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कविता

निज हित के प्रयास भुलाकर
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निज हित के प्रयास भुलाकर

तनेंद्रसिंह "खिरजा" जोधपुर (राजस्थान) ******************** निज हित के प्रयास भुलाकर, निज प्राणों से ऊपर उठकर जो देश के हित सब करते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! तीक्ष्ण धूप में, शीत- धार में घोर बसंत में, सूखे पतझड़ कदम बड़े जो धरते हैं वो वीर भला कब मरते हैं! काल के बादल छा जाने से ग़म का तम सब छाया है ये मत सोचो क्या- क्या खोया ये सोचो क्या पाया है अभिनव भारतवंश के बेटे सूर कभी नहीं डरते हैं वीर भला कब मरते हैं! भारत मां के कण- कण मिलकर सृष्टि खुद कर जोड़- जोड़कर मुख से मधुर सा गान करेगी रावत पुष्प के नाम करेगी देश के खातिर सबकुछ तज दो दिल- मस्तक में ये समर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे बिपिन सिंह रावत अमर रहे परिचय :- तनेंद्रसिंह "खिरजा" निवासी : ग्राम- खिरजा आशा, जोधपुर प्रांत, (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक (विज्ञान वर्ग) जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय ...
तुम चाँद हो पूनम का
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तुम चाँद हो पूनम का

अशोक पटेल "आशु" धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** तुम चाँद हो पूनम का मैं तेरा ही चितचोर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा... तुम सावन की फुहार हो मैं प्यासा उमस का थार हूँ तुम शीतल ठंडी बहार हो मैं पतझर का तलबगार हुँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम बाग के खिलते फूल हो मैं मंडराता बांवरा भ्रमर हूँ, तुम सुरभित फुल बयार हो मैं प्रतिक्षित राही डगर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तुम उषा सिंदूरी लाली हो मैं आतुर दिवस वासर हूँ। तुम सुनहरी लाली आभा हो मैं तुमसे ही होता उजागर हूँ। तुम चाँद....मैं तेरा.. तेरे बिना मेरा कुछ नही है तू तो मेरा सर्वस्व संसार है तू ही आसरा तू ही आधार है तुमसे जीवन ये खुशगवार है परिचय :- अशोक पटेल "आशु" निवासी : मेघा-धमतरी (छत्तीसगढ़) सम्प्रति : हिंदी- व्याख्याता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्...
समझो द्वारे पर है बसन्त
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समझो द्वारे पर है बसन्त

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** मद्धिम कोहरे की छटा चीर पूरब से आते रश्मिरथी के स्वागत में जब गगनभेद कलरव करती खगवृन्द पँक्ति के उच्चारण खुद अर्थ बदलने लगते हों, जब मौन तोड़ कोयलें बताने लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। उनमुक्त प्रकृति की हरियाली सर्वथा नवीना कली-कली कदली जैसी उल्लासमई सुषमा बिखेरती नई नई विटपों से लिपटी लतिकाएँ आलिंगन करती लगतीं हों, शाखें शरमाईंं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब सघन वनों के बीच हवन में सन्तों की आहुतियों से उठ रहे धुएंँ को मन्द-मन्द मन्थर गति से ले उड़े पवन फिर बिखरा दे ताजगीभरी तरुणाई को कुछ बीज मन्त्र शुचिताएँ छाईं लगतीं हों, समझो द्वारे पर है बसन्त।। जब रंग बिरंगे फूलों की मदमाती झूमा झटकी लख खिलखिला उठे सौन्दर्य स्वयं हो जाए मनोहारी पी पल हर दृष्टि सुहानी सृष्टि द...
कुसुम केसर चंदन से
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कुसुम केसर चंदन से

डॉ. भगवान सहाय मीना जयपुर, (राजस्थान) ******************** कुसुम केसर चंदन से, अभिनंदन नव वर्ष। शुभ यश जीवन में मिलें, मंगलमय अति हर्ष। अक्षत रोली हाथ में, सजा लिया है थाल। तिलक करूं मैं हर्ष से, नई साल के भाल। नूतन वर्ष शोभित हो, सदा सदी के भाल। नई सुबह की नव किरणें, चमक रही है लाल। अभिनंदन नववर्ष का, नव उमंग के साथ। लेता नव संकल्प मैं, आज उठाकर हाथ। नव किरण नव उजास में, पोषित हो नव भोर। नव वर्ष में दूर रहें, यह संकट अति घोर। कागज़ कलम दवात से, सपने लिखता रोज़। नये साल से आरज़ू, मेरे करदे काज। सदा सुखी इंसान हो, मिटे विषाणु रोग। मंगल गायन यूं करें, नये साल में लोग। जीव जगत में खुशी मिलें, हर्षित हो चहुॅं ओर। पग पग नृत्य लोग करें, मस्त रहें हर छौर। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ अध्यापक राजस्थान सरकार) निवासी : बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, राजस्थान ...
वक़्त का वक्तव्य
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वक़्त का वक्तव्य

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त का वक्तव्य तो सौभाग्य से असीम अनुभव दे गया संवाद समय का समन्वय ही चुस्त बना देता बुजुर्गों को। सदा ही सुनते कि बुढापे में स्मृति व्यवधान आ जाता है हालातों से बचाव भाव ही मजबूर बनाता है बुजुर्गों को। रुचिकर ज्ञान ध्यान मान में अतीत का अनुभवी जीवन व्यथित व्यवस्था में नए ढंग उत्साहित करता बुजुर्गों को। कष्ट अनेक वृद्धावस्था में, कुछ जज़्बात भी साथ होते हैं एहसास करने का स्वभाव ही, खुशियां देता बुजुर्गों को। माना जरावस्था में सुनने की शक्ति भी क्षीण हो जाती है ऊंचे स्वर बिना भी सहज संवाद सुनाई देता बुजुर्गों को। निज सेवा आदत जिनकी ना रही हो वृद्धों की जिंदगी में सिर पैर कमर में हल्का दबाव सुकून दे जाये बुज़ुर्गों को। वाह वाह, जय हो, आनंद आ गया वाली जब बोली सुनो जैसे दुखती हुई रगों में आराम पहुंचा हो अब बुजुर्गों...
सर्दी की सरकार
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सर्दी की सरकार

आशीष कुमार मीणा जोधपुर (राजस्थान) ******************** ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। जिसकी चलती थी हुकूमत हौसले अब पस्त हैं। देर से आता है सूरज जल्दी होता अस्त है। छुपता, छुपाता खुद को जैसे गुनाहगार है। ओढ़कर .... बेवजह चिढ़ती थी जो दुपहरी उन दिनों सूखते थे पेड़, पौधे होठों पर बस प्यास थी हर तरफ है हरियाली बिखरी अब बाहर है। ओढ़कर.... ओस से भीगे हैं पत्ते बारिश का अहसास है फूल,कलियां भीगें हैं जैसे आया मधुमास है। कोहरा ठहरा है जैसे सर्दी ने रखा पहरेदार है ओढ़कर.... ठिठुरते हाथ लेकर संध्या रात में समा गई तारों की बारात लेकर रात है अब आ गयी सूनी हों हर गलियाँ, राहें सबको खबरदार है ओढ़कर आँचल रहो अब सर्दी की सरकार है। परिचय :- आशीष कुमार मीणा निवासी : जोधपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
नशा
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नशा

डॉ. कुसुम डोगरा पठानकोट (पंजाब) ******************** बुझ गए घरों के घर जो नशाखोरी ने कहर ढाया है उस गरीब मां का सीना जो इसने अपनी आग से जलाया है मत पूछ जो जिंदा लाश दिख रही उस बाप ने जो कमाया है खर्च दिया बच्चे की इस लत पर जो भी जीवन में कमाया है रात रात भर नयनो को जिसने पत्थर के जैसा बना डाला उस अर्धांगिनी ने अपने ह्रदय का जज़्बात ना जाने कहां बुझा डाला ना सोई ना जागृत अवस्था में उसने कोई सपना संजोया है मार दिए सभी दिल के अरमान जिसने कभी मन नहीं खोला है बच्चों को बढ़ते देख कर अपना गौरव था उसने कायम किया वो नशे की लत ने दस्तक देकर मिट्टी में जाकर रोल दिया ना जाने... ना जाने कब नशे की लपटों से देश हमारा बच पाएगा नौजवान हमारा बच पाएगा... परिचय :- डॉ. कुसुम डोगरा निवासी : पठानकोट (पंजाब) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी ...
गुरु की महिमा
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गुरु की महिमा

डॉ. वासिफ़ काज़ी इंदौर (मध्य प्रदेश) ********************** ज्ञान गुरु के बिना नहीं, गुरु की महिमा न्यारी है। रोशन है उनसे जीवन ये, बिन उनके दुनिया अंधियारी है।। गढ़ते फ़ौलाद, माटी से ये अज्ञान तमस हटाते हैं। मन की कंदराओं में गुरु, ज्ञान दीप जलाते हैं।। दिन विशेष का पर्व नहीं, जीवन भर का नाता है। गुरु की महिमा गाने में तो, जीवन कम पड़ जाता है।। परिचय :- डॉ. वासिफ़ काज़ी "शायर" निवासी : इंदौर (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हि...
चक्र
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चक्र

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चक्र चलता है चलता रहता है। लड़की लंबी और घुमावदार है फिर भी आगे बढ़ती जा रही समानांतर है आगे शायद मिलती हो पर आमने सामने नहीं इसी तरह और स्थिर व्यक्तित्व के व्यक्ति चक्र से लिपटे व्यक्ति घसीटते जाते हैं पर। चक्र के गति की भांति। कोई चलना नहीं जानता यह जानते हुए भी चलना नहीं चाहता कोई चाहता नहीं समय रूपी चक्र जकड़ना क्या कोई उसका रुख मोड़ेगा आज का व्यक्ति ऐसा करने में असमर्थ है यह जानते हुए भी कि चक्र बेजान है आगे बढ़ जाता है अपनी गति बढ़ा कर मानव को मुंह चिढ़ाते चक्र पूरी गति से कहीं दूर निकल जाता है जड होते हुए भी। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ...
बाट और बटोही
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बाट और बटोही

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सब चले हैं, सब चलते हैं, सब चलेंगे... अपनी अपनी बाट। कोई सोचता चलने से पूर्व कोई सोचता ठोकर के बाद। कोई बिछाता कंटक राह में, कोई करता कंटक साफ। राह में रोड़े,पत्थर तमाम मिलेंगे सघन झाड़ियां की उलझाहट विषैली बेलों की लिपटाहत। धूप छांव में अपनी परछाई पहचान खुद से करवाती हुई घने जंगल मे खो जाएगी । उंगली पकड़ सहारा देने वाले सिमटे हुए पीछे रह जाएंगे। कदमों मे गर ताकत होगी, सफर बाट का आसान होगा। इच्छा शक्ति से मन भरा हो तो मंजिल का दरवाजा पास होगा। अपनी बाट, अपनी हो चाल धोखा दे कोई, क्या मजाल? देखा-देखी दूसरों के कहने लगे नशे के गर्त में रहने। झूठी शान,झूठा दिखावा एकमात्र मन का बहकावा। बाट कुसंगति की अति वृथा मानव समाज से होता पृथा। समय, स्थान, स्थिति को जानो तब राह पर पग धरने की ठानो। बि...
जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई
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जिंदगी धोखा है और मौत सच्चाई

दीप्ता नीमा इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ऐसा नहीं है कि मुझे कोई दर्द नहीं होता मुस्कुराती हूँ हरदम पर साथ हमदर्द नहीं होता जिंदगी के हर मोड़ पर लोगों ने कदम रोका है, काम निकल जाने पर छोड़ा और दिया धोखा है। हमने भी अब समझ ली है दुनिया की ये रस्म अपने अफसानों की ये बना ली नज्म वफ़ा के बदले हमको मिलती है बेवफाई। जिंदगी हसीन धोखा है और मौत है सच्चाई ।। परिचय :- दीप्ता नीमा निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके...
खट्टी मीठी यादें
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खट्टी मीठी यादें

राजेन्द्र कुमार पाण्डेय 'राज' बागबाहरा (छत्तीसगढ़) ******************** वर्ष बीत गया कुछ कुछ कवड़ी मगर सच्ची यादें सब के जीवन को बदला कुछ अच्छी सच्ची बातें आहिस्ता-आहिस्ता नव वर्ष आ ही गया करें स्वागत नव ऊर्जा नव उमंग नव उत्साह संग आओ करें स्वागत कुदरत ने ये कैसा कहर बरपाया कांप उठा इंसान सांसों ही सांसों में जहर घुल गया फंस गई थी जान डर-डरकर दूर-दूर रहकर पल-पल जीता इंसान हर पल मौत का साया मंडराता था कांपता जहान क्या होगा कैसे होगा कोई ना समंझ पाता था इंसान के समक्ष सात्विक जीवन ही आधार था मौत के खौफ से सीख लिया जीने हुनर इंसान धन, दौलत सोना चांदी सब माया है समझा इंसान कुछ ऐसा शपथ लें और पूर्ण करें हम सारे वादे जिंदगी और कुछ भी नहीं केवल खट्टी-मिठ्ठी यादे लगता था जैसे सब कुछ खो जाएगा मन बेहाल जद्दोजहद थी जीवन की उतने ही था आटा दाल सम्हलकर चलना यारों जिन्द...
अभिनन्दन है, नववर्ष
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अभिनन्दन है, नववर्ष

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत पुनः, पावस वर्ष तुम्हें उम्मीदों कि, सुबह लिए खुशियों की, अद्भुत शाम लिए कुछ बेहतरीन सा, याद लिए कुछ चुनिंदे, वो फरियाद लिए बागों में, बसंत, लाजवाब लिए पल-पल की, खुशियाँ बेहिसाब लिए कई बेहतरीन, कुछ ख्वाब लिए कुछ दिलों के लिए, जज्बात लिए कुछ खास, मिलन कि, किताब लिए कुछ, बिछड़ने का, जवाब लिए अद्भुत सुन्दर सी, सुबह लिए कई खास सुहानी, रात लिए खेतों की मेड़ो पर, फिर चमक लिए फसलों में सौंधी सी, शाम लिए अभिनन्दन है, सादर अभिनन्दन स्वागत है, पावस, वर्ष तुम्हे!! परिचय : दुर्गादत्त पाण्डेय सम्प्रति : परास्नातक (हिंदी साहित्य ) डीएवी पीजी कॉलेज, बनारस यूनिवर्सिटी वाराणसी निवासी : वाराणसी घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप ...
करुणा
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करुणा

महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' सीकर, (राजस्थान) ******************** जब देखूँ उसकी दारुण दशा, हृदय में करुणा भर आती है। हमदर्दी वश रहा नहीं जाता, सदा उसकी फ़िक्र सताती है।.... फटी बंडी टूटी चप्पलों में, सर्दी गरमी सब सहता है। मन मौसकर रहता सदा, कुछ ना किसीको कहता है। जानें क्यों आँखें कतराती है, जब देखूँ उसकी दारुण ......। दो वक्त सादा खाकर भी, स्वाभिमान से वह जीता है। छल कपट से दूर रहकर भी, जीवन ना उसका रीता है। यह देख दीनता भी शरमाती है, जब देखूँ उसकी दारुण......। राष्ट्र धर्म की बातें करते, सब झूठी आहें भरते है। है फ़िक्रमंद इनका भी कोई, तो फुटपाथ पर क्यों मरते है। देख दीन दशा आँखें पथराती है, जब देखूँ उसकी दारुण.......। परिचय :- महेन्द्र सिंह कटारिया 'विजेता' निवासी : सीकर, (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह ...
वक़्त की गाड़ी
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वक़्त की गाड़ी

प्रीतम कुमार साहू लिमतरा, धमतरी (छत्तीसगढ़) ******************** वक़्त की गाड़ी है वक़्त के  साथ चलेगा ! उगता हुआ सूरज भी शाम को   ढलेगा !! ज़ख्म है जिस्म में तो मल हम भी मिलेगा ! आज है ख़ुशी तो  कल गम भी मिलेगा  !! बागों में कलिया है तो फूल भी खिलेगा ! महकेगा चमन तो कभी कांटे भी चुभेगा !! कभी जीत मिलेगा तो कभी हार मिलेगा ! कभी पतझड़ मिलेगा तो कभी बहार मिलेगा !! कर रहे हो  मेहनत  तो  फल भी मिलेगा ! दुनिया में हर समस्या का हल भी मिलेगा !! थक कर ना बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर ! आज नहीं तो कल  मंजिल  भी  मिलेगा !! परिचय :- प्रीतम कुमार साहू (शिक्षक) निवासी : ग्राम-लिमतरा, जिला-धमतरी (छत्तीसगढ़)। घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक ...
जीवन की कठिन परीक्षा में
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जीवन की कठिन परीक्षा में

प्रशान्त मिश्र मऊरानीपुर, झांसी (उत्तर प्रदेश) ******************** जीवन की कठिन परीक्षा में, अब वो ही अव्वल आएंगे। जो खुद से रोज़ लड़ेंगे अब, खुद को ही रोज हराएंगे। इसलिए कभी फूलों की खातिर, घर से नहीं निकलता हूं। कांटों की सेज बना ली है, अब कांटों पर ही चलता हूं। ये देख तमाशा दुनिया का, मैं अंदर से घबराया हूं। औरों की खातिर अपना हूं, अपनों के लिए पराया हूं। अब इस छोटे से जीवन को, तन्हां ही सही जिया जाए। औरों को खुशियां दी जाएं, अपनों का दर्द लिया जाए। मैं नहीं कभी अब रोऊंगा, ऐसा संकल्प लिया जाए। मेरी खातिर जो रोया है, खुश उसको आज किया जाए। परिचय :-  प्रशान्त मिश्र निवासी : ग्राम पचवारा पोस्ट पलरा तहसील मऊरानीपुर झांसी उत्तर प्रदेश शिक्षा : बी.एस.सी., डी.एल.एड., एम.ए (राजनीतिक विज्ञान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौ...
दहेज़ एक कुप्रथा
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दहेज़ एक कुप्रथा

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** लिखा नही इस विषय में निर्मल, लिखना बहुत ज़रूरी है सच बोलो ऐ दहेज़ लोभियों क्या दहेज़ लेना मजबूरी है? न जाने कितने ही घर बर्बाद हो रहे दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। पिता के नयनों में आंसू है, बेटी के हाथ पीले कराने में कितनों के जोड़े हाथ, पैर पड़े, शर्म आती है बतलाने में। घर गहने, खेत, खलिहान बिके इस दहेज़ की बोली में बेमौत मर रही कितनी ही बेटियाँ, बैठ न पाईं डोली में। दहेज़ लोभी समाज की हैं यह कितनी भयावह तस्वीरें बिखर चुके कई परिवार यहाँ और फूट रही हैं तकदीरें। पढ़े-लिखे, शिक्षित जवान, क्यूँ बनते आज भिखारी हो दहेज़ मांगने वालों तुम समाज की गंभीर बीमारी हो। जिस पर गुजरे वो ही जाने, बात नही है यह कहने की इतना मत माँगो दहेज़ कि सीमा टूट ही जाए सहने की। इसी दहेज़ के ...
तू नारी है तू भी जी ले…
कविता

तू नारी है तू भी जी ले…

डॉ. सुलोचना शर्मा बूंदी (राजस्थान) ******************** खुले घाव को बखिया करले फटे जख्म पेबंद लगा ले रंजो गम को दरकिनार कर तकलीफों पर बाम लगा लें तू नारी है तू भी जी ले पल्लू के पहले कोने पर बांध समय अपने हिस्से का सखी सहेली संग साथ ले कुछ अपनी मर्ज़ी का कर ले तू नारी है तू भी जी ले... रिश्ते नाते बहुत सवांरे बिखरे कुंतल भी सवांरले सख्त इरादे रख मुट्ठी में तारे धरती पर उतार ले तू नारी है तू भी जी ले... देवी बनकर नहीं पुजाना नेह उड़ेल सबको समझादे तू है सृजना इस सृष्टि की कभी बोलकर भी बतला दे तू नारी है तू भी जी ले... तू इंसां है तू भी जी ले!!! परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा निवासी : बूंदी (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
नव तरंग
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नव तरंग

निरूपमा त्रिवेदी इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** महके मधुबन-सा जीवन गुंजार करे भ्रमर-सा मन बजे खुशियों की पायल कूके मन के आंगन कोयल करे ना अपनों से कोई छल बने मन पावन जै से गंगाजल उमंगों की हो मन में नव तरंगें हर्ष सुमन खिले हो रंग बिरंगे नववर्ष लेकर आए जीवन में नव मधुमास महके हर तन मन लेकर नव सुवास सजे घर-घर संस्कृतियों की थाली फैले चहुं ओर  संस्कारों की सुरभि निराली सपने सच हो सबके सहनी पड़े ना अब कोई पीर पूर्ण हो अभिलाषा हृदय की चाहे अब यही "नीर" परिचय :- निरूपमा त्रिवेदी निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्...
प्रकृति की पूजा
कविता

प्रकृति की पूजा

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** गरजती-चमकती बिजलियों से अब डर नहीं लगता अपने पसीने से सींचे हुए खेतोँ में लगे अंकुरों को देखकर लगने लगा हमने जीत ली है मान-मन्नतो के आधार पर बादलों से जंग। वृक्ष कब से खीचते रहे बादलों को अब पूरी हुई उनकी मुरादें पहाड़ो पर लगे वृक्ष ठंडी हवाओं के संग देने लगे है बादलो को दुआएँ। पानी की फुहारों से सज गई धरती की हरी-भरी थाली और आकाश में सजा इन्द्रधनुष उतर आया हो धरती पर बन के थाली पोष। खुशहाली से चहुँओर हरी-भरी थाली के कुछ अंश नैवेध्य के रूप में ईश्वर को समर्पित कर देते है किसान श्रद्धा के रूप में शायद, ये प्रकृति की पूजा का फल है। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश...
हम छोटे ही अच्छे थे
कविता

हम छोटे ही अच्छे थे

आस्था दीक्षित  कानपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** मासूमी से बाते करते, समझदारी में कच्चे थे बड़े होने का शौक चढ़ा था, जब हम छोटे बच्चे थे नंगे पैर दौड़ लगाते, सजाते ख्याबो के लच्छे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे स्कूल जाना वापस आना, संग दीदी के होती थी डांट पड़ती हमको, जब गुम कोई चीज होती थी टूटे दांतो मे दर्द होगा, बस इतनी चिंता होती थी अब चिंता से गहरा नाता, तब नादानी में सच्चे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे राजा जैसा रख रखाव और जेवर गुड़ियां होती थी नखरे बढ़ते जाते मेरे, घर में रौनक होती थी दालमोट संग बिस्कुट खाना, ऐसी सुबह तब होती थी अब हड़बड़ में जिंदगी, तब हँसी के घरों में छज्जे थे न जाने क्यों अब बड़े हो गए, हम छोटे ही अच्छे थे दोस्त यार अब साथ नही, गपशप किसके साथ करे नियम बना है जीवन मेरा, नि...
रिश्ते
कविता

रिश्ते

नितेश मंडवारिया नीमच (मध्य प्रदेश) ******************** रिश्ते अपने रिश्तों से दूर होने लगे है, क्यों लोग इस कदर मजबूर होने लगे हैं। दुश्मनो से दोस्त कर रहें है इल्तजा, कपटहीन चेहरे कितने मगरूर होने लगे है। ज़माने का कैसा हो गया मिजाज, भ्रातृ भाव कितने बेनूर होने लगे है। आजमा कर देख निर्दय ज़माने को, चेहरे पर कई चेहरे जरुर होने लगे है। रिश्ते,नाते सब विचित्र मायाजाल, पैसे ही चेहरों के नूर होने लगे है। चाह न रख स्वर्णिम पंखो की अब, सारे सपने अब चूर चूर होने लगें है। तंगहाली, कविता हमारी हमसफर, अल्लाह के करम, पुरनूर होने लगें हैं। परिचय :- नितेश मंडवारिया निवासी : नीमच (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि रा...
आना जाना
कविता

आना जाना

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ******************** लगा हुआ है आना जाना! बंदे इस पर क्या पछताना! सृष्टि ने यह नियम बनाया, जो भी जीव यहां हैं आया, वक़्त सीमित सबने पाया, रह कर बंदे इस दुनिया में इक दिन सबको चले जाना!... सारे आने वाले यहां पर, देखे दुनियादारी यहां पर, मेरा मेरा ही करे यहां पर, इतना सा भूल है जाता, कुछ भी साथ नही जाना!.... ये दुनिया जानी पहचानी, वो दुनिया तो है अनजानी, दोनों की हैं अजब कहानी, चले गए जो इस दुनिया से, नही उन्हें अब वापस आना!... सुख- मंदिर जग में सारे, लगते जो हैं सब को प्यारे पर ये नही है तारणहारे करना होगा सत्कर्म फ़कत यही तो बस साथ हैं जाना!... परिचय -  दिनेश कुमार किनकर निवासी : पांढुर्ना, जिला-छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र :  मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं...
ठिठुरन
कविता

ठिठुरन

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** समय पुराना बीत गया, धूँध से सहम रीत गया, कहीं बाढ़ की आफत आयी, महामारी ने छीना सब हर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कुंठित मन का आस है झेला, कंपित है बर्फ रुग्ण मन ढेला, दिनकर को ढक दी तम चादर, जन जीवों में छिपा उत्कर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। कामगार भी ठिठुर गए हैं, सबके अरमां भी बिटुर गए हैं, मानवता पर बड़ी बीमारी, अब पाँव फुलाये विदेशी फर्श, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। लटके कुसुम भारी जल कण से, दुबके बाल शीतों के रण से, देती है दर्द अब ठलुआ रुई ठंडक रवि का बड़ा प्रतिकर्ष, आया है ठिठुरन में नव वर्ष। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, ...
दिल से
कविता

दिल से

डोमेन्द्र नेताम (डोमू) मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** वो यादें वो लम्हें वो बातें वो दिन, क्यां लिखूं मैं अपनी कलम से। वो दोस्तों के साथ बितें दिनों की बात क्यां कहूं मैं अपने दिल से।। आखिर अपने तो अपने ही होते है याद कर लेता हूं मैं फिर से। बस यूं चलते रहे आगे बढ़ते रहे मिलेंगी सफलता जरुर राही ने कहां मंजिल से। दिल की सुन अपनी मन की कर और आगें बड़ लहारों ने कहां साहिल से। जिंदगी एक खेल हैं कभी खुशी-कभी गम है और मत ले टेंशन जियों दिल से।। गीत-संगीत‌ सुर ताल जहां सुनाई देती है भरी महफिल से। हर समंदर के उस पार तैर कर जाना है जहां गहराई ही क्यों न हो झिल से।। परिचय :- डोमेन्द्र नेताम (डोमू) निवासी : मुण्डाटोला डौण्डीलोहारा जिला-बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आ...