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कविता

ऐसा क्यों, कब तक…???
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ऐसा क्यों, कब तक…???

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** मैं देख रहा हूँ युगों से कभी तुम पत्थर की शिला बन जाती हो तो कभी देकर अग्निपरीक्षा धरती में समा जाती हो कभी काट दी जाती है तुम्हारी गर्दन तो कभी अंगभंग की शिकार हो जाती हो। कभी भरी सभा में अपमानित की जाती हो तो कभी स्वार्थ वश हर ली जाती हो। कभी सधवा हो कर भी विधवा सा जीवन जीती हो तो कभी वरदान को श्राप सा झेल जाती हो। कभी बनती हो खिलौना लम्पटों का तो कभी स्वाभिमान के लिए जलती चिता पर बैठ जाती हो। कभी कुचल कर जला दिया जाता है तुझे तो कभी गर्भ में ही मार दी जाती हो। कब तक बनी रहोगी विनीता क्यो नही करती हो तुम, प्रश्न अहल्या, सिया, रेणुका मीनाक्षी, द्रौपदी, अम्बिका उर्मिला, कुंती, उर्वशी पद्मिनी, वामा। ऐसा क्यों, कब तक? ऐसा क्यों, कब तक? कितने सुंदर रूप है तुम्हारे माँ, बहन, बेटी पत्नी, सखी। फिर भी तुम स्त्री, होने का दंड पाती हो। परिच...
बाल विवाह
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बाल विवाह

रुमा राजपूत पटियाला पंजाब ******************** एक नन्ही सी कली। एक गांव में पली। घर की अट इक लौटी बेटी, जहां बाल-विवाह की प्रथा चली। हो ग‌ई थोड़ी-सी बड़ी, आ गई मुसीबत की घड़ी। गुड़िया के साथ खेलती, अपनी सखियों के साथ, रहती कुछ न बोलती, जो कहते, वो करती। दस वर्ष की आयु में, बैठा दिया विवाह के मंडप में, खेल कहकर करा दिया विवाह, उस लड़के के साथ में दोस्त कहकर। भेज दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, जहां नहीं जानती थी किसी को, कह दिया माता-पिता ने अपनी बेटी को, मिलेगी बहुत खूब सारी खुशियां तुझ को। पता नहीं थी उस को कोई दुनियादारी, जो सौंप दी इतनी बड़ी जिम्मेदारी। कर दी उसकी शादी, हो गई जिंदगी की बरबादी। परिचय :- रुमा राजपूत निवासी : पटियाला पंजाब घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख...
बाबाओं के चक्कर में…
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बाबाओं के चक्कर में…

दामोदर विरमाल महू - इंदौर (मध्यप्रदेश) ******************** भगवान बनकर दुनिया हिलाने की बात करते है। आत्मा को परमात्मा से मिलाने की बात करते है। बड़े बड़े आश्रम है जो कई एकड़ में समाया है। आलीशान बंगले जिसमे स्वमिंग पूल बनाया है। कई बड़े शहरों में इनके वीआईपी तो फ्लेट है। जिसमे लगे कैमरे वो लेडीज़ के टॉयलेट है। कुछ अंधभक्त मूर्खता की तो हद पार करते है। खुदका ईश्वर छोड़ बाबाओ पे ऐतबार करते है। पता नही क्या मिलता है वहां क्या लेने जाते है। सत्संग के नाम पर हजारों खर्च करके आते है। ज्ञान लेने के लिए क्या दान भी ज़रूरी होता है। ईश्वर को पाने के लिए केवल ध्यान ज़रूरी होता है। स्वयं के लिए आस्था आपके दिल मे जगा देते है। और धीरे धीरे वो आपके ईश्वर को ही भुला देते है। आप गए तो तो पूरे परिवार को भी बुला लेते है। मनको परिवर्तित करने में ये जगजाहिर होते है। ये मूर्ख बनाने में तो जबरजस्त माहिर हो...
अपना-अपना करता है मन
कविता

अपना-अपना करता है मन

अमित प्रेमशंकर एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) ******************** अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे। धन दौलत और गाड़ी बंगला ये सब है एक सपना रे।। समझ रहा तू अपना जिसको होगा कभी ना अपना रे। हो जाए ग़र तेरा तो फिर आकर मुझसे कहना रे।। दो ग़ज कफ़न, दो बांस की डंडी कुछ दुर तक हीं अपना रे। दुश्मन तो दुश्मन हीं ठहरे अपने हुए ना अपना रे।। पिता, पुत्र हो भाई-बंधू कोई नहीं है अपना रे। छोड़ तुझे वो निर्जन थल में लौटेंगे वो दफ़ना रे कहे अमित की कलम हमेशा राम नाम बस अपना रे। अपना-अपना करता है मन कुछ नहीं है अपना रे....।। परिचय :- अमित प्रेमशंकर निवासी : एदला, सिमरिया, चतरा (झारखण्ड) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्र...
आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”
कविता

आओ सब मिलकर बनाएं- “राष्ट्रवादी सरकार”

बिपिन कुमार चौधरी कटिहार, (बिहार) ******************** जब जब होता, झूठ स्वीकार, तब तब होता, सच का शिकार, आम आदमी आज भी लाचार, आम आदमी था कल भी लाचार, मुद्दे से भटकना इनका संस्कार, मुद्दे से भटकाना उनका कारोबार, एक खैरात पाने को बेइंतहा बेकरार, दूजा इसे बांट करता सत्ता पर अधिकार, समस्या जटिल लेकिन सरल उपचार, सबसे पहले आओ बदलें अपना विचार, देश हमारा, हमें किसका इंतजार, जाति धर्म की बेड़ियों पर करना होगा वार, नफरत फैलाने वालों का करना होगा बंटाधार, सबको शिक्षा, हर हाथ में रोजगार, कानून का राज, फले फूले व्यापार, सीमा सुरक्षित, राष्ट्रीय अखंडता रहे बरकरार, तुष्टिकरण का नहीं हो घृणित संस्कार, रिश्वतखोरी पर हो अंकुश, बन्द करे कालाबाजार, सेवा की आड़ में नहीं करे भ्रष्टाचार, आओ सब मिलकर बनाएं, ऐसा राष्ट्रवादी सरकार... परिचय :- बिपिन बिपिन कुमार चौधरी (शिक्षक) निवासी : कटिहार, बिहार घोषणा पत्र : ...
तस्वीरें… राजनीति की
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तस्वीरें… राजनीति की

दुर्गादत्त पाण्डेय वाराणसी ******************** सियासत की, ये राहें उलझी हुई है, एक दूसरे से ठीक वैसे ही, जैसे रेलों की पटरियां, एक दूसरे से कश्मकश जैसी उलझी हो दावे किए गए, भर-भर के इतने बड़े-बड़े कि विशाल महासागर उस विशालता से शर्मा जाये पर, हकीकत की, ये बुनियाद उतनी ही कमजोर है जितनी एक गरीब, देख ले अपने छत का ख्वाब आज के वक़्त में.. नवीनीकरण का नशा इतना तेज चढ़ा उन्हें अपने घर, पुराने लगने लगे पुरानी, वो तस्वीरें इस कदर बेकार हो गए अब उनपर डिजिटल, तस्वीरें सजने लगे गुलामी की बेड़ियां जकड़ी थी, इस कदर जैसे लोहे को जंग, जकड़े रहता है पर, वो गुलामी की जंजीरें तोड़ दी गयी आज, हुआ भारत लेकिन, इस आजादी की आड में विषैली, वो नफ़रतें घोल दी गयी आत्मनिर्भरता बहोत चर्चा है, आजकल इसकी असहायों की, लाठी तोड़कर उन्हें, आत्मनिर्भर बनाया जा रहा.... उन लाचार...
जिंदगी
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जिंदगी

पवन जोशी रामगढ़- महूगांव महू (म. प्र.) ******************** नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे। मोड़ है चढ़ाव है उतार है, बहाव है तो बहने दे।। आज जी, तु कल को कल पे छोड़ दे। जीतले अतित को, इक नया तु मोड़ दे।। शुन्य हो जरा हां ढीठ बन। तु खुद से खुद का मीत बन।। लोक लाज रहने दे लानते कह रही है कहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। है तय जीत हार तो बस जूझना तो है। खुद जवाब है तु हर सवाल का फिर भी बूझना तो है।। व्यर्थ लगे भले, तु कुछ नियति की योजना तो है। दर्पणो सा हो घर तेरा क्या पर खुद मे खुद को खोजना तो है।। कुछ बची राख मे तपन अभी ढक रही है रहने दे। नदी सी है ज़िंदगी, बह रही है बहने दे।। क्या खुद बुना था तन नहीं। मिटा सकूं वो हक पवन नहीं।। स्थिति परिस्थिति सदा सब के संग एक सी रही। बस सुरतें सीरतों के सगं वक्त पे बदलती रही। हुआ सिकंदर वही जो उससा उसमे ढला। मनो जीत के रगंम...
ऐसा हिंदुस्तान बनाओ
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ऐसा हिंदुस्तान बनाओ

मोहम्मद मुमताज़ हसन रिकाबगंज, (बिहार) ******************** आपस में न कोई भेदभाव रहे सबसे सबका यहां लगाव रहे जात पात की दीवारें गिर जाएं प्रेम का ऐसा गीत सुनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ हिन्दू-मुस्लिम का न झगड़ा होवे हर हिंदुस्तानी यहां तगड़ा होवे सदियों से रहें हैं मिलकर यह- जन-जन को सन्देश सुनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ अमीर गरीब की खाई पट जाए गरीबी की लम्बी रेखाएं घट जाए प्रगति की बड़ी लकीरें तुम- खूब श्रम से आज बनाओ ऐसा हिंदुस्तान बनाओ!! परिचय : मोहम्मद मुमताज़ हसन सम्प्रति : लेखन, अध्ययन निवासी : रिकाबगंज, टिकारी, गया, (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आद...
बाकी रह गया…
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बाकी रह गया…

अंशिता दुबे लंदन ******************** इश्क़ में भिगोना बाकी रह गया, तेरी रातों को जगाना बाकी रह गया। गजलें तो हो गयी मुक्कमल, पर तेरे लिये गुनगुना बाकी रह गया। फिजाओं को साथ लेकर आयें, पर तेरा सूनापन बाकी रह गया। तस्वीरों से ख्वाब सजाकर लाये, पर तेरे संग मुस्कुराना बाकी रह गया। खेल तो आए तेरे संग बाजियां, पर तुझको सताना बाकी रह गया। भीग तो आए रिमझिम सी बूदों में, पर तेरे सावन का पहरा बाकी रह गया। अपनों से मिल के तो आ गये, इक तुम से ही मिलना बाकी रह गया। खुद को तुम्हारी महफिल से आजाद कर लाएं, पर तेरे यादों का सेहरा बाकी रह गया। परिचय :- अंशिता दुबे निवासी :- लंदन घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, र...
अक्षत रहो मीत
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अक्षत रहो मीत

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** अखण्ड सौभाग्य व्रत तीज पर विशेष साँसों की डोरी को ताने मांगूं तेरी लंबी सांसे खुद पर लूँ मैं तिरी बलाएँ तुझ पर कोई आँच न आए बनी मैं तो सावित्री जैसी यमराजों की ऐसी तैसी सुख साज त्याग चली सिय सी जीवन क विष खींचूँ अमिय सी ईश्वर से नित माँगूँ मीत तुझ संग निबहें राग के रीत प्रार्थना सदा यही करूँ मैं तेरी अँखि आगे निबटूँ मैं जब तक रहूँ जीवन में संग कोई तुझे कर पाए न तंग तेरे सारे दुख चुन लूँ मैं खुशियाँ राहों में बुन दूँ मैं अक्षत रहे तू जीवनसाथी तू मेरे जीवन की बाती परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच प...
चींटी
कविता

चींटी

दिलीप कुमार पोरवाल “दीप” जावरा मध्य प्रदेश ******************** एक नन्ही सी चींटी एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जैसे ये कतार में चलती है सिखा जाती है अनुशासन में रहना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मुंह में लेकर दाना जब चढ़ती है दीवारों पर, सिखा जाती है परिश्रम करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। जब गिरती है दीवार से तब उठकर संभलना फिर चल देना और दीवार पर चढ जाना, सिखा जाती है कैसे संघर्ष करना। एक नन्ही सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। काम जब कोई हो बड़ा तब कई चींटियों को इकट्ठा करना, तब सिखा जाती है मिलकर बोझ उठाना। एक नन्ही-सी चींटी जीवन में बहुत कुछ सिखा जाती है। मौसम विज्ञान की होती है बड़ी ज्ञाता, जब होती है कोई भूगर्भीय हलचल, या कोई और हो प्राकृतिक आपदा, तब कैसे ये अपने अंडो को लेकर सुरक्षित स्थान पर दौड़ी चली ...
भारत थाम लिया
कविता

भारत थाम लिया

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** चक्रवात तूफान, कोरोना कहर, और बदमिजाजों की भाषा देखकर सृजित हुई कविता। जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया देश ने भी तूफानों से लड़ना सीख लिया। कभी बेगाने अपनों से ज्यादा अच्छे होते फिर चलित कथन है अपने तो अपने होते बेगानों का निःस्वार्थ समर्पण देख लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। शानो शौकत चकमक गाथा शाहों की सहयोगी योद्धा व्यथा है उन बाहों की मजदूर कृषक गरीब आहों को परख लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। धरातल सागर चोटी पर सेवा की बरसातें नियम तोड़ते जाहिलों की कुत्सित सौगातें कड़े कानून से अब बहुतों ने सबक लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। जन्म मृत्यु वाली माटी का यही अफसाना कुछ तो ऐसा हो भविष्य याद में रह जाना माटी पे छाया प्रकोप विध्वंस जान लिया जज़्बों ने एहसासों से लड़ना सीख लिया। घर रहकर जीवन आनंद बहुत अनोखा था व...
बिरहिन के दरदि
कविता

बिरहिन के दरदि

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** उमड़ि घुमड़ि बदरा हरसत हैं मेघनीर अमरित बरसत हैं कुलकित अबनि हरियर दरसत हैं अब आबा पिया मोर मन तरसत हैं कारी बदरिया मोहि डर लागय कहु अंगना कहूं भीतरेय भागै जब ते गयै मोरि सुधि नहि लीन्हि अमाबसि चंद सम दरसन दीन्हें दादुरि टेर कूक पपीहा कै ककरी कस हैय हाल हिरदय कै बूंद मघा हायगोली कस लागै पपीहा बैन सरसिज उपजाबै केसे कहू सखि बाति न मानै बिरहनि दरदि सहय ऊहै जानैं सुआती कस तकै नयन रहति हैं उमड़ि घुमडि बदरा बरसत हैं परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२ जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
मिट्टी के खिलौनें
कविता

मिट्टी के खिलौनें

आरती यादव "यदुवंशी" पटियाला, पंजाब ******************** बचपन में खेला जिन मिट्टी के खिलौनों से मैंने आज जाकर उन मिट्टी के खिलौनों से मैंने जीवन की असली सीख पाई है, सपनों की टूटी इस दुनियाँ में मैंने फिर से जीवन जीने की आस जगाई है।। नन्हीं सी होती थी तब मैं जब मिट्टी के खिलौनें बनाती थी, उन गीले कच्ची मिट्टी के खिलौनों को मैं आँगन की दीवार पे रखकर सूखाती थी, रोज़ सुबह जल्दी उठ कर "वो सूखे या नहीं " ये देखनें मैं छत पर फिर चढ़ जाती थी।। तस्तरी, गिलास, बेलन, चौका, भगौना, चूल्हा बाल्टी और मैं कई बर्तन नए बनाती थी, नन्हीं सी इक गुड़िया थी मेरी मैं उस गुड़िया का ब्याह रचाती थी।। पंडित,नाऊ और धोबी भी बनते थे हम सब उस प्यारी गुड़िया के ब्याह में, नन्हीं प्यारी गुड़िया की बारात भी इक दिन आई थी, कुछ नन्हें दोस्त मेरे बने थे बराती वहां खेल-खेल में उस दिन हमनें, सब...
शहीद का बाप
कविता

शहीद का बाप

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** बेटे के सेना में भर्ती होने का समाचार सुन बूढ़ा बाप खुशी से झूम उठा, क्योंकि सेना में जाकर देशसेवा का भाव बेटे रूप में आज फिर से जाग उठा। अपने समय में किया हर जतन आज बेटे ने पूरा कर उसके सपने को साकार कर दिया। और आज फौजी न सही फौजी का बाप कहलाने का बड़ा गर्व महसूस हुआ। देखते देखते वह दिन भी आ गया, जब दुश्मन ने धोखे से देश पर हमला बोल दिया। कुछ जवानों की शहादत से देश तो युद्ध जीत गया, परंतु उसका बेटा दुश्मनों की मक्कारी का शिकार हो गया। पर न वो रोया, न ही पछताया, देश पर बेटे की कुर्बानी से बड़ा गर्व हो आया। आज शहीद का बाप होने का उसने सम्मान जो पाया। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक नि...
प्रकृति
कविता

प्रकृति

सौरभ कुमार ठाकुर मुजफ्फरपुर, बिहार ************************ जहाँ जाने के बाद वापस आने का मन ना करे जितना भी घूम लो वहाँ पर कभी मन ना भरे हरियाली, व स्वच्छ हवा भरमार रहती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ पर चलती गाड़ियों की शोर नही गूंजती जिस जगह की हवा कभी प्रदूषित नही रहती सारे जानवरों की आवाजें सदा गूंजती है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। जहाँ नदियों व झड़नों का पानी पिया जाता है जहाँ जानवरों के बच्चों के साथ खेला जाता है बिना डर के जानवर विचरण करते हैं जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। पहाड़ जहाँ सदा शोभा बढ़ाते हैं धरती की नदियाँ जहाँ सदा शीतल करती हैं मिट्टी को वातावरण अपने आप में संतुलित रहता है जहाँ सच में वही तो असली प्रकृति कहलाती है। परिचय :- नाम- सौरभ कुमार ठाकुर पिता - राम विनोद ठाकुर माता - कामिनी देवी पता - रतनपुरा, जि...
कवि हैं…..
कविता

कवि हैं…..

राजेश चौहान इंदौर मध्य प्रदेश ******************** कवि हैं..... खुले आसमान में, निश्छल मन से अपनी बात को सरल, सहज अभिव्यक्त करने वाला कवि हैं..... अपने शब्दों के अंदाज से, कठिन बात को सरल कर दें अपनी बातों से सरलता का परिचय देने वाला कवि हैं..... गहन चिंतन, मनन आदि से, शब्दों का तालमेल बनाऐ अपनी बातों से सभी का ध्यान आकर्षित करने वाला कवि हैं..... छोटी-छोटी बातों से मार्मिक व भावनात्मक पहलू को जगाने वाला अपनी बातों से हृदय और मन मस्तिष्क पर अमिट छाप देने वाला कवि हैं..... बहुत बड़ी-बड़ी बातों को सारांश में कहां जाए अपनी बातों से स्पष्टता झलकाने वाला कवि हैं..... सच्चे व जोशीले शब्दों से सभी व्यक्तियों में जोश भर दे अपनी बातों से गर्मजोशी का माहौल बनाने वाला कवि हैं..... उचित शब्दों से विचारणीय पहलू, गंभीर मुद्दे, हास्य व्यंग्य आदि को कह दे अपनी बातों से विषयों पर विशेष छाप छोड़ देने वाला...
अवगुण धोती शिक्षा
कविता

अवगुण धोती शिक्षा

कार्तिक शर्मा मुरडावा, पाली (राजस्थान) ******************** बहुत जरूरी होती शिक्षा, सारे अवगुण धोती शिक्षा। चाहे जितना पढ़ ले हम पर, कभी न पूरी होती शिक्षा। शिक्षा पाकर ही बनते है, नेता, अफसर, शिक्षक। वैज्ञानिक, मंत्री, व्यापारी, और साधारण रक्षक। कर्तव्यों का बोध कराती, अधिकारों का ज्ञान। शिक्षा से ही मिल सकता है, सर्वोपरि सम्मान। बुद्धिहीन को बुद्धि देती, अज्ञानी को ज्ञान। शिक्षा से ही बन सकता है, भारत देश महान।। परिचय : कार्तिक शर्मा पिता : शुक्राचार्य शर्मा शिक्षा : बी.एड, एम.ए. निवासी : मुरडावा पाली राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आ...
राधा की लालसा
कविता

राधा की लालसा

शरद सिंह "शरद" लखनऊ ******************** जीवन में तुम आओ न आओ, पर इस मन में समाये रहना। उठें घटाएं काली काली, झूम उठे हर डाली डाली, हर तरु की हर डाली पर, झूमें कोयलिया हो मतबाली, मन प्रांगण में छाओ न छाओ, इन अंखियन में कजरा बन रहना।। पपिहा की ध्वनि लागे सुहानी, पुलके तन मन सुधि बिसरानी, सखियन के संग बैठ बैठ के, उन्हें सुनाऊं कुछ कथा पुरानी, स्वाति बूंद बन बरसो न बरसो, पपिहा की प्यास बने तुम रहना।। जमें महफिलें नित ही दर पर, बजे शहनाई तन की वीणा पर, झूम झूम के नाचे राधा, सुन के बोल तेरी वंशी पर, महफ़िल में तुम आओ न आओ, मन वीणा में समाये रहना।। अक्षर अक्षर जोडूं पल पल, दिल करता गाऊं मैं हर पल, प्रीत डोर बना बना के, कविता रूप संबारूं हर पल, निकलें शब्द भले न मुख से, तन वीणा में स्वर भरते रहना।। छाई बदरिया आसमान में, टप टप बरसे घर आंगन में, कब बरसोगे बन के बदरा, हर पल आस रहे यह मन में...
मानव श्रृंगार की बात करो
कविता

मानव श्रृंगार की बात करो

पूनम धीरज राजसमंद, (राजस्थान) ******************** ना सम्मान की बात करो ना अपमान की बात करो ना किसी अस्तित्व की छेड़ो धुन बस तुम प्यार की बात करो सम्मान मिले ना अपनों से सम्मान मिले ना सपनों से सम्मान मिले स्व कर्मों से अपने कर्तव्य की बात करो अपमान से दिल पर चोट लगे अपमान से तन पर खोट लगे अपमान से अविचलित रह कर अपने स्वाभिमान की बात करो अस्तित्व तुम्हारा खोकर भी तुम मैं खुद को पा जाएगा आदर्श बनो अपने ही लिए अपने आत्माभिराम की बात करो चाहो तो स्नेह सदा चाहो पालो तुम प्यार का पूरा ज्ञान हो सर्व समर्पित प्रेम प्रति मानव श्रृंगार की बात करो परिचय : पूनम धीरज जन्म : १८ जून १९८३ निवासी : राजसमंद, राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
सवेरा
कविता

सवेरा

संजय सिंह मीणा करौली (राजस्थान) ******************** निशा नाश की नीव लगी तब, समझो उदित हुआ उजियारा। दैत्य प्रसंग विलुप्त भए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा।। हुई यामिनी, लुप्त बिलख कर, तारे चांद को निद्रा आई। भोर की प्रीत, पड़ी अंबर से, शीतल मंद, पवन उठ आई। पीत रंग, में रंगा दिवाकर, जगा, जगत का पालनहारा, दैत्य प्रसंग, विलुप्त भये तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... खग, नभ में भये प्रसन्न चित्त तब, कृषक, वृषभ ले चला सुखियारा। पनघट, रंग बिरंग भयो तब, पुष्प प्रतीक भए किलकारा। बजी पुण्य आवाज शंख की, शुरू हुए आदर सत्कारा,, दैत्य प्रसंग विलुप्त हुए तब, किरणों ने धरा पर पैर पसारा.... विघ्न विनाशक मंगल दायक, नवरत्न, पूरक गणनायक। नित उम्मीद जगे नवज्योति, तमस को, भोर भयो खलनायक। विश्व, निशा से मुक्त भयो तब, ज्योति अलख जगाए सवेरा, दैत्य प्रसंग विलुप्त भये तब, किरणों ने, धरा पर, पैर पसारा।। परिचय : स...
दोहरे किरदार
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दोहरे किरदार

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** बाहर से खुश हैं अंदर गमों का बाजार लेके चलते हैं लोग चेहरे पे चेहरे और दोहरे किरदार लेके चलते हैं। रोटी,धोती,मकान की महती पूर्ति के लिए ही तो यहाँ हम अपने कंधों पे दुनिया भर का भार लेके चलते हैं। दिल में है हसरत स्वंय लिए बस फूल पाने की मगर दूसरों की खातिर निज हाथों में खार लेके चलते हैं। परहित में काम कोई किया ना फूटी कौड़ी का मगर दिखावे के लिए सिर्फ जुबानी रफ्तार लेके चलते हैं। पछुआ हवा का असर उनपर इस तरह हावी हुआ है अब कहाँ वो अपनी संस्कृति,संस्कार लेके चलते हैं। वो क्या जमाने का भला कर पाएंगे तुम सोचो निर्मल जो औरों के लिए केवल दिल में गुबार लेके चलते हैं। परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली...
बेटियाँ
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बेटियाँ

मनीषा जोशी खोपोली (महाराष्ट्र) ******************** ईश्वर की सौगात, खुशियों की बरसात हैं बेटियाँ। आँगन की चिड़ियाँ, पापा की गुड़िया हैं बेटियाँ। हर घर की खुशहाली, आंगन की हरियाली हैं बेटियाँ। तारों की शीतल छाँव, दिल का लगाव हैं बेटियाँ। फूलों की सुन्दर क्यारी, सबसे प्यारी न्यारी है बेटियाँ। समुद्र सी विशाल, गंगा सी निर्मल हैं बेटियाँ। औैस की बूँद सी, शंख की गूंज सी हैं बेटियाँ। घर की न्यारी रौनक, खुशियों की दौलत है बेटियाँ। अपने पापा की जान, माँ की पहचान होती हैं बेटियां। परिचय : मनीषा जोशी निवासी : खोपोली (महाराष्ट्र) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानिया...
देश मेरा
कविता

देश मेरा

मुकेश गाडरी घाटी राजसमंद (राजस्थान) ******************** सीमा पर तैनात है जवान जो, सर्दी, गर्मी व बरसात सहन कर लेते हैं। ऐच्छिक सेना बनकर पीछे कभी ना हटते, दुश्मनों को कभी ना भीतर आने देते हैं। सबसे प्यारे जवान हमारे सबसे प्यारा देश मेरा... दुनिया के पवन रूपी में सुप्रसिद्ध हुआ भारत जो, तरह-तरह की संस्कृति, तरह तरह का वेश। भाषा है जो अनेक, तीर्थ स्थल है यहां अनेक, जगतगुरु व स्वर्ण चिड़िया कहलाया भारत देश। कितना सुंदर कितना निराला भारत देश मेरा..... हर क्षेत्र में ना कभी पीछे हटता भारत, खेल में सबसे आगे रहता है जो। प्रथम प्रयास पर मंगल पर पहुंचता है भारत, संकट में जात पात धर्म भूल जाता है। हर मुसीबत में साथ निभाता है भारत, चार धाम है जहां पर वो भारत देश मेरा.... परिचय :- मुकेश गाडरी शिक्षा : १२वीं वाणिज्य निवासी : घाटी (राजसमंद) राजस्थान घोषणा पत्र : प्रमाण...
यह कैसी आजादी है
कविता

यह कैसी आजादी है

दीवान सिंह भुगवाड़े बड़वानी (मध्यप्रदेश) ******************** सीमा पर सिपाही गोलियां झेल रहा है देश में नागरिक समाज-समाज खेल रहा है इस महान देश में,यह हो क्या रहा है। यह कैसी आजादी है। किसान गरीबी से तड़प रहे है मजदूर रोजगार के लिए तरस रहे है देश के युवा बेरोजगार घुम रहे हैं नसीब नहीं दो वक्त की रोटी,खुदखुशी कर रहे है। यह कैसी आजादी है। बेटियाँ देश की अकेली सफर करने से डरती है यदि रात में गलती से भी चली जाती है तो वह लौटकर कभी नहीं आ पाती है। यह कैसी आजादी है। अस्पताल तो सैकड़ों यहां है मगर स्वास्थ्य का कोई वजूद नहीं है सड़कों पर रोगियों की, कई जानें जाती है। यह कैसी आजादी है। मुल्क के लोग बड़ी चाह से जिसे चुनते है वही तो अपना रुख बदल लेते हैं सरकारें बदलती है, योजनाएं वहीं है विकास की किसी में,जगी भावनाएं नहीं है। यह कैसी आजादी है। आस जगी थी,सदियों की गुलामी के बाद एक ज्योत जली थी, कई ...