राखी की हिफाज़त
मुकेश गोगड़े
टोंक (राजस्थान)
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बेख़ौफ घर से निकलने का वादा मांगती है।
बहन क्या इतना सा भी ज्यादा मांगती है।
जमानेभर में प्रसारित ख़बरों को देखकर।
कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।।
क़दम से क़दम मिलाकर जीत दिलाती है।
बेसुरे अल्फाज़ो को भी सुरीला बनाती है।
प्रीत के सरोवर में इतनी कलुषिता देखकर।
कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।।
कोख में घुटती सांसे भी रिहाई मांगती है।
भाई-बहन का समान अधिकार मांगती है।
पौरुष प्रधानता का इतना ढ़ोंगीपन देखकर ।
कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।।
प्रीत के धागों में कितनी सत्यता वो जानती है।
सौतेला व्यवहार देखकर भी दुआएं मांगती है।
बंजर हो जाएगा जहाँ,माँ, बहन,बेटी के बिना।
कलाई की राखियां भी हिफाज़त मांगती है।।
परिचय :- मुकेश गोगड़े
निवासी : टोंक (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स...