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कविता

वर्तमान
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वर्तमान

गोरधन भटनागर खारडा जिला-पाली (राजस्थान) ******************** दोस्तों युग बदल रहा हैं, झोपड़ियां टूट रही हैं। भवन विशाल बनाये जा रहे, गाँवों में सन्नाटा हैं । शहर भरे यू जा रहे हैं। युग बदल रहा हैं....।। गाये भी परेशान हैं, चारा इन्सान खा रहे। गीद्ङ मना रहे हैं, दीवाली। कुत्ते चले गए कोमा में।। युग बदल रहा हैं.....।। पता लगा जब कुत्तों को, तलुए इन्सान चाट रह्। बिल्ली ङर रही चूहों से, क्योंकि युग.....।। हजार की बन्द हैं, दो हजार की चल रही। सब कुछ धुन्धला सा हो गया। जमाने में पहलवान भी 'रो' गया। युग बदल.....।। सत्य कोने में रो रहा हैं। झूठों की ही चल रहीं।। जो बोले झूठ, दाल उन्हीं की गल रही। युग बदल.....।। . परिचय :- नाम : गोरधन भटनागर निवासी : खारडा जिला-पाली (राजस्थान) जन्म तारीख : १५/०९/१९९७ पिता : खेतारामजी माता : सीता देवी स्नातक : जय नारायण व्यास यूनिवर्सिटी जोधपुर ...
तेरी ख़ातिर
कविता

तेरी ख़ातिर

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** खुदी को, पढ़ रहा हूं मैं, तुझे,पाने की ही खातिर, हर चोट सह, सजता रहा, मुरत सा, जग ख़ातिर, है वक्त भी, हैरान हुआ, प्रहर विलीन जो मुझ में, सौदा किया, रातो से दिन, रोशन हो, की खातिर... बचा रखे है, लम्हें कुछ तुम्हें, सुनने की ही खातिर, चुराये हैं, सपन भी कुछ, सँग रमने, की ही खातिर, जो देखे ख़्वाब, खुली आँखों से, खो ना जाये पलको में, सोया नहीं, तब से हैं वो मूर्त, करने की खातिर... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रका...
विश्व युध्द
कविता

विश्व युध्द

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे योद्धा नहीं क्रुद्ध हैं। इसमे ना कोई रणभूमि है, ना शत्रु सेना कहीं घूमी है। रणबाँकुरे हुंकार न भरते हैं, योद्धा आपस में न भिड़ते है। गृह स्थपित जो सतत है, वो पूर्ण रूप से स्वस्थ हैं। जो चुप बैठा वो बुद्ध हैं, जो मौन रहे वो सिद्ध है। ये युध्द अनोखा युध्द हैं, इसमे ना योद्धा क्रुद्ध हैं। ना रात्रि में युध्द विराम है, ना दिवस में होता संग्राम है। हृदय फिर भी कंपकपता हैं, जब जन-रक्षक दुख पता हैं। संवेदनशील ही महान हैं, उसने तो पकड़ी कमान है। ये निर्मल मन से समृद्ध हैं जो नादान है -विशुध्द है। ये युध्द अनोखा युद्ध है, इसमे नही योद्धा क्रुद्ध है। सैनिक ना कोई घायल है, वो भी पुलिस का कायल है। डॉक्टर देश का रक्षक है, हर एक रोग का भक्षक है। सेवा-त्याग से शुध्द उर-वक्ष है, वो आज प्रभु के समकक्ष है...
प्यार का एहसास
कविता

प्यार का एहसास

ओमदीप वर्मा महाजन, बीकानेर, राजस्थान ****************** प्यार का एहसास होते थे घर आज वह मकानों में बदल गए। अपनों से अलग होकर कहते हैं चलो अच्छा है वक्त से संभल गए। सब अपनी पकाते अपनी खाते दो-दो लोगों के परिवार हो गए। रिश्तेदारी का किसी को पता नहीं मौसाजी भी दूर के रिश्तेदार हो गए। मां बाप को निकाला था घर से वहां हार लगी तस्वीर लटकती रहती है। इंसान इंसान क्यों ना रहा 'ओम' दिल में यही पीड़ खटकती रहती है।। . परिचय : ओमदीप वर्मा निवासी : महाजन, बीकानेर, राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८...
चुप क्यों हो?
कविता

चुप क्यों हो?

रीतु देवी "प्रज्ञा" (दरभंगा बिहार) ******************** चुप क्यों हो माँ? क्या विवशता है माँ? करता है सदा अन्याय इह लोक तुम्हारे साथ कर दिया जाता कभी बेटी भ्रूण हत्या लगने नहीं दिया जाता अरमानों के पंख कभी सहती जाती व्यथा सभी चुप क्यों हो माँ? प्रतिकार करो शक्ति स्वरूपा सहमी रहती तेरी गुड़िया देख दानवों क्रूर क्रिया तपती राह है असहनीय अस्तित्व रहा है असुरक्षित किया जा रहा जीवन अंत खिलाकर जहरीली पुड़िया क्यों चुप हो माँ? क्या शक्ति तुम्हारी नश्वर हो गयी है माँ? माँ तुम्हीं हो महिषासुरमर्दिनी तुम्हीं हो रक्तबीज संहारिणी सकल लोक कल्याणी संतान रक्षार्थ कर सदा सुख दायिनी चुप क्यों हो माँ वेदना के सागर से अब तो निकलो माँ रहती असहाय गाय समान सहती रहती सभी अपमान बन रह गयी हो कठपुतली हुंकार भरो माँ खोलकर जुल्मों की पोटली क्या तुम्हारा खुद पर कुछ भी अधिकार नहीं क्या तुम इज्जत की मानव समाज में अधिका...
लिखना क्या है
कविता

लिखना क्या है

तेज कुमार सिंह परिहार सरिया जिला सतना म.प्र ******************** लिखना क्या है पढ़ना क्या है लिखने के पहले पढ़ने के बाद एक बार पुनः देखने की इच्छा हुई देखा तो वह गीली पड़ी अक्षर लगभग मिट गए शब्द भी बर्वाद हुए उसी समय एक मित्र आये बोले क्या कर रहे भाये मैंने कहा कुछ नही यू ही बेकार बैठा था कागज कलम हाथ लगा कुछ लिखना चाह रहा था यार मुझे खुद पता नहीज मुझे करना क्या है मेरे मित्र ये एक घटना है जो घट चुकी हैं उनकी चिट्ठी थी जो नेत्र नीर से गीली हो चुकी हैं . परिचय :- तेज कुमार सिंह परिहार पिता : स्व. श्री चंद्रपाल सिंह निवासी : सरिया जिला सतना म.प्र. शिक्षा : एम ए हिंदी जन्म तिथि : ०२. जनवरी १९६९ जन्मस्थान : पटकापुर जिला उन्नाव उ.प्र. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
जज्बात छलकते हैं
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जज्बात छलकते हैं

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** जिंदा हूं खिलौना समझकर, यूँ ना हमसे खेलिए जिंदगी जो दांव लगाये, उससे क्या हिसाब कीजिए ! कड़वे घूंट पिए हों जिसने, उसको शर्बत क्या दीजिए जज्बात छलकते हैं आंखों से, शब्द जाया क्यों कीजिए! आदत हो जिद्दी आज भी, तो क्या कर लीजिए क्या पाएंगे इस झूठे खेल में, फुर्सत से जीने दीजिए! खुशी के लिए ही सही, हारकर हमसे खेलिए, सब खेल खुद जीतकर, ऐसा जुल्म ना कीजिए! बच्चे की तरह हम भी मान जाएंगे, मनाकर देखिए यकीन ना हो तो मेरी माँ से पूछ लीजिए! बड़े बनकर हंस लिए बहुत, अब ना हमको रोकिए, जमाने से डरना क्या? बच्ची बनकर खिलखिलाने दीजिए! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, क...
दानवता स्वीकार
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दानवता स्वीकार

अर्चना अनुपम जबलपुर मध्यप्रदेश ******************** समर्पित - अवनि से अम्बर तक प्रत्यक्ष परोक्ष रूप से मानव जाति के अधिकृत अतिक्रमण पर। उद्देश्य - प्रकृति-जीव संरक्षण। पशु-पक्षी पर बाज ना आये, करके अत्याचार। मानवता की अति कर्मगति, धरा देय चित्कार। अंध मार्ग औचित्यहीनता, हुआ बहु विस्तार। स्व स्वारथ निज सुविधा हेतु, रौंदे तिमिर हज़ार। छीन लिए मासूम खगों से, उनके घर- संसार। स्वास् वास् अब शुद्ध नहीँ, हवा में ज़हर घुलाया है। मानव के अधिकारों ने कुछ, ऐंसा तांडव मचाया है। जीवन से बढ़कर हो चले, वैनाशिक आविष्कार? मैं मानव हूँ और हैं केवल, मेरे ही अधिकार। इस विकार से कर चुका, दानवता स्वीकार। मति भ्रमित कर ली स्वयंमय, करके अंगीकार। सर्वाधिकार सुरक्षा पर, लगातार प्रहार? राष्ट्र हितैषी नीति की पगबेड़ि, बने हर बार। ऐंसे मानवाधिकार को, बार-बार धिक्कार। इसी हेतु कर्तव्यवाद की, हुई पुनः दरकार। शास...
कहर
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कहर

निर्मला परिहार पाली (राजस्थान) ********************** मेरा देश लहलहता था। फूलों की वादियों से। अचानक यह क्या हो गया? इस कदर मची है त्राहि-त्राहि चारों ओर। दरबार कभी जिनका बंद ना हुआ। वह मंदिर मस्जिद गिरजाघर शांति से बैठे आज। कहर ये कैसा छा गया? अचानक ये क्या हो गया? कि मातृभूमि का लाल। रात दिन हर पहर। गली-गली दे रहा है पहरा। दूजी तरफ वो मां का लाल, अस्पताल में बेफिक्र कर्तव्य निभाता। अचानक ये क्या हो गया? जो मानव कभी रुका नहीं शांति से बैठा आवास में। विडंबना की स्थिति में। सरकार का सहयोग सही। क्योंकि कोरोना का कहर है ऐसा सांसे छीन ली जीव की। तो क्यों ना हम सब। इस मुश्किल दौर में। मातृभूमि और मां के लाल की, तरह अपना कर्तव्य निभाएं। घर पर रहे! सुरक्षित रहे। रास्ता बस यही एक सही संकल्प लिया यह। पुनः देश लहराएगा।। . परिचय :-  निर्मला परिहार आयु : २३ वर्ष शिक्षा : बी.एड. द्वितीय वर्ष छात्रा...
जहर का प्याला
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जहर का प्याला

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** होठों पर है जहर का प्याला एक तुम्हारा नाम कान्हा जब मीरा के मन को भाता है स्मृति में सब आ जाता है जाने ऐसा क्यों होता है सब कुछ मन बिसराता है प्रेम भरी लगती है दुनिया प्रेम पुजारी मीरा का मन जाने क्यों कान्हा में खो जाता है एक तुम्हारा नाम कान्हा जब मीरा के मन को भाता है जहर का प्याला पी जाती है प्रेम दीवानी मीरा हो जाती है।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) इंदौर, कवि कुंभ देहरादून, सौरभ मेरठ, काव्य तरंगिणी मुंबई, दैनिक जागरण अखबार, अ...
दावानल
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दावानल

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** आग जिस्म के तहखाने में लगी सारे जिस्म में फैल रही है। निकलने लगी है, चिंगारियां, आँखों की खिड़कियों से। सावधान सावधान, निजाम चलाने वालों लग रहा है, आग बेकाबू हो कर फैलने वाली है। चिंगारियों की जगह कुछ ही देर में निकलेगी आँखों से आग की लपटें धधक उठेगा सारा जिस्म आग से। खोजो, खोजो आग लगने के कारण खोजो वरना, सारा निज़ाम आग की चपेट में आ जायेगा। फिर कुछ न बचेगा न निज़ाम न भूख। बचेगी, सिर्फ राख इतिहास की राख। निज़ाम - प्रशासन व्यवस्था दावानल - जंगल की आग . परिचय :- धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. से सम्प्रति : १९८७ बैच के सीधी भर्ती के पुलिस उप निरीक्षक वर्तमान में पुलिस निरीक्षक के पद पर पीटीसी इंदौर में पदस्थ। सम्मान : हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० स...
कामयाबी का मंजर
कविता

कामयाबी का मंजर

विशाल कुमार महतो राजापुर (गोपालगंज) ******************** क्यों हार हुई उस गलती को तुम फिर से अपने अंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो सोचो क्यों आगे बढ़ती है, लहरों से नौका लड़ती है। तब जाकर नौका उस, दरिया को पार करती हैं। भूल जाओ सब को बस खुशियों का समंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो मंजिल की करो तालाश तुम, खुद पर रखलो विश्वास तुम। कभी आये जीवन में मुश्किल तो, ना होना कभी निराश तुम, तुम जीतोगे हर मुश्किल से, बस अपने आप मे सिकंदर देखो। ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो सुख दुःख तो मेहमान हैं, जीवन मे सदा ही आते हैं कभी देते है जी भर खुशियां, कभी सबको यही रुलाते है। क्यों हार हुई उस गलती को तुम फिर से अपने अंदर देखो, ना इधर देखो, ना उधर देखो सिर्फ भविष्य में कामयाबी का मंजर देखो ...
पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं
कविता

पत्र जो लिखा पर भेजा नहीं

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** एक पत्र भगवान के नाम लिखा था मैने भगवान से गुजारिश ये किया था मैने हे भगवान मेरी माँ मुझे वापस दे दो बदले में तुम मुझसे चाहे ले लो हे भगवान मेरे पिता मुझे वापस दे दो बदले में तुम मुझसे चाहे जो ले लो मैं माँ की गोद में एक बार सोना चाहती हूँ पिता से खिलौना की जिद करना चाहती हूँ हे भगवान एक बार मेरी विनती सुन लो बदले में चाहे तुम मेरे प्राण ले लो माँ पिता आज भी बसते हैं दिल की क्यारी में वो पत्र आज मुझे मिली पुरानी डायरी में . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताए...
लाकॅडाउन से छूटा नशा
कविता

लाकॅडाउन से छूटा नशा

राधा शर्मा इंदौर मध्य प्रदेश ******************** माना करोना को करना है हमे बहार लगी है जिन्हें बुरी आदते तम्बाकू,गुटका और शराब छोड़ बुराई आज रे नशा बुरा इक काज रे लाकॅडाउन का है ये फायदा सिखा रहा तुम्हें सही कायदा छोड़ रे बन्दे अब ये काम नशे से होता काम तमाम तम्बाकू,सिगरेट और शराब बन्द पड़ी सब दुकान मन से इसको दूर भगाना इस पर भी तो रोक लगाना छूट जायेगी लत ये बन्दे नशे के काम बहुत है गन्दे थूक-थूक घर किया खराब अब पियो न तुम ये शराब करती घर को यह बर्बाद दारू सिगरेट हो या तम्बाकू मन को रोककर कर लो काबू मानो तुम ये मेरी बात रहना हो यदि सबके साथ नशे से दूरी बनालो आज . परिचय :- राधा शर्मा निवासी : इंदौर मध्य प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
सूरज ने
कविता

सूरज ने

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** पूर्व दिशा में उदित हुआ तो तिमिर भगाया सूरज ने! भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने! गई निशा कजरारी काली, हुए प्रकाशित जड़-चेतन। छाई शुभ सुखदाई लाली, जाग उठे सोए जीवन। झूम उठे जन, मधुर जागरण गीत सुनाया सूरज ने। भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगा या सूरज ने! उड़े गगन में विहग प्रफुल्लित, ईश-वन्दना विरत हुए। हुए अग्रसर व्योम मार्ग पर, आलस के क्षण विगत हुए। जीव जगत को कर्तव्यों का पाठ पढ़ाया सूरज ने! भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने! सुमन बनीं कितनी ही कलियाँ, सूर्य मुखी ने किया प्रणाम। उत्साहित थी अधिक चपलता, उदासीन हो गया विराम। नयन-नयन को सुन्दरता की ओर बुलाया सूरज ने। भूमंडल पर रश्मि पुंज का शिविर लगाया सूरज ने। . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज...
जय मां बगलामुखी
कविता

जय मां बगलामुखी

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** पीतांबरा है नाम तुम्हारा। दसमहाविद्या में आठवां स्थान तुम्हारा।। सिद्धिदात्री तुम कहलाती। वाक् सिद्धि को सिद्ध कर जाती।। वाद-विवाद में विजय दिलाती। शत्रु का स्तम्भन कर जाती।। पीतरूप मां को है प्यारा। जन-जन को लगे हैं न्यारा।। पाप पाखंड को दूर है करती। शत्रु की जीवा को हरती।। "वीर रात्रि" की जो साधना करता। छत्तीस अक्षर मन में धरता।। कमी कोई रहने ना पाएं। तंत्रिका-मंत्रिका सिद्ध कर जाएं। बगला सिद्ध विद्या वह पाएं। एकाक्षरी मंत्र जो सिद्ध करे जाएं। हर संकट से मां बचाएं। बुद्धि-सिद्धि जय मां से पाएं। वीरवार को ध्यान जो करता। मां से उसको ज्ञान है मिलता।। . परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते...
मै कामगार हूँ
कविता

मै कामगार हूँ

गोविंद पाल भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** बहुत उम्मीदें बांधी थीं हमने तुमसे हम भी देखे थे कितने सारे सपने, अपना समझकर सत्ता पर बिठाया पर तुम नहीं निकले कभी अपने। समझने की कभी कोशिश नहीं की कैसे बनायें रखें हमारा स्वाभिमान, जब बुनियादी हक ही हमें न मिले तो समझो ये मानवता का अपमान। हम तो कामगार है हम कामचोर नहीं पर हमें उचित रोजगार और काम दो, खैरात बांट बांट कर पंगु बना दिये हो अब हमें कामचोर का न बदनाम दो। अशिक्षित अनपढ़ और गंवार हूँ भले ही पर मैं आत्मसम्मान के लिए लड़ता हूँ, हो सकता है तुम ढेरों पुस्तक पढ़े होंगे पर मैं तो जिन्दगी का किताब पढ़ता हूँ। हैसियत की बातें मत करो तुम मुझसे पूंजी है मेरी जिंदादिली की खुद्दारी, उॠण होने के लिए बहाता हूँ पसीना नहीं कर सकता हूँ धरती माँ से गद्दारी। पर शोषण के खिलाफ ऊंगली उठाता हूं जो हक के लिए संघर्ष करना है जरूरी, इंसानियत का तका...
मेहनतकश
कविता

मेहनतकश

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** ना ठौर कि हैं, आज फ़िकर, कल का भी,ना था कोई गम, चल पड़े ले पल के स्वप्न, कल की फिर, क्यो सोचें हम... मेहराब बन के, क्यो सजे, जब तृप्ति हो बन नीव हम, आज यहां, पल जाने कहा, निर्माण नव की शान हैं हम... ये आशिया तुम्हें ही मुबारक, हमें हैं यही, जहाँ का सुकू, हूँ ओढ़ता, खुला नील गगन, मिला जमी पे,गोदी सा सुकू... तन खारा सिंधु साथ मेरे, हमें जहाँ से, कोई आस नही, दिन भले हो मशक़्क़त भरा, पर रात हम सुकू के धनी... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
कोरोना काल
कविता

कोरोना काल

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** हिंदी साहित्य जगत में अब तक आया है चतुर्थ काल भक्ति रीती वीर और आधुनिक काल यह पंचम काल बनकर उभरा है यह भयावह विस्मयकारी कोरोना काल यह किसी? प्रकृति की नियति है की मानव है कैद महाभूल में भविस्य काल की अंधकार में। वुहान सहर चीन राष्ट्र ने। पूरी मानवता को झोंक चुका लॉकडौन की हाहाकार और अंधकार में। पंचम सुर में बज रहा यह कोरोना की दुखद भयावह राग। हाय यह कैसा आया? कोरोना का दुखद काल मानव मानव से संसंकित है वेहद दुखद यह संतप्त घड़ी है दिख रही सामने आने वाली भूख मेरी और विपदा की घड़ी है जागो जागो है त्रिपुरारी घट घट के वासी फिर से तू विश पान करो कोरोना का संघार करो अमृत कलश को छलकवो है अभ्यंकर हे नटराज फिर दे दो अभय दान मिट जाए यह मानवता का दुखद काल तेरे चरणों मे है इस अकिंचन का सहस्त्रो प्रणाम। . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्या...
तुम कितना हमको भूल सके
कविता

तुम कितना हमको भूल सके

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** खुशियों संग आबाद रहीं पर कुछ यादें नाशाद रही, हमें छोड़ जो हुए बेवफा हर पल उनकी याद रही। यादें तो काफिला बनाकर बढ़ती ही चली आती हैं, कर के गुज़रे लम्हों का उजाला नयी रौशनी लाती हैं। नींद में झकझोरते हैं हमको उनकी खुश्बू के झोंके, वही सुहाने ख्वाब दिखाने खुल जाते खामोश झरोखे। उनको पाकर के ज़ेहन में लहराते हैं प्यार के साये, वक्त थमे दिल कहता है बीते पल फिर जी जायें। धुआँ है ग़र माज़ी तो क्या वो भी है यादों का हरम, रोज़ वहाँ भी देखा हमने हो जाना पलकों का नम। मगर कहाँ ये मेरी किस्मत यादें मुझे सुला जायें, और मेरी हस्ती, बस्ती अपनी मस्ती में भुला जायें। मैंने तो यादों की रातें काटी हैं अपनी ही आँखों में, तुम कितना हमको भूल सके पूछो अपनी ही साँसों से। . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शा...
संघर्ष
कविता

संघर्ष

मंगलेश सोनी मनावर जिला धार (मध्यप्रदेश) ********************** कोरोना से युद्ध हुआ, संघर्ष में कई दिन बीत गए। घर में बैठे हार गए, और रोजे वाले जीत गए।। हमने अपना विश्वास रखा, लॉक डाऊन और कर्फ्यू पर, खुला बाजार, लगी भीड़, गली, नगर चौराहों पर। तुष्टिकरण की राजनीति में सारा हर्ष समाप्त किया, रमजान की शुभकामनाएं मिली, माँ दुर्गा और भगवान को बिसरा दिया।। मजदूर, श्रमिकों, किसान की खातिर, लॉक डाऊन पर विचार होना ही था। ३ मई को निश्चित हुआ, संकल्प को दृढ़ तोलना ही था।। सौंपकर कमान प्रदेशों को मनमर्जी का रास्ता खोल दिया, देशभक्ति के ह्रदय में खंजर सस्ती राजनीति ने घोंप दिया। योद्धाओं के बलिदानों का थोड़े दिन और मान रखा होता, खुलना ही था लॉक डाऊन, सभ्य समाज का ध्यान रखा होता।। नही हटेंगे प्रतिबंध, संदिग्ध गलियों और चौबारों से, फिर भी कितना पालन होगा देकर छूट त्यौहारों में। त्यौहार ही मनाना हो तो घर में...
इंतजार
कविता

इंतजार

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** मुझे पता है बेकार है इंतजार तेरा, अब ये भी ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है दोस्त है तू मेरा, तेरी दोस्ती का एहसास ना करूं तो क्या करूं।। मुझे पता है प्यार है तू किसी और का, तेरे प्यार का इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है दोस्त है दोस्ती है मेरी, इस वफा का इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है ये सिर्फ एहसास है मेरा, इस तन्हाई में तेरा इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है तू किसी और की अमानत है नहीं मिल सकता इस जन्म में मुझे, अगले जन्म की दुआओं में तेरा इंतजार ना करूं तो क्या करूं। मुझे चाहने से पहले आजमाने से पहले कुछ कहने से पहले दूरियां बना ली मुझसे, अब इन दूरियों का गम भी ना करूं तो क्या करूं। मुझे पता है बेकार है इंतजार तेरा, अब ये भी ना करूं तो क्या करूं।। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक ...
इंसान बड़ा बन गया हैं
कविता

इंसान बड़ा बन गया हैं

मारोती गंगासागरे नांदेड (महाराष्ट्र) ******************** शोनो-शौकत और पैसों से इंसान सुधर गया है उतना ही वह वह अपने-अपनो से दूर गया है इंसान आज बड़ा बन गया है भूल गया सब रिश्तें-नाते छोड़ दिया उसने देहात जितना वह आगे बड़ा गया है उतना ही इंसानियत में नीचे गिर गया है इंसान आज बड़ा गया है नीति छोड़कर अनीति अपनानी हैसियत से ज्यादा की कमाई माता-पिता को छोड़ दिया है अरे ईसने तो सच्ची दौलत ठुकरायाँ है इसलिए तो आज इंसान बड़ा गया है खुदको छोड़कर मोबाइल निहारता है आज के दौर में इंसान मशीन बन गया है रात -दिन मेहनत करके भूखा सो जाता है इसलिए तो मैं कहता हूँ कि इंसान आज बड़ा बन गया है . परिचय :- मारोती गंगासागरे निवासी - नांदेड महाराष्ट्र आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं,...
बेटियाँ
कविता

बेटियाँ

कंचन प्रभा दरभंगा (बिहार) ******************** बेटियाँ घर की रौनक है बेटियाँ घर की शान है जिस घर में बेटी नहीं वो घर बहुत सुनसान है फूलों की खुशबू है सँझा का दीपक है जिनके घर में बेटी नहीं वो पिता बहुत महान है बेटी दो कुल की जननी बेटी माँ की परछाईं जिस घर की बेटी करे पढ़ाई वो घर जग में नाम कमाए बेटी को पढ़ा लिखा कर देश का करो कल्याण बेटी पढ़े तो मिल जाये मात पिता सबको सम्मान . परिचय :- कंचन प्रभा निवासी - लहेरियासराय, दरभंगा, बिहार सम्मान - हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० सम्मान से सम्मानित  आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hin...
मेरा सपना सच हो जायें
कविता

मेरा सपना सच हो जायें

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन के बहुमुल्य समय सत्य हो जायें, सबको अपना लक्ष्य प्राप्त हो जायें, मन को छू लेने वाली कोई बात हो जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, विज्ञान की प्रगति से दुनिया को आलोकित किया जायें, भौतिकी, रसायन , जीव की जीवनदान मिल जायें, मनुष्यों मे जग-ज्योत जलाया जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, साहित्य से समाज का ज्योत जलाया जायें, राजनीतिक की स्तंभ को रोशनी दिखाया जायें, जीवन के दृव्य-दृष्टि को नई पहचान दिलाया जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, मौत के मुह से कैसे बचा जायें, साँसो के साँस से कैसे बचा जायें, नवजीवन को नव नवल नई नयन मिला जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन मे प्यार को प्यार मिला जायें, आँखो से ओझल होकर दुनिया मिला जायें, आरजू - गुस्त्जू से याद मिला जायें, काश मेरा सपना सच हो जायें, जीवन मे गणि...