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कविता

योगिनी
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योगिनी

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** सुदूर-क्षितीज में उज्जवल तारे तुझे देख कर विहँस रहे है। नीले अम्बर के नीचे योगनी निलिमामयी आभा बिखरी है। निल मणि सी तू अतिसुन्दर हर पल तू सुन्दर दिखती हो। नूतनता की सेज सजी है मादकता से परिपूर्ण क्षण। तुझे देख कर बिहस रही सब आतुरता की मधुर मिलन क्षण। फिर भी मौन बनी रहती हो प्रखर तेज से दीप्तिमान तू। महायोग में लिप्त रहती हो मौन ध्यान की गहराई में। हरक्षण तू खोयी खोयी रहती हो कुंडलिनी सहस्त्र सार आज्ञाचक्र में रमण करती हो। बोलो तो कुछ मुखारबिंद से इस शरद पूनम में कहा खोयी हो? जय माँ तारा जय माँ तारा की जय घोष को महस्मशान में बोल रही हो। परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण (बिहार) सम्मान - राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान...
अलविदा २०२०
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अलविदा २०२०

रागिनी मित्तल कटनी, मध्य प्रदेश ******************** बड़ा बेचैन मन था, बड़ा बुरा हाल था। सब वर्षो में खराब बीता हुआ साल था। जनवरी निकली ठंड में, फरवरी में पढ़ाई का जोर, मार्च में हो गया कोरोना का धमाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था । अप्रैल-मई में लॉकडाउन लगा था, मरीजों से चिकित्सालय भरा था, कैसे बचाए इनको सब का यही ख्याल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। डॉक्टर, नर्स ने दिन-रात फर्ज निभाया, तब कई जानो में से कुछ को बचाया, कोई गुलशन तो बिल्कुल उजाड़ था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। मजदूरों में घर वापसी की होड़ लगी थी, जून-जुलाई में पथिको की लाइन लगी थी, सबके सामने बस रोटी का सवाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। शादी, पार्टी मिलना जुलना सब बंद था, अगस्त, सितंबर में इंसान नजर बंद था, हर एक घर में उठ रहा भूचाल था। सब वर्षों में खराब बीता हुआ साल था। अक्टूबर...
मकर सक्रांति
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मकर सक्रांति

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** सूर्य के उत्तरायण का पर्व जिस पर सब करते हैं गर्व जैसे आता मकर-संक्रांति जीवन में लाता है कान्ति गुड़ और चाशनी की खुशबू रिश्तों में मिठास हुबहू खलबट्टे मे कुटे तिल बिना कहे छू जाते दिल सुबह सुबह का वह पवित्र स्नान सूर्य को अर्ध्य देकर करना दान गरम गरम वो घी और खिचड़ी जैसे छप्पन भोग पर भारी पड़ी कहीं इठलाति कही बलखाती कही डालियों में उलझती नीले पीले हरे नारंगी लाल गुलाबी रंग बिरंगी उड़ती है चहुँ ओर पतंग इंद्रधनुषी है जिसके रंग चलो एक ऐसी पतंग बनाये जो आसमान की सैर कराये परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून” निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़) घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रक...
विदाई
कविता

विदाई

सुधाकर मिश्र "सरस" किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.) ******************** वो बचपन की धुंधलकी याद अब प्यारी सी लगती है समझता था जिसे जन्नत वो गोद न्यारी सी लगती है समझता था बड़ा अपने को उसकी गोद में चढ़कर नहीं दूजा कोई था सुख उसकी गोद से बढ़कर वो पल छिन याद जब आते वो दुनिया भली लगती है सुनहरे दिन वो छुटपन के मासूम सी कली लगती है वो दिन आया बिछड़ने का वो मेरी प्यारी बहना थी सजाने चली दूजा घर जो मेरे घर की गहना थी विदाई कैसे देखूंगा बहन की सोचा मैं रुककर तत्क्षण अश्रु बह निकले मेरे पोंछा उन्हें छुपकर करुण क्रंदन बहन का सुनता मैं यह तो असंभव था कान को बंद कर छुपना ही मेरे लिए संभव था हुआ आश्वस्त अपने से धीरे से कान को खोला नज़र दौड़ाई उस रस्ते में जहां से गुज़रा बहन का डोला बहनें क्यों छोड़ कर जाती यह रीति अटपटी लगती है बिछड़कर बहन से भाई की दुनिया लुटी-लुटी लगती है परिचय :-  सुधाकर मिश्...
भूल जाओ
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भूल जाओ

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। जो समय के साथ गुज़रा, वह बवंडर भूल जाओ। समय में बदलाव है अब, कल गया है आज आया, चल दिया तम कष्ट का सब, उजाला अब सुखद छाया। रहे जो भारी हृदय पर, पल भयंकर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। हो सकी आशा न पूरी, अधूरे रह गए सपने। रूठ कर जाने कहाँ पर, चल दिए कुछ लोग अपने। विरह के क्षण भूल पाना, कठिन है पर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। दुखद कोरोना भयानक, प्राणघातक महामारी। कर रहा था विश्व में वह, शवों पर अपनी सवारी। महामारी कम हुई है, रोग का डर भूल जाओ। जनवरी का माह आया, अब दिसम्बर भूल जाओ। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्...
सोच
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सोच

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** संचित मनुज दिमाग में, भ्रमित श्रमित अचिरात, कर देती गुमराह ही, व्यर्थ निरथर्क बात। हर बातों में सोचना, आगे ही परिणाम, है न भला चिन्तन भला, जो हाथों काम। दिल दिमाग को साफ रख, सोच न कर दिन रात, कल की चिन्ता छोड़कर, करो आज की बात। दूर दर्षिता ठीक है, द्धष्टी जहाँ तक जाय, क्षितिज परिधि के पार तो, अंधकार हो जाय। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान सहित साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी...
अगर मैं फौजी होता
कविता

अगर मैं फौजी होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मैं कवि होता, तो हिंदुस्तान पे, कविताऐ लुटा देता ! अगर मैं फौजी होता , वतन के लिए जान लुटा देता ! काश मैं गुलाब होता, तो वतन के लिए अपनी खुशबू लुटा देता ! काश मैं वृक्ष होता तो वतन के लिए अपनी छाँव लुटा देता ! काश में सूर्य होता, तो वतन के लिए अपनी रोशनी लुटा देता ! काश मैं कवि होता तो वतन पर अपनी कविताऐ लुटा देता ! काश में फौजी होता, तो वतन के लिए जान लुटा देता !! परिचय :- कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार पिता : जालम सिंह अहिरवार निवासी : ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया जिला भोपाल शिक्षा : एम.ए. हिंदी साहित्य शासकीय हमीदिया कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय भोपाल अध्ययनरत राष्ट्रीय सेवा योजना एन.एस.एस. स्वयंसेवक, सामाजिक कार्यकर्ता घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वर...
स्वंय को जाने
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स्वंय को जाने

संजय जैन मुंबई ******************** तन की खूबसूरती एक भ्रम है..! जो इंसान को घमंडी बना देता है। मन की खूबसूरती ही असली सुंदरता है। जो दिलको शांत और मनको व्यवहारिक बनता है। सब से खूबसूरत तो आपकी "वाणी" है..! जो चाहे तो दिल जीत ले.. या चाहे तो दिल चीर दे !! वाणी की मधुरता से गैर अपने हो जाते है। और आपकी दिलसे तरीफ करते है। इन्सान सब कुछ कॉपी कर सकता है..! लेकिन अपनी किस्मत और नसीब को नही..! यदि कर्म अच्छे करोगें तो फल अच्छा मिलेगा। भले श्रेय मिले न मिले, पर श्रेष्ठ देना बंद न करें। आपकी सेवा भक्ति एकदिन रंग लायेगी। तब लोगो की जुबा पर तुम्हारा ही नाम रहेगा। कुछ आपके आलोचक तो कुछ प्रसंशक होंगे। जो समाज में आपको शांति से नहीं रहने देंगे। रखेंगे स्वंय अपना ख़याल तो आपका हरपल शुभ होगा। आपके कर्मो से ही मुक्ति का मार्ग प्रसव होगा। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान मे...
आओ हिन्दी का गुणगान कराएं
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आओ हिन्दी का गुणगान कराएं

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** आओ हिन्दी का गुणगान कराएं भारत माॅ की हम शान बढाएं घर बाहर विदेशी मे जाकर हम बोल हम हिन्दी का मान बढाएं अंग्रजी भी माना एक भाषा है होठो पर हिंदी की मुस्कान लाए सरल, सहृदय, कोमल है भाषा अपनी नन्ही जुबान पर सजाएं अंग्रेजी, उर्दं, अन्य समझ से परे कोशीश हमारी विदेशी अपनाएं हिन्दी से हिन्दुस्तान की पहचान आओ ऐसे हम शीश नमाएं मातृ भाषा अपनी न पशेमा हो तब हिन्दुस्तानी हम कहलाएं सब आभूषण से पूर्ण आभूषण हिन्दी का हम गोरव गान गाएं मील कर शंखनाद करे हम सभी ग्रंथ सभी मील कर हार बनजाएं हाथ जोड़ विनती करू हिन्दी सब अपना मोहन सबसे विनती करे इसे सब अपनाए परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन
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आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** आओ करें, नूतन वर्ष का अभिनंदन, कष्टों का हरण हो, सुशोभित हो जीवन, अभिलाषाएं हो पूर्ण, पुलकित रहे मन, विघ्नों का हो नाश, प्रसन्न रहे तन मन, समृद्धि में हो वृद्धि, जन कल्याण का हो चिंतन, निर्बल का बने सहारा, तोड़ दें दुर्जनों का घमंड, बाधाओं से करें आलिंगन, बन कर सज्जन, दुष्टों से द्वंद रहे जारी, मित्रों से समर्पण, स्वाभिमान से हो समझौता, नहीं हो ऐसा बंधन, भुजंग से लिपट कर भी रहे सुरक्षित, जैसे चंदन, पराजय में रहे हौंसला कायम, विजय में संयम, विचारधारा रहे पवित्र, खुशियों से भर जाए जीवन... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के स...
प्रीत की पाती
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प्रीत की पाती

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** कैसे लिखूँ मैं प्रीत की पाती याद करूँ तुझको दिन राती किसी और को ना कह पाती, विरह वेदना सही न जाती। जबसे गए हो तुम जहान से, पलभर को भी भूल न पाती। संग तुम्हारे ना आ पाती, लिख रही हूँ तुमको पाती। प्रभु चरणों मे तुम हो बैठे, कह दो उनसे सारी बाती। रुग्ण हुई यह मानव जाति, पीड़ा के ही गीत है गाती। प्रियतम मेरे यह भी कहना, अपने हाथों जग को गहना। सोचके अब मैं हूँ घबराती, कैसे पहुँचे तुझ तक पाती। पढ़कर तेरी आँख भर आती, पहुँच जो जाती मेरी पाती. मन से मन की बात हो जाती, अब पहुंची मेरी प्रीत की पाति। परिचय :- माधुरी व्यास "नवपमा" निवासी - इंदौर म.प्र. सम्प्रति - शिक्षिका (हा.से. स्कूल में कार्यरत) शैक्षणिक योग्यता - डी.एड, बी.एड, एम.फील (इतिहास), एम.ए. (हिंदी साहित्य) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, ...
भारत तिलक विवेकानंद!
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भारत तिलक विवेकानंद!

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** हे संन्यासी हे अमर सपूत भारतवर्ष के! आधार भारत माता के गर्व-हर्ष के!! तुमने की थी युवा संन्यासियों की मांग जो भारत भर के ग्रामों में फैल देशवासियों की सेवा में जाएं खप! आज भी सख्त प्रासंगिकता है तेरी इस मांग की देश की बलिवेदी पर सहर्ष डालें हविष... आज सभी युवा अपने अपने स्वार्थ की! हे मनीषी! तेजोदिप्त संन्यासी!! हिन्दू धर्म के गौरवशिखर!! हे आध्यात्मिक चिंतक! वेदांतों के समर्थ व्याख्याता!! तूने धर्म को सदा रखा मनुष्य-सेवा के केन्द्र में और देश के सर्वतोभावेन कल्याण का कैसा विलक्षण-क्रांतिकारी उपाय सुझाया "देश के ३३ कोटि भूखे-दरिद्र-कुपोषण के शिकार को कर दो मंदिरों में स्थापित देवी देवताओं की तरह! और हटा दो मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को!! फिर करो उनकी बेहतरी के लिए ईमानदार कोशिश! क्या रंग निखरेगा धर्मप्राण भारत का जो ऐसी पावन पूजा ...
कुछ याद नहीं
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कुछ याद नहीं

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** भला करना बुरा नहीं है, करते रहना सदा भलाई, एक दिन सबको जाना, कभी न लो कोई बुराई। किसका भला किया था, किसे दिया था सम्मान, अब स्मृतियां खोई कही, अब कुछ भी याद नहीं। अच्छे कामों से बनती हैं, सारे जहां में नेक इंसान, सत्कर्मों से आशीर्वाद ले, बन जाती जन पहचान। सदा किया वो काम हमें, जो लगते जन सदा सही, परहित में जीना सीखा है, पर अब कुछ याद नहीं। मां बाप का ऋण रहेगा, चाहे जन्म लेना हजार, उतारा नहीं वो जा सके, जन्म जन्मांतर रहे भार। पैदा छोटे बच्चे होते हम, मां ने पिलाया दूध दही, याद करते उनकी बातें, पर अब कुछ याद नहीं। दर्द कभी दे जाते आंसू, भूला नहीं पाता है जन, समय बीत जाए बेशक, याद आता सदा दर्द मन। बिछुड़ गये कितने अपने, दिल से अब आंसू बही, कितने हम यादों में रोये, हमें तो कुछ याद नहीं। सपने तो, सच्चे नहीं हो, सपने कभी रुला ...
पिताजी का महत्व
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पिताजी का महत्व

रागिनी मित्तल कटनी, मध्य प्रदेश ******************** पिता के साथ वो बाजार जाना। आगे-आगे उछल के थोड़ा जल्दी आना। हर चीज की तरफ उंगली दिखाना। पापा का चुपचाप दिलवाना। बाजार में हम खुद को समझते सम्राट थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट बाट थे। पाठशाला में जब पिता के साथ जाते। अध्यापक जी मेरी शिकायत लगाते। आंखों ही आंखों में मुझको धमकाते। पर हम तब नहीं आंखें झुकाते। क्योंकि, पिता जो होते हमारे साथ थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। भाई बहनों में होती लड़ाई थी। मैं उससे कभी नहीं जीत पाई थी। वह मुझ को मार कर भाग जाता था। पापा से ना कहना वह धमकाता था। लगे ना लगे मैं तब तक रोती थी, जब तक ना आ जाएं पिता जी पास थे। जब पिताजी थे तो बड़े ठाट-बाट थे। थी नौकरी छोटी सी, फरमाइशें सबकी। पूरा करते थे फिर भी ख्वाइशें सबकी। कोशिश करते थे कोई रह ना जाए। इसीलिए स्कूल के साथ वो ट्यूशन पढ़ाएं। काम कर-कर उनके खस्त...
रिश्ते … 2
कविता

रिश्ते … 2

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** रिश्ते तरह-तरह के कुछ दूर के, कुछ पास के और कुछ आसपास के कुछ निभाए जाते है मिलकर तो कुछ दूरभाष से है जीवित कुछ रहते हमेशा साथ भले ही उनमे न हो मिठास अब क्या कहूं रिश्तों की परिभाषा इन पर ही टिकी रहती सबकी आशा जिस रिश्ते में जितनी आशा अक्सर मिलती वही निराशा जहाँ जितना अंध विश्वास वही आ जाती है खटास कुछ रिश्ते है बड़े रसीले कभी है खट्टे कभी है मीठे ऐसे रिश्तों से टिका परिवार सारा इनके बिना न जीवन गुजारा लेकिन एक रिश्ता है अटूट जिसमे चलता कभी न झूठ वो रिश्ता है आत्मा का परमात्मा से और अपना अपनी अंतरात्मा से बस यही रिश्ता है अनमोल अगर समझ सको इसका मोल परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया ह...
शरद ऋतु
कविता

शरद ऋतु

सपना दिल्ली ******************** शरद ऋतु आते ही सूरज दादा भी खेलें हमसे आँख मिचोली देर से आते जल्दी चल बनते, कभी रहते दिन भर गायब.... दिन निकलता पर होता नहीं उजाला चारों ओर रहता अंधेरा छाया ऐसा लगता मानो कोहरे का आतंक सब पर है भारी..... उस पर सर्द हवाएं, शीत लहर से कट कट करते दांत बजते रोज़ नहाना होता बेहाल पानी भी बन जाता  दुश्मन देखते ही इसे भागते सब दूर दूर... कबंल, रजाई छोड़ उठने की न अब हिम्मत होती गर्म कपड़े डालो जितना फिर भी ठंड से राहत नहीं उस पर भी जुकाम, खांसी सबको लेते अपने घेरे में होठ, पैर सब फट जाते मानो जैसे रुखापन जीवन में बस जाता... गली, मुहले  में अब न होती पहली वाली रौनक सब घर के अंदर दुबके है मिलते चारों ओर बस सन्नाटा छाया रहता..... रहम करो अब तो हम पर सूरज दादा चीर इस कोहरे को अपनी किरणों से तुम फिर से अपना परचम लहराओ ठिठुरते जीवों को आकर तुम राहत दो...! परिचय :-...
सरकारी स्कूल
कविता

सरकारी स्कूल

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** सरकारी स्कूलां दी क्या रीस पैअलिया ते आठुंईयां तक बिल्कुल नी लगेया दी फीस। दपेहरें जेबे लगेया दी पुख आदी छुट्टिया री कन्टी बाज्जदेई खाणा देउंई एम,डी, एम री कुक। पैअलिया ते बारुंईयां तक दो-दो बरदियां एकदम मुफत। दो सौ रपईया नाल सलाई हिमाचले दी सरकारे ऐ बड़ी खरी योजना चलाई। दसुंईयां तक कताबां फ्री ऐते करिके बोलदे- सरकारी स्कूलां दी क्या रीस। बेटियां दी नी लगदी ट्युशन फीस सरकार देयादी पांति-पांति रे सकौलरसिप। खरे पढाकुआं जो मिलदे लैपटोप बोरड़ मैरिटा च आणे आलेआं जो रपईया मिलदा दस हजार। ऐते करिके हूंदी सरकारी स्कूलां दी जय-जयकार। हर बच्चे दी सेअत जांच हपते बाअद फॉलिक एसिड गोली साला च दो बार डी वर्मिंग गोली जवान बच्चियां जो सैनेटरी नेपकिन फ्री बस पास री सुबिदा खास। पैअली, तिजी, छेउंई, नउंईं कलास फ्री स्कूल चौअले मिलदे खास। ईकॉ फ...
शशि सम तेजस्विनी हिंदी
कविता

शशि सम तेजस्विनी हिंदी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** भाषाओं के नभ में शोभित शशि-सम तेजस्विनी हिंदी संस्कृत इसकी दिव्य जननी यशश्विनी इ दुहिता हिंदी राष्ट्र की संस्कृति-वाहक भारत की सिरमौर हिंदी सरस्वती वीणा से झंकृत देववाणी है यह हिंदी व्याकरण इस का वैज्ञानिक परिष्कृत प्रांजल है हिंदी हर अभिव्यक्ति में सक्षम सशक्त सरल संप्रेषणीय हिंदी स्वर-व्यंजनों से सुसज्जित अयोगवाह अलंकृत हिंदी रस छंद अलंकार से मंडित बह चली सुर-सरिता हिंदी विश्वस्तरीय औ कालजयी साहित्य-सृजन-सक्षम हिंदी तुलसी सूर मीरा निराला के हृदय की रानी हिंदी हिंद की साँस में बसती यह जन जन की प्यारी हिंदी कश्मीर से कन्याकुमारी श्वास-श्वास-बसी हिंदी बहुभाषा भाषी हैं हम, तो सबको मान देती हिंदी सभी भाषाओं को एक ही सूत्र में पिरोती हिंदी दोनों ही बाँहें फैलाए सभी को अपनाती हिंदी अंँग्रेजी उर्दू सब बोली को बिन दुर्भावना वरे हिंदी...
चांदनी के पैरहन
कविता

चांदनी के पैरहन

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** चांदनी के पैरहन लेकर ज़मीं पर, ये तुहिन कण इस तरह पहना रहे हैं। पत्ते पत्ते पर नयी लिखकर कहानी, लग रहा है गम सभी दफना रहे हैं। हर तरफ लगती धवल चादर बिछी कालिमा नज़रें चुरा जाने लगी है। अनसुनी सी थाप पर सरगम जगी पाज़बें नूपुर संग गाने लगी है। एकटक नीहार रश्मि को निरखते, ये खिला मन तो हुआ जाता भ्रमर सा। टहनियां यूं झुक गयीं अभिसार में, आचमन ज्यों हो रहा प्यासे अधर का। यह नज़ाकत ही न बन पायी जो आदत, बर्फ का ही रूप ले लेंगे तुहिन कण। अहम का कोहरा घना हो जायेगा, ठहर कर जमते चले जायेंगे हिम कण। परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमें...
देश मालामाल है
कविता

देश मालामाल है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। स्टेचू गगन चुंबी यहां हैं हमारे पास। आश्चर्य जहां का है ताज हमारी मिरास।। किले बड़े-बड़े हैं ऐसे किसके हैं निवास। संसदभवन अब औरनया बन रहा हैखास।। दुनिया के साथ हमने मिलाए कदम सदा। हरअपना कदम इस जहां में बेमिसाल है।। क्यों फिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब माल हैं बड़े-बड़े करोड़ों के गोदाम। आश्वस्त हैं इसओर चल रहा हैऔर काम।। महंगाई तरक्की की शक्लहै करो सलाम। मदिरा सरे बाजार बिक रही है सरे आम।। हरहाथ मेंअब काम है दुनिया का ज्ञान है। घर बैठे पूंछ लेते हैं क्या हाल-चाल है।। क्योंफिक्र तुम्हें देश की है क्या मलाल है। क्या देखते नहीं हो देश मालामाल है।। अब देखिए रेलों की ही रफ़्तार देखिए। मेट्रो का कितना हो रहा विस्ता...
सत्संग
कविता

सत्संग

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मुझे मेरे होने पर अहंकार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। करू हर काम मे मनमानी मैं जो ठहरा अभिमानी देख दुसरो का दुःख मुझे अच्छा लगता है दुसरो को दुःख देना मुझे अच्छा लगता है परपीड़ा में आता मुझे आनंद है हँसते हँसाते चेहरे मुझे नापसंद है हम प्रजा हम ही सरकार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। दुसरो की बात मैं क्यों मानु अपराध बोध मैं न जानु स्वार्थसिद्धि मेरा लक्ष व धाम है मुझे दुसरो से नही कोई काम है पर निंदा में आता मुझे रस है दुसरो को दबाने में ही जस है ब्रह्मांड सा मेरा विस्तार है राग, द्वेष, ईर्ष्या, क्रोध मेरे अलंकार है। कर ले तू मन मानी चाहे जितनी मार ठोकर दुनिया को चाहे जितनी समय का पहिया रहा है घूम आज तू मद में चाहे जितना झूम दब जाएगा मिट्टी में जल जाएगा भट्टी में कर ले तू अभिमान मूढ़ तू क्या जाने जीवन के ग...
सजल-जरुरी तो नहीं
कविता

सजल-जरुरी तो नहीं

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** तुझसे सुबह शाम मिलूँ, जरूरी तो नहीं, तेरे नाम पे गजलें कहूँ, जरूरी तो नहीं। बेशक बेइंतहा है प्यार, तुझसे जानेमन, मैं इसका दिखावा करूँ, जरूरी तो नहीं। जीना पड़ता है, परिवार-समाज देखकर, बस प्यार ही सर पर धरूँ, जरूरी तो नहीं। जग से छुपा हुआ, पवित्र रिश्ता है अपना, इस बात का हल्ला करूँ, जरूरी तो नहीं। एक बार कह दिया, अनूठा प्रेम है हमारा, जानू-जानू कहता फिरूँ, जरूरी तो नहीं। हमारी बातें तो हो जाती है, चिट्ठियों में, तेरी गली में आता रहूँ, जरूरी तो नहीं। दिल से याद करता है तुझे ये "विकाश" बस हिचकियों में ही रहूँ, जरूरी तो नहीं। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार ...
लाचार नहीं है नारी
कविता

लाचार नहीं है नारी

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** कभी सुना है, आपने? उस देवी के बारे में जो हर -वक़्त, जिम्मेदारीयों तले खुद को, समर्पित किए है, टूटी झोपड़ी को, लिपना ताकि, झोपडी की दीवारें जल्दी फट न जाए. कम ही खाती है, वो कहीं खाना, मेरे बच्चों को घट न जाये, कम ही सोती है, वो आराम, उसके लिए अपराध है मजबूरियों की चक्की में खुद को पीसना यही उसकी, अनोखी याद है, कभी देखा है, आपने? खेतों में काम करते, उस माँ को हाथों में हंसिया लिए चिलचिलाती धुप में, जलते हुए अपनी किस्मत की, लकीरों को देखते हुए.. उन्हें देखकर, कभी हसते हुए कभी रोते हुए, कभी खुद ही सम्भलते हुए, क्या देखा है, आपने? उस माँ के नन्हें, उस बच्चे को जो खेतों के, मेड़ पर. माँ बसुंधरा के गोद में, ख़ुशी से उछल रहा हो बड़े -बड़े, महलों के गद्दे फीके सा लग रहें, उस मिट्टी के सामने, क्या समझा है, आपने?...
बोलती खिड़कियाँ
कविता

बोलती खिड़कियाँ

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। खुशबू खाने की,पकवानों की, अपनापन जब घोलती थी, दौड़े आते थे पडौसी बच्चे, काकी जब चौका खोलती थी। रिश्ते खून के ना होते थे पर, मन से मन को जो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। आवाजें हँसने की, रोने की, होले- से सब कह देती थी। उमड़ पड़ते थे सब रिश्ते जब, बेटियाँ पीहर में डोलती थी। आस-पास के दो घरों को, जज्बातों से वो जोड़ती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। रौनक तीज की, त्यौहार की, जब गलियों-चौबारों में होती। घर-घर बतियाने लगते जब, मुस्कान हर चेहरे पर बोलती। फुहारें हँसी के वो छोड़ती थी, दिलों में खुशियाँ घोलती थी। एक वो भी वक़्त था जब, खिड़कियाँ भी बोलती थी। अब वो दिन कहाँ रहे जो, दो घरों को फिर जोड़ पाए। कीकर उगे है मनके भीतर, खिड़की कैसे खोली जाएँ। परायों में भी अपन...
मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता
कविता

मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता

कालूराम अर्जुन सिंह अहिरवार ग्राम जगमेरी तह. बैरसिया (भोपाल) ******************** काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती निस्वार्थ भाव से स्वयं देना प्रकृति का वरदान है निस्वार्थ भाव से सेवा करना मानव तेरा स्वभाव होता फिर ना शिक्षा व्यापार बनती प्राकृतिक वह प्राणी के लिए मन में दया का भाव होता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना यह कोरोना होता ना यह मास्क ना सैनिटाइजर होता फिर ना तू मुझसे दूर होता ना मैं तुझसे दूर होता दिल में दया का भाव होता तू भी आजाद में भी आजाद होता प्रकृति पर है सबका अधिकार ऐसा तेरा स्वभाव होता ना मैं तेरा दुश्मन ना तू मेरा दुश्मन होता हम सब मिलकर रहते हम सब मिलकर रहते तू धरती पर मैं पंछी मैं आकाश में उड़ता हम इसके जीवन यह प्रकृति हमारी काया होती फिर ना तू मुझसे दूर ना मैं तुझसे दूर होता काश मानव तेरा ऐसा स्वभाव होता परि...