Sunday, May 12राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

लघुकथा

उपहार
लघुकथा

उपहार

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** दीपावली की तैयारियों के लिए कमल अनोखीलाल सेठ के बंगले पर रंग बिरंगी झालर लगाने में व्यस्त था। सेठ जी कमल को उचित दिशा निर्देश देकर बगीचे की ताजी हवा का आनंद ले रहे थें। शालू खेलते-खेलते अपने दादाजी के पास आई। सुंदर गुलाबी रंग के कपड़ों में वह परी-सी लग रही थी। सेठ जी ने उसे-स्नेह से गले लगा लिया। यह देख कमल का दिल भर आया। उसे याद आया की उसकी बेटी पूजा ने भी कहा यहां की "बाबा इस बार तो मुझे अच्छे नये कपड़े दिलवाओंगे ना?" इसी उधेड़बुन में वह कार्य करना भूल गया। अनोखीलाल-"कमल कार्य समाप्त हो गया क्या?" "नहीं मालिक थोड़ा-सा ओर बचा है?" शाम को लौटते समय सेठजी ने उसे मेहनताना दिया। कमल धन्यवाद देकर जा ही रहा था कि घर की सेठानी कांशीदेवी ने रोका- "भैय्या ये छोटा-सा उपहार भी लेते जाओ। "कमल प्रसन्न हु...
सीख
लघुकथा

सीख

उमेश्वरी साहू धमतरी (छतीसगढ़) ******************** कभी-कभी हम बच्चों को कुछ सिखा कर खुद ही भूल जाते हैं। आज मेरे साथ एक ऐसे ही अद्भुत घटना घटी। लगभग ५ साल बाद मैने स्कूटी चलाई इसलिये मुझे बहुत डर लग ररहा था। डरते-डरते स्कूल के पास पहुंची। मुझे देखकर बच्चे भी पास आ गए। स्कूल से थोड़ा पहले की सड़क बहुत ऊंची हैं, मेरी हिम्मत जवाब दे रही थी तो मैंने बच्चों से कहा कि मैं गाड़ी यही छोड़ दूँगी। तभी एक ८ साल की बच्ची बोलती हैं कि मैम आप कोशिश करो जरूर चढ़ा लोगे। परन्तु फिर भी मुझमें हिम्मत नही आई और मैंने एक बार फिर से कहा कि, नही बेटा मैं नही कर पाऊँगी। तब उस बच्ची ने मुझे वह दिन याद दिलाया जब मैंने उन लोगो को चींटी की कहानी सुनाई थी.... उसने कहा कि क्या मेंम आप भी, हम लोगों को सिखाती हो कि, "कोशिश करने वालो की हार नही होती" और आप ही हार मान रही हो। आप कोशिश तो कीजिये हम लोग हैं ...
माँ का दिया छाता
लघुकथा

माँ का दिया छाता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ क्या स्वर्ग सिधारी कि श्रीधा के बाबा अकेले रह गए। बेटी कह कह कर हार गई, "बाबा, आप मेरे घर चलिए। वहाँ मेरे ससुर जी के साथ आपकी खूब जमेगी। माजी ने तो आपके लिए कमरा भी तैयार कर लिया है।" लेकिन अभय जी कहते, "अरे श्रीधा, मैं अकेला अवश्य हूँ पर अपना सब काम निपटा लेता हूँ। शाम को पार्क चला जाता हूँ। फिर मेरा छाता तो साथ रहता ही है। धूप बारिश आवारा कुत्तों व गुंडों से बचाने के लिए। तेरी माँ जो लाई थी मेरे लिए।" इस बार श्रीधा एक सप्ताह के लिए आई है, अच्छे से घर जमाने के लिए। पर बाबा की शामें बाहर ही गुजरती है। यह क्या भरी बरसात में भी बाबा को जाना है। जैसे ही पार्क से आए, श्रीधा पूछ बैठी, "ये क्या बाबा, छाता होते हुए भी आप एक तरफ से पूरे भीग गए और एक तरफ से सूखे।" तभी पड़ोस वाले चाचू आकर चुटकी लेते हैं, "अरे बेटी, तेरे बाबा की एक...
मां का दिल
लघुकथा

मां का दिल

डॉ. जयलक्ष्मी विनायक भोपाल (मध्य प्रदेश) ******************** ऊंची कद काठी के, मृतप्राय से, अपने पति को मृत्यु शैय्या पर देख सुमित्रा का मन धक सा हो रहा था। तीनों बेटियों को बुला लिया था डॉक्टर ने जवाब जो दे दिया था। इसलिए हॉस्पिटल से पति को वापिस लाने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था। वैसे तो छोटी बेटी ने किचन संभाल लिया था। रोटी सब्जी दाल चावल तो बन ही जाता था। पर सुमित्रा को यह रह-रह कर लग रहा था कि मेरी बेटियां इतने दूर से आई है, उन्हें कुछ अच्छा खिला सकती। दूसरे दिन मां को बेटियों ने घर पर नहीं पाया। सोचा, कहां चली गयी होगीं? तभी दरवाजा खोल मां का आगमन हुआ। मां के कंधे पर बैग झूल रहा था। उसमे से उन्होंने एक डिब्बा निकाला और डायनिंग टेबल पर रख दिया। 'क्या है इसमें?' बेटियों ने उत्सुकता से पूछा। 'तुम सबको श्रीखंड पसंद है ना? वो ही लेने गयी थी।' परिचय :-   भोपाल (मध्य प्रद...
लिहाज
लघुकथा

लिहाज

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** घानू का नशा उतर गया था। वह घर की बालकनी में आराम से बैठे चाय की चुस्की के साथ पेपर पढ़ रहा था। उसकी नजर उन खबरों पर थी जहां दारू के अड्डे पर छापे पड़ रहे थे। कहीं नशा मुक्ति अभियान के तहत महिलाएं जुलूस निकाल रही थी, तो कहीं युवाओं से बच्चों से शपथ दिलवाई जा रही थी। लेकिन घानू मुस्करा रहा था। 'पार्वती बड़े प्रेम से पति के पास आई और बोली, देखो जी आज सर्व पितृ अमावस्या है। आप आज के नशे के पैसे बचाकर पितरों के फोटो के लिए फूलो का हार लेकर आयेंगे तो बच्चों को भी समझ पड़ेगी कि ये हमारे पूर्वज है। घानू ने झिड़क कर जवाब दिया, "क्या दिया पितरों ने जो हार फूल चढ़ाना। जाओ अपना काम करो।" तुम्हें रहने के लिए छत दी है। कहीं सड़क या नाले के हवाले तो नहीं किया है। तुम्हें पढ़ाया लिखाया काम पर भी लगवा दिया। "लेकिन ये सौत ने तुम्हें हड़प लिया, ज...
कफन की शान तिरंगा
लघुकथा

कफन की शान तिरंगा

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** आज लंबे अर्से के बाद पोस्टमेन की आवाज सुनकर, और उसके हाथ में लिफाफा देख कर दिल खुशी से नाच उठा। क्योंकि आजकल मोबाइल के जमाने में डाक से चिट्ठी कहाँ आती है? जरुर किसी पुराने परिचित ने भेजी होगी। झटपट लिफाफा ले कर खोला तो देखा बचपन की सहेली अपूर्वा की चिट्ठी थी। चिट्ठी खोलते हुए हाथ कांपने लगे क्योंकि कुछ दिनों पहले ही उसका बेटा अचल, जो सेना में ऊंचे ओहदे पर था, काश्मीर में आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ में मारा गया था। तब फोन पर ही मैं उसे दिलासा दे पाई थी। चाहकर भी मिलने नहीं जा पाई थी। उसका पत्र हाथ में लेकर आँखें गीली ह़ो गयी। लिखा था, मन की कुछ बातें फोन पर नहीं हो पाती हैं इसलिए आज तुझे चिट्ठी लिख रही हूँ। विभा, तुझे क्या बताऊँ, अचल के जाने के बाद कैसे थोड़ा संभल पाई थी कि आज हमारे यहाँ के महपौर स्वयं घर आए। वे इस बार गणतंत...
ये फुनवा मुआ
लघुकथा

ये फुनवा मुआ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** यशोदा अपने कमरे में लेटी लेटी सोच रही है...एक ज़माना था जब घर में कितनी चहल पहल रहती थी। अम्मा जी भी सुबह जल्दी उठ जाती थी। दोनों सास बहू मिलकर पूरे घर को बुहार लेती थी। अम्मा का स्नान ध्यान प्रारम्भ हो जाता था। पूरा वातावरण अगरबत्ती की महक से सुवासित हो जाता था। वह स्वयं भी नहाकर चाय लिए पूजाघर में अम्मा जी के साथ जा बैठती। मुँह अंधेरे घूमने निकले पतिदेव प्रशांत भी पिता के साथ अख़बार में खो जाते। चाय की चुस्कियों के साथ यशोदा सब्जियों की सफ़ाई पर हाथ चलाती और दिनभर की योजनाएँ बनती रहती। दिन के खाने के टिफ़िन बन जाते किन्तु नाश्ता सब साथ साथ बतियाते हुए करते। यशोदा वर्तमान में आकर मायूस हो जाती है। घर में तो जैसे मरघटी शांति ने डेरा जमा लिया है। एकमात्र शेखर जी ही हैं जो अपनी ऐनक चढ़ाए अख़बार में मशगूल रहते हैं। हाँ, अपनी शाम वे पत्...
बारिश
लघुकथा

बारिश

रुचिता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज आसमान पर बादल छाए थे, मानसून का आगमन हो चुका था। सभी को खुशी थी कि अब इस तपती गर्मी से निजाद मिलेगी। लेकिन शोभा ताई अपनी झोपड़ी में बैठे-बैठे ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी कि पहली बारिश के बाद ही झोपड़े में पानी भर जाएगा, फिर अपने छोटे-छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जायेगी। हे ईश्वर! जब तक कहीं रहने का इंतजाम न हो, तब तक कैसे भी करके बादलों को बरसने से रोक लो। तभी नगर पालिका की गाड़ी बस्ती के बाहर आकर रूकी, कि पूरी बारिश में बस्ती के लोगों के रहने के लिए सरकार ने पुराने स्कूल में व्यवस्था की है। सब लोग अपना काम का सामान लेकर उधर रहने जा सकते हैं। तभी बादल बरसने लगे और अब शोभा ताई भी बारिश में खुशी से झूम रही थी। परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपन...
बेटी की विदाई
लघुकथा

बेटी की विदाई

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी की शादी करना हर पिता का सपना होता है ... मेरे जीवन में भी एक बेटी आई और मेरा घर खुशियों से भर गया जैसे-जैसे बेटी बड़ी होने लगी मुझे एक बात सताने लगी की इसकी शादी होगी और यह पराई हो जाएगी फिर मेरे घर आंगन में कौन नाचेगा जिसे मैंने बड़े लाड से पाला वह आज पराई होने जा रही है। खुशी है बेटी की शादी की परंतु दिल में कहीं किसी एक कोने में उदासी भी है, अपनी नन्ही सी कली को अपने प्राणों से ज्यादा चाहा अपनी पलकों की छांव में रखा उसे ईश्वर हर खुशी दे बेटी की विदाई का विचार मन में आते ही दिल अंदर से कांप जाता बेटी के बिना मैं अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकता उस बेटी को आज मुझे विदा करना है, मेरा पूरा घर उसकी मीठी बोली से गूंजता रहता था अब यहां सन्नाटा होगा बेटियां पराई अमानत होती है तो ईश्वर उन्हें देता ही क्यों है, क्यों...
काश बुद्ध सा कुछ करता
लघुकथा

काश बुद्ध सा कुछ करता

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "घर सम्भालूँ कि नौकरी करूँ? बिट्टू के स्कूल की मीटिंग में अलग जाना है।" सुमेधा बड़बड़ाते हुए अपना व बेटे का टिफ़िन तैयार करती है। रिक्शा से बिट्टू को स्कूल छोड़ते हुए ऑफिस पहुँचती है। पता चला आज भी बॉस ने लेट लगवा दिया है। चाय की तलब लगने पर याद आया घर में दूध था ही नहीं। बिट्टू को देना जो ज़रूरी था। चाय को भूलकर फाइलें निपटाते दिमाग़ में विचारों का ज्वारभाटा चलने लगा, "सिद्धार्थ से प्रेम विवाह कर कितने सपने देखे थे। पति के पास काम नहीं होने पर भी दिलासा देकर उसके लेखक बनने के जुनून को हमेशा सराहा। हाथ खर्चा देती रही इस आशा में कि सब ठीक होगा। किन्तु एक रात वह सब को सोता हुआ छोड़कर अनजानी राह पर चला गया।" काम निपटाते हुए वह उदास हो जाती है। तभी एक मित्र का फोन आता है, "सुमेधा ! संयत होकर धैर्य से मेरी बात सुनना। पता चला है कि सिद्धा...
निर्णय
लघुकथा

निर्णय

माधवी तारे लंदन ******************** लग्न मंडप से अपने-अपने कमरों में चले गए दूल्हा और दुल्हन, थोड़े समय बाद पूरी रात भर सुनाई देने वाली दूल्हे के कमरे से चिल्पो सुन रही थी दुल्हन, सुबह वरमाला लेकर मंडप में तो गई, पर सबके सामने बोल पड़ी मैं ससुराल नहीं जाऊंगी डोली हटा लो कहारो.... परिचय :- माधवी तारे वर्तमान निवास : लंदन मूल निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु ...
श्रद्धांजलि
लघुकथा

श्रद्धांजलि

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ********************  "विभोर, कॉलेज से आते आते एक फूल माला लेकर आना।" फुलमाला किसलिए मां.. ? आज कोई त्यौहार है क्या? अरे नहीं, वो हमारे स्नेही माधव काका..., उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जाना है, तो मैंने सोच लिया.. साथ में फूल माला लेकर जाते हैं। तस्वीर पर चढ़ा देंगे, उनके आत्मा को शांति मिलेगी। "अरे मम्मी, फूल माला चढ़ाने से न आत्मा को शांति मिलती है, न कोई पुण्य मिलता है। यह तो केवल दिखावा है। जब बिस्तर में पड़े थे तो उन्होंने कितनी बार तुझे याद किया, मिलने को बुलाया। वह आपसे बातें करना चाहते थे। अपना दिल हल्का करना चाहते थे। पर तुझे उन्हें मिलने को न समय मिला, न उनके साथ ठीक से बात कर पायी और आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही हैं!!!!" बेटे की बात सुनकर माँ बोली "वैसा कुछ नहीं है, विभोर। मैं उनसे मिलने कई बार गई...
मैं बचूँ या ना बचूँ
लघुकथा

मैं बचूँ या ना बचूँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे शोभा जी ! आप अपनी संगीत कक्षा में ही व्यस्त रहो। खबर भी है आपको कि बिट्टू कहाँ है?" "क्या हुआ नीता जी बिट्टू को? वह तो स्वीमिंग क्लास गया है। बस आता ही होगा।" तभी बाहर से शोर सुनाई देता है, "बिट्टू राजा जिंदाबाद।" लड़कों ने हार पहने बिट्टू को काँधे पर उठा रखा है। आशंकित शोभा जानना चाहती है कि आख़िर माज़रा क्या है। स्वीमिंग क्लास के सर हाथ जोड़कर बताते हैं, "मेडम ! आपका बेटा बड़ा दयालू व बहादुर है। इसने एक पपी को पूल में डूबते हुए देखा। अपनी जान की परवाह किए बिना यह पास पड़ी तगारी लिए पानी में कूद गया। और झट से पपी को तगारी में डाल सिर पर रख लिया। खुद अपने हाथ ही नहीं चला पा रहा था। मैं वहीं खड़ा था तो दोनों को बचा लिया।" बिट्टू को आगोश में भरते हुए शोभा पूछती है, "बच्चे ! तुम्हें कुछ हो जाता तो...।" "मम्मा ! आप ही तो सिखाती हो...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी...
देशदीपक
लघुकथा

देशदीपक

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नवविवाहिता नवोढ़ा पत्नी के साथ मधुमास बहुत जल्दी व्यतीत हो गया। बहुत शीघ्र वापस आंऊगा बोल कर, मनोज जाने की तैयारियां करने लगा। दबी आवाज में बस इतना ही कह पाई थी अंजु जल्दी आइयेगा। अब आप आयेंगे तो आपको मेरी और से बहुत अनुपम भेंट मिलेगी। वह पत्नी को प्यार कर, माता-पिता का आशीर्वाद लेकर चल दिया। इकलौता बेटा था, माता पिता का मन भर आया। अभी तो ब्याह हुआ हैं, बहू के साथ और कुछ दिन रहता। सीमा पर शत्रु का आक्रमण हो जाये, पता नहीं। इसी वजह से मनोज को तुरंत बुलावा आया था। अनहोनी होनी थी हो गई। मनोज फिर नहीं आया। अंजु बेटे को जतन से बड़ा कर रही थी। अपने सास-ससुर के साथ रह वह बेटे को पढ़ा लिखा रही थी। बचपन से बेटे के मन में बैठा दिया की देश सेवा के लिए ही तुम्हें जाना है, और उसी की शिक्षा लेनी है। लोग कहते कि आजकल त...
बूढ़ी अम्मा
लघुकथा

बूढ़ी अम्मा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  शीतला सप्तमी होने से सास बहू नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं। पूड़ी सब्ज़ी, दही बड़े, गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहू भलीभांति सासू माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया, ऐसा माजी का कहना है। बहू पूजा की थाल सजाकर तैयारियाँ कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके। आदतानुसार सासू माँ याद दिलाना नहीं भूलती हैं, "चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना। दीया ठंडा ही रखना है। याद है चिकित्सक भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं। और हम माता जी के आने पर दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटकाते हैं।" "हाँ माँ ! आप हर साल दुहराती हैं, अब मैं पक्की हो गई हूँ।" बहू आश्वस्त करती है। सुबह सवेरे बहू लाल चूनर ओढे, पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है। सासू माँ ब...
पापा
लघुकथा

पापा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "पापा ! आपको हो क्या गया है? देखिये, शर्ट आधी पेन्ट के अन्दर है, आधी बाहर। और बालों में कंघी क्यों नहीं की?" एक क्षण मुझे लगा बेटे तुषार के स्थान पर मैं खड़ा हूँ और मेरे स्थान पर मेरे पापा। मैं अपने पापा को अगाह कर रहा हूँ कि शर्ट ठीक ढंग से खोसी नहीं गई है। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे अनजाने में धीरे-धीरे पापा बनता जा रहा हूँ। लोगों को प्रभावित करने वाली बोली धीमी पड़ गई।पापा के समान टोका-टोकी की आदत बदल गई। ढेरों कपड़े अभी भी हैं पर चार कपड़ों से ही काम चला रहा हूँ। पुनः अपनी सोच से बाहर आकर अपनी शर्ट पूरी तरह पेन्ट में डाल, बालों में कंघी करके सब्जी का थैला कंधे पर डाल पापा के समान धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर निकल गया। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल...
अनपढ़ चम्ची
लघुकथा

अनपढ़ चम्ची

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गरीब परिवार था जिसमें चार बहनें और चार भाई थे। जिस कारण केवल लड़कों को ही स्कूल भेजा गया, लड़कियों को नहीं। लड़के सुबह स्कूल जाते थे और लड़कियां पशुओं को लेकर जंगल में चराने जाती थी। धीरे-धीरे सभी लड़कों ने इंटरमीडिएट की परिक्षाएं पास कर ली। सभी लड़कों की शादी करा दी गई। कुछ दिन बाद चारो लड़कियों में से सबसे बड़ी लड़की चम्ची का विवाह रसोईपुर में रहने वाले युवक चम्चे से करा दिया गया। चम्चे के पास एक बड़ा घर तथा अच्छी जमीन जायदाद थी। चम्ची के चार-पांच साल तो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी गुज़रे परन्तु चम्चा अब शराब पीने लगा था। उसने धीरे-धीरे घर की सारी जमीन बेच दी। चम्ची ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया जिनमें एक लडका और एक लड़की थी। बच्चे भी बड़े हो रहे थे। दोनों बच्चे दस साल के हो चुके थे। वह इतनी शराब पीने लगा था कि कुछ ही दि...
बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने ...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी म...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
जानवर जाने जानवर की भाषा
लघुकथा

जानवर जाने जानवर की भाषा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक अजीब सा चिड़ियाघर था जो किसी शहर में न होकर एक गॉंव के जंगल में स्थित था। इस चिड़ियाघर में अन्य जानवरों के साथ गीदड़ो को भी रखा गया था जो देखने में बहुत खूॅंखार थे। उनके दॉंत डरवाने लगते थे और उनके दॉंतो में लम्बे-लम्बे दॉंत जिन्हें कीलें कहा जाता है, उनके खूॅंखार होने का प्रमाण देते थे। हमारे गॉंव के लोगों के खेत भी उसी चिड़ियाघर के आस-पास ही स्थित थे। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ अपने खेत पर गया हुआ था और हम अपने खेत पर आम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। तभी अचानक उस चिड़ियाघर से एक गीदड़ का बच्चा निकल कर हमारे पास आ गया। मैं उसे पकड़कर वापस चिड़ियाघर की तरफ ले जाने का प्रयास कर रहा था और इसी पकड़म पकड़ाई में उसका एक दॉंत मेरी उंगली में लग गया लेकिन मैं उसके दॉंत लगने के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं हु...