वृद्धाश्रम नही होता
आशीष तिवारी "निर्मल"
रीवा मध्यप्रदेश
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सबसे पहले माँ के श्री चरणों में अपना शीश झुकाता हूँ,
उसके ही आशीषों से मैं थोड़ा बहुत जो लिख पाता हूँ।
मेरे खातिर प्रथम देव है माँ मेरी, प्रथम गुरु है माँ मेरी
नौ माह कोख में रख, मुझे दुनिया में ले आई है माँ मेरी।
धर्म ग्रंथ और वेद पुराणों ने भी माँ की महिमा गाई है,
माँ की ममता अनमोल धरोहर, माँ बच्चों की परछाई है।
माँ पर कितना लिख पाऊँ मैं माँ ने मुझे आकार दिया है
दुनिया में लेकर आई माँ सपनों से सुंदर संसार दिया है।
तपिश में याद आती माँ के आंचल के शीतल छाया की,
माँ मानवती है, माँ अरुणा है, माँ शिल्पी है इस काया की।
खुद की भी परवाह नहीं, बच्चों के लिए समर्पित होती है
ईश्वर ने भी है माना, माँ दुनिया की सर्वश्रेष्ठ कृति होती है।
दुख सभी सहकर माँ बच्चों का जीवन सुखद बनाती है
सिलबट्टे में पिस-पिस कर मानो हिना रंग दे जाती है।
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