी।। चंदन सी महकती अमिट, राजभाषा, राष्ट्रभाषा है हिंदी, कि "शशि" सभी भाषाओं की एकमात्र परिभाषा है हिंदी।। परिचय :- इंदौर (मध्य प्रदेश) की निवासी अपने शब्दों की निर्झर बरखा...
गणपति बप्पा : ज्ञान के दाता
भजन

गणपति बप्पा : ज्ञान के दाता

राकेश कुमार दास पिपिलि, पुरी ******************** हे विघ्नहर्ता गणपति बाप्पा, हर शुभारंभ के आधार। तेरे बिना यह जग सूना है, तू ही है ज्ञान का भंडार॥ विद्यालय से मंदिर तक, तेरा ही गुणगान। तेरे नाम से खिलते हैं, विद्या के उद्यान॥ शिवपुत्र! जब शीश गंवाया, फिर भी दिखाया ज्ञान का प्रकाश। तेरे आशीष से जग ने पाया, विद्या का अनमोल विश्वास॥ शिक्षा से जीवन होता है उज्जवल, अज्ञान से होता पतन। तेरी कृपा से मिटते अंधेरे, ज्ञान बनता जीवन धन॥ ना कोई वंचित शिक्षा से हो, सबको मिले तेरा आशीर्वाद। तेरी शरण जो आए गणपति, उसका जीवन हो सफल और आबाद॥ तेरी मूर्ति में है आस्था, तेरे चरणों में है विश्वास। गणपति बाप्पा मोरया... मंगल मूर्ति मोरया...॥ परिचय : राकेश कुमार दास निवासी : पिपिलि, पुरी घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करता हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। ...
मुकद्दर
कविता

मुकद्दर

डॉ. प्रताप मोहन "भारतीय" ओमेक्स पार्क- वुड-बद्दी ******************** मेरे मुकद्दर में है "मुकद्दर" पर कविता लिखना। और उसको प्रकाशन के लिए भेजना। ******* मिलता वही है हमें जो मुकद्दर में लिखा होता है। फिर इंसान क्यों अपने मुकद्दर पर रोता है। ******* हमारे कर्मों से ही हमारा मुकद्दर बनता है। अच्छा करने पर हमें अच्छा ही मिलता है। ******* जो हमारी किस्मत में लिखा हो वो मुकद्दर कहलाता है। यह जन्म के समय विधाता द्वारा लिखा जाता है। ******* कभी किसी की लॉटरी लगती है और गरीब अमीर बन जाता है। यही सब मुकद्दर कहलाता है। ******* लोगों की दुआओं से आपका मुकद्दर बदल सकता है। आपको रंक से राजा बना सकता है। ******** केवल मुकद्दर के आसरे मत बैठे रहिये। कुछ अच्छे काम कर अपनी सफलता की कहानी कहिए। ******** तुमको मैने अपना "मुकद्दर" समझा था। लगता है अब मुकद्दर ने साथ छ...
आसमान खाली है
गीत

आसमान खाली है

मीना भट्ट "सिद्धार्थ" जबलपुर (मध्य प्रदेश) ******************** आसमान खाली है लेकिन, धरती फिर भी डोले। बढ़ती जाती बैचेनी भी, हौले-हौले बोले।। चले चांद की तानाशाही, चुप रहते सब तारे। मुँह छिपाकर रोती चाँदनी, पीती आँसू खारे।। डरते धरती के जुगनू भी, कौन राज़ अब खोले। जादू है जंतर-मंतर का, उड़ें हवा गुब्बारे। ताना बाना बस सपनों का, झूठे होते नारे।। जेब काटते सभी टैक्स भी, नित्य बदलते चोले। भूखे बैठे रहते घर में, बाहर जल के लाले। शिलान्यास की राजनीति में, खोटों के दिल काले।। त्रास दे रहे अपने भाई, दिखने के बस भोले। परिचय :- मीना भट्ट "सिद्धार्थ" निवासी : जबलपुर (मध्य प्रदेश) पति : पुरुषोत्तम भट्ट माता : स्व. सुमित्रा पाठक पिता : स्व. हरि मोहन पाठक पुत्र : सौरभ भट्ट पुत्र वधू : डॉ. प्रीति भट्ट पौत्री : निहिरा, नैनिका सम्प्रति : सेवानिव...
तर्पण की हकीकत
कविता

तर्पण की हकीकत

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे हैं तर्पण। यह तो ढोंग ही दिखता है, दिखावा है अर्पण।। जब जीवित थे मात-पिता तब ही सब ज़रूरत थी। आज तो यह सारी दिखावे से भरी हुई वसीयत है।। जीवित की सेवा का ही तो होता सच्चा मोल है। बाद में दिखती कर्मों में लम्बी, गहरी पोल है।। अब मात-पिता जल कैसे पी सकेंगे, सोचो। अब मात-पिता कैसे भोजन कर सकेंगे, बाल नोचो।। अब तो श्राद्ध करना पूरी तरह से मिथ्या, बेमानी है। यह तो पाखंड भरी हुई एक निरर्थक कहानी है।। सेवा,सु‌श्रूषा जीवित अवस्था की ही बस सच्ची है। नहीं तो सब कुछ बेकार, झूठी और कच्ची है।। जीवन में तो मात-पिता होते हैं देव समान। इसलिए उनके जीवित रहते में ही करो उनकी सेवा-सम्मान।। मात-पिता प्यासे मरे, अब कर रहे तर्पण। ज़रा देखो संतानो तुम आज तो सच का दर्पण।। परिचय :- प्र...
कहते कबीर हैं
धनाक्षरी

कहते कबीर हैं

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** खुद अथवा गैर से, समझो कभी बैर से, कुतर्क वाले बोल से, बनते अमीर है। कुभाव करार कहे, दिल में दरार दबे, रिश्तों का कटु सत्य, रोग का जमीर है। वजूद भी गुम नहीं, उसूल भी सदा सही, लोग भी चकित रहें, सजी वो तस्वीर है। ग़फ़लत धमाल क्या, अटकल कमाल क्या, दौड़ चली सरपट, सुंदर नजीर है। समर्थ खूब झेलते, विरोध तर्क तीर को, कंटक फेंक जाल से, रोकते समीर हैं। कुनबा लगे काम से, मर्तबा से जन हित, रुतबा बल पर जो, बनाते वजीर हैं। प्रयास में रहें कुछ, विकास के उजास को, रोकथाम रसूल में, ज्यादा ही अधीर हैं। ये हाथ की तकदीर, और शिकन माथे की, बंटवारा ही सींचता, रिश्तों की लकीर है। सत्ता का तो नशा ऐसा, अच्छा देख करे बुरा, हाथ गला पैर सब, जकड़ी जंजीर है। सत्य परेशान पर, खोए नहीं आन और, देता दवाई कड़वी, सदा जो अक्सीर है। जो मुरब्ब...
गुरु बिन ज्ञान न होता
कविता

गुरु बिन ज्ञान न होता

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** गुरु बिन ज्ञान न हुआ किसी को, सारी दुनिया जाने। राम कृष्ण पहुँचे उज्जैनी, गुरु से शिक्षा पाने। सांदीपनि आश्रम में प्रभु ने, ज्ञान उन्हीं से पाया। सांदीपनि गुरु से शिक्षा ली, सुयश जगत में छाया। गुरु बिन ज्ञान भेद बिन चोरी, संभव कभी न होता। गुरु का शुभाशीष पा शिक्षित, हो जाता है तोता। राम-राम रटकर तोते का, जन्म सफल हो जाता। देह त्याग कर पिंजरित पंछी, प्रभु से सद्गति पाता। गुरु बिन ज्ञान बताओ जग में, भला किसी ने पाया? शिक्षित वंदित हुआ वही जो, गुरु चरणों में आया। गुरु की कृपा प्राप्त कर मूरख, हो जाता है ज्ञानी। गुरु बिन ज्ञान नहीं मिलता है, सदगुरुओं की वानी। गुरु चाहे प्रतिमा स्वरूप हो, गुरु है बहुत जरूरी। बिन गुरु जीवन भर रहती है, दिव्य ज्ञान से दूरी। उर का अंधकार गुरु के ...
क्षणिक
कविता

क्षणिक

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कदम दर कदम सम्भल कर चलो जिन्दगी क्षणिक हे गुनगुनाते चलो। कोई अछूता नही है जिन्दगी के झन्झावातो से इस तुफान को हाँ इस तुफान को मुठ्ठी मे बान्ध कर चलो। दसों दिशाएं देगी तुम्हे अवलम्बन अंधेरी रात मे तारों के प्रकाश मे आकाश ओढते चलो। करेगी पीछा परछाई या अतीत की नए दौर के जमाने मे अतीत को विस्मृत करते चलो। फूलों की सुगन्ध झिगूंरो की चमचम तुम्हे उर्जा देगी कदम दर कदम साथ निभाते चलो। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों के साथ शिरकत...
आप का सानी नहीं
गीतिका

आप का सानी नहीं

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोल अद्भुत आप का है, देख हैरानी नहीं। आप जिसको काटते वह, माँगता पानी नहीं।। सेंक लेते हो चिता पर वोट की सब रोटियाँ, झूठ, धोखे, जाहिली में, आप का सानी नहीं।। ठीकरा नाकामियों का फोड़ते सिर और के, जानती हैं सच प्रजा सब, मान अंजानी नहीं।। मात्र मित्रों के भले को, पेट लाखों काट दें, और इतना निर्दयी कोई, यहाँ प्राणी नहीं।। वेदना कब नारियों की आप समझेंगे मियाँ, है सिंहासन पास में पर, साथ जब रानी नहीं।। आप ने अवतार लेकर, धन्य धरती को किया, आप-सा कोई खुराफाती व अभिमानी नहीं।। बरगलाना, बाँटना बस, हाँकना डींगे महज, ज़िल्लतें ही दी हमें अब, और शैतानी नहीं।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...