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गुंजलक
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गुंजलक

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** एक बिटिया को, उसकी भुआ ने बताया तू जब छोटी थी तुझे बाल्टी में बिठा के नहला देते, गर्मी की छुट्टियां होती तो, तुम बाहर निकलने को तैयार ही नही होती, एक बार बाहर निकालने को तेरे ऊपर पानी उछाला तो बहुत रोई बहुत रोई हम समझ नही सके तुझे क्या हो गया। वही लड़की बड़ी होकर पानी से बहुत डरती थी। कोई नदी तालाब झरना दिख जाता तो आंख बंद कर लेती। पिकनिक पे सब नहाते तब भी वह बाहर खड़ी रहती थी। बस बरसात से कोई परहेज न था। बाद में उसके सिवा सबने तैरना भी सीख लिया। विवाह के बाद हनीमून पे पहाड़ गई तो भी उसके पति आश्चर्य में थे कि झरना देख आंख बंद क्यों कर लेती हो, बोटिंग भी नही की, उनको बड़ा अजीब लगा क्यों कि ट्रिप में अधूरा पन जो था। दो तीन वर्ष बाद पीहर के विवाह समारोह में रात की महफ़िल में वही बाल्टी वाला किस्सा भुआजी ने सुनाया, पति को एकदम रहस्य पकड़ ...
ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी
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ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी

डॉ. किरन अवस्थी मिनियापोलिसम (अमेरिका) ********************  सभी को ज्ञात होगा कि रामचरितमानस गोस्वामी तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में लिखी है। नारी अवधी भाषा का शब्द है जो नाली शब्द का अपभ्रंश है। नारा जिसे हिंदी में नाला कहते हैं, का अर्थ अवधी भाषा ‌मे है जलवाहक, जिसमें दोनों ओर बांध (ताड़ना का एक अर्थ बांधना भी है) होते हैं। बांध न हो तो जल प्लावन हो जाए। उसी का स्त्रीलिंग है नारी। समुद्र ने स्वयं अपने लिए नारा ‌शब्द का प्रयोग किया। काव्य में तुकबंदी के लिए तुलसीदास जी ने नारा का नारी लिखा। इतने, परमज्ञानी, स्वयं अपनी पत्नी का इतना सम्मान करने वाले, स्त्री जातिमात्र (शबरी को माता कहकर पुकारा है भगवान राम ने रामचरितमानस में) का आदर करने वाले भक्तज्ञानी गोस्वामी तुलसीदास जी यह नहीं जानते थे कि ५०० वर्ष बाद भारतीयों के अज्ञान की पराकाष्ठा होगी, व उनके नारी शब्द के अर्थ का इतना बड़ा...
प्रकाश का महापर्व
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प्रकाश का महापर्व

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** धन त्रयोदशी से पांच दिन दीपावली महापर्व आरम्भ होता है। इस पर्व का साल भर बेसब्री से इंतजार होता है। ये सनातन धर्म का महा उत्सव है। रूप चौदस, महालक्ष्मी पूजन, गोवर्धन पूजा से होते हुए पांचवें दिन भाई दूज पर पूरा होता है। लेकिन उसका आनन्द मन में तुलसी विवाह तक बना रहता है। भारतीय संस्कृति में इस त्यौहार की महत्ता बहुत अधिक है। यही जीवन का सर्वोच्च आनन्द बिंदु है। खुशी, विजय, उल्लास, सामाजिक जुड़ाव और उजास के इस पर्व में प्रेम, स्नेह से मिलन समारोह मनाये जाते हैं। अनेक वर्षों के मन मुटाव भी मीट जाते हैं। भाई-बहन का अटूट प्रेम का प्रतीक भाई दूज पर्व पांच दिन की खुशियां बटोरकर झोली में डाल देता है। बीते दो वर्षों में इस पर्व पर कोरोना रुपी दानव का साया छाया हुआ था। इस संक्रमण के रोग के कारण हम इस उजास के पर्व को उत्साह से नहीं मना पाये ...
बेगारी एक अभिशाप
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बेगारी एक अभिशाप

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** स्वाधीनता दिवस के बारे में सोचते सोचते अंग्रेजों द्वारा बरपाई क्रूरता याद आ गई। और वे यह सिखा गए हमारे उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों को। वर्षों पूर्व के वाकये हैं ये... सरकारी उच्च अधिकारियों के घर पर निम्न श्रेणी कर्मचारियों को घरेलू कार्य करने हेतु तैनात किया जाता था। उनसे अमूमन लोग झाड़ू-बर्तन-कपड़े, लीपना -पोतना, खाना बनाना, बच्चों को खिलाना, प्रेस-पालिश सब कुछ करवाते। मिर्ची-मसाले भी लगे हाथ कुटवा लेते। यह तो एक तरह की प्रताड़ना ही हुई। ऐसा जब भी मैं देखती करुणा से भर जाती थी। मेरे घर भी आते थे। सबसे पहले मैं उन्हें चाय नाश्ता खाना वगैरह करवाती। फ़िर रोज़ का कार्य करवाती। उन्हें कोल्हू के बैल की तरह जोतना मुझे कभी नहीं गवारा। साथ वाली मेडम जी...सो काल्ड बाई साब लोग कहती, "आप भी न... ऐसी दया किस काम की। अरे! इन्हें सरकार पगार-भ...
७० घंटे देश क़ी प्रगति क़े
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७० घंटे देश क़ी प्रगति क़े

 संगीता सनत जैन इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नारायण मूर्तिजी द्वारा भारत देश क़े युवाओं को सप्ताह मेँ ७० घंटे तक काम कर देश को विकसित देश मेँ शामिल करने क़े आव्हान पर देश ज़हिर तौर पर दो घड़ो मेँ बँटा है। प्रधानमंत्री जी क़े किसी वक्तव्य पर इतनी रायशुमारी नहीं हुई, जितनी इनफ़ोसिस क़े फाउंडर और मिलेनियर नारायण मूर्तिजी क़े इस एक व्यक्तव्य नें बुद्धिजीवी और व्यावसाईक जगत को अपनी राय रखने पर मजबूर कर दिया है। यहाँ यह बताना उचित होगा क़ी क़ानूनी रूप से भारतीय कारखाना अधिनियम १९४८ क़ी धारा ५१ क़े अनुसार एक कर्मचारी प्रति सप्ताह ४८ घंटे काम करेगा, जिसका ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त १० घंटे ३० मिनिट हो सकता है। लगातार ५ घंटे काम करने क़े बाद ३० मिनट का ब्रेक और ओवरटाइम क़े पैसे अलग से दिये जायेगे। ८ घंटे काम क़े ८ घंटे सोने क़े और ८ घंटे स्वयं और परिवार क़े लिये। हम कह सकते है कि भारत युवाओं का ...
दीयों की दीपावली पर महत्ता
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दीयों की दीपावली पर महत्ता

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** कुम्हारों के वंशागत पेशे से जगमगाती आ रही है दीपावली। आधुनिक युग में आधुनिक साज सज्जा की रोशनी में ध्यान केंद्रित है। दीपावली की रौशनी में भी आधुनिकता परोसने की घुड़दौड़ मची है। देशी विदेशी कम्पनी अपनी नई छाप छोड़कर नई रौशनी को परोसकर दीपावली की रौशनी के रंग बिखेरना चाहती है। यह उत्सव संस्कृति, परम्परा के निर्वाह से गहरा जुड़ा है। इसमें दीयों का होना आवश्यक है। कहा जाता है बिन दूल्हे के बारात का कोई महत्व नहीं ठीक दीयों के बिन दीपावली सुनी समझी जाती है। घर की मांगलिक महालक्ष्मी की पूजा पद्धति, सजावट, घर की रौशनी में दीयों की खरीददारी अनिवार्य होती है। आधुनिक सामग्रियों को कितना ही क्यों न व्यवहृत किया जाए, दीये के स्थान को छीन पाना असम्भव है। पूजन पद्धति संस्कृति परम्परा के निर्वाह में दूसरी सामग्री मूल्यहीन होती है सिर्फ मिट्ट...
उठते ही रहना
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उठते ही रहना

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ये एक सौ चालीस करोड़ लोगों का देश है। कुछ लोग चांदी का चम्मच लेकर जन्म लेते होंगे, पर कितने रोज जन्म ले रहे, कई घिसट रहे, कोई तड़प रहे, किसी ने कुछ पा लिया तो वह उसके स्वाद की चुस्कियां ले रहे, कोई पाने के लिए जद्दोजहद कर रहा, कुछ उसी में पिस रहे, कुछ गिर के खड़े हो रहे, तो कुछ बार बार गिर रहे, कुछ एक दम गायब हो रहे जिनका अतापता ही नही। दुनिया रेलम पैला है। स्टेशन जैसी हड़बड़ी में सब है। कोई चढ़ गया कोई उतर गया कोई लटक के लहलुहाँ हुआ। कितने नज़ारों से भरी दुनिया है, किसी की कहानी दूसरे की कहानी से मिलती ही नही। सबके किरदार सबके मंच व अदायगी है। पर एक चीज जो सबमे सामान्य है शाश्वत है, विश्वव्यापी है, वह है गिर गिर के उठना, हर उठने की प्रक्रिया में कुछ सीखना, सीखे हुए में कुछ दूसरा मिला कर पहले की गलती को न दोहराते हुए कुछ अच्छा बड़ा करने...
भारतीय मतदाताओं का दृष्टिकोण
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भारतीय मतदाताओं का दृष्टिकोण

विश्वनाथ शिरढोणकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ****************** स्वत्नत्रता के ७५ वर्षों में हमारे देश का लोकतंत्र जितना सुदृढ़ और परिपक्व हुआ है, हमारा मतदाता उतना ही संकुचित होता जा रहा है। इसे एक विडम्बना भी कह सकते है। परन्तु यह वास्तविकता है। इसका एक महत्वपूर्ण कारण, पहले भी और आज भी भारत में राजनीतिक दलों का वैचारिक दृष्टि से परिपक्व न होना है। उनकी सोच राष्ट्र के लिए न होकर अपने दल के लिए और इससे बढ़कर भी नेताओं के व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु होती है। लोकतंत्र यह लोगों द्वारा, लोगों के लिए ,लोगों की व्यवस्था होती है, यह मूल मंत्र राजनीतिक दलों द्वारा भुला दिया गया है। राजनीतिक दलों द्वारा भारतीय राजनीति का हित शुरू से ही मतदाताओं को अशिक्षित रखने में ही समझा गया। आजादी के बाद से ही हमारे देश में शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर बहुत कम खर्च किया गया है। परिवार और समाज में अगली पीढ़ी को शिक्षि...
इच्छारोधन तप
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इच्छारोधन तप

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** गाय को चरते देखा है, वह चरागाह में घांस जब खाती है ऊपर से घांस को खाते हुए आगे बढ़ती है। धीरे-धीरे मैदान की घांस कम हो जाती तब वह पूर्व स्थान पर आती तब तक फिर से घांस उग जाती। याब आप गधे को देखिए दोनो शाकाहारी जानवर है व घांस ही खाते हैं, गधा घांस को उखाड़ कर खाता व जड़ समाप्त हो जाती है। मनुष्य जाति गधे की तरह आचरण कर रही है, जो भी चीज मिलती है, उसको जरूरत है तो उसका भरपूर दोहन कर लेती है। पहले कोयले से बिजली बनाई वह भंडार जब खत्म होने को आया तो वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में पानी, पवन चक्की सोलर ढूंढ लिया। नदी की रेत निकाल कर उसको कंगाल कर दिया। पहाड़ो से कितनी चट्टाने आएगी व रेत बनेगी। बनने व उपभोग में बड़ा अंतर है याब रो रहे छलनी हो गई नदिया। ग्रामीण अंचल में लकड़ी ,बांस, बल्ली व बड़े पत्तो से झोपडी बनती, पुरानी होती तो जलावन बनती, नई क...
देश का कानून पहले अंधा था अब काना हो गया है
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देश का कानून पहले अंधा था अब काना हो गया है

हितेश्वर बर्मन डंगनिया, सारंगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** कानून देश की जाति, धर्म, लिंग,‌ अमीरी-गरीबी व औदा इन सबसे सर्वोपरि होता है। कानून समाज की एक सीमा होता है, जिसकी दीवारें विभिन्न कानूनी धाराओं से मिलकर बना होता है। देश के संविधान के अनुसार कानून से बड़ा कोई भी नहीं है। इसको आम जनता से लेकर आला हुक्मरानों को भी मानना पड़ता है तथा इसी कानून के दायरे में रहकर ही जीवन निर्वाह करना पड़ता है। जो भी इंसान अपने देश या क्षेत्र में बने किसी भी कानून का उलंघन करता है या फिर उसके दायरे से बाहर अनाधिकृत कार्य करता है तो उसको विधि द्वारा स्थापित नियमों के तहत दण्ड भुगतना पड़ता है। हांलांकि कानून समय के साथ परिवर्तन होता रहता है, क्योंकि समय के साथ व्यक्ति की परिस्थितियां भी बदल जाती है। जीवन जीने का नज़रिया यहाँ तक की मनुष्य की सोच भी बदल जाती है। कानून अंधा होता है, कोई दिक्कत नहीं...
वीगन
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वीगन

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** वीगन का बड़ा प्रचार प्रसार है, कई बड़ी बड़ी हस्तियां वीगन भोजन कर रही है सन २००४ में जब अमेरिका गई तो एक वीगन परिवार में रुके। उन्होंने जो वीगन खाना खिलाया हमे तो कुछ फर्क लगा ही नही, टोफू की आइसक्रीम तो दो बार लेकर खाई उन्होंने बाद में बताया, भारतीय परिवार था। उन्होंने तो चार सौ लोगों की पार्टी भी की। अब तो भारत मे सड़को पर भी लिखा दिखने लगा है। जेनेलिया व देशमुख खुद तो वीगन है ही उनके बच्चों को बना दिया है। ये पौधों से पैदा हुआ खाना ही खाते है पशु उत्पादन नही अर्थात घी, दूध, दही, पनीर, बटर कुछ भी नही। इनका मानना है कि इस भोजन में धरती सब देती है। सारे मेडिकल टेस्ट बच्चों के भी कराए तो अच्छे परिणाम थे।हमारे विराट कोहली भी वीगन है, क्या धुंआधार बल्ले बाज़ी कर रहे। यानी कि मांसाहार व घी पुष्ट होंने की गारंटी नही है। ये लोग सारी मिठाई ...
राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी  लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८
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राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन:भाग- ८

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** एशिया में ढोल, ढोलक लोक संगीत का मुख्य अंग हैं। इसीलिए लोक ढोल या ढोलक विषयी गीत बहुतायत से मिलते हैं। यहाँ तक कि फिल्मों में भी ढोल/ढोल विषयी गीत मिलते हैं। राजस्थानी लोकगीतों में ढोलक विषय राजस्थानी लोक गीत तन और मन से सुन्दर नारी में सौन्दर्य की मधुर अभिव्यक्ति करने कला प्रति स्वाभाविक आकर्षण का उक सुन्दर उदाहरण है। राजस्थानी लोक गीत इंगित करता है कि गीत, संगीत और नृत्य का मानसिक प्रवृति के साथ घनिष्ठ संबंध है। एक सौन्दर्य उपासक नारी अपने प्रिय से ढोलक बजाने का आग्रह करती है। ढोलक बजाने के आग्रह में स्वाभाविक समर्थन भरा है। नारी कहती है कि हे प्रिय तू ढोलक ढमका और मै तरह के श्रृंगार कर साथ चलूंगी। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो मै वारी जाऊं सा। मै वारी जाऊं सा। बलिहारी जाऊं सा। थे ढोलक्ड़़ी ढमका दयो बादल म्हारो लंहगा जी, किरण है ...
कुछ अलग सोचे
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कुछ अलग सोचे

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रावण था धरती पर इसलिए राम का जन्म हुआ फिर कैसे क्या हुआ सबको पता है। अब हर दशहरे पर खूब लेख लघुकथा कविता व्यंग सब खूब छपता है। रावण के गुणों का बखान भी बहुत होता, पर रोज नए आकार प्रकार के रावण प्रकट हो जाते है, इसराइल फिलिस्तान आ गये तो यूक्रेन खत्म हो गए क्या। हर त्योहार पर बुराई का नाश की बात होती है। नवरात्रि में एक बार बाजार निकल गई तो सड़क अधबने रावणों से पटी पड़ी थी, तब तो एक था अब हज़ारों रावण बनते व जलाए जाते है। क्या हम बनाने की प्रक्रिया को बंद कर सकते है क्या, बडे से बड़े बनाते, खरीदते, जलाते, देखते वक्त रावण ही प्रमुख हो जाता है। जितना हो हल्ला जलाने बनाने में हो रहा, शायद उतना ही रावणत्व पनप रहा। जलाने से बढ़ रहा तो गाड़ी रिवर्स में डाल के देखो तो सही, जिस की चर्चा करते, वही चीजें बढ़ती है इसके बदले अपना कीमती समय धन रामत्...
भाषा दीवार नही
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भाषा दीवार नही

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कलाम साहब ने पूरी शिक्षा तमिल भाषा मे ली, उनको अंग्रेजी नही आती थी। आप जानते है कि वे एक चोटी के अंतर्राष्ट्रीय वैज्ञानिक है। बाद में उन्होंने कामचलाऊ अंग्रजी सीखी। ये कहना व सोचना की ज्ञान अंग्रेजी में ही पाया जा सकता है, सिरे से गलत है, अपनी मातृभाषा में हम ज्यादा चीजे कम समय मे सीख जाते है, जब बुद्धि परिपक्व हो जाय तब कोई भी भाषा सीखेंगे तो समय बहुत कम लगेगा क्योंकि मूल ज्ञान आपकीं भाषा मे आपके पास है तो अन्य भाषा की कोई भी बात से आसानी से जुड़ जाएंगे परन्तु अभी हर बच्चा ए फ़ॉर एप्पल में ही पूरी क्षमता व उर्जा समाप्त कर रहा है। नई शिक्षा नीति पर ध्यान देकर बालको को मेधावी बनाया जाय फिर अच्छे बेसिक के साथ जर्मनी जाए चाहे जापान सब कर लेगा। मध्यकाल में देशी भाषा के ज्ञान से बड़े काम किये ही थे। पर अब तो मोबाइल पर अनुवाद की खूब सुवि...
पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन
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पशु मूत्र चिकित्सा पर्यटन

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** पशु मूत्र चिकित्सा भारत में स्वमूत्र (५००० वर्ष प्राचीन) व पशु विशेषकर गौ मूत्र चिकित्सा ३००० व पहले से प्रसिद्ध चिकित्सा है। पंचगावय घृत व गौ मूत्र मंत्रणा तो प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है। चरक संहिता सुश्रुत संहिता, भाव प्रकाश में मूत्र चिकित्सा हेतु विशेष अध्याय हैं। चरक संहिता के सूत्रस्थानम भाग के ९३ वे श्लोक से १०६ वे श्लोक तक मूत्र विवेचना है। इसी तरह सुश्रुत संहिता बागभट्ट संहिता में बे पशु मूत्र की विवेचना की गयी है। चरक संहिता ने निम्न पशु मूत्र से चिकत्सा पद्धति बतलायी है - १- भेड़ मूत्र २- बकरी मूत्र ३-गौ मूत्र ४-भैंस मूत्र ५- हस्ती मूत्र ६- गर्दभ मूत्र ७-ऊंट मूत्र ८-अश्व मूत्र चरक ने मूत्र के गुण इस प्रकार बताये हैं - गरम तीक्ष्ण कटु लवण युक्त पशु मूत्र निम्न रूप से औषधियों में उपयोग होते हैं - ...
विजयादशमी का सामाजिक महत्व
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विजयादशमी का सामाजिक महत्व

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भारत त्योहारों का देश है। इनकी महत्ता हर क्षेत्र को प्रभावित करती है। किंतु समाज, जो जनसमूह से बनता है, के हितार्थ ही मानो त्योहारों की संरचना हुई है। समाज को चलाने में नैतिक मूल्यों को भुलाया नहीं जा सकता है। दशहरा उत्सव की जड़ में है रावण जिसने सीता को हरा था। इसके पीछे रावण का अहंकार व विजेता बनने की लालसा थी। मर्यादा के प्रतीक राम ने रावण को हराया अर्थात बुराई पर अच्छाई की जीत। समाज के भी नियम होते हैं...सदाचरण यानी नारी मात्र का आदर करना। जो यह नहीं पालन करता, उसे सजा मिलनी ही चाहिए। रावण के दस सिर दिखाए गए हैं व आज भी बनाए जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह, वासना ये पाँच विकार हैं। रावण के दस सिर यानी पाँच स्त्री के विकार व पांच पुरुष के। समाज में ये विकार नहीं होने चाहिए। प्रेम सुख शान्ति चरित्र की पवित्रता व दुर्गुणों से ल...
संशयात्मा विनश्यति
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संशयात्मा विनश्यति

शांता पारेख इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कहा जाता है संशयात्मा विनश्यति। इसका अर्थ है संशय करने वाली आत्मा विनाश को प्राप्त करती है। परन्तु सामान्य जीवन मे जो शंका करता है वही आगे बढ़ता है, न्यूटन, गेलिलियो नचिकेता शंकराचार्य जो भी किसी भी क्षेत्र के हो जिसने कब क्यों कहाँ कैसे नही पूछा वे वही खड़े रहे आकार प्रकार में बड़े हुए होंगे पर ज्ञान कला गुणों का विकास तो जिज्ञासा से ही होता है, सेव नीचे क्यों गिरा उस पर विचार किया तो गुरुत्वाकर्षन की खोज हुई फिर उसी को आधार मान कर पूरा स्पेस साइंस की खोजे हुई है। जो जितने ज्यादा सवाल पूछता अध्यापक का प्रिय पात्र बनता व वे भी उसको आगे तुम्हे कैसे व क्या पढ़ना चाहिए के लिए निर्देश देते है। कोलंबस वास्कोडिगामा मेगस्थनीज़ सब शंका उत्पन्न हुई तो खोज कर पाए। जो है उसको अगर यथावत स्वीकार लेते तो आज पाषाण युग मे ही जीते। पर जिज्ञासु सब हो ...
गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या
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गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** गढ़वाली व राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या (गढ़वाली व राजस्थानी लोक गीत तुलना श्रृंखला) जल जीवन है। सभी क्षेत्रों में सोत्र से पानी भरने परम्परा होती थी। राजस्थान हो या गढ़वाल-कुमाऊं का भूभाग सभी जगह सोत्रों से पानी भर कर लाना जीवन का एक मुख्य भौतिक कार्य या परम्परा थी। भौगोलिक विशेषताओं के कारण दोनों क्षेत्रों में, जल सोत्र, पानी भरने की व पानी लाने की शैली अलग-अलग हैं और उसी कारण पानी लाते वक्त समस्याएं अलग-अलग हैं। दोनों क्षेत्रों में जल भांड भी भिन्न होते हैं। देखें लोक गीतों में उत्तराखंड व राजनस्थान क्षेत्र की क्या क्या विशेषताएं होती हैं। राजस्थानी लोकगीतों में पानी और पानी लाने की समस्या राजस्थान में पानी की कमी है, पानी भरने दूर कुँएँ तक जाना होता है और पानी लेन की क्या क्या समस्याएं हैं वह इस गीत म...
नौ स्वरूप माता के
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नौ स्वरूप माता के

सोनल मंजू श्री ओमर राजकोट (गुजरात) ******************** शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इन नौ दिनों में पूरी भक्ति से मां दुर्गा की उपासना की जाएगी। नवरात्रि का हर दिन मां दुर्गा को समर्पित है। नवरात्रि के नौ दिनों तक दुर्गा मां के अलग-अलग नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के अंतिम दिन को महानवमी कहा जाता है और इस दिन कन्या पूजा की जाती है। आइए जानते हैं कि नवरात्रि में किस दिन माता के किस स्वरूप को पूजा जाएगा। १. माँ शैलपुत्री माँ दुर्गा का पहला स्वरूप शैलपुत्री है। शैल का मतलब होता है शिखर। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार देवी शैलपुत्री कैलाश पर्वत की पुत्री है, इसीलिए देवी शैलपुत्री को पर्वत की बेटी भी कहा जाता है। वृषभ (बैल) इनका वाहन होने के कारण इन्हें वृषभारूढा के नाम से भी जाना जाता है। इनके दाएं हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में इन्होंने कमल धारण किया हुआ है। मां के ...
गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)
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गंध चिकित्सा से स्वास्थ्य पर्यटन विकास (उत्तराखंड उदाहरण)

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** आलेख - विपणन आचार्य भीष्म कुकरेती मनुष्य विकास के कारण मनुष्य में अन्य जानवरों के गुण पाए जाने से गंध, सुगंध का अति महत्व है। हमारे पांच इन्द्रियों में सबसे अधिक महत्व गंध का है। हम जो पढ़ते हैं या देखते हैं वह कुछ दिनों में भूल जाते हैं, जिसे छूते हैं उसका स्मरण कुछ माह तक होता है जो सुनते हैं कुछ समय तक याद रखा जा सकता है किन्तु जो सूंघते हैं (भोजन स्वाद भी सूंघने से पैदा होता है) व सबसे अधिक समय तक याद रहता है। हमारे कम्युनिकेशन में ४५% कार्य सुगंध या गंध का हाथ होता है। हमारी किसी के प्रति चाहत, प्रेम, उदासीनता, घृणा में गंध इन्द्रिय का सर्वाधिक हाथ होता है। हम अन्य इन्द्रिय प्रबह्व को परिभासित कर सकते हैं किन्तु गंध का विवरण देना नामुमकिन ही सा है। किड़ाण या खिकराण को परिभाषित करना कठिन है। गंध/सुगंध पर्यटन का मुख्यांग है ...
गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण
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गढ़वाली और राजस्थानी लोकगीतों में देवी देवताओं का आम मानवीय आचरण

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** राजस्थानी, गढ़वाली-कुमाउंनी लोकगीतों का तुलनात्मक अध्ययन : भाग- ५ भारत में सभी देवताओं को महानायक प्राप्त है। फिर भी लोक साहित्य में देवताओं को मानवीय व्यवहार करते दिखाया जाता है। राजस्थानी और गढवाली लोक गीतों में देवताओं को मानव भूमिका निभाते दिखाया जाता है। लोक गीतों में देवता अपनी अलौकिकता छोड़ में क्षेत्रीय भौगोलिक और सामाजिक हिसाब से में मिल गये हैं। लोक गीतों में शिवजी-पार्वती, ब्रह्मा, विष्णु सभी देवगण साधारण मानव हो जाते है। लोक साहित्य विद्वान् श्री विद्या निवास मिश्र का कथन सटीक है कि "शिव, राम, कृष्ण, सीता, कौशल्या या देवकी जैसे चरित्र भी लोक साहित्य के चौरस उतरते ही अपनी गौरव गरिमा भूल कर लोक बाना धारण करके लोक में ही मिल जाते हैं। यहाँ तक कि लोक का सुख-दुःख भी वे अपने ऊपर ओढ़ने लगते हैं। उसी से लोक साहित्य की देव सृष्ठि भ...
वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी
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वात्सल्य-करुणा की प्रतिमूर्ति- आचार्य प्रमुखसागरजी

मयंक कुमार जैन अलीगढ़ (उत्तर प्रदेश) ******************** चंदनं शीतलं लोके चं चंद्रमा। चन्द्रचन्दनद्वयोर्मध्ये शीतलाः साधुसंगतिः॥ वर्तमान में आप श्रमण संस्कृति के सुविख्यात एवं प्रतिष्ठित आध्यात्मिक संत हैं। आप वर्तमान शासननायक भगवान महावीरस्वामी की परंपरा में हुए आचार्य आदिसागर अंकलीकर, आचार्य महावीरकीर्तिजी, आचार्य विमलसागरजी एवं आचार्य सन्मति सागरजी महाराज की निग्रंथ वीतरागी दिगंबर जैन श्रमण परंपरा के प्रतिनिधि गणाचार्य पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षित, उनके बहुचर्चित व ज्ञानवान शिष्य हैं। तथा अपनी आगम अनुकूल चर्या एवं ज्ञान से नमोस्तु शासन को जयवंत कर रहे हैं । आज से ०२ वर्ष पूर्व २०२१ में जब इटावा चातुर्मास के दौरान होने वाली पत्रकार संपादक संघ संगोष्ठी में आपके समक्ष पहुंचने का अवसर मिला और आपका वात्सल्य और आशीष से ही में अभिभूत हो गया और ऐसा लगा कि - बहत...
बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग
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बिच्छू घास (कंडाळि) के दसियों उपयोग

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ******************** साभार : डॉ. बलबीर सिंह रावत कंडली, (Urtica dioica), बिच्छू घास, सिस्नु, सोई, एक तिरिस्क्रित पौधा, जिसकी ज़िंदा रहने की शक्ति और जिद अति शक्तिशाली है। क्योंकि यह अपने में कई पौष्टिक तत्वों को जमा करने में सक्षम है, हर उस ठंडी आबोहवा में पैदा हो जाता है जहाँ थोडा बहुत नमी हमेशा रहती है। उत्तराखंड में इसकी बहुलता है, और इसे मनुष्य भी खाते हैं, दुधारू पशुओं को भी इसके मुलायन तनों को गहथ झंगोरा, कौणी, मकई, गेहूं, जौ मंडुवे के आटे के साथ पका कर पींडा बना कर देते है। कन्डालि में जस्ता, ताम्बा सिलिका, सेलेनियम, लौह, केल्सियम, पोटेसियम, बोरोन, फोस्फोरस खनिज, विटामिन ए, बी१ , बी२, बी३, बी५, सी, और के, होते हैं, तथा ओमेगा ३ और ६ के साथ-साथ कई अन्य पौष्टिक तत्व भी होते हैं। इसकी फोरमिक ऐसिड से युक्त, अत्यंत पीड़ा दायक, आसानी से चुभने वाले, सुईद...
कुछ संकल्प कुदरत के नाम …
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कुछ संकल्प कुदरत के नाम …

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** भोर के साथ ही हमारे कर्म प्रारंभ हो जाते हैं। इतनी व्यस्त और विशिष्ट जिन्दगी की गति कैसे दिन रात गुजार लेती है, इसकी सुध लेने की भी फुर्सत नहीं होती। लेकिन विचारणीय है कि जो काम हम कर रहे उसका प्रभाव पर्यावरण पर कैसा डाल रहे हैं। हमारी गतिविधियां ही पर्यावरण के प्रति हमारी सोच को दर्शाती है। उम्मीदों से भरे इस नववर्ष में हर कोई संकल्प लेता है लेकिन हम उन बातों को नजर अंदाज कर जाते हैं, जो हमारे लिए सबसे जरूरी है।कुदरत जो प्राणवायु से लेकर हर जरूरतों को पूरा करता है। उसके लिए हमें इस वर्ष भी नया संकल्प लेना चाहिए। जैसे प्लास्टिक का उपयोग या जीवाष्म ईंधन का उपयोग न हो। हमें यह जिम्मेदारी लेनी चाहिए कि हमारी वजह से पर्यावरण को कोई नुक़सान न हो। पानी और ऊर्जा की बचत करें। गंदगी एवं कचरा स्वयं की ओर से कहीं न डालें। नियमों के मुताबिक चर्य...
दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !
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दुख:द !! भारत में १४०० सालों से उत्पादक शीलता पर चर्चा ही नहीं होती !

भीष्म कुकरेती मुम्बई (महाराष्ट्र) ********************  भारत आज सब ओर से संघर्षरत है। प्रजातंत्र में पर खचांग लगाने नहीं प्रजातंत्र को समाप्त करवाने परिवारवाद का हर प्रदेश में नहीं हर पार्टी में बोलबाला है। जब चुनाव आते हैं, फिर से चुनाव में जीतने या विरोधी को लतपत चित्त करने हेतु विकास, मुफ्त, गरीबी हटाने आदि की चर्चा में अग्यो लग जाता है। मुफ्त, विकास व गरीबी हटाना आवश्यक है। होना भी चाहिए। किन्तु भारत पिछले १४०० सालों से एक विभीषिका से लड़ रहा है और सिरमौर (सर्वश्रेष्ठ, मुकुट) देश हर तरह से पिछड़ रहा है या मात खा रहा है। यह विभीषिका है भारत में उत्पादकशीलता याने प्रोडक्टिविटी पर चर्चा न होना। उत्पादकशीलता विचार गुप्त काल के पश्चात भारत से सर्वथा लुप्त हो गया है। प्रोडक्टिविटी ट्रेडिंग के पैर धो उसे चरणामृत समझ पी रही है। गुप्त काल के पश्चात राजकीय उठा पटक होते रहे और उत्पादनशीलता यान...