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कविता

फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….
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फिर दहक उठे हैं पलाश वन ….

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** फिर पलाश-वन दहक उठे हैं, नयी आग के।। धधक उठे हैं बहुत दिनों के बाद दबे शोले, स्वेद, रक्त बनकर मचले फिर फिर बाजू तोले; सघन तमिस्रा से भिड़ते पल-पल चिराग के।। धरती-सी धानी चूनर में श्रमसीकर के बोल, अपने हाथों तय करने अपनी मेहनत का मोल; निकल पड़े मजबूत इरादे, नये, जाग के।। चट्टानों से टकराने को ये आतुर सीने, निकल पड़े हैं अपने हिस्से की दुनियाँ जीने; फन पर चढ़कर नाचेंगे कालिया नाग के।। फिर पलाश-वन...... परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं,...
अमृत
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अमृत

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** अमृत अगर पाना है, तो विष भी पीना ही है l धन्य धरा हो जाती है, जब जन पुरुषार्थी आते है l माना जीवन दुःसहय है, नहीं वह विष से कम है l नीलकंठ बन बढ़ना है, कठिन को सरल बनाना है l l तपता सोना, तपता लोहा, तपता सूरज देव है l तप तप कर ही ऋषि मुनि ने, पाया जीवन का धैय है l l अमृत अमृत अगर पाना है, तो विष भी पीना ही है l धन्य धरा हो जाती है, जब जन पुरुषार्थी आते है l माना जीवन दुःसहय है, नहीं वह विष से कम है l नीलकंठ बन बढ़ना है, कठिन को सरल बनाना है l l तपता सोना, तपता लोहा, तपता सूरज देव है l तप तप कर ही ऋषि मुनि ने, पाया जीवन का धैय है l l परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री मा...
दस योगासन
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दस योगासन

नितिन राघव बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) ******************** सूर्य की पहली किरण से पहले उठ जाइये सिधे प्रकृति के बीच किसी हरे मैदान में जाइये थोड़ा टहलकर सूर्य नमस्कार करिये लगभग सभी कष्टों को स्वयं हरिये हरि घास पर पदमासन में बैठे जाइये ध्यान लगा समस्त चक्रों को जगाइये मन को एकाग्र व शांतिमय बनाइये प्राणायाम कर नसों को जगाइये पैरों को फैला भुजंगासन लगाइये रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाइये सुन्दर चेहरा युवा रूप कब्ज व अपच से छुटकारा पाइये पैरों को ऊपर उठा सर्वांगासन लगाइये दमा और हॄदय रोग भगाइये कोशिकाओं का पोषण कर स्वर्गीय सुख कि अनूभुति पाइये फिर शीर्ष आसन लगाइये सर्वांगासन आसन सा ही लाभ पाइये सिधे खड़े होकर हाथों को ऊपर उठाइये तुरन्त अपनी मुद्रा ताडासन में लाइये मोटापे के शिकार चरबी घटाइये बच्चों से करा उनकी लम्बाई बढाइये हाथो को पीछे जमीन पर टिकाइ...
अबहू से
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अबहू से

संजय सिंह मुरलीछापरा बलिया (उत्तर प्रदेश) ******************** संजय नाहके बितवल जनमवा, अबहू से हो अबहू से! कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! स्वारथ लागि करम सब कइल, दिन दुःखिअन के काम ना अइल, धरम करम नाहि भइल एह तनवा अबहू से हो अबहू से! कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! लख चौरासी जीव जगत मे, सबसे सुन्दर मानुष जग मे, परमारथ मे लगाई ल तू मनवा अबहू से हो अबहू से, कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! नाश्वर जड़ चेतन बा इहवा, मुक्ति के साधन मानुष तनवा, स्वारथ तजी कर हरि के भजनवा अबहू से हो अबहू से कुछ करना भजनवा अबहू से हो अबहू से संजय नाहके बितवल जनमवा अबहू से हो अबहू से, कुछ करना जतनवा अबहू से हो अबहू से! परिचय :- संजय सिंह पिता : स्व. लाल साहब सिंह निवासी : ग्राम माधो सिंह नगर मुरलीछपरा जिला बलिया उत्तर प्रदेश सम्प्रति : प्रधानाध्यापक कम्पोजिट विद्...
दर्द को भीतर छुपाकर
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दर्द को भीतर छुपाकर

अशोक शर्मा कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) ******************** दर्द को भीतर छुपाकर, बच्चों संग मुसकाते। कभी डाँट फटकार लगाते, कभी-कभी तुतलाते। हँस हँसकर मुँहभोज कराते, भूखे रहते हैं फिर भी। स्वच्छ जल पीकर सो जाते, गोद में लेकर सिर भी। आँधी तूफाँ आये लाखों, चाहे सिर पर कितने। विशाल वक्ष में समा लेते हैं, दर्द हो चाहे जितने। बच्चों की खुशियाँ और, माँ की बिंदी टीका। पड़ने देते किसी मौसम में, कभी न इनको फीका। पर कुछ पिता ऐसे जो, मानव विष पी जाते। बुरी आदतों में आकर, अपनों का गला दबाते। माँ की अन्तरपीड़ा और, बच्चों की अंतः चीत्कार। जो न सुनता है पिता, समाज में जीना है धिक्कार। माँ तो है सृष्टिकर्ता पर, पिता है जीवन का आधार। अपनी महिमा बनाये रखना, हे! जग के पालनहार।। परिचय :- अशोक शर्मा निवासी : लक्ष्मीगंज, कुशीनगर, (उत्तर प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्र...
एक पिता
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एक पिता

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** अंदर ही अंदर घुटता है, पर ख्यासे पूरा करता है। दिखता ऊपर से कठोर। पर अंदर नरम दिल होता है। ऐसा एक पिता हो सकता है।। कितना वो संघर्ष है करता पर उफ किसी से नही करता। लड़ता है खुद जंग हमेशा। पर शामिल किसी को नही करता। जीत पर खुश सबको करता है। पर हार किसी से शेयर न करता। ऐसा ही इंसान हमारा पिता होता है।। खुद रहे दुखी पर, घरवालों को खुश रखता है। छोटी बड़ी हर ख्यासे, घरवालों की पूरी करता है। फिर भी वो बीबी बच्चो की, सदैव बाते सुनता है। कभी रुठ जाते मां बाप, कभी रुठ जाती है पत्नी। दोनों के बीच मे बिना, वजह वो पिसता है। इतना सहन शील, पिता ही हो सकते है।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यर...
धन्यवाद पापा
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धन्यवाद पापा

संध्या नेमा बालाघाट (मध्य प्रदेश) ******************** हमारे पापा तेज़ स्वभाव एवं स्वाभिमान वाले हैं एक बार जो बोल दे वो पत्थर में लिखें के समान है कभी नहीं करते उपवास पर इनके कर्म उपवास से बड़े होते हैं रोज जाते मंदिर और मंदिर में कभी कुछ दान ही करते पापा कभी ऐसा हो नहीं सकता बिना रोटी गाय को दिए गए हो दुकान पापा कभी ऐसा हो नहीं सकता किसी ने कुछ मांगा हो तो उसको दिए ना हो किसी की खुशी में कभी नहीं जाते मां भाई को भेज देते पापा पर दुख हो या विपत्ति मैं सबसे आगे होते हो आप पापा बेटा-बेटी में कभी भेद तो करते हम नहीं देखे आपको पापा फिर बेटी हो गई सुनकर क्यों परेशान हो जाते हो आप पापा पूरे परिवार को एक डोर में बांध रखे हो आप पापा सब जानते हैं इस बात को पूरा परिवार आप ने संभाला है पापा आपकी बेटी में भी बहुत कुछ सीखा है आपसे पापा स्वभाव, स्वाभिमान ,सच्चाई ...
मेरा गांव
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मेरा गांव

दिनेश कुमार किनकर पांढुर्ना, छिंदवाड़ा (मध्य प्रदेश) ********************  दृश्य एक कितना सुंदर मेरा गाँव....... हर आँगन में तुलसी खिलती, और चूल्हों पर गाकड़ सिकती! कुछ ही बड़ो के घर हैं पक्के, शेष सभी के कच्चे ठावँ!.... कितना सुंदर मेरा गांव........ भोर सवेरे सब उठ जाते, कृषक मजदूर खेतो में जाते! दिनभर सब करते है मेहनत, नही देखते धूप और छावं!... कितना सुंदर मेरा गांव........ चौपालों पर सत्संग हैं होता, तबला ताल मृदंग भी होता! सुबह सुबह दिंडी में जाने, भक्त निकलते नंगे पावँ,! कितना सुंदर मेरा गांव......... सर पर दिखती टोपी गांधी, यहां नही फैशन की आंधी! सदियो से चल आ रहा, धोती बंडी कृषक पहनाव! कितना सुंदर मेरा गांव..... घर घर शिक्षा अलख जल रही, नारी हर क्षेत्र आगे बढ़ रही! जीवन के हर पहलू में अब वे, कमा रही हैं अपना ना! कितना सुंदर मेरा गांव..... यह दौर एक सघन विस्...
अपनी धुन में जीलो
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अपनी धुन में जीलो

बृजेश कुमार सिंह करण्डा, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** कहते है सब लोग, समय बङा बलवान.. मन मे आया एकदिन विचार अति महान्.. क्यूँ न मै भी समय का साथी बनजाऊॅ.. उसके साथ-साथ चलकर बलवान क्यूँ न कहलाऊॅ.? फिर क्या था जीवन में..? उठना चलना 'समय' के संग मे.. 'समय' संग चलने के चक्कर मे, कितनी खुशियों को खोया मैं.. जीवन को गमों मे डुबोया मैं.. चलते-चलते थक हार गया.. व्यर्थ मे ये जीवन गुजार गया.. आगे बढता 'समय' यह ताङ गया.. मेरा हमराही अब तो हार गया.. 'समय' ने मुझको यह समझाया, "मेरे साथ-साथ क्यूँ चलता आया.. मेरी नियति तो चलना है .. पर तुमको तो एकदिन मरना है.. मेरा साथ पकङने से सोचो तुम क्या पा जाओगे ? जो कुछ कमाया तूने सब छोड़ यहीं पर जाओगे.. अपनी धुन में जीलो प्यारे.. ये जीवन न दुबारा पाओगे..!!" परिचय :-  बृजेश कुमार सिंह निवासी : करण्डा, गाजीपुर...
बेटी की चिठ्ठी
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बेटी की चिठ्ठी

मंजुषा कटलाना झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** कितना तड़पी थी तू माँ, जब तूने मूझे जन्म दिया। कोई मर्द न सह पाये दर्द इतना तूने सहन किया। आई जब इस दुनिया मे माँ तूने मुझको थामा था। भर कर अपनी बांहो में प्यार मुझ पर वारा था। सीने मुझे लगा के अपने, अपना दूध पिलाया था। चुम के मुझको झूला बांहो में, चैन से मुझे सुलाया था। पर ये दुनिया समझ न पाई, तेरे मेरे रिश्ते को। हुई क्या गलती तुझसे मां, जो जना तूने एक बेटी को। छीन को तुझसे मुझको मां, जब कूड़े में मुझे फेंक दिया। वो निर्दयी ओर कोई नही, मेरा अपना पिता बना। रो-रो जब मैंने आंखे खोली, चींटिया मुझे खा रही। कोई न था मुझे उठाने वाला, चीखें दबती जा रही। भुख ओर दर्द ने मुझे कुछ देर में, गहरी नींद में सुला दिया। सुबह जो आई में इस दुनिया मे, शाम तक फिर मुझे विदा किया। जानती हूं मां तू आज भी मुझको, याद करके रोती...
कुछ हो गया
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कुछ हो गया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** नयनों से निकला अंजन ध्यान नहीं, बस धीरे से लगा कुछ खो गया वाकपटुता व्यवहार से व्यतीत वर्ष बदलाव के बेगैरत बीज बो गया टीस चोट स्नेह अंतहीन विवाद भाव प्रभाव सजल नयन रो गया उत्सव भी पाये उडते पक्षी सदृश्य उत्साही हृदय-व्यथा रुदन, वो गया कल आज कल का वक़्त पुष्प देखते, सूंघते, समझते ही खो गया सोचा नहीं कभी कुछ जीवन में आहुति नीति पुरुषार्थ सब धो गया साहस मंजर कभी सैलाब सा था अंतर्मन उड़ान को रोग हो गया परस्पर भाव बोधगम्य जीवन भी यादों की ताकत देकर सो गया। परिचय :- विजय कुमार गुप्ता जन्म : १२ मई १९५६ निवासी : दुर्ग छत्तीसगढ़ उद्योगपति : १९७८ से विजय इंडस्ट्रीज दुर्ग साहित्य रुचि : १९९७ से काव्य लेखन, तत्कालीन प्रधान मंत्री अटल जी द्वारा प्रशंसा पत्र काव्य संग्रह प्रकाशन : १ करवट लेता समय २०१६ में, २ वक़्त दरकता...
घड़ी भर ही सही
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घड़ी भर ही सही

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** घड़ी भर ही सही, मिले दोस्त कही, यादें हो जाये ताजा, लगे जमाना सही, बहने लगे आंखों से, कीमती वो आंसू, सच्ची दोस्ती इस, जमाने ने यह कही। घड़ी भर ही सही, आये वीरों की याद, गोली उन पर चलाई, वो सारे जल्लाद, वीरों ने खून बहाया, नहीं की फरियाद, नाम रहेगा जहां में, सदियों के भी बाद। घड़ी भर ही सही, दिखाये दरियादिली, हर जन कह उठे, सुख की घड़ी मिली, हर देशभक्तों की, होती है इच्छा दिली, खुशियां देखकर, हर फूल कली खिली। घड़ी भर ही सही, मिले हर जन खुशी, दर्द मिटे पल में, कोई नहीं रहेगा दुखी, मालिक की नजरें, हर जन रहे इनायत, ईश्वर के सदा सामने, नजरें रहे यूं झुकी। घड़ी भर ही सही, प्रभु मिल जाये आज, उस घड़ी पर ताउम्र ही, मुझको हो नाज, खुशियां नहीं समा पाये, यह दिल मेरा, उस दाता का रहा है, इस जहां में राज। घड़ी...
रंग रसिया
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रंग रसिया

मधु अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** तुमसे प्यार किया रंग रसिया, बसे हो मेरे मन बसिया। दिल, धड़कन, आत्मा में तुम हो, जित देखूं ‌उत ओर तुम हो। ओ मुरारी ओ त्रिपुरारी, तुम बिन सुनी-सुनी गलियां कहां छुपे हो आओ मोहन, नजरों से अपना बना लो मोहन। तुमसे प्यार किया रंग रसिया, तेरी मुरलिया की धुन खींचे। अपने प्यार में पागल कर दे, मैं बावरिया घर छोड़ के आई। दूध उफनता छोड़ के आई, रंगरसिया तू न समझे। तेरी छवि मोहे पागल कर दे। मन में मेरे आकर्षण भर दे। खींची आऊं मैं ‌दर पर तेरे, प्यार का मीठा रंग‌‌ वो भर दे। रंग रसिया मेरे मन बसिया, तेरी छवि मोहे दीवाना कर दे।। परिचय :- मधु अरोड़ा पति : स्वर्गीय पंकज अरोड़ा निवासी : शाहदरा (दिल्ली) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
पिता का घना साया
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पिता का घना साया

प्रीति जैन इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** जीवन की उजली धूप में, पिता का घना साया पीपल की घनी छांव, कड़ी धूप में शीतल छाया दुख के बादलों में गर, कभी तुम घिर जाओ डगमग डगर जीवन की, राह चलते तुम गिर जाओ उंगली थाम के तुम्हारे पिता ने ही मंजिल तक पहुंचाया दिन रात करके मेहनत, करते वो हर जिद्द पूरी चाहे कुछ भी हो फरमाइश, तुम्हारी ख्वाहिश ना रहे अधूरी पेट औलाद का भर के, खुद भूखे पेट है सोया हर पिता चाहे अपने बच्चों का भविष्य संवारना जिंदगी के हर सुख दुख से बच्चों को रूबरू कराना गोद में बिठा प्यार से, जीवन का गणित समझाया नरम दिल रखते सीने में, ऊपर से वो है सख्त पिता ही मजबूत आधार, चाहे समझो कड़वा नीम का दरख़्त मिठास भर दे जीवन में, बरगद सी वो विशाल काया आज तलक दुनिया में सिर्फ मां की ही होती महिमा गीत गजल कविताओं में, ना कभी बखाणी पिता की गरिमा ...
क्षणिक आवेश
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क्षणिक आवेश

श्रीमती विभा पांडेय पुणे, (महाराष्ट्र) ******************** क्षणिक आवेश था वह, मगर उस आवेश के कारण वर्षों से बनाए रिश्ते टूट गए। शब्द बाण से आहत हो संबंधों के पंछी घायल हो गए। शायद बचें, शायद न भी बच पाएँ। क्यों लोग आ जाते हैं क्षणिक आवेश के चक्कर में। क्यों बोलते हैं ऐसे शब्द चुन-चुन कर जो छेद डाले मन। क्या अहंकार रिश्तों से अधिक ऊपर होता है? शायद होता है। तभी तो उनके तरकस में इतने जहरीले तीर होते हैं। और बखूबी वे उन्हें चुन-चुन कर चलाते हैं। शायद रिश्तों को स्वाभाविक मृत्यु देना उन्हें गँवारा नहीं, वे उसे भी सड़ते-रिसते तड़प-तड़प कर मरते देखना चाहते हैं। तभी तो चुन-चुन कर आवेश में आकर मारक शब्द बाण चलाते हैं। परिचय :- श्रीमती विभा पांडेय शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं अंग्रेजी), एम.एड. जन्म : २३ सितम्बर १९६८, वाराणसी निवासी : पुणे, (महाराष्ट्र) ...
हृदयहीनता की कामना
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हृदयहीनता की कामना

डॉ. उपासना दीक्षित गाजियाबाद उ.प्र. ******************** काश! मैं हृदयहीन हो जाऊँ । क्यों न मैं हृदयहीन हो जाऊँ ।। न हो मुझे किसी की निष्ठुरता का अहसास और न हो मुझे किसी की आत्मीयता का आभास किसी की मार्मिक तकलीफों में न हो शामिल मेरा चेहरा न देखूँ चिंता ग्रस्त माथे की लकीरों का डेरा न सुनूँ किसी की व्यथा का सफर न हो द्रवित देख टूटती बिजलियों का कहर मैं हर हलचल के प्रति उदासीन हो जाऊँ काश! मैं हृदयहीन हो जाऊँ । क्यों न मैं हृदयहीन हो जाऊँ ।। संवेदना से परे हो मुझमें कठोरता का डेरा मेरी प्रवृत्ति में बस जाए गिरगिट का चेहरा चुप रहूँ, न बोलूँ देख मानवता पर चोट जार-जार रोए कोई सोचूँ, होगी आंसुओं में खोट अनाचार की पराकाष्ठा पर मूंद लूँ अपनी आँखें प्रश्न न करूं चाहे घुट जाएं किसी की साँसें मैं अपने दायित्व के प्रति भावशून्य हो जाऊँ काश! मै...
सुखद एहसास
कविता

सुखद एहसास

चेतना ठाकुर चंपारण (बिहार) ******************** क्षणिक ही लेकिन यह सुखद एहसास अच्छा है। पहली बार ससुराल से मायका आना मां की ममता, पिता का लाड़, क्षणिक ही लेकिन अच्छा है फिर लौटना ससुराल अच्छा है भाई बहन की तकरार, फिर ढेर सारा प्यार, अच्छा है फिर यहां से न जाने की ख्वाहिश का दब जाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। यह घर अपना, वो घर अपना लड़कियों के साथ किया छलावा अच्छा है। दम घुट रहा, दिल टूट रहा ना आंसू बहाना अच्छा है अपनी दिल की बातें ना यहाँ बताना, न वहां बताना, अच्छा है। दिल के अंदर दफनाना अच्छा है। क्षणिक ही लेकिन यह सुखद अहसास अच्छा है। परिचय :- चेतना ठाकुर ग्राम : गंगापीपर जिला :पूर्वी चंपारण (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। ...
मेरे पापा मेरा अभिमान
कविता

मेरे पापा मेरा अभिमान

सुनील कुमार बहराइच (उत्तर-प्रदेश) ******************** खुशियों के खातिर हमारे खुशियां अपनी देते त्याग मेरे पापा मेरा अभिमान। पूरी करते मेरी हर मांग रक्षा करते बन वो ढाल मेरे पापा मेरा अभिमान। सपनों के खातिर हमारे अपने सपने देते त्याग मेरे पापा मेरा अभिमान। गलतियों पर देते हमें डांट करते फिर वो स्नेह अपार मेरे पापा मेरा अभिमान। खुद सहते वो कष्ट अपार हम पर न आने देते आंच मेरे पापा मेरा अभिमान। ईश्वर का है अनुपम वरदान रौशन जिनसे मेरा घर-द्वार मेरे पापा मेरा अभिमान। पापा मेरे जीवन का आधार पापा का हम पर है उपकार भूल नहीं सकता कभी पापा का स्नेह दुलार। परिचय :- सुनील कुमार निवासी : ग्राम फुटहा कुआं, बहराइच,उत्तर-प्रदेश घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविता...
बचपन की यादें
कविता

बचपन की यादें

भूपेंद्र साहू रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) ******************** बस यही अपनी कहानी थी न घर की चिंता न रोटी की परेशानी थी होंठों में मुस्कान थी हाथों में बस्ता था सूकुन के मामले में वो ज़माना सस्ता था। समझ न आती थी हमको दुनिया-दारी एक तरफ़ थी सारे संसार की खुशियां दुसरी तरफ थी अपनी यारी मंजिल का कोई ठिकाना न था लेकिन सफर बड़ा आसान था हम अपनी जिंदगी के खुद ही मालिक थे, शाम को सूरज हमारी इजाज़त से ढलता था मौसम भी हमारी मर्ज़ी से अपना मिजाज़ बदलता था शर्दियों में गांव के टीले पर निकलती धूप सूहानी या गर्मी में आम के बगीचे की शैतानी सावन का महीना भी हमसे पूछ के बरसता था सुकुन के मामले में वो ज़माना सस्ता था परिचय :- भूपेंद्र साहू पिता : श्री मोहन सिंह निवासी : रमतरा, बालोद (छत्तीसगढ़) घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी य...
तुम बिन जीवन पतझड़ सा
कविता

तुम बिन जीवन पतझड़ सा

योगेश पंथी भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश ******************** मेरा जीवन था पतझड़ तुम आई हो बाहर लिए ! जैसे भेजा हो तुम्हे प्रभु ने खुशियों का उपहार लिए ॥ छोड़ आइ हो पीहर को मेरे घर को बसाने को। माता से संस्कार लिए बबूल का मान बढ़ाने को॥ इस दिल को ठंडक मिलती हे जब जब तुम मुस्कती हो । कितने सेह्ज भाव से दोनो कुल की रीत निभाती हो ॥ मेरी खुशी मेरे दुख में हर पल सांथ निभाती हो। जैसे में इक दीपक हूँ और तुम मेरी बाती हो ॥ मेरे चेहरे की रंगत से तूम रंग रूप बदलती हो। दीपक तो संपूर्ण तभी हे जब संग बाती जलती हो॥ धन्न हुआ मेरा जीवन जो तुमने उपकार किया। अपने पूरे जीवन को मेरे जीवन पर बार दिया॥ भूल के अपना सब कुछ सब मेरा तुम करती हो । भोर भई तो जग जाती हो देर रात तक जगती हो ॥ मेरे घर को सवारती हो और मेरे लिए संवरती हो। क्यों न तुम संग प्रीत निभाऊँ इतनी प्रीत जो...
बेटी
कविता

बेटी

प्रदीप कुमार अरोरा झाबुआ (मध्य प्रदेश) ******************** नयन खोल निहार रही, आ के निर्निमेष वो, स्वाति की धर चाहत, ज्यों प्यासो चकोर है, लिपट के पैरों से, बेजान में वो फूंके प्राण, बेटी ही है मेरी अपनी, नहीं कोई और है। एवरेस्ट फांदने-सी, ताकत उसने झोंक दी, मैंने जानबूझकर कर दी, जब ढीली डोर है, प्रलय की परिभाषा, पढ़ ली मैंने उस दिन, गुस्सा है कुट्टी भी है, जोर-जोर से शोर है। पकड़ के अपने कान सॉरी-सॉरी कहा मैंने, गलती तो मैं कर बैठा, मन भाव विभोर है, नहीं मानी रातभर, मम्मा संग जा के सोई , सुबह सीने पे आ वो बैठी, धन्य हुई भोर है। परिचय :- प्रदीप कुमार अरोरा निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश) सम्प्रति : बैंक अधिकारी प्रकाशन : देश के समाचार पत्रों में सैकड़ों पत्र, परिचर्चा, व्यंग्य लेख, कविता, लघुकथाओं का प्रकाशन , दो काव्य संग्रह(पग-पग शिखर तक और रीता ...
गरीब
कविता

गरीब

श्वेता अरोड़ा शाहदरा (दिल्ली) ******************** देखा एक फटेहाल गरीब तो नोट १० रू का उसको मै थमाकर चला गया, बदले मे वो लाखो रूपये की दुआएं मुझको देकर चला गया! अजीब कशमकश मे हूं कि गरीब वो था या मै! मजबूर था पैसे की कमी से वो पर दिल का कितना अमीर था ये वो बता कर चला गया! नही तो आज वो जमाना है जहां लोग आग से नही तरक्की से दूसरो की जलते है, कही दूर नही जरूरत जाने की, यहां तो आस्तीन मे ही सांप पलते है! कुछ देने के लिए बैंक बैलेंस बडा हो ना हो दिल बडा जरूर होना चाहिए, आज वो एक नया सबक मुझको सिखाकर चला गया! अजीब कशमकश मे हूं कि गरीब वो था या मै! परिचय :-  श्‍वेता अरोड़ा निवासी : शाहदरा दिल्ली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय ह...
क्या भूला क्या याद
कविता

क्या भूला क्या याद

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** हम जिन्हें चाहते है वो अक्सर हमसे दूर होते है। जिंदगी याद करें उन्हें जब वो हकीकत में करीब होते है।। मोहब्बत कितनी रंगीन है अपनी आँखो से देखिये। मोहब्बत कितनी संगीन है खुद साथ रहकर के देखिये।। है कोई अपना इस जमाने में जिसे अपना कह सके हम। और दर्द जो छुपा है दिलमें उसे किसी से व्यां कर सके।। दिलका दर्द छुपाये नहीं छुपता है आज नहीं तो ये कल दिखता है। इसलिए आजकल मोहब्बत का भी जमाने के बाजार में दाम लगता है।। अब तक यही करता आ रहा था पर अब उन्होंने साथ छोड़ दिया। चारो तरफ अंधेरा सा छा गया जहाँ मैं हूँ वहाँ थोड़ा उजाला है।। तरस है जब काली घटाये चारो ओर छा जाती है। तब अंधेरे में अपनी प्यारी मेहबूबा चाँद सी दिखती है।। जब तक चाहत थी उन्हें तब तक दिल जबा था। उम्र के डालाव पर आके वो न जाने क्यों कतराते है।। ...
तुम्हारे साथ
कविता

तुम्हारे साथ

राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** मैं हर जगह हर पल तुम में ही हूं। तुम्हारे चेहरे पर आई हर खामोशी में मैं हूं। तुम्हारी आंखों में आई हर नमी में मैं हूं। तुम्हारे गालों में आई हर मुस्कान में मैं हूं। तुम्हारे चेहरे पर आई हर खुशी में मैं हूं। तुम्हारी आंखों में बहते हर अश्क में मैं हूं। तुम जहां रहती हो वहां की बहती हवा की खुशबू में मैं हूं। जहां तुम जाती हो उस धरा की पगडंडी की मिट्टी में मैं हूं। परिचय :- राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाच...
प्यार भरा अंलिगन
कविता

प्यार भरा अंलिगन

गगन खरे क्षितिज कोदरिया मंहू (मध्य प्रदेश) ******************** गुलाबी-गुलाबी मौसम बन रहा है । बरखा की छोटी-छोटी बुन्दौ ने मौसम बदल दिया है । माटी की मेंहकी-मेंहकी सुंगध ने मानो मन के भीतर तक तर-बतर कर दिया है । आई ये रूत सुहानी हरियाली की, बादलों की गड़गड़ाहट और बार-बार बिजली का कड़क जाना, अन्दर ही अन्दर डर सुकून भरी मस्ती लिए हवाओं का छूकर चलें जाना मानों दिल के करीब यादौं का सिलसिला फिर बरखा ने बना दिया। सावन भादों के अल्हड़ वो दिन, मस्ती भरे झुलें, उनकी प्यार भरी लहराती जुल्फें काली घटाओं का एहसास कराती, नादान उन्मुक्त हंसी मंजर गगन हर पल यादौं की मुस्कुराहट बनकर अंलिगन करना उनका बरखा ने दिखा दिया। परिचय :- गगन खरे क्षितिज निवासी : कोदरिया मंहू इन्दौर मध्य प्रदेश उम्र : ६६वर्ष शिक्षा : हायर सेकंडरी मध्य प्रदेश आर्ट से सम्प्रति ...