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गद्य

संतकृपा
संस्मरण

संतकृपा

माधवी तारे लंदन ******************** अपनापन खो जग में अपना मिलता है जग सपना भी अपने को सोकर ही मिलता है जब हार न पाया मैं अपनापन जगने में तब जग को अपनी जीत सुनाना चाहती हूं सबको ऐसा अनुभव जीवन के किसी न किसी मोड़ पर आता ही है. कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके, रोज कहीं न कहीं नौकरी की अर्जी देना, साक्षात्कार के लिये जाना ये सिलसिला मुझे आज भी याद है। पीएससी के इंटरव्यू के लिये नागपुर गई थी। तब सोलह सोमवार जैसा कड़क व्रत मेरा था। मां ने हजारों सूचनाओं से मेरा दामन भर दिया था। ये नहीं खाना, वो नहीं करना ऐसी अनेक सूचनाएं पल्लू में भरकर में गाड़ी में बैठ गई। किसी ने सहृदयता से भी कुछ दिया तो हाथ में लेना नहीं। मां के कहे अनुसार आचरण करते हुए और भगवान की कृपा से इंटरव्यू का नतीजा भी अच्छा रहा। प्रथम नौकरी पुरुषों के डीएड कॉलेज में मिली। वरिष्ठ अधिकारी ने आश्वासन दिया था कि दो-तीन महीने मुझे म...
बाबा साहब का कुर्ता
लघुकथा

बाबा साहब का कुर्ता

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बाबा ने फूल का गट्ठर रखते हुए कहा, "बाईजी, जरा एक गिलास पानी दे दो। पानी लेकर, रेखा भी पुराने कपड़े गिनाने लगी।" बाबा साहब का कुर्ता नजर नहीं आ रहा है। बाईजी, "बहू से पूछकर बताती हूं।" देखिये, उसकी हेराफेरी इतनी बड़ी कीमती है, जो होनी नहीं चाहिए। साहब का पसंदीदा पहरावा है। हां बाईजी, "ध्यान रखने को कहा हूं। मेरा तो बस इतना ही काम है आस-पास के लोगों के कपड़े पहनना। भला अब मेरी उम्र भी क्या हो गई है, एक पैर कब्र में ले जाया जा रहा हूं, कभी भी बुलावा आ जाए।" बाबा ऐसे तैयार रहो रहने वालों की उम्र और बड़ी होती है बाबा बाबा ने रेखा को ऊपर से नीचे तक देखकर बोला, "जिंदगी भर ठाट से रह रही है, बाईजी, बड़े से बड़े लोगों के काम में। कभी-कभी झटकाकर नहीं चलता। जमाना पलट गया है, बेटों का राज आया, फ़टे हाल से भी फ़टा सामान बना है। फटी धोती दिखाते...
हड्डियों की चीख़…
व्यंग्य

हड्डियों की चीख़…

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** “कृपया कमजोर दिल वाले इस रचना को नहीं पढ़ें“ अपने प्रतिष्ठान में, अपनी कुर्सी में गहराई से धँसा, कुछ मरीज़ों की हड्डियों और पसलियों को एक साथ मिला रहा था, तभी पास के प्लास्टर कक्ष से, जहाँ एक अधेड़ उम्र की महिला थी, उसके चिल्लाने की आवाज़ आई। साथ ही, प्लास्टर काटने के लिए इस्तेमाल की जा रही कटर मशीन की गड़गड़ाहट सुनाई दी, मानो कोई मशीनगन चल रही हो। यह प्लास्टर काटने का खौफनाक मंज़र किसी रामसे ब्रदर्स की हॉरर फ़िल्म से भी ज़्यादा डरावना। यूँ तो प्लास्टर काटने का समय मैं ओ.पी.डी. के बाद का रखता हूँ, इसका एक विशेष प्रयोजन है... मुझे आवाज़ के शोरगुल में बच्चों को पेरेंट्स की गोद में दुबकते सिसकते देखना अच्छा नहीं लगता। कई मरीज़, जिनका प्लास्टर लगना होता है, अपना इरादा बदल देते हैं। बोलते हैं- ...
पिया घर आया
व्यंग्य

पिया घर आया

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ********************  हां जी यह सही है कि पिया यानि मेरे पतिदेव पैंतालीस साल आफिस में एक कुर्सी पर बैठ कर थक चुके और बिना कुर्सी के घर आए हैं बलैयां लूं या पूजा का थाल लेकर आरती उतारुं,गल हार पहनाऊं और कहूं -"पधारो सा"।उम्र के इस पड़ाव को चूम लूं। अब हम दोनों गलबहियां डालकर रहेंगे। तुम रिटायर हो ही गये हो में भी बहू पर घर परिवार छोड़ कर रिटायर हो जाती हूं। अभी इतना सोच ही पाई थी कि बहू रानी की भृकुटी देखकर चौंक पड़ी- "सासू मां, अब आप रिटायर होने की मत सोचना। दो-दो रिटायरियों को कैसे झेल पाऊंगी?" मैंने घूम कर देखा-सुना बहू के चेहरे पर चिंता की लकीरें थीं। पर क्यों- ? यह मैं समझ नहीं पा रही थी। अगले दिन से घर में रिटायरमेंट का कार्यक्रम शुरू होने वाला था। अथ कथा रिटायरमेंट सुनाकर अपना जी कुछ हल्का कर लेती हूं। दस बज गए हैं पर पतिदेव के पांव बिस्तर से न...
पिता का मौन तप
कहानी

पिता का मौन तप

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** राजस्थान के मारवाड़ प्रदेश में बसा छोटा-सा गाँव था सुंदरसर। यहाँ की बलुई धरती सूर्य की तपिश सहती थी, रेतीले टीलों के बीच हरे-भरे खेत बाजरे की फसल से लहलहाते थे, और लोगों के चेहरों पर राजपूतानी सहनशीलता की छाप थी। इसी गाँव के एक छोर पर, खेजड़ी के पेड़ की छाया में, नारायण गर्ग का मिट्टी से लिपा-पुता कच्चा घर था। नारायण गर्ग- नाम में ही एक गरिमा और दायित्वबोध था। पचपन वर्ष के इस किसान के चेहरे पर धूप और लू ने गहरी झुर्रियाँ खोद दी थीं, लेकिन आँखों में अपने परिवार के प्रति अटूट प्रेम और जिजीविषा चमकती थी। उनकी धर्मपत्नी, संतोष देवी, गृहणी थीं- घर की छोटी-सी दुनिया को संचालित करने वाली अविचल स्तंभ। उनका सारा जीवन चूल्हा-चौका, बच्चों की देखभाल और पति के साथ खेत के कामों में बीता था। चेहरे पर सदा एक शांत संतोष, किन्तु आँखों के को...
चूहों का आतंक
व्यंग्य

चूहों का आतंक

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** सरकारी दफ़्तर-सा था... नहीं-नहीं, सरकारी दफ़्तर ही था... अब आप कहेंगे, कौन-सा दफ़्तर? भई, मुझे तो सब दफ़्तर एक जैसे ही नज़र आते हैं। दफ़्तरों की शक्ल एक जैसी, वहाँ कुर्सी पर बैठे अधिकारियों की शक्ल बिल्कुल एक जैसी... जैसे माँ-जाए भाई या बहन हों। सरकारी नाम आते ही एक चिर-परिचित छवि आपके मन में बन ही गई होगी... बननी ही चाहिए... क्योंकि मेरी तरह आप सभी का भी नित-प्रतिदिन इन सरकारी दफ़्तरों से पाला पड़ता ही है। बस ऐसे ही किसी दफ़्तर के बरामदे में पड़ी टूटी बेंच पर मैं पड़ा हुआ हूँ। क्योंकि मुझे बुलाया नहीं गया था, अपनी मनमर्ज़ी से मुँह उठाए यहाँ चला आता हूँ, इसलिए घर के बाहर गली के कुत्ते की तरह मालिक की रहमो-करम की नज़रों की इनायत हो जाए, बस यही इंतज़ार कर रहा हूँ। एक लफ़ड़ा हो गया... न ज...
मैं क्या हूँ ….?
आलेख

मैं क्या हूँ ….?

रूपेश कुमार चैनपुर (बिहार) ******************** मनुष्य के जीवन में एक ऐसा समय आता है जब वह स्वयं से यह प्रश्न करता है - "मैं क्या हूँ ?" यह प्रश्न केवल शरीर, नाम, या पहचान तक सीमित नहीं होता, बल्कि आत्मा, उद्देश्य, और अस्तित्व की खोज की ओर संकेत करता है। जब हम कहते हैं "मैं", तो हम क्या दर्शाते हैं ? क्या यह शरीर "मैं" है ? क्या यह विचार, भावनाएँ, या यादें "मैं" हैं ? या फिर कुछ और है जो इन सबसे परे है ? हमारा शरीर समय के साथ बदलता है - बाल सफ़ेद हो जाते हैं, चेहरा झुर्रियों से भर जाता है, लेकिन फिर भी भीतर एक एहसास बना रहता है कि "मैं वही हूँ।" इसका अर्थ यह हुआ कि "मैं" केवल शरीर नहीं हो सकता। यह तो केवल एक वाहन है, जिससे आत्मा इस संसार में कार्य करती है। मन हमें सोचने, समझने, और महसूस करने की शक्ति देता है। बुद्धि निर्णय लेने में सहायता करती है और अहंकार यह भावना देत...
किसी न किसी का आदमी
व्यंग्य

किसी न किसी का आदमी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आजकल किसी का आदमी होना कितना जरूरी हो गया है! अगर आप किसी के आदमी नहीं हैं, तो आप आदमी कहलाने लायक ही नहीं हैं। यह पक्का मान लीजिए- आप दो पाये जानवर हो सकते हैं, पर आदमी नहीं। जहाँ देखो, वहाँ कोई न कोई किसी न किसी का आदमी ही नजर आ रहा है । नौकरी, प्रमोशन, जॉब, डिग्री, राशन, वजीफा, पुरस्कार- सब उसी को मिल रहे हैं जो किसी न किसी का आदमी है। मेरी ओपीडी में भी हर दूसरा मरीज किसी न किसी का आदमी होता है। मरीज आते भी यह देखने के लिए हैं कि डॉक्टर साहब भाव देते हैं या नहीं। सलाह तो डॉक्टर साहब देंगे ही, लेकिन भाव भी देंगे या नहीं, मसलन चाय भी तो पिलाएँगे, नहीं तो तो जिनके आदमी हैं, उनका फोन आ जाएगा- 'अरे, हमने अपना आदमी भेजा था! बताओ, आपने ध्यान ही नहीं रखा। मरीज मरा जा रहा था, और आपने उसे बाहर ...
बदलते मूल्य
कहानी

बदलते मूल्य

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** १३ जनवरी की कड़कती सर्दी में रजाई पर कंबल डाल लिया, फिर भी पैर गर्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं। ‘सारा दिन मौजे में बंद रहने पर भी न जाने कैसे इतने ठंडे हो जाते हैं !’ अपनी गर्माहट समेटते-समेटते अचानक गुमटी की छत पर गोबर के उपले बनाती चमेली का ख्याल आ गया। दोपहर धूप की तलाश में मैं ऊपर छत पर गई तो सामने बैठी शांता उपले बना बनाकर यत्न से रख रही थी। उसकी साड़ी हवा में बुरी तरह उड़ रही थी। वह सिर ढकने का असफल प्रयास बार-बार कर रही थी। लेकिन ठंडी हवा उससे जिद्दी बच्चों जैसी ठिठौली कर उसकी साड़ी को पतंग बना लेना चाहती थी। बेचारी बेबस सी शांता ठंडी हवा के सामने खिसियानी सी बैठी, उपले बनाने में व्यस्त थी। मैंने उसे टोका- ‘कहो शांता ठंडी हवा का आनंद ले रही हो…?’ वह हल्के से हंसी, फिर उड़ती साड़ी का कौना मुंह में दबाकर उपले बनाने लगी। पिछले ...
गंगा-तट का अमर विरह
कहानी

गंगा-तट का अमर विरह

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** गंगा की अगाध धारा पर सांझ की लालसा छा गई। घंटियों की मंद्रित ध्वनि और भक्तों के जप-तप से आकाश गुंजायमान हो उठा। पंडित विश्वंभरनाथ, जिनकी तपस्या से गंगा-तट की बालू भी तप्त हो उठती थी, स्नानोपरांत समाधि में लीन थे। तभी उनकी दृष्टि महादेवी अमृतांशी पर ठहर गई, जो कमल-दल सी कोमलता लिए जल से प्रकट हुईं। उनके आभूषणों की आभा से गंगा की लहरें चमक उठीं। यह पल था जब दो आत्माओं का स्पर्श बिना किसी शब्द के ही अनंत युगों के विरह का सूत्रपात कर गया। महादेवी की सखी मनस्विनी, जिसका हृदय विरह की ज्वाला से धधक रहा था, ने पंडित की ओर संकेत किया। तभी नित्यानंद शुक्ल, चटख रंगों से सजे मुखौटे लिए मुस्कुराते हुए आ धमके। "अहो! यह तो मन्मथ की प्रेम-लीला है!" उनकी हास्य-विनोद भरी वाणी से भक्तजन ठहाकों में भर उठे। इतने में ही राम मनोहर पांड्या, शस...
वसंत कब आएगा
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वसंत कब आएगा

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** बहुत दिन क्या बरसों हो गए। कोंपल न फूटनी थी न फूटी। कितने ही बसंत आए और चले गए पर काकी आशा का दामन थामे उस ठूंठे नीम के वृक्ष को देखती रहती, इसी आशा में कि कभी तो कोंपल फूटेंगी, कभी तो बहार आएगी। पत्तियां आंगन में झड़ झड़ कर कूड़े का ढेर बना देंगी। पक्षी गुटर गूं करेंगे। अकेले एकांतवासी काकी का आंगन चहक उठेगा। मन बहलाने को दो-चार साथी मिल जाएंगे। पर कहां होता था काकी का सोचा हुआ पूरा। बसंत आता व चला जाता। सारे पेड़ हरे हो जाते पर काकी का पेड़ काकी की तरह ही तपस्वी सा अविचल खड़ा रहता। सोचते-सोचते काकी की आंखें भर आतीं। वह अपनी पीड़ा में पेड़ को भी शामिल कर लेतीं। जितनी अकेली वे थीं उतना ही अकेला उनका लाड़ला पेड़ था जिसे कभी अपने हाथों से उन्होंने आंगन में रोपा था। इस आंगन में उन्होंने बहुत कुछ रोपा था। बहुत से सपने देखे थे, पर समय...
अंतरतम का अग्निपथ
आलेख

अंतरतम का अग्निपथ

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** वाराणसी के घाटों पर प्रातःकालीन सूर्य की प्रथम किरण जब गंगा के जल को स्पर्श करती, तो ऐसा प्रतीत होता मानो भगवान शंकर अपनी जटाओं से अमृत की धारा प्रवाहित कर रहे हों। किन्तु उस विशेष प्रभात में, पंडित विश्वनाथ की दृष्टि गंगा के तरंगों में नहीं, अपितु अपने हृदय के शून्य में अटकी थी। वेद-वेदांग के मर्मज्ञ, शास्त्रार्थ में अजेय इस पंडित के वक्षस्थल में अब केवल एक टूटे हुए सितार की ध्वनि गूँज रही थी। मंदिर के विराट शिखर के सम्मुख खड़े वे अपनी छाया से प्रश्न कर रहे थे- "क्या यह चोटी में बँधा रुद्राक्ष माला का टूटना उसी दिन का संकेत था, जब महादेवी ने प्रथम बार इस ओर दृष्टिपात किया था?" महादेवी... नाम ही उनके अस्तित्व का सार था। काशी की वह नृत्यांगना जिसके चरणों की थाप पर स्वयं नटराज प्रसन्न होकर तांडव करने लगते। जिस दिन वह संकी...
झूठ बोले कौआ काटे
व्यंग्य

झूठ बोले कौआ काटे

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** वो झूठ बहुत बोलते हैं… नहीं, मेरा मतलब है, झूठ ही बोलते हैं। अरे, कभी-कभार मुँह से सच निकल भी जाए तो बड़ा पछताते हैं। क्या करें, उनकी आदत जो है। झूठ उनके रग-रग में बसा हुआ है। ऐसा नहीं कि झूठ वो किसी विशेष उद्देश्य से बोलते हों। वो बिना किसी का अहित किए -और कभी-कभी तो खुद का अहित कर-किसी भी परिस्थिति में झूठ बोल सकते हैं। और अगर उनके झूठ से किसी का नुकसान हो भी जाए, तो बड़ा पछताते हैं, माफ़ी माँगते हैं अपने व्यवहार पर। लेकिन उनकी मासूमियत भरी शक्ल देखकर हर कोई पिघल जाता है। उन्हें झूठ के लिए माफ़ी मिल जाती है। फिर तो उनके झूठ की ट्रेन रिश्तों की पटरी पर सरपट दौड़ने लगती है। निरुद्देश्य, निर्बाध और निष्कलुष भाव से धारा-प्रवाह झूठ बोलते हुए उनकी भाव-भंगिमा निहायत ही शरीफ़, मासूम बालक की तर...
सात फेरों वाला आदमी
कहानी

सात फेरों वाला आदमी

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** मेरा बॉस के साथ जाने का टूर बन गया तो मैंने ध्रुव को बताया कि मैं पंकज कपूर के साथ सात दिनों के लिए शिमला जा रही हूं। सुनकर वह चौके और बोले- "वह तो बहुत बदनाम आदमी है, ना जाने कब से इस मौके की तलाश में होगा?" -"फिर बताओ मैं क्या करूं? सात दिन रात मुझे उसके साथ रहना होगा, तुम यह कैसे बर्दाश्त करोगे.." -"मैं भी साथ चलूँ?" -"तुम्हारा साथ जाना वह बर्दाश्त नहीं करेगा।" -"फिर कोई और हल सोचो इस समस्या से निपटने का.." -"बस एक ही उपाय सूझता है कि मैं रिजाइन कर दूं तुम्हारा इतना तो वेतन है कि घर आराम से चलता रहे, फिर जब मैं घर पर रहूंगी तो अन्य बहुत से खर्च भी कम हो जाएंगें।" मेरे इस प्रस्ताव को सुनकर ध्रुव स्तब्ध रह गए, उन्हें सीधे-सीधे १७०००/ का नुकसान होता दिखाई दिया। वह चुप रहकर कुछ सोचते रहे फिर बोले- "यह कोई हल नहीं है सर्विस क्या ...
हथेली पर उगा चांद
कहानी

हथेली पर उगा चांद

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** अभी मुनीम जी आकर बता गए हैं मांजी, ८ लाख में बाग का सौदा हो गया है। मधु ने मुझे सूचना दी। बहू अभी पिछले दिनों जो बाग बिका था, वह कितने में गया था? मांजी वह तो सस्ता ही हाथ से निकल गया था, सिर्फ ३ लाख में सौदा हो गया था, लेकिन मांजी जो बाग अगले साल के लिए तैयार हो रहे हैं, वह १५-२० लाख से कम देकर नहीं जाएंगे। -हां मधु वह जो काला जामुनी वाला बाग है उसके आमों के तो क्या कहने… खाओ तो बस खाते ही जाओ, भगवान की बड़ी मेहरबानी है कि सारे पेड़ एकदम मीठे हैं। मां बोलती चली जा रही थी, उन्हें यह भी ख्याल नहीं रहा कि अब वह अकेली बैठी हैं मधु जा चुकी है। नन्ही रमिया से बड़ी मांजी का सफर जैसे तैर कर उनकी आंखों में आ गया। जल्दी-जल्दी बड़े-बड़े डग रखती रमिया उड़कर कर अपने रघुआ के पास पहुंच जाना चाहती थी जहां झोपड़ी के बाहर बैठा नन्हा रघुआ बेसब्री से ...
पांच पांडवनी
कहानी

पांच पांडवनी

बृज गोयल मवाना रोड, (मेरठ) ******************** मई, जून की गर्मी से कुछ दिन बचने के लिए नैनीताल का प्रोग्राम बना लिया। सारी तैयारी करके चल दिए। हल्द्वानी पहुंचते ही राहत सी महसूस होने लगी थी। पर काठगोदाम आते ही दिल्ली की गर्मी बिल्कुल धुल गई थी। ठंडी हवा के झोंके गालों को थपथपाने लगे थे और गर्मी की वजह से कसकर बँधे बाल खुलकर लहराने को मचलने लगे थे। जगह-जगह भुट्टों की सोंधी गंध रुकने का संकेत कर रही थी। प्रकृति का अनुपम सौंदर्य चारों तरफ बिखरा पड़ा था। जिसे कैमरे में कैद करने के लिए मैं और प्रभात जगह-जगह रुकते हुए आगे बढ़ रहे थे। नैनीताल पहुंचते ही स्वर्ग जैसी अनुभूति होने लगी। हम जाकर शांत, निश्चल, नौकाएं सजी झील के किनारे बैठ गए.. जहां चारों तरफ पर्वत सर उठाए खड़े थे। उन पर काले बादल अठखेलियाँ करते से प्रतीत हो रहे थे। चारों तरफ भव्य होटल अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे। स्नो व्यू जाने ...
अक्ल बड़ी या भैंस
व्यंग्य

अक्ल बड़ी या भैंस

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** बहस वाजिब है या नहीं, ये तो नहीं पता, लेकिन इस बहस ने भैंस को जरूर परेशान कर रखा है। भैंस भी कह रही है, "यार, ये फालतू की बहस में अक्ल लगाने के बजाय एक लाठी ले लो हाथ में। फिर भैंस भी तुम्हारी और अक्ल भी तुम्हारी... दोनों को बाँध दो खूंटे से।" इस बहस में न जाने कितने पढ़े-लिखे लोगों की अक्ल भैंस चरने गई कि उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा कि करें तो क्या करें ! अक्ल का काला अक्षर भी भैंस बराबर दिख रहा है। बताओ, जब दोनों ही घास चरने चले जाएंगे, तो यह तो होना ही था। अब भैंस तो घास चरने के बाद दूध भी दे देगी, लेकिन अक्ल का क्या करोगे? भुर्ता बनाओगे क्या? वैसे, अक्ल हमेशा से प्रतियोगिता में रही है- कभी शक्ल के साथ, तो कभी भैंस के साथ। लेकिन आप को बता दें, अक्ल के द्वारा किए गए कोरे कागज़ काले क...
प्रतिशोध
कहानी

प्रतिशोध

सुधा गोयल बुलंद शहर (उत्तर प्रदेश) ******************** "तुमने कुछ सुना अम्बालिका"- हर्ष मिश्रित उत्साह के आवेग से अम्बिका का स्वर कांप रहा था। आज अम्बिका अपनी किसी दासी का सहारा बिना लिए ही धीरे-धीरे चलती हुई चुपचाप अम्बालिका के प्रकोष्ठ में आ गयी। सुखद आश्चर्य हुआ अम्बालिका को। जरुर कोई खास बात है तभी अम्बिका दौड़ी चली आई है। इस वृद्धावस्था में भी यौवन सा उत्साह भरा हुआ है। जैसे कोई चिरसंचित अभिलाषा पूरी हो गई है। ‌"आओ दीदी बैठो। ऐसा क्या सुन लिया आपने कि खुशी समाई नहीं पड़ रही। मुझे ही बुला लिया होता। "अम्बिका को पीठिका पर आदर से बैठाते हुए उसने एक नजर अपने कक्ष पर डाली। फिर स्वंय ही द्वार की अर्गलाएं चढ़ा दीं। "इन्हें यों ही रहने दें अम्बालिका। आज हमारी बात किसी को सुनने की फुर्सत नहीं है। सब शोक मना रहे हैं।" " हां,आज युद्ध का दसवां दिन है। यहां तो रोज ही शोक मनाये जाते हैं। इस ...
प्रेम पूर्ण निवेदन
पत्र

प्रेम पूर्ण निवेदन

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** प्रिय महादेवी, आज यह पत्र लिखते समय मेरा हृदय कमल की भाँति खिल उठा है, क्योंकि तुम्हारे प्रति मेरे भावों को शब्दों में बाँधने का यह अवसर मुझे दिव्य आनंद प्रदान कर रहा है। तुम्हारे सौंदर्य की छटा, तुम्हारे मधुर स्वभाव की मंदाकिनी, और तुम्हारी निर्मल मुस्कान की किरणें ये सभी मेरे जीवन के अंधकार को प्रकाशित कर देती हैं। तुम्हारे सान्निध्य में मुझे ऐसा प्रतीत होता है मानो समस्त सृष्टि ने अपने रहस्यमय आलिंगन में मुझे समेट लिया हो। तुम्हारी आँखों में वह गहराई है जिसमें मैं अपने अस्तित्व का सार पाता हूँ। तुम्हारा एक क्षण भी मेरे लिए युगों के समान हो जाता है, और तुम्हारी अनुपस्थिति में प्रत्येक पल एक अंतहीन रात्रि-सा प्रतीत होता है। तुम्हारे बिना यह संसार फीका और नीरस है, परंतु तुम्हारे साथ प्रत्येक कण में मधुरता का संचार हो...
मंदिर में जूते चोरी
व्यंग्य

मंदिर में जूते चोरी

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़ रहा हूँ, श्रीमती जी आगे-आगे, मैं पीछे-पीछे। श्रीमती जी से नज़रें चुराकर बार-बार उस दिशा में देख ही लेता हूँ, जहाँ अभी-अभी हमने अपने जूते छुपाए हैं। सच पूछो तो जूते चुराए जाने के ख्याल से ही बेचैन हो उठता हूँ। अभी १० दिन पहले ही श्रीमती जी ने दीवाली सेल में बाज़ार से नए जूते खरीदे थे। इस महंगाई के दौर में विचार तो यह था कि एक पैर का जूता इस साल और दूसरे पैर का जूता अगले साल खरीद लेंगे, लेकिन दुकानदार ने इस प्रकार की किश्तों में जूतों की आपूर्ति की कोई व्यवस्था नहीं होने पर खेद जताया। वैसे हमारी श्रीमती जी बिल्कुल निश्चिंत हैं कि आज हमारे जूते चोरी नहीं हो सकते। उन्होंने ऐसा अचूक इंतज़ाम आज कर रखा है। उन्होंने एक जूता मंदिर के प्रांगन में आराम कर रही आराम कुर्सी के...
निर्वाण के नीरव स्वर
कथा

निर्वाण के नीरव स्वर

भारमल गर्ग "विलक्षण" जालोर (राजस्थान) ******************** विंध्याचल की गोद में बसे एक गाँव में, जहाँ आकाश और धरती के बीच केवल धुएँ के बादल और ऋषियों के जप का धुँधलापन था, वहाँ एक युवा साध्वी तारावली रहती थी। उसके केशों में जुही की लता जैसी सफ़ेदी थी, और आँखों में वह अधैर्य जो संन्यास के वस्त्रों में भी दबता नहीं था। वह जंगल में एक गुफा में तपस्या करती, परंतु उसकी ध्यान-मुद्रा में अक्सर एक नाम टूट-टूट कर आता- "वीरेंद्र"। गाँव वाले कहते, वीरेंद्र कोई भूत है जो सदियों पहले इसी वन में युद्ध करता हुआ मरा, पर तारावली जानती थी- वह कोई स्मृति नहीं, उसके पूर्वजन्म का प्रेमी था। एक अंधड़ भरी रात, जब आम्रपत्रों पर बरसात की बूँदें गूँज रही थीं, तारावली ने गुफा के बाहर एक पुरुष को देखा। उसकी छवि धुंधली थी, पर उसकी आवाज़ स्पष्ट थी- "तारा... मैं तेरे व्रत को भंग करने आया हूँ।" वीरेंद्र की आत...
छंदों की गंगोत्री है ‘नवोन्मेष’
पुस्तक समीक्षा

छंदों की गंगोत्री है ‘नवोन्मेष’

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, गोण्डा, (उत्तर प्रदेश) ******************** समीक्षक : सुधीर श्रीवास्तव (गोण्डा, उ.प्र.) वरिष्ठ साहित्यानुरागी डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' का छंदबद्ध काव्य संग्रह 'नवोन्मेष' के अवलोकन के साथ ही यह महसूस हुआ कि अपने नाम के अनुरूप ही संग्रह अपने विशिष्टताओं का महाकुंभ जैसा है। अपने "दो शब्द" में कृतिकार का शब्द भावों के बारे में विचार है जब कोई भाव रचनाकार के दिल के तार को झंकृत कर उसके दिमाग तक पहुँचता है, तब वह अपनी भावाभिव्यक्ति को शब्द रूप देता है। नवोन्मेष का अर्थ है नया उत्थान, नया तरीका, नई खोज या कुछ करने की नई पद्धति जो निराली हो और पहले से बेहतर हो। इसी को पोषित करने के उद्देश्य से "नवोन्मेष (छंदबद्ध काव्य संग्रह)" की परिकल्पना की गई है और इसे धरातल पर उतर गया है। आचार्य ओम नीरव जी का मानना है कि डॉ. अर्जुन गुप्ता 'गुंजन' जी‌ काव्यकला में पारंगत छंदबद्ध...
थू थू की थाह की थीसिस
व्यंग्य

थू थू की थाह की थीसिस

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** आज एक थीसिस, जो हमारी डिग्रियों की धूल सने कागज़ों के बीच में हमें मिल गई, उसके कुछ पन्ने पलटकर आपको सुनाते हैं। थीसिस का शीर्षक है- "थू थू की थाह" थू थू करना एक कला है, बिलकुल जुगाड़ कला की तरह शुद्ध भारतीय कला। मैं तो कहता हूँ, इस कला का कॉपीराइट लेना चाहिए! विदेशी लोग हमारी कला को हथियाने में लगे हैं- योग ले गए, कामसूत्र ले गए, हरे कृष्णा-हरे राम ले गए- हमारी हिंदुस्तानी कला को चमकीले कवर में लपेटकर वापस हमें ही बेच रहे हैं। ये सब प्रपंच अंग्रेज़ों के ज़माने से चला आ रहा है। उस समय भी तो कच्चा माल लेकर, पका-पकाया माल देते थे। वैसे भी हम भारतीयों को कच्चा खाया नहीं जाता, हमें तो पका-पकाया चाहिए थू थू एक एब्सट्रैक्ट आर्ट है। कला के क्षेत्र में ऐसी कला हर किसी को समझ में नहीं आती, पारखी नज...
यूक्रेन युद्ध, नाटो और यूरोप, भारत
आलेख

यूक्रेन युद्ध, नाटो और यूरोप, भारत

अरुण कुमार जैन इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** विगत दिनों विश्व की सबसे बड़ी खबर यदि कोई थी तो वह ट्रंप और जेलेंस्की की नाटकीय मुलाकात और बच्चों की तरह लड़ना, विश्व स्तर की राजनीति और कूटनीति में इन दिनों का सबसे हल्का, स्तरहीन और सही मायने में भौंडा प्रदर्शन था, जिसमें सामान्य स्तर के शिष्टाचार को बलाए ताक रखा गया। यह सभी को पता है कि असली लड़ाई नाटो के विस्तार और रुस की घेराबंदी के मूल प्रश्न पर लड़ी गई। रुस की भौगोलिक स्थिति विघटन के बाद की स्थिति में किसी भी हालत में वह यह सहन नहीं कर सकता कि उसके समुद्री मुहाने पर नाटो चौकीदार बन कर बैठ जाए और उसके विशालकाय पोत निर्भय होकर अपने ही समुद्र से आगे नहीं बढ़ पाएं। यद्यपि संयुक्त सोवियत रुस के विघटन के पश्चात रुस की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के बावजूद पिछले सालों से चल रहे यूक्रेन युद्ध में खराब हुई है। जब रूस ने युद...
छोटू चायवाला
व्यंग्य

छोटू चायवाला

डॉ. मुकेश ‘असीमित’ गंगापुर सिटी, (राजस्थान) ******************** "अरे छोटू, इधर आ!" "दो कट चाय लेकर आ!" "खाने में क्या है, छोटू? सलाद लगा दे ना!" "छोटू, जा! दो नंबर टेबल पर कपड़ा फेर के ऑर्डर लेकर आ!" इन सभी वाक्यों में एक शब्द कॉमन है- "छोटू"। यह कोई चायवाला हो सकता है, किसी ढाबे पर वेटर हो सकता है, आपकी गाड़ी पोंछने वाला हो सकता है, सड़क पर भीख मांगने वाला हो सकता है, जूते पॉलिश करने वाला, फुटपाथ पर गुब्बारे बेचने वाला, या फिर किसी रईस के कुत्ते घुमाने वाला भी हो सकता है। मंदिरों के बाहर भी आपको ये छोटू मिल जाएगा—हाथ में चंदन-तिलक की प्याली पकड़े हुए, श्रद्धालुओं के माथे पर रोली-तिलक लगाता हुआ। यह कोई भी हो सकता है, भाई! इसका नाम राम, रहीम, रहमान, सुलेमान, श्याम या एंथनी कुछ भी रखा गया होगा, लेकिन हम और आप इसे सिर्फ "छोटू&" के नाम से जानते ह...