विमान का सफर
वचन मेघ
चरली, जालोर (राजस्थान)
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कोरोना जैसे संकट में।
जब गरीब था विकट में।
पड़ा था खाने पीने के झंझट में।
तब उड़ रहा था नीलाबंर में,
आ रहें थें अर्थशास्त्री भारत में,
शायद अर्थव्यवस्था संभालने,
मजदूर गरीब की मदद को।
जब वे चल रहें थें,
भूखे नंगे पैर।
उन्होंने देखी हवाई जहाज,
खुश होकर, एक आशा के साथ।
उनके बच्चें ताली पिटने लगें थे।
उन्हें साफ दिखाई दे रहे थे,
कई हाथ हवा में टाटा करते हुए,
अंगुलियों से V दिखाते हुए।
अब विश्वास हो गया उन्हें,
शायद सुचारू होगा यातायात।
सरकार हमारी भी सुनेगी बात।
इसी आशा से चलतें रहे,
धूप घाम में जलते रहे।
ऊपर से विमान गुजरते रहें।
बिचारे मर गए ट्रेनों के चक्कर में।
मरते भी जो चलने लगे थे,
विमान के टक्कर में।
होठ सूख गयें थें प्यास से।
चल रहे थें जिंदा लाश-से।
फिर भी बता रहे थें अपने बेटे को,
आरामदायक यात्रा है विमान की,
होता सफर मिनटों...