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आंचलिक बोली

जाड़ के दिन आगे
आंचलिक बोली

जाड़ के दिन आगे

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) कथरी कमरा साल ओढे लदलद जाड़ जनावय जी सरसर सरसर हवा धुकत हे जाड़ के दिन आगे जी अघन पुश के जाड़ म संगी दांत हर कटकटाथे जी मुहु डहर ले कुहरा निकले गरम जिनिस सुहाथे जी सांझा बिहिनिया सित बरसे घाम तापे बर जिवरा तरसे चारो कोती कुहरा छागे जाड़ मा सब मनखे जडा़गे बार के अंगेठा अउ भुर्रि ला मनखेमन आगी तापे जी सेटर मफलर साल ओढ़े गोरसी मा आगी तापे जी जेन घाम हर गरमी म सबो ला टोरस लागय जी आज जाड़ म उही घाम हर सबो ला घाते सुहावय जी परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।...
जय गंगान
आंचलिक बोली, गीत

जय गंगान

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी - बसदेवा गीत) मोर अन्नपूर्णा महतारी ये घर म नरवा घुरवा अऊ बारी हे ईहे हमर चिन्हारी हे जय गंगान... सेवा जेन तोर करें किसान अऊ तैय बनाय ओला सुजान छत्तीसगढ़ के मै करव बखान बिना गुरु नई पावय ज्ञान जय गंगान... भारत माता के गोड़ के पहिरे छाटी अव अऊ ईहे के धुर्रा माटी हव लईका मन के खेले गुल्ली-भंवरा बांटी अव जय गंगान... चंदखुरी छत्तीसगढ़ के बढाथे मान कौशल्या माता जनम भूमि ये हर आय प्रभु राम इहां के भांचा कहाय जय गंगान... धन्य हे राजिम दाई मोर 'भाट' हाथ जोड़ करें बिनय ये तोर माघ पुन्नी परब म मेला भराय साधु संत नहाय बर आय सब मनखे मन दुःख बिसराय छत्तीसगढ़ प्रयागराज तैय ह कहाय जय गंगान... छत्तीसगढ़ के मै करव बखान मिरजूर के रईथे लईका अऊ सियान मुड़ म पागा बांधे किसान अर्रे भटके ल पहुना ...
भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत
आंचलिक बोली

भइया की सारी- भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** ( भदावरी बोली में एक श्रृंगार गीत ) (एक भाभी अपने देवर के साथ अपनी छोटी बहन की शादी कराना चाहती है। वह अपनी दीदी की ससुराल में आई हुई है। उसका सौन्दर्य और अदाएँ देखकर बूढ़े लोग भी विचलित हो उठे हैं। उसकी बहन को भी अपनी दीदी का देवर अच्छा लगता है और देवर को भी भाभी की बहन बहुत अच्छी लग रही है। भाभी अपनी बहन को सीधी गाय और देवर को मजाक में लपका कहती है। देवर भाभी का चुटकी भरा काव्य संवाद भदावरी बोली में पढ़िए।) भइया की सारी का आई सूखी नस हरियाई। फटि सी परी उजिरिया मानो अँधियारे में भाई।। बिना चोंच मारी तोतन की सपड़ी सी पकि आई। बूढ़न तक के होश मचलि गए , देखि अदा अँगड़ाई।। देउर के लखि हाल लालसौं पूछि उठी भौजाई। खुलि कें कहौ लालजी मेरे, मंशा कहा तुमाई।। तुम मेरे इकलौते देउर, चिन्ता हमें तुमाई।। तुम तै...
करिया अउ वोखर रूख
आंचलिक बोली, कविता

करिया अउ वोखर रूख

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) करिया ल बनेच रिस आगे, ओखर तत घलो छरियागे, मोर लगाय रूख ल काट के कोन लेगे, मोर हिरदे ल बड़ दुख देगे, मोर कइ पीड़ही बर छैंहा बनाय रहेंव, सुखी रही संहंस लिही तेखर जोगाड़ जमाय रहेंव, लइका ह इसकुल ले घर आके बताइस, के गुरूजी कहे हे एक ठन रूख अपन दाई के नांव म लगाबे, पानी पलो के वोला बड़का बनाबे, करिया अकचका गे, सुन के झंवुहागे, खटिया म बइठे रहिस त नइ गिरीस, पानी ठोंके म संहंस हर फिरिस, अब आन संग अपन आप ल कइसे समझावां, अपन पीरा ल काला बतावां, जब पइसा वाला मन दोगलाई म उतर जाथें, त हमर अस गरीब के जंगल ल कटवाथें, हमर पुरखा मन अपन महतारी भुंइया के हरियर रूख ल कभु नइ काटिन, ए जंगल ह हमर दुख दरद ल बांटिन, फेर कथनी करनी के फेर ल देखव तमनार अउ हसदेव जइसन जंगल के हजारों लाखों पे...
ददा के कदर कर लव
आंचलिक बोली, कविता

ददा के कदर कर लव

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी रचना) जइसे मैं हर थोरकुन रिसहा गोठ कहेंव मोर लइका फुस ले रिसागे, ओखर अक्कल के कोनो तिर घिसागे, दिन भर घर म आबे नइ करय, घर के चुरे भात साग खाबे नइ करय, दिन भर ऐती ओती छुछवावय, मोला देख मुंह अंइठ रिस देखावय, मैं अड़बड़ परेसान, का होही सोच सोच हलकान, के ए हर कब तक बइठ के खाही, अपन जिनगी चलाय बर कब कमाही, अभी के संगी संगवारी ल देखत हे, आघु चल के का होही नइ सरेखत हे, ओखर कइ झन संगी मन घर चलात हे, बिहान होत बुता म लग जात हे, रात दिन के पइसा उड़ाइ ओ दिन सटक गे, जब दु सौ रूपिया कमाय खातिर दिन भर के मेहनत म संहस अटक गे, एके दिन के बुता म कुछु समझ नइ आही, पइसा बचाय अउ उड़ाय के फरक चार महीना कमाय के बाद जान पाही, ददा के जिंयत ले सगरो सुख संसार हे, बाप के सीख ल मान लौ बेटा होव...
दुर्गा दाई
आंचलिक बोली, कविता

दुर्गा दाई

प्रीतम कुमार साहू 'गुरुजी' लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** सगा बरोबर तँय ह दाई आथस चइत कुंवार म चउँक पुरा के दियना जलाएँव गली खोर दुवार म !! नव दिन बर तँय आथस दाई करके बघवा सवारी संझा बिहिनिया तोर सेवा गावंय जम्मों नर-नारी !! कुंवार महीना बड़ मन भावन पाख़ हवय अंजोरी जग-मग जग-मग जोत जलत हे दाई तोर दुवारी !! नाक म सुग्घर नथली सोहे अउ पऊरी पैजनिया माथ म चमकत तोर टिकली, कनिहा म करधनिया !! तँय दुर्गा तँय काली कहावस तही हर खप्पर धारी दानव मन के नास करइया जय हो दुर्गा महतारी !! हाथ जोर के बिनती करत हँव सुन ले मोर महमाई भगतन मन के भाग जगादेय झोली ल भर दे दाई !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू, गुरुजी (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गजानंद स्वामी
आंचलिक बोली, भजन

गजानंद स्वामी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी रिद्धी सिद्धि के तै स्वामी, तोरेच गुन ल गावत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो,पँवरी म माथ नवावंत हँव !! हे गणपति, गणनायक स्वामी, महिमा तोर बड़ भारी हे ! माथ म मोर मुकुट सजत हे, मुसवा तोर सवारी हे !! साँझा बिहिनिया करँव आरती, लडवन भोग लगावंत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! माता हवय तोर पारबती अउ पिता हवय बम भोला ! दिन दुखियन के लाज रखौ, बिनती करत हँव तोला !! पान-फूल अउ नरियर भेला, मै हर तोला चघावंत हँव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! अंधरा ल अखीयन देथस अउ बाँझन ल पुत देवइयाँ बल,बुद्धी के तै हर दाता, सबके बिगड़े काम बनइयाँ !! हे गणराज, गजानंद स्वामी मै हर तोला मनावंत हव ! सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! परिचय :- प्रीतम कुमार साह...
तीजा के तिहार
आंचलिक बोली, कविता

तीजा के तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) आवत होहीं गियाँ ओ, मोर भाई, ददा मन लेवाए ल। पोरा अउ तीजा के तिहार म, मइके जाहूँ मनाए ल।। मने-मन कुलकत हँव, फुरफुंदी बनके उड़ावत हँव। कपड़ा ल जोर डारेंव, बिहनिया ले सोरियावत हँव।। घेरी-बेरी निकल के देखत हँव, गली-खोर, अँगना म। बारह महीना के परब ए, बंधागेंव मया के बंधना म।। दाई के मँय ह दुलौरिन बेटी, ददा के सोनपरी आँव। भाई के मँय ह मयारु बहिनी, परुवार के जुड़ छाँव।। डेहरी म खड़े हे मोर बाबू, ए दे आगे मोला लेगे बर। जावत हँव लइका मन ल धरके, ए जी संसो झन कर‌।। भात रांध के तंय खाबे, हरिबे घर-कुरिया म अकेल्ला। कहूँ मोर सुरता आही त, ससुरार भागत आबे पल्ला।। बड़े किसान के तंय बेटा, बइला मन ल सुग्घर सजाबे। बइला दउँड़ खेल म जीतके, बइला के आरती उतारबे।। दीदी अउ बहिनी मन संग, सुख-दुख के गोठ गोठियाहूँ। माथा ...
तिहार तीजा पोरा
आंचलिक बोली, कविता

तिहार तीजा पोरा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता भादों महीना के तिहार तीजा पोरा! दाई, बहिनी मन ल रहिथे अगोरा! बछर म आथे बेटी माइ के तिहार, मइके जाए के करत रहिथे जोरा!! बरसत पानी करिया बादर छाय हे! भाई ह बहिनी ल तीजा ले आए हे! दाई के मया अउ ददा के दुलार ल, ठेठरी, खुरमी संग म धर के लाए हे!! भाई ल देख के बहिनी मुसकावत हे! मने मन म मइके ल सोरियावत हे! ले अब सुरु होगे तीजा के तियारी हे, गुलगुला भजिया, अइरसा बनावत हे!! मइके आके सुख दुख गोठियावत हे! जम्मों तिजहारिन करू भात खावत हे! नीरजला उपास रहे जम्मों उपासनिन, भोला शंकर कना माथ ल नवावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
राखी तिहार
आंचलिक बोली

राखी तिहार

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता भाई बहिनी के सुग्घर मया दुलार! आगे संगी राखी पुन्नी के तिहार!! भाई हर बहिनी के करत हे अगोरा! बहिनी हर राखी के करत हे जोरा !! भाई के मया बहिनी ला बलावत हे!! राखी बांधे के बहिनी सुध लमावत हे! लाल, हरियर, न पिऊरा राखी बिसावत हे! भाई-बहिनी के मया पलपलावत हे!! गुलाल, चंदन ले बहिनी थारी सजाइस! आरती उतार के चंदन चोवा लगाइस!! राखी पहिरा के मिठाई ल खवावत हे! बहिनी हर भाई ले आशीर्वाद पावत हे!! राखी तिहार ला जूरमिल मनावत हे! सुख दुख के गोठ ल गोठियावत हे!! बहिनी कहिस चल मोला घर जाना हे! अवइया बछर लहूट अउ आना हे…!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित ए...
जंगल राज
आंचलिक बोली, कविता

जंगल राज

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) शेर ह बनके महाराजा, जनता मन ल डहे ल धरलिस। तुमन ल जियन नइ देवंव, उबक के कहे ल धरलिस।। कोने भड़कावथे तोला, काखर बात-बिगित ल माने हस। जातरी आ गेहे तोर परबुधिया, बर्बाद करे बर ठाने हस।। बंद कर दिस स्कूल ल, कहिथे पढ़-लिख के का करहू। अदि शिक्षा पा जहु त, अपन अधिकार बर तुम लड़हू।। नौकरी नइ खोलत हे एकोकनिक, बेरोजगार हें परेशान। पढ़त-पढ़त कई साल बितगे, बुढ़वा होगें हें नवजवान।। जीवन भर सेवा देवइया मन ल, नइ मिलय जुन्ना पेंशन। सेवानिबृत्त होय म कुछु नइ मिलय, फेर बुता के हे टेंशन।। गरीब के घर बिजली नइ जलय, जलही कंडिल, चिमनी। छूट नइ मिलय बिजली बिल म, नगतहा पईसा ह बढ़ही।। खुलगे दारु भट्ठी संगवारी हो, पियव मन भर के सब दारु। समाज हो जय भले खोखला, नाचव अउ गावव समारु।। लुट मचे हे जंगल राज म, जनत...
छत्तीसगढ़ के पहली तिहार
आंचलिक बोली, कविता

छत्तीसगढ़ के पहली तिहार

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) खेत-खार दिखे हरियर-हरियर रँग, डीह अउ डोंगर म पानी के बहार हे। नरवा अउ नदिया उलानबादी खेलँय, जम्मों कोती हरियाली के उछाह हे।। मेचका मन बजाथें मांदर, गुदुम बाजा, केकरा मन बजाथें सुलुड अउ बसुरी। जलपरी मछरी मन नाचँय मगन होके, पिरपिटीया साँपिन चुप देखथे बपुरी।। बनिहार मन गावत हें ददरिया गीत, बबा ढेरा चलावत गावत हे आल्हा। सुआ अउ मैना मया के गोठ गोठियाथें, कारी कोइली चिरई रोथे बइठे ठल्हा।। गाँव ल बाँधे बइगा करके जादू-टोना, लोहार ह चौंखट म खीला ल ठोंकथे। सियारी फसल म रोग-राई नइ होवय, यादव मन लीम डारा ल घर म खोंचथें।। छत्तीसगढ़ के पहली तिहार हरेली, सावन महिना म किसान मन मनाथें। नाँगर, हँसिया, कुदरी के पूजा करँय, लइका मन बाँसिन के गेड़ी खपाथें।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी : मुंगेली, (छत्तीस...
सावन महीना
आंचलिक बोली, कविता

सावन महीना

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ल भावत हे! हरियर-हरियर खेत दिखत हे कोयली गीत सुनावत हे !! झरझर-झरझर पानी गिरइ तरिया डबरी लबलबावत हे! खोचका, डबरा पानी भरगे मेचका हर घलो मेछरावत हे !! किसानमन के दिनबादर आगे किसानी गोठ गोठियात हे! करे बियासी नांगर धोवय जुरमिल हरेली जबर मनावत हे!! सावन सोमवारी रहे उपवास शिवभोला के गुण गावत हे! बेल, धतुरा, नरियर धरे शिव भोला म पानी रितोवत हे !! बोलबम के जयकारा लगावत कांवरिया मन ह जावत हे! सावन महीना बड़ मन भावन सबो के मन ला भावत हे!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप...
रुख लगावव… रुख बचावव…
आंचलिक बोली, कविता

रुख लगावव… रुख बचावव…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता रुख लगावव, रुख बचावव बारी बखरी खेत खार म, बंजर धरती अउ कछार म, जुरमिल के जम्मों संगवारी, सुग्घर रुख राई लगावव..!! रुख राई के अब्बड़ महत्ता औषधि गुन ले भरे हवय ! फर, फूल अउ शुद्ध हवा, रुख-राई ले मिलत हवय..!! रुख बिना जिनगी अबिरथा, रुख म जिनगी समाय हवय ! झन कांटो रुख-राई ल संगी, जिनगी के इही आधार हरय !! काँट काँट के जम्मों रुख राई, चातर झन कर भुइयाँ ला ! आज लगाबे ता काली पाबे, सुग्घर रुख-राई के छइयाँ ला !! रुख हावय त जिनगी हावय, सिरतोन कहे हे सियानमन ! रुख लगाबोन, रुख बचाबोन ए कसम खावव मनखेमन !! चारों कोती रुख-राई लगाके, धरती ल हरियर बनावव जी ! रुख लगाके रुख ल बचावव, ए धरती के मान बढा़वव जी!! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला...
अन्नदाता
आंचलिक बोली, कविता

अन्नदाता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता नांगर, बईला धरे तुतारी खेत खार जेकर संग वाली ! उठथ बिहनिया जावत खेत, भूख पियास हरागे चेत !! धरती ल लागिस पियास, सुन गोहार आइस आगास ! टरर-टरर मेचका नरियाय मोर, पपिहा, कोयल गावय !! गड़-गड़-गड़-गड़ बादर गरजे झर-झर-झर पानी बरसे ! हरियर-हरियर धरती होगे, तरिया डबरी लबालब होंगे !! खेत जोत के बोइस धान, धरती दाई के राखिस मान ! रेगड़ा टूटत मेहनत करथे घाम पियास सबो ल सहिथे !! जावय खेत किसनहा बेटा, धरे चतवार निकालय लेटा ! खेत जोत के फसल उगावत हरियर धरती के गुनगावत !! बन बुटा के निदाई करथे, गाय गरु ले फसल ल बचाथे ! जम्मो झन के भूख मिटाथे अन्नदाता वो हर कहलाथे !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित...
शिक्षा हर कहां जात हे
आंचलिक बोली, कविता

शिक्षा हर कहां जात हे

खुमान सिंह भाट रमतरा, बालोद, (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता जेती जाथव तेती बस ऐके ठन गोठ गोठियावत पाठशाला ह तो खुल गे संगवारी हो फेर लईका मन के पढ़े लिखे बर कापी-पुस्तक हर नई आवत हे ये सब ल देख कवि ल ईही जनावत हे लागथे अईसे की देस ह शिक्षा के दम नई चलय, ये बात ह थोरकिन सही होय कस लागत हे निशा दारू अऊ भांग म सबे झन बोहावत हे जेला देख के लईका मन ल अपन भविष्य के चिंता हर सतावत हे धीरे - धीरे शिक्षा के डोरी हर अब सरहा पेरा डोरी होय कस लागत हे तेकरे सेती लईका मन के भविष्य हर नदियां के धारे-धार कस बोहावत हे फेर हमर राज पाठ के सियान म ल ईही म अडबर मजा आवत हे तेखरे सेती पाठशाला म ताला अऊ मधुशाला ल किसम-किसम के जिनिस ले सजावत हे जेखर आंखी म करिया पटृटी बंधाएं ओहा शिक्षा के महिमा ल का जान ही थोरकुन ज्ञान ल पाय रतीस त भविष्य बर सोचतीस घलो ईहे तो अधुरा ...
छत्तीसगढ़ी भाखा
आंचलिक बोली, कविता

छत्तीसगढ़ी भाखा

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी भाखा छत्तीसगढ़ के तँय रहवईया, छत्तीसगढ़ी नइ गोठियावस अड़बड़ पढ़े लिखें हँव कहिके काबर तँय अटियाथस।। अपन बोली, अउ भाखा बर, काबर मरथस् लाज सरम छत्तीसगढ़िया तँय संगवारी कर ले सुग्घर बने करम।। अपन भाखा ल छोड़ के पर के भाखा गोठियावत हस छत्तीसगढ़ी बोली भाखा के तनिक गुन नइ गावत हस।। अपन राज, अपन भाखा के जम्मों झन राखव मान जी छत्तीसगढ़ी बोली भाखा इहि भाखा हमर पहिचान जी।। हमर भाखा छत्तीसगढ़ी संगी, सबों भाखा ले बढ़िया जी तभे तो कहे जाथे संगी, छत्तीसगड़िया सबले बढ़िया जी।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
पढ़े ला जाबो ना
आंचलिक बोली, कविता

पढ़े ला जाबो ना

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी बोली) चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना। अपन जिनगी ला अब गढ़े ला जाबो ना।। खुलगे जम्मों स्कूल, हो जा तंय तियार। धरले तंय हा बस्ता, गियान के उजियार।। सिकसा के सीढ़िया मा चढ़े ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। नवा किरन के संग मा, नवा होही अंजोर। पढ़ईया लईका मन ले, चमकही गली-खोर।। लक्ष्य अउ मंजिल कोती बढ़े ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। मोरो सपना पूरा होही, तोरो सपना पूरा होही। काबिल बनबो, हमरो बर कुछु अच्छा होही।। अगियान अंधियारी ला मेटे ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। स्कूल सिकसा के मंदिर, गुरुजी रद्दा देखाही। गुरु गियान के भंडार, बिदया के शंख बजाही।। गियान, भकती के कंठी जपे ला जाबो ना। चलव-चलव संगवारी, पढ़े ला जाबो ना।। परिचय : अशोक कुमार यादव निवासी...
घाम पियास के दिन आगे
आंचलिक बोली, कविता

घाम पियास के दिन आगे

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) लकलक-लकलक घाम करत हे। घाम पियास म मनखे मरत हे। काटें काबर रुख-राई ल संगी, ताते-तात आज हवा चलत हे..!! बर पिपर के छईयाँ नंदागे । बिन छईयाँ के चिरई भगागे। आगी अँगरा कस भुइयाँ लागे, भोंमरा जरई म गोड़ भुंजागे.!! रुख राई के लगईया सिरागे। डारा पाना सबो हवा म उड़ागे। घाम पियास ले सबला बचइया, हरियर धरती घाम म सुखागे…!! जंगल झाड़ी रुख राई कटागे। तरिया डबरी के पानी अटागे। पसीना चुचवाय के दिन आगे, खोधरा छोड़ के चिरई भगागे। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्...
जंगल हमर जिनगानी आय…
आंचलिक बोली, कविता

जंगल हमर जिनगानी आय…

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) जंगल के महत्तम ल जम्मों झन जानत हव। फेर जंगल ल काटे बर लाहो काबर लेवत हव।। बेंदरा, भालू, हिरन के घर ल काबर उजारत हव। घर म गुस के, घर ले बाहिर काबर करत हव।। काकर बुध म आके तुमन जहर ल बाँटत हव। हरियर हरियर रुख राई ल काबर काटत हव।। जीव-जन्तु के पीरा तुमन काबर नइ सुनत हव। अपने मन के तुमन काबर मनमानी करत हव।। छानी म चड के तुमन काबर होरा भुंजत हव। जंगल काटे के उदिम तुमन काबर करत हव।। आवँव संगी मिल जुर के वनजीव ल बचाबोन। जिनगी के आधार जंगल के मान बड़हाबोन।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
होरी के सुरता
आंचलिक बोली, कविता

होरी के सुरता

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) आगे फागुन महीना संगी होरी के सुरता आवत हे गुदुम गुदुम ऩंगारा बाजय मन ह मोर गाँवत हे।। रंग गुलाल हाथ म धर के किसन खेलत हे होरी नाँचत गावँत अउ झुँमत हवय संग म राधा गोरी।। ललहु, हरियर अउ पिवरा स़ंग हाथ धरे पिचकारी मया पिरीत के रंग म रंगे जम्मों संगी संगवारी।। लइका, सियान, बुढ़वा जवान जम्मो डंडा नाँचत हे टोपी, चश्मा, मुखौटा पहिरे नंगत बाजा बजावत हे।। भाँग पिये मतवना खाय फागुन के गीत गाँवत हे करिया, बिलवा, ललहु दिखय, पहिचान नइ आवत हे।। परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
गड़बड़ हे भई
आंचलिक बोली, कविता

गड़बड़ हे भई

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** (छत्तीसगढ़ी कविता) छाता ओढ़ के सुरुज ल ढांकय देखव ए अत्याचारी मन, जोर जुलुम के बेवस्था ल पकड़े हावय देखव समाजिक बीमारी मन, हजारों साल के धत धतंगा करके नई अघाए हें, संकट खतरा कहि कहि के गरीब गुरबा ल सताये हें, नाक कटाय के डर नई हे कोनो नाक इंखर तो पइसा हावय, अकेल्ला रहिथंव मोर कोनो नई हे सुखाय नहीं जऊन भंइसा हावय, कुकुर बिलाई छेरी बछरू कतको के नजर म देवता आये, शरम बेच लोटा धर मांगय बइठे ठाले तीन तेलइ के खाये, हांसी आथे पढ़े लिखे मन उपर तर्क वितर्क ले दुच्छा हावय, गहना धर के मुड़ी ल अपन अनपढ़ जोगी जगा हाथ देखावय, मया पिरित नही हे देस से जेला ओहर का सियानी करही, ए डारा ले ओ डारा तक बेंदरा कस धतंग धियानी धरही, कांदी खाये पेट के भरभर पगुरा के वोला पचाही जी, चिंता फिकर का करना हे चारा दूसर लाही जी। ...
छेरछेरा : दान के परब
आंचलिक बोली, कविता

छेरछेरा : दान के परब

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता झटकुन सूपा म, धान देदे, झन कर तंय बेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। ए ओ नोनी, फईका ल खोल दे। देबे के नहीं तेला बोल दे।। कोठी ल झाँक ले। मोर मन ल भाँप ले।। काठा-पैली भर हेर-हेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। बड़े बिहनिया ले लईका मन आए। जाके घरों-घर सबला जगाए।। होगे हवन जइसे बगरे पैरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। एक खोंची, दू खोंची देदे मोला। सबे घर जाए के का मतलब मोला।। मन के बात बताहूँ, तोर मेरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। मुँह ल सुघ्घर तंय धोले। रात के बासी ल पोले।। मोला भीतरी कोती बला ले। तोर कोठी म मोला चघा ले।। जादा लालच नइहे, मोला थोरा। माँगे महूँ आए हँव टूरी ओ, छेरछेरा-छेरछेरा।। परिचय : अशोक कुमार यादव निव...
जंगल म चुनाव
आंचलिक बोली, कविता

जंगल म चुनाव

अशोक कुमार यादव मुंगेली (छत्तीसगढ़) ******************** छत्तीसगढ़ी कविता पाँच बछर बीतगे संगवारी हो, फेर होही जंगल म चुनाव। आबेदन भराय ल चालू होगे, लिखव फारम म अपन नाँव।। बेंदरा मन बने हें कोटवार, हाथ म धरे दफड़ा ल बजाथें। ए पेड़ ले ओ पेड़ म कूदके, हाँका पार-पार के बलाथें।। काली पहाड़ी म बईठक होही, सुन सियान मन सुंतियागें। हमू बनबो सरपंच कहिके, जानवर मन जम्मों जुरियागें।। शेर कहिथे-मँय जंगल के राजा आँव, अकेल्ला होहूँ खड़ा। कोन लिही मोर से टक्कर, काखर म दम हे गोल्लर सड़वा।। हाथी कहिथे-तोर कानून नई चलय, जनता के अब राज हे। जेला चुनही जनता, जीतही चुनाव, तेखर मूड़ी म ताज हे।। लेह-देह म मानगे शेर, कोन-कोन खड़ा होहव ए बतावव। का-का करहू बिकास तुमन, अपन घोसना पत्र सुनावव।। शेर छाप म शेर खड़ा होही, कोलिहा छाप म कोलिहा ह। हाथी छाप म हाथी खड़ा होही, बिघवा छाप ...
गजानंद स्वामी
आंचलिक बोली, भजन

गजानंद स्वामी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** रिद्धी-सिद्धि के तै स्वामी, तोरेच गुन ल गावत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! हे गणपति, गणनायक स्वामी, महिमा तोर बड़ भारी हे माथ म मोर मुकुट सजत हे, मुसवा तोर सवारी हे !! साँझा बिहिनिया करौव आरती, लाड़ु भोग लगावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! माता हवय तोर पारबती अउ पिता हवय बम भोला दिन दुखियन के लाज रखौ, बिनती करत हँव तोला !! पान, फूल अउ नरियर भेला, मै हर तोला चघावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! अंधरा ल अखीयन देथस अउ बाँझन ल पुत देवइयां बल, बुद्धी के तै हर दाता, सबके बिगड़े काम बनइयां ।। हे गणराज, गजानंद स्वामी मै हर तोला मनावंत हँव सजे सिहासन आके बइठो, पँवरी म माथ नवावंत हँव !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्ष...