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लघुकथा

श्रद्धांजलि
लघुकथा

श्रद्धांजलि

प्रो. डॉ. द्वारका गिते-मुंडे बीड, (महाराष्ट्र) ********************  "विभोर, कॉलेज से आते आते एक फूल माला लेकर आना।" फुलमाला किसलिए मां.. ? आज कोई त्यौहार है क्या? अरे नहीं, वो हमारे स्नेही माधव काका..., उनके श्रद्धांजलि कार्यक्रम में जाना है, तो मैंने सोच लिया.. साथ में फूल माला लेकर जाते हैं। तस्वीर पर चढ़ा देंगे, उनके आत्मा को शांति मिलेगी। "अरे मम्मी, फूल माला चढ़ाने से न आत्मा को शांति मिलती है, न कोई पुण्य मिलता है। यह तो केवल दिखावा है। जब बिस्तर में पड़े थे तो उन्होंने कितनी बार तुझे याद किया, मिलने को बुलाया। वह आपसे बातें करना चाहते थे। अपना दिल हल्का करना चाहते थे। पर तुझे उन्हें मिलने को न समय मिला, न उनके साथ ठीक से बात कर पायी और आज उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने जा रही हैं!!!!" बेटे की बात सुनकर माँ बोली "वैसा कुछ नहीं है, विभोर। मैं उनसे मिलने कई बार गई थी। इस छ:...
मैं बचूँ या ना बचूँ
लघुकथा

मैं बचूँ या ना बचूँ

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** "अरे शोभा जी ! आप अपनी संगीत कक्षा में ही व्यस्त रहो। खबर भी है आपको कि बिट्टू कहाँ है?" "क्या हुआ नीता जी बिट्टू को? वह तो स्वीमिंग क्लास गया है। बस आता ही होगा।" तभी बाहर से शोर सुनाई देता है, "बिट्टू राजा जिंदाबाद।" लड़कों ने हार पहने बिट्टू को काँधे पर उठा रखा है। आशंकित शोभा जानना चाहती है कि आख़िर माज़रा क्या है। स्वीमिंग क्लास के सर हाथ जोड़कर बताते हैं, "मेडम ! आपका बेटा बड़ा दयालू व बहादुर है। इसने एक पपी को पूल में डूबते हुए देखा। अपनी जान की परवाह किए बिना यह पास पड़ी तगारी लिए पानी में कूद गया। और झट से पपी को तगारी में डाल सिर पर रख लिया। खुद अपने हाथ ही नहीं चला पा रहा था। मैं वहीं खड़ा था तो दोनों को बचा लिया।" बिट्टू को आगोश में भरते हुए शोभा पूछती है, "बच्चे ! तुम्हें कुछ हो जाता तो...।" "मम्मा ! आप ही तो सिखाती हो...
आत्म संघर्ष
लघुकथा

आत्म संघर्ष

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** शरीर और आत्मा दोनों ही अलग हैं। लेकिन आत्मा को कर्म में आने के लिए शरीर का आधार लेना ही पड़ता है। काया के सौन्दर्य को इतना महत्व देने के बजाय आचरण और व्यवहार अधिक महत्वपूर्ण होता है। बाहरी सौन्दर्य पर लोग भ्रमर के भांति आकर्षित होते हैं। यदि आचरण सही है तो उसका चरित्र ही सत्य सौन्दर्य है‌। इस सोच के साथ बेला पति रोहन और माँ को तीव्रता से याद कर रही थी। आफीस से लौटी बेला व्याकुल होकर सोफे पर निढाल बैठी थी। आज आफिसर श्रेयस का व्यवहार चूभ रहा था। वहीं रोहन के शब्द कानों पर टकरा रहे थे। बेला, "इतनी चंचल वृत्ति काम की नहीं। सौन्दर्य का नशा झटके में कोई उतार न दे।" वह बेसब्री से रोहन की राह देख रही थी। शायद उसे देखते ही मन हल्का हो जाय। इसी अपेक्षा से उसे एकान्त प्रिय लग रहा था। कई प्रश्न उभर रहें थे। उसके उत्तर भी वही खोज रही थी। मुझे...
कन्या
लघुकथा

कन्या

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** दुर्गा नवमी की पूजा कर सलिला अपने बंगले के गेट पर खड़ी होकर कन्या पूजन के लिए लड़कियों की प्रतीक्षा करने लगी। पास पड़ोस में सभी ने अपनी बच्चियों को भेजने के लिए हामी भरी थी, पर अब जाने क्या हो गया सबको, फोन पर भी कोई न कोई बहाना बना दिया। परेशान सलिला पूजा की ज्योत में घी भरकर फिर बाहर गेट पर आकर खड़ी हो गई। उसकी तेरह साल की बेटी नीली अपनी मां की उलझन को देख रही थी, उसी समय करीब सात साल की गन्दी सी लड़की, बेतुके कपड़े पहने गेट पर बाहर से आवाज़ देकर बोली, "आंटी, कन्या खिलाएंगी?" सलिला बुरा मुंह बनाकर नीली से बोली, "देखो, सुबह सुबह कैसी गरीब भिखारन भीख मांगने आ गई है!" लड़की फिर से बोली, "आंटी कुछ खिला दो।" नीली मां के चेहरे की परेशानी देखकर बोली, "मम्मी, अभी तक कोई कन्या नहीं आयी है, तुम इसी को पूज लो।" सलिला बेटी को डांटकर...
देशदीपक
लघुकथा

देशदीपक

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** नवविवाहिता नवोढ़ा पत्नी के साथ मधुमास बहुत जल्दी व्यतीत हो गया। बहुत शीघ्र वापस आंऊगा बोल कर, मनोज जाने की तैयारियां करने लगा। दबी आवाज में बस इतना ही कह पाई थी अंजु जल्दी आइयेगा। अब आप आयेंगे तो आपको मेरी और से बहुत अनुपम भेंट मिलेगी। वह पत्नी को प्यार कर, माता-पिता का आशीर्वाद लेकर चल दिया। इकलौता बेटा था, माता पिता का मन भर आया। अभी तो ब्याह हुआ हैं, बहू के साथ और कुछ दिन रहता। सीमा पर शत्रु का आक्रमण हो जाये, पता नहीं। इसी वजह से मनोज को तुरंत बुलावा आया था। अनहोनी होनी थी हो गई। मनोज फिर नहीं आया। अंजु बेटे को जतन से बड़ा कर रही थी। अपने सास-ससुर के साथ रह वह बेटे को पढ़ा लिखा रही थी। बचपन से बेटे के मन में बैठा दिया की देश सेवा के लिए ही तुम्हें जाना है, और उसी की शिक्षा लेनी है। लोग कहते कि आजकल त...
बूढ़ी अम्मा
लघुकथा

बूढ़ी अम्मा

सरला मेहता इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************  शीतला सप्तमी होने से सास बहू नहा धोकर रात में ही रसोई में जुट जाती हैं। पूड़ी सब्ज़ी, दही बड़े, गुलगुले आदि भोग के लिए अलग रख दिए हैं। नौकरी पेशा बहू भलीभांति सासू माँ के आदेशों का पालन करती है। पिछली बार चुन्नू को चेचक के प्रकोप से देवी माँ ने ही बचाया, ऐसा माजी का कहना है। बहू पूजा की थाल सजाकर तैयारियाँ कर लेती है ताकी बच्चे भी प्रसाद लेकर स्कूल जा सके। आदतानुसार सासू माँ याद दिलाना नहीं भूलती हैं, "चना दाल भिगोना व दही ज़माना मत भूल जाना। दीया ठंडा ही रखना है। याद है चिकित्सक भी चेचक होने पर कमरा ठंडा रखने को कहते हैं। और हम माता जी के आने पर दरवाजे पर नीम की पत्तियां लटकाते हैं।" "हाँ माँ ! आप हर साल दुहराती हैं, अब मैं पक्की हो गई हूँ।" बहू आश्वस्त करती है। सुबह सवेरे बहू लाल चूनर ओढे, पूजा की थाल लिए तैयार खड़ी है। सासू माँ ब...
पापा
लघुकथा

पापा

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "पापा ! आपको हो क्या गया है? देखिये, शर्ट आधी पेन्ट के अन्दर है, आधी बाहर। और बालों में कंघी क्यों नहीं की?" एक क्षण मुझे लगा बेटे तुषार के स्थान पर मैं खड़ा हूँ और मेरे स्थान पर मेरे पापा। मैं अपने पापा को अगाह कर रहा हूँ कि शर्ट ठीक ढंग से खोसी नहीं गई है। मैं सोच में पड़ गया कि कैसे अनजाने में धीरे-धीरे पापा बनता जा रहा हूँ। लोगों को प्रभावित करने वाली बोली धीमी पड़ गई।पापा के समान टोका-टोकी की आदत बदल गई। ढेरों कपड़े अभी भी हैं पर चार कपड़ों से ही काम चला रहा हूँ। पुनः अपनी सोच से बाहर आकर अपनी शर्ट पूरी तरह पेन्ट में डाल, बालों में कंघी करके सब्जी का थैला कंधे पर डाल पापा के समान धीरे-धीरे चलता हुआ बाहर निकल गया। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल निवासी :...
अनपढ़ चम्ची
लघुकथा

अनपढ़ चम्ची

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक गरीब परिवार था जिसमें चार बहनें और चार भाई थे। जिस कारण केवल लड़कों को ही स्कूल भेजा गया, लड़कियों को नहीं। लड़के सुबह स्कूल जाते थे और लड़कियां पशुओं को लेकर जंगल में चराने जाती थी। धीरे-धीरे सभी लड़कों ने इंटरमीडिएट की परिक्षाएं पास कर ली। सभी लड़कों की शादी करा दी गई। कुछ दिन बाद चारो लड़कियों में से सबसे बड़ी लड़की चम्ची का विवाह रसोईपुर में रहने वाले युवक चम्चे से करा दिया गया। चम्चे के पास एक बड़ा घर तथा अच्छी जमीन जायदाद थी। चम्ची के चार-पांच साल तो बहुत ख़ुशी-ख़ुशी गुज़रे परन्तु चम्चा अब शराब पीने लगा था। उसने धीरे-धीरे घर की सारी जमीन बेच दी। चम्ची ने दो जुड़वां बच्चों को जन्म दिया जिनमें एक लडका और एक लड़की थी। बच्चे भी बड़े हो रहे थे। दोनों बच्चे दस साल के हो चुके थे। वह इतनी शराब पीने लगा था कि कुछ ही दिनों में शर...
बिजी लोग
लघुकथा

बिजी लोग

इन्दु सिन्हा "इन्दु" रतलाम (मध्यप्रदेश) ******************** आज छुट्टी थी, ऑफिस की और मैं फ्री था। बहुत दिनों से फेसबुक और मैसेंजर नहीं देख पाया था, दोपहर के खाने के बाद सब पोस्ट देख लूँगा टाइम निकालकर, दोपहर में नींद की झपकी लेना कैंसिल। पत्नी भी पहले तो दोपहर घर के काम काज से फ्री होकर होकर पास-पड़ोस में महिलाओं के घर चली जाती थी बतियाने। लेकिन अब वो भी दोपहर में मोबाइल लेकर बैठ जाती है, टाइम पास कर लेती है, इधर-उधर मोहल्ले की औरतों से तो मोबाइल ही भला, बहुत कम ऐसे मौके आते हैं जब दोनों दोपहर में साथ होते हैं। ज्यादातर तो छुट्टी के दिन भी वो ऑफिस निकल जाता है। लंच वगैरह से फ्री होकर उसने मोबाइल उठाया तो महिला मित्र की हॉट पिक सामने आ गई, यह महिला मित्र हमेशा ही अपने पिक डालती रहती थी, और उसने "वेरी नाइस" "सुपर" गिफ्ट कमेंट भेज दिया, फिर उसके बाद दूसरी पोस्ट को भी देखने लगा ज्यादातर...
नजरिया
लघुकथा

नजरिया

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** ठंड का प्रातःकालीन समय। हवाओं में ठंडकता घुल रही है। हल्की-हल्की छवाएँ भी चल रही है। इस कारण थोड़ी सिहरन महसूस हो रही है।ठीक ऐसे ही समय मे तीन दोस्त प्रातः कालीन सैर करते हुए खेत-खलिहानों की तरफ निकल जाते हैं। ऐसे प्रातःकालीन सौंदर्य को देखकर, एकटक देखते हुए तीनो दोस्त ठिठककर रह जाते हैं। और अनायास अपने आप बोल उठते है "वाह! कितना प्यारा मनोरम दृश्य है।" प्रकृति के इस अनन्त रमणीयता को देखकर सिर झुकाते हुए पहला दोस्त बोल पड़ता है। "वाह! यदि यह हंस चिड़िया मुझे मिल जाए तो बाजार में अच्छे दाम मिल जाएंगे।" दूसरा दोस्त अपनी थैली को सहलाते हुए बोल पड़ता है। "वाह! यदि इस हंस चिड़िया को शिकार करके खाने को मिल जाए तो मजा आ जाए।" तीसरा दोस्त जीभ को होठों से घुमाकर चटकारा लगाते हुए कहता है। दूसरे और तीसरे दोस्त के इस बेवकूफी भरी बातों को ...
ताड़न की अधिकारी
लघुकथा

ताड़न की अधिकारी

डॉ. निरुपमा नागर इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर होने वाले एक कार्यक्रम में मैं रचना पाठ के लिए आमंत्रित की गई थी। वहां जाने के लिए तैयार होते हुए ही सोच रही थी कि मुझे अपनी कौन सी रचना सुनानी चाहिए। कभी-कभी स्वांत: सुखाय कविताएं मैं लिखती हूं, मगर मंच से सुनाने का पहला अवसर था अतः बहुत उत्साहित थी। तभी गुस्से से चिल्लाते हुए विनोद की आवाज सुनाई दी। "अरे ! कहां हो भाई! कितनी ‌देर से आवाज लगा रहा हूं।" आवाज़ सुनकर मैं तैयार होते हुए रुक गई। बोलो क्या बात है? "तुमको कोई होश है? महिला दिवस, महिला दिवस बस! क्या है यह महिला दिवस ! तुम औरतें भी ना ! पता नहीं कौन सा फितूर सवार है ! घर के काम-काज तो ठीक से हो नहीं पाते। चलीं हैं महिला दिवस मनाने। तुलसीदास जी ने सही कहा है- ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, नारी सब ताड़न के अधिकारी।। यह सुनते ही...
पेट की आग
लघुकथा

पेट की आग

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सुबह के दस बजे का समय सड़क पर काफी चहल-पहल शुरू हो गई थी, ठीक ऐसे समय मे एक सरकारी कार्यालय का चपरासी रामु अपने कार्यालय को खोलने और साफ-सफाई करने के लिए घर से निकलता है, तभी उसको पास में नास्ता करते हुए कचड़ा बीनने वाले को जलपान करते हुए देखा। यह वही कचड़ा बीनने वाला बिरजू था, जो रोज की तरह आज भी नास्ता कर रहा है। यह बिरजू रामु की पड़ोस में ही रहता था। जब आज रामु से रहा नही गया तो उसने पूछ ही लिया। क्यों रामु? तुमको बीमारी से डर नही लगता? बिरजू ने पूछा क्यो? तब रामु ने कहा- "अरे भई बिरजू तुम कचड़ा बीनने का काम करते हो, तुम यहाँ वहाँ घूमते रहते हो, तुम्हारे हाथ पांव कितने खराब रहते हैं, साबुन से अच्छे से धोकर जलपान किया करो, तुमको बीमारी हो सकती है।" तब वह बिरजू कहता है- "रामु काका तुम ठीक कहते हो पर क्या करें? ये हमारी मजबूरी है ब...
पारदर्शी स्नेह
लघुकथा

पारदर्शी स्नेह

अमिता मराठे इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** नभ में सूर्यास्त की लालीमा छाई थी। धीरे सेअंधकार ने वातावरण को घेर लिया था। सुभाष ऑफिस से आते ही हाथ मुंह धोकर गैलरी में आ खड़ा हुआ। उदासी के बादल अभी छंटे नहीं थे।उसे घर के कोने कोने में बाबूजी का एहसास होता था। सुहानी उसकी मनःस्थिति समझकर भी विवश थी। सोचती थी शाम का धुंधलका सुबह होते ही दूर हो जाता है। वैसे ही सुभाष के जीवन में आई रिक्तता को भर तो नहीं सकती लेकिन सामान्य करने की कोशिश जरूर करूंगी। मैं उसकी जीवन संगिनी हूं। बाबूजी के एकाएक चले जाने से सुभाष के सभी अरमान लुप्त हो गये थे। मैं उन्हें पुनः जागरुक करूंगी। बाबूजी की आत्मा भी तो यहीं चाहती थी ना कि सुभाष सरकारी अफसर बनकर देश सेवा करें। ईमानदारी और कर्मठता का प्रदर्शन करें। "फोन की घंटी बजते ही, सुहानी ने आवाज लगाई।" "सुभाष जरा फ़ोन उठा लो मैं चाय नाश्ता बनाने में व्यस...
जानवर जाने जानवर की भाषा
लघुकथा

जानवर जाने जानवर की भाषा

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** एक अजीब सा चिड़ियाघर था जो किसी शहर में न होकर एक गॉंव के जंगल में स्थित था। इस चिड़ियाघर में अन्य जानवरों के साथ गीदड़ो को भी रखा गया था जो देखने में बहुत खूॅंखार थे। उनके दॉंत डरवाने लगते थे और उनके दॉंतो में लम्बे-लम्बे दॉंत जिन्हें कीलें कहा जाता है, उनके खूॅंखार होने का प्रमाण देते थे। हमारे गॉंव के लोगों के खेत भी उसी चिड़ियाघर के आस-पास ही स्थित थे। एक दिन मैं अपने परिवार के साथ अपने खेत पर गया हुआ था और हम अपने खेत पर आम के पेड़ के नीचे बैठकर बातें कर रहे थे। तभी अचानक उस चिड़ियाघर से एक गीदड़ का बच्चा निकल कर हमारे पास आ गया। मैं उसे पकड़कर वापस चिड़ियाघर की तरफ ले जाने का प्रयास कर रहा था और इसी पकड़म पकड़ाई में उसका एक दॉंत मेरी उंगली में लग गया लेकिन मैं उसके दॉंत लगने के बारे में बिल्कुल भी चिंतित नहीं हुआ क्योंकि ...
सच्चा भक्त
लघुकथा

सच्चा भक्त

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव कि तारिक घोषित हो चुकी थी। सभी पार्टियों के नेता अपनी अपनी पार्टियों के चुनाव प्रचार में लगें हुए थे। सभी पार्टियों के साथ गांव गांव से अलग-अलग लोग अपने नेता के समर्थन में प्रचार प्रसार में घूम रहे थे। एक व्यक्ति थे विदेश चौधरी जो भाजपा के समर्थन में भाजपा के नेता के साथ गांव गांव पार्टी का प्रचार प्रसार करा रहे थे। इससे पहले विदेश चौधरी ग्राम पंचायत के चुनावों में दो तीन बार प्रधान के साथ गांव में चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं और जिला पंचायत के चुनाव में भी दो तीन बार नेता के साथ चुनाव प्रचार प्रसार करा चुके हैं। मतदान का दिन आया। लोग सुबह से ही वोट डालने के लिए मतदान केन्द्र की ओर जा रहे थे। सभी के मन में एक ही विश्वास था कि जिस नेता को वो वोट देंगे, वह अवश्य ही जीतेगा लेकिन विदेश चौधरी के मन मे...
बदलाव
लघुकथा

बदलाव

डॉ. प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय इंदौर, (मध्यप्रदेश) ******************** काशीनाथ अभी बगीचे से लौटकर आँगन में आकर बैठे थे कि पुत्र शंभुनाथ ने आकर प्रणाम किया। "आज कैसे फुर्सत मिल गई?" शम्भू ने कहा- "कुछ नहीं आपसे आवश्यक बात करना थी इसीलिए आपके पास आया हूँ।" "बोलो क्या बात है?" "आपको तो पता ही है कि नीलम, सूरज बड़े हो रहे है, उन्हें पढ़ने के लिए कमरे की जरूरत है। मैंने सोचा आपको हाल के एक भाग में शिफ्ट कर दे तो अच्छा रहेगा। आप चिंता ना करे प्लाई से उस भाग को बनवा लेंगे।' उसने एक सांस में सारी बात कह दी। काशीनाथ मुस्करा दिए, फिर बाजार में सब्जी लेने चल दिए। बहु अनामिका सोचने लगी- "पापा जी की आज कुछ ज्यादा समय से लग गया तरकारी लाने में!" इतने में काशीनाथ जी घर आ गए। "शम्भू कहा है?" "ऑफिस गए है" बहू ने कमरे से जवाब दिया। शाम को लौटने पर उन्होंने शम्भू को अपने पास बुलाकर कहा- "बह...
संवेदना
लघुकथा

संवेदना

माधवी तारे (लन्दन से) इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ट्रिंग-ट्रिंगsss मोबाईल की रिंगटोन बज रही थी। रखमा की राह देखते-देखते घर के आवश्यक कार्य सम्पन्न कर प्रतिभा जरा-सी लेटी ही थी। ढेरे सारे काम अभी अधूरे थी। 'बाद में देखूँगी'- कहकर आराम करने के मूड में थी वह, पर दीर्घ काल तक बजती रिंगटोन ने हैरान कर दिया। फोन उठाना ही पड़ा। हैलो !! कौन बोल रहा है? आवाज अपरिचित-सी लग रही थी। मैं बोल रही हूँ मैडम! रखमा बाई की बड़ी बेटी हूँ। क्या कहना है? मॅडम जी! आज सवेरे मम्मी फिसलकर गिर गई है। उसके पैर में फ्रैक्चर हुआ है। उसे मैं सरकारी अस्पताल में प्लास्टर लगाने के लिये ले आयी हूँ। आधी-अधूरी बेहोशी की अवस्था में उन्होंने मुझे सिर्फ आपके घर में यह बात सूचित करने को कहा है। अरे, भगवान! ये कैसी आफ़त आन पड़ी है? अब क्या करूं? काहे का आराम? उठ जाओ, अधूरे सारे काम मुझे ही पूर्ण करने हैं। घर क...
घर वापसी
लघुकथा

घर वापसी

मनोरमा पंत महू जिला इंदौर म.प्र. ******************** "रमाकांत जी ! यहाँ से जाने के बाद हमें भूल तो नहीं जाओगे"? अरे ! कैसी बात करते हैं आप? बीच बीच में आप सब से मिलने आता रहूँगा। आज पूरे पाँच वर्षों बाद रमाकांत जी का पोता उन्हें लेने आया है, एक-एक दिन गिन रहे थे आखिर वह दिन आ ही गया। संगी-साथी छेड़ते रहते थे "अरे यार ! स्वीकार कर लो वृद्धाश्रम को, यही हम लोगों का घर है।" पर वे कहते रहे- न वह आवेगा जरूर। मृदुभाषी रमाकांत जी ने सबको बतलाया था कि बहू बेटा सड़क दुर्घटना में मारे गये, पोता नवोदय विद्यालय के होस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहा है। उसको मैंने समझाया था- "कि तू पढाई पूरी कर, कुछ बन तब तक मैं वृद्धाश्रम में रह लूँगा।" आज वह एक अच्छी नौकरी कर रहा है, उसने मुझसे वायदा किया था कि नौकरी लगते ही वह मुझे लेने आ जाऐगा, और वह आ गया" कहते कहते खुशी से रमाकांत जी का गला रूद्...
वो प्यारी सी मुस्कान लिए
लघुकथा, सत्यकथा

वो प्यारी सी मुस्कान लिए

स्वप्निल जैन छिन्दवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** दीवाली के कुछ दिन बाद की बात है, मैं अपनी दुकान पर बैठा था, तभी कुछ ९-१० साल की उम्र के आस-पास की वो प्यारी सी मुस्कान लिए दिल में कुछ अरमान लिए हाथों में सिर्फ हां सिर्फ दो गुब्बारे लिए मेरे पास आई। मैंने पूछा हां बेटा बोलो, वो बिटिया बोली भैया मेरे गुब्बारे खरीद लो, मुझे जरूरत नही थी बलून की पर वो मासूम सी बच्ची निरास स्वर में उम्मीदों से बोली थी, उस समय तो मै सोच में पड़ गया कि इस बच्ची को क्या कहूँ। फिर आखिर मैंने उससे पूछ ही लिया बेटा क्या आप पढ़ाई भी करते हो, वो बोली नहीं मुझे खाने के लिये गुब्बारे बेचने जाना होता है, उस मासूम की इतनी बातें सुनते ही मेरा हृदय पसीज सा गया मैंने एक पल भी देर ना कि और उस बच्ची के दोनों गुब्बारे खरीद लिये, उसका चेहरा मंद-मंद खिल सा गया। वो प्यारी सी मुस्कान लिए कुछ बोली, भैया यदि आपके पा...
स्वर की मधुरता
लघुकथा

स्वर की मधुरता

कीर्ति मेहता "कोमल" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** १० साल की आरिया काफी समय बाद आज अपने कमरे की खिड़की से, अस्ताचलगामी सूर्य की लालिमा से रक्ताभ हुए आकाश में पंख पसारे पक्षियों की चहचहाहट को केवल महसूस कर पा रही थी। ४ महीने पहले "कनेक्टिव टिशु डिसऑर्डर" नाम की बीमारी ने उसकी सुनने की क्षमता को छीन लिया था। आरिया मतलब मेलोडी माने स्वर की मधुरता। ४ साल की उम्र से ही आरिया का संगीत में रुझान था। जब उसकी उंगलियां गिटार पर चलती और खनकती आवाज़ में वो कोई गाना गाती तो लोग अपनी सुध बुध भूल जाते। संगीत के प्रति उसका लगाव धीरे-धीरे उसका जुनून बनने लगा था, उसका सपना था कि एक दिन वह एक मशहूर सिंगर बनेगी। लेकिन आज पक्षियों के कलरव ने उसे आशा की नई किरण दी थी। धीरे-धीरे आरिया में आत्मविश्वास बढ़ने लगा, क्या हुआ अगर वो सुन नहीं सकती थी, उसने संगीत को महसूस करना शुरू कर ...
सुंदर
लघुकथा

सुंदर

निरुपमा मेहरोत्रा जानकीपुरम (लखनऊ) ******************** पार्टी में रंग बिरंगे परिधानों में गहरे श्रंगार करे दादी की सहेलियों को देख आशू ने अपनी साधारण सी दिख रही दादी से कहा, "दादी, आपकी सब सहेलियां कितनी सुंदर लग रही हैं, आप उतनी सुंदर नहीं हैं।" अपने आठ वर्षीय पोते की बात सुन कपिला मुस्कुरा दी, कैसे वह इस बच्चे को बताए कि ये सब गाढ़े श्रंगार करके अपनी असली उम्र को छिपाने का प्रयास कर रही हैं। उसी रात में आशू के साथ टहलते समय ठंड से ठिठुरती एक गरीब वृद्धा को देख कपिला ने अपना शॉल कंधे से उतारकर उसको उढ़ा दिया। वृद्धा अत्यंत प्रसन्न होकर बोली, "बेटी, तू बहुत सुंदर है।" आशू ने अपनी दादी के चेहरे की ओर देखा, उसे अपनी दादी बहुत सुंदर लग रही थीं। परिचय :- निरुपमा मेहरोत्रा जन्म तिथि : २६ अगस्त १९५३ (कानपुर) निवासी : जानकीपुरम लखनऊ शिक्षा : बी.एस.सी. (इलाहाबाद वि...
नेहानुबन्ध
लघुकथा

नेहानुबन्ध

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** प्रेम की लंबी उम्र बहुधा उसकी निस्वार्थता पर निर्भर करती हैं। मधु जब अपने बाबुल का अंगना छोड़ पी की देहरी आई तो मन मे एक दृढ़ संकल्प तो था पर एक अनजान सा भय मिश्रित आनंद भी था। बचपन से सौतली माँ के कठोर सानिध्य में पली मधु ने कष्टो व दुखो को बहुत नजदीक से देखा था। बात बात पर पिटना, भूखे ही सो जाना आदि की तो मधु को खूब आदत थी। पर कितनी भी कठोर क्यों न हो, मधु अपनी मां को हृदय से चाहती थी। ससुराल में तो धन दौलत वैभव सब कुछ मधु को मिल गया था। पर मधु माँ को नही भूल पाई थी। ससुराल में सिर्फ उसके ससुर और पति बस दो ही लोग थे। विवाह के लगभग एक साल बाद मधु के पिताजी यकायक चल बसे। घर का सारा काम मधु से करवाने वाली मां पर मानो वज्रपात पड गया। दुकान बंद हो गई और कुछ ही दिनों में खाने के लाले पड़ने लगे। मां को रह-रह कर अपनी सौत...
पितृ देव
लघुकथा

पितृ देव

जनक कुमारी सिंह बाघेल शहडोल (मध्य प्रदेश) ******************** बेटी तुम सो रही क्या? एक हट्टा-कट्टा कद्दावर पुरुष श्वेत वस्त्रधारी, लम्बी श्वेत कपसीली दाढ़ी और सिर में बड़े-बड़े सफेद बाल, निर्मल छवि देख विनीता अचकचाकर उठ बैठी। उस महापुरुष के मुखमंडल पर ऋषि-मुनियों की तरह आभा झलक रही थी। विनीता चरण स्पर्ष करते हुए बोली-बाबा आप यहां ! बाहर कोई नही है क्या? बाबा जी आप यहां आने का कष्ट क्यों किये। मै वहीं आ जाती। नही बेटी-मुझे तुमसे ही मिलना था इसलिए मैं उधर गया ही नही। सीधे यहीं चला आया। अच्छा ! कहिए ! मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूँ। बेटी ! मैं बस यही कहने आया हूँ कि अब पितृ पक्ष आ गया है। लोग श्राद्ध के बहाने अनेकों तरह के दिखावे और भुलावे में आ जाते हैं। कम से कम पांच-सात पंडितों को आमंत्रित करेंगे। घर परिवार या दोस्तों को बुलाएंगे। एक वृहद भोज का आयोजन होगा। ऐसा लगेगा जैसे कोई जलस...
धोखा
लघुकथा

धोखा

महिमा शुक्ल इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** रमा और राज साथ ही पढ़ते थे, रमा उसकी लच्छेदार बातों पर खूब हँसती जल्द ही बीस साला प्यार के गिरफ्त में आ गए दोनों। कस्मे-वादों की फेहरिस्त भी बना ली दोनों ने। रमा ने उसे अपना सब कुछ मान लिया, राज पर ऐतबार उसे इतना कि एक दिन घर से चुपचाप उसके साथ चल दी, सब कुछ छोड़-छाड़ कर अपना अशियाना सजाने के लिए। प्यार में डूबे दोनों ने रजत के एक दोस्त के यहॉँ पनाह ली। सपनों में खोयी रमा को अपना घर बनाने की तमन्ना थी, दो दिन बाद ही रमा बोली अब आगे? चलें कहीं और? नौकरी करनी होगी वरना कैसे चलेगा काम? रजत ने लापरवाही से कहा क्या जल्दी है? अभी आराम से रहो रमा ने फिर पूछा "पैसे कहाँ से आएंगे जो मैं लायी थी वो ख़त्म हो गए" अब रजत झटके से तुरंत बोला ये है ना सुरेश ये देगा। रमा को शंका होने लगी अरे तो चुकाओगे कैसे? रजत ने धीरे से कहा तुम चुकाओ...
दया भावना
लघुकथा

दया भावना

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** कड़ाके की ठंड में लोग घरों में दुबके बैठे थे गली मोहल्ले में इक्का-दुक्का लोग ही दिखाई दे रहे थे। एकाएक सड़क पर भजन गाने की आवाज सुन मेरे नव वर्ष के पोते ने खिड़की से झांक कर देखा उसे भजन गाने वाला एक भिकारी दिखाई दिया जिसके तन पर केवल एक फटा कंबल और कंधे पर एक झोला लटका दिख रहा था। वह दुनिया से बेखबर अपने में मस्त भजन गाता चला जा रहा था ना किसी से आशा ना ही मन में कोई इच्छा थी। हम सब अपने सुबह के कामों में व्यस्त थे पोते ने उसे अपने घर के आंगन में बुलाया और बिठा कर दो क्या हुआ दादी के पास आकर बोला दादी दादी बाहर एक भिखारी बैठा है क्या मैं उसे अपना छोटा कंबल ओढ़ने के लिए दे दूं। उसके पास फटा कंबल है थारी बोली तुम्हारा कमल बहुत छोटा है तो मेरा बड़ा कंबल उसे दे दो पोता ध्रुव मां से बोला मां उसे कुछ खाने को दोगी क्या...। बेचारा ...