Sunday, December 14राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

कविता

धरा की अनंत पीड़ा
कविता

धरा की अनंत पीड़ा

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। जीवन दिया, पोषण किया। पालक होकर भी, पतित रही। अपनी ही संतानों का, संताप हर, अनंत संताप सहती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। स्वर्णनित उपजाऊ शक्ति देकर, भूख मिटाई दुनिया की, पर अपनी संतानों की लालसा से, उनके लालच से बच ना सकी। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। अपनी सारी सुंदरता देती रही। और अपनी ही संतानों से, करूपित होती रही। गंदगी के ढेरों को सहती रही। अमूल्य धरोहरों को देकर, प्रदूषण से सांसे घुटवाती रही। विश्व धरा ने युगों-युगों से, अनंत पीड़ा सही। इंसानो की गलतियों से, जब रुौद्र रूप लेती। सबकी गलतियों की सजा, खुद ही सह लेती। आज विश्व धरा दिवस पर, संकल्प ले...... धरा के सरंक्षण की, कोरोना की आपदा जो कुछ लालची इंसानों ने थी बनाई। किस तरह धरा प...
मानव रूपी प्रभु
कविता

मानव रूपी प्रभु

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है, देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। कोरेना ने देखो कैसा आज कहर मचाया है। मंदिरों में लगे ताले, सबको घर मे बिठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। देवी दुर्गा चली घर-घर लेकर आशा को, रोगी ढूंढ-ढूंढ फिर अस्पताल पठाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। भूखों का दुःख हरने देवी अन्नपूर्णा चली , कई भोजनशाला में उसने भोजन बनाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। शाला से निकलकर शारदे अदृश्य चली , दुर्मति की बुद्धि को ठिकाने पर लगाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। विपदा में प्रभु को अब दो ही रंग भाया है, खाकी वरदी पहन सही रास्ता दिखाया है। देखो मंदिरों से आज प्रभु बाहर आया है। श्वेत रंग प्रभु ने कैसे मौन होकर पाया है, चिकित्सक के रूप में उपचार कर पाया है। देखो...
अनैतिकता
कविता

अनैतिकता

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** अनैतिकता का बोल-बाला है जहां भी- आसुरी शक्तियां वहां पर है चरम पर! खोद चुका है पूर्व में मानव- कब्र अपना गगनचुंबी इमारतों में! झांक रहा है पतन का गुब्बार अपना- बहुत दूषित कर चुके तुम इस धरा को! कराह रही है धरती मां और अंबर अपना- स्वप्न बन गई है कि कल कल निर्मल! बहती रही सदा संसार की नदियां- प्राण दायिनी वायु भी अब बन गई जान लेवा! चारों तरफ हाहाकार है रो रही है यह धरा- संत भी सुरक्षित नहीं है यह है मानवी वेदना! वोट बैंक के लिए स्वार्थी फरेबी बन गए हैं नेता- देशहित से बढ़कर इनका सुनहला स्वप्न अपना! नित सीमाओं पर शहीद हो रहे देशभक्त अपना! कैसे सुरक्षित रहेगा मां भारती का भविष्य अपना- श्रेष्ठताओ को भूलकर हम चले जा रहे कहाँ? मां भारती की चरणों में है-इस अकिंचन का- करुण क्रंदन रुदन बंदन शत शत नमन! . परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य व...
अक्षर ज्ञान
कविता

अक्षर ज्ञान

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** लेकर चल कोयल मुझे भी तू गाँव के द्ववारे, छोड़ आई जहाँ बचपन के गुड्डी गुड़िया सारे! वह सेमल का पेड़ और जमीं से उपजा पानी, चैत्र माह मिलने आती उजले रंगत वाली नानी! खेतों की मेंड़ो पर मैं चलती रहती थी तीरे-तीरे, वहीं बूढ़ी सी गौ माता चरती रहती थी धीरे धीरे! ऐसे-ऐसे दिन भी देखे जीवन की परवाह नहीं है, अनगिन पीड़ा दबी हृदयतल में पर आह नही है! पता नहीं था अक्षर ज्ञान इतना बेबस कर देगा, ऊंची उड़ान की लालसा, बंद पिजरे में भर देगा! सबको सब वहीं जो मिलता होता न अलगाव, यूँ कोई दौड़ा शहर ना आता सबको भाता गाँव! . परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि ...
जुआं
कविता

जुआं

डॉ. बी.के. दीक्षित इंदौर (म.प्र.) ******************** धर्मराज मत कहो उन्हें, जो हार गए निज पत्नी को। द्वापर युग बेहतर कब था, याद करो हठ धर्मी को। दिखे नपुंसक पाँच पांडव, द्रोण गुरू भयभीत दिखे। अर्जुन जैसे राजकुँवर..क्यों तुमको जगजीत दिखे? जुआं बुरी है बात पता था, धर्म विरुद्ध आचरण था। फिर क्यों खेले धर्मराज, पता नहीं क्या कारण था? सूदपुत्र कहते-कहते अर्जुन नहीं थका करते थे। जाति सूचक शब्दों को, क्यों हर बार बका करते थे? पाँच पति के जिंदा होते, चीर हरण क्या सम्भव था? देव कुंड से जन्मी कन्या, हो लज्जित असम्भव था। पुत्रमोह के बशीभूत, हर युग में पिता दिखाई देता। भीष्म प्रतिज्ञा ये कैसी, क्या नहीं सुनाई देता था? पौरुष भी कायर होता है, धन का लोभ छोड़ नहीं पाये। द्रोण सरीखे महापुरुष, धर्म नीति को जोड़ न पाये? रही चीखती भरी सभा में, द्रोपदि की पीड़ा सुन लेते। भीम सेन की गदा बोलती, दुर्योधन ...
पृथ्वी
कविता

पृथ्वी

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** जो है, मेरे घर की छत वही है ,दीवारें मेरे घर की इसे कहते है, आकाश, यही तो मेरा घर है। ये वृक्ष, पशु, पक्षी निर्भय हो विचरते है निकलते है नवांकुर मेरी कोख से भर देती हूँ उसमे मैं रंग, स्वाद, रस, और गंध सब कुछ है, लयबद्ध मुझे इससे प्यार है यही तो मेरा घर है। धवल शिखरों से मंडित सागरो से सुशोभित गगन चुम्बी देवदार विशाल बांहे मखमली दूब का गुदगुदाना ओंस की बूंदे मेरी पलको पर रुकती कहा है सभी की शरारतें बरकरार है, यही तो मेरा घर है। बस थोड़ा उद्दंड हो गया है मानव मनमानी पर उतरा है उसे अपनी भूल का भान करा कर मैंने उसका पंख कुतरा है। बेसुरा कैसे गाने दूंगी मिलाना उसे भी सुर है यही तो मेरा घर है। सूर्य, चंद्रमा, तारे मैंने छत पर सज़ा रखे है कभी उजले कभी गहरे होते मेरे परिधान है जन्म, मृत्यु का भी फेर है यही तो मेरा घर है। . परिचय :- नाम : धै...
पृथ्वी दिवस
कविता

पृथ्वी दिवस

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** लगता है बहुत खुश हैं, धरा और गगन। प्रदूषण का स्तर हुआ निम्नतम। पक्षी भी उन्मुक्त, कर रहे हैं भ्रमण। गुलों की बहार है, खिले हैं चमन। वक्त को समझें, अवसाद में न उलझें। धरा दिवस पर कुछ लिखें, जो कहे आपका मन। सभी का अभिनन्दन, सभी रहें स्वस्थ यही कह रहा, मेरा अन्तर्मन। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों तथा सामाजिक पत्रिकाओं में आलेख, ललित निबंध, कविताएं, व्यंग्य, लघुकथाएं संस्मरण आदि प्रकाशित। लगभग १९८५ से सतत लेखन जारी है । १९९७ से इन्दौर में निवास वर्तमान में ल...
ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता
कविता

ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता

प्रो. आर.एन. सिंह ‘साहिल’ जौनपुर (उ.प्र.) ********************   भेड़िया भी आदमी को देखकर फ़रमा रहा मांद से देखो निकल ये कौन बंदा आ रहा देख इनकीं हरकतो को बाघ चीते दंग है इनकी करतूतों से भस्मासुर भी है शरमा रहा दिन दहाड़े मॉब लिंचिंग हो गया जैसे चलन ख़ौफ़ नफ़रत ग़म का बादल है वतन में छा रहा शांति भाईचारा मृग मरीचिका सा लगने लगा आदमी को देखकर अब आदमी घबरा रहा पीड़ितों को देखकर मुँह मोड़ लेता आदमी विडियो लेकिन बनाकर ख़ुद का मन बहला रहा ज़ख़्म से पीड़ित मनुजता घाव कैसे भर सके वक़्त का मारा ये साहिल ज़ख़्म ख़ुद सहला रहा . परिचय :- प्रोफ़ेसर आर.एन. सिंह ‘साहिल’ निवासी : जौनपुर उत्तर प्रदेश सम्प्रति : मनोविज्ञान विभाग काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी, उत्तर प्रदेश रुचि : पुस्तक लेखन, सम्पादन, कविता, ग़ज़ल, १०० शोध पत्र प्रकाशित, मनोविज्ञान पर १२ पुस्तकें प्रकाशित, ११ क...
वीरों की शहादत
कविता

वीरों की शहादत

रीना सिंह गहरवार रीवा (म.प्र.) ******************** सलामत शान वीरों कीऐ हिन्दुस्तान तुम रखना..., कफन बांधे खड़े हैं जो उन्हे बस याद तुम रखना। बन कर देश के प्रहरी..., अपना फर्ज निभाने को अपनी जान दे बैठे सब की जान बचाने को। खुद के परिवार को छोड़ा....., देश को ही घर समझ कर के नाते तोड़े अपनो से अपना फर्ज समझ कर के। भुला देना न उनकी कुर्बानी......, पियें जो खून के आँसू गंगाजल समझ कर के। सलामत शान वीरों की ऐ हिन्दुस्तान तुम रखना, कफन बांधे खड़े हैं जो उन्हे बस याद तुम रखना। . परिचय :- रीना सिंह गहरवार पिता - अभयराज सिंह माता - निशा सिंह निवासी - नेहरू नगर रीवा शिक्षा - डी सी ए, कम्प्यूटर एप्लिकेशन, बि. ए., एम.ए.हिन्दी साहित्य, पी.एच डी हिन्दी साहित्य अध्ययनरत आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्...
मां
कविता

मां

श्रीमती शोभारानी तिवारी इंदौर म.प्र. ******************** मां पूरे कुनबे को, प्रेम सूत्र में बांधे रखती है, निःस्वार्थ भाव से बच्चों का, लालन-पालन करती है, अपने आंचल की छांव में सुरक्षित रखती है, खुद पतझड़ सहकर, सबको बहार देती है। मां से ही रंगीन सुबह, सुहानी शाम है, मां से ही जीवन में उत्थान है, ऋषि-मुनि भी उनके आगे, सिर झुकाते हैं, क्योंकि इस धरती पर, मां सबसे महान है। लक्ष्य को चुनौती बनाकर, आगे बढ़ती जाती है, परिवार के नींव का, पत्थर होती है मां, टूटे हुए मनोबल का, विश्वास है धड़कते हुए दिलों का, श्वास है मां। मां के चरणों में जन्नत, चारों धाम हैं, हसीन हैं सपने, सुहानी शाम है , मां शब्द में सारा ब्रह्माण्ड है मां के चरणों में, बारम्बार प्रणाम है। . परिचय :- श्रीमती शोभारानी तिवारी पति - श्री ओम प्रकाश तिवारी जन्मदिन - ३०/०६/१९५७ जन्मस्थान - बिलासपुर छत्तीसगढ़ शिक्षा - एम.ए समाज...
मैंने भी
कविता

मैंने भी

सुरेखा सुनील दत्त शर्मा बेगम बाग (मेरठ) ********************** सींच कर अपनी चाहत से, प्यार का पौधा लगाया मैंने भी, खिली धूप में फुलवारी सा, शाख़ पे फूल खिलाया मैंने भी, प्यार की लता और चाहत से, तुझ पर रंग चढ़ाया मैंने भी, सींच कर अपनी चाहत से, प्यार का पौधा लगाया मैंने भी, फूलों का रस पीकर जैसे, तितली मदहोश होने लगी, फिर देखो तुम्हारी यादों से, अपनी सेज सजाई मैंने भी, फिजाएं मस्त मस्त थी, बेखौफ सारा मंजर था, तेरे आगोश में आने को, मन जो इतना चंचल था, सींच कर अपनी चाहत को, प्यार का पौधा लगाया मैंने। . परिचय :-  सुरेखा "सुनील "दत्त शर्मा साहित्यिक : उपनाम नेहा पंडित जन्मतिथि : ३१ अगस्त जन्म स्थान : मथुरा निवासी : बेगम बाग मेरठ साहित्य लेखन विधाएं : स्वतंत्र लेखन, कहानी, कविता, शायरी, उपन्यास प्रकाशित साहित्य : जिनमें कहानी और रचनाएं प्रकाशित हुई है :- पर्यावरण प्रहरी मेरठ, हिमालिनी नेपाल,ह...
संवाद
कविता

संवाद

माधुरी व्यास "नवपमा" इंदौर (म.प्र.) ******************** पाटल कहे अलि से........... मुस्कुराता था मैं अपनी, खुबसूरती पे इतराता था। मधुर गुंजार पर मैं तेरी, झूम-झूम फिर जाता था। रे अलि ये क्या किया? आस-पासआकर जो तू, जब इतना मुझे रिझाता था। प्रेम भरी धुन पर मैं तेरी, मचल-मचल जाता था। रे अलि ये क्या किया? ओ! भ्रमर तूने मुझे फिर, चेत में रहने ना दिया। चित्त-चैन चुराकर तूने, विचलित, उद्विग्न फिर मुझे किया। रे अलि ये क्या किया? मधुर गीत गा-गाकर तेरे, पास आने के प्रयास ने। सुंदर-कोमल पंखुड़ियों को, मेरी भेद-भेद विदीर्ण कर दिया। रे अलि ये क्या किया? अंतर में उमड़े प्रेम को, प्राप्त तूने भी ना किया। शांत सरोवर के भीतर तूने, तरंगों-सा कंपन दे दिया। रे अलि ये क्या किया? अब अलि पाटल से कहे..... तुझ पर सम्मोहित हो मैने, घावों का परिणाम सहा। चेतनता को जब पाया तो, मन को घायल मैने किया। रे पाटल ये...
सजदे में सर झुकाओ
कविता

सजदे में सर झुकाओ

विवेक रंजन 'विवेक' रीवा (म.प्र.) ******************** सजदे में सर झुकाओ या मैक़दे से आओ, कुछ तो पता बताओ कि ईमान कहाँ है? रात का एहसास तो हर सुबह हुआ है, वक्त की करवट से यूँ अनजान जहाँ है। उस धुयें के ढेर से निकला अंधेरा पूछता, वह रौशनी को ढूंढता इन्सान कहाँ है? तनहाईयों से प्यार किया हमने टूटकर, फिर भी मन हमारा बियाबान कहाँ है? जलना पड़ेगा हमको उनके लिये विवेक, देखो तो चराग़ों में अब जान कहाँ है? . परिचय :- विवेक रंजन "विवेक" जन्म -१६ मई १९६३ जबलपुर शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र लेखन - १९७९ से अनवरत.... दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास "गुलमोहर की छाँव" प्रकाशित हुआ है। सम्प्रति - सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मं...
प्रकृति का सौंदर्य
कविता

प्रकृति का सौंदर्य

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** आज हर्षित नीर नलीन हैं, दृश्य विमोहक, वास हैं, हो प्रमुदित, कर्णिकार पुष्पित, देख कामिनी रास हैं... पात पात कुहूकिनी झूमें, कुहू कुहू के राग पे, मधुप भी मचले हुए हैं, गुन गुन करते नाँद पे... स्वांग रचता मयुर अरण्य में, रमनी को रिझाने में, देख प्रतिबिम्ब, ज्यो लजाई, अंशु निर्मल दरपन में... निर्झरिणी आवेग प्रबल है, तोड़ बाँध, उर सारे, मिलन पि को बह निकली, भाव घुँघरु, बांध न्यारे... सुवास बिखरी हर दिशा में, मन उत्फुल्ल, बोधशून्य हैं, ढूंढ़ते सब, अपनी कस्तूरी, विराजे उर, ज्ञान शून्य हैं... . परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक ...
सहलाया नहीं गया
कविता

सहलाया नहीं गया

मदनलाल गर्ग  फरीदाबाद ******************** तुमसे दस्ते कर्म बढाया नहीं गया। हमसे जख्म अपना सहलाया नहीं गया। जाहिर होने ना दी दिल की कभी तुमने, और राज़ कोई हमसे छुपाया नहीं गया। खोई रहीं तू तो गोरों में ही बस, हमसे दिल और कहीं लगाया नहीं गया। जाहिर तो थी जफ़ा सब तेरी ही बातों से, पर दिल दीवाने समझाया नहीं गया। हम ढूढते ही रहे अपनत्व तेरी बातों में, तुमसे अपनत्व ही दिखलाया नहीं गया। एक इशारे की चाह में बीती जिन्दगी, पर तुमसे दुपट्टा लहराया नहीं गया। हारा उल्फत की गर्मी दे दे बहुत में, पर दिल तेरा कभी पिघलाया नहीं गया। दर्द मेरे जख्मों का बढता ही रहा बहुत, अश्क एक भी तुमसे बहाया नही गया। उलझाया जीवन तुमने है ऐसा मेरा, ता उमर ही मुझसे सुलझाया नहीं गया। . परिचय :- मदनलाल गर्ग निवासी : फरीदाबाद शिक्षा : मैकेनिकल इंजीनियर निर्देशक : आभा मचिनेस प्राइवेट लि. आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
यार बस भी करो ना
कविता

यार बस भी करो ना

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** कोरोना कोरोना कोरोना यार बस भी करो ना जीना मुहाल हो गया है तुम परलोक सिधारो ना यार बस भी करो ना। अक्ल ठिकाने आ गई हमारी आसमान में उड़ रहे थे भारी तुम्हे भी निपटाने की है तैयारी जाके कही मुँह काला कॅरोना यार बस भी करो ना। घर बैठे बैठे निपटाएंगे तुझे गरम पानी पी पी के कोसेंगे तुझे साबुन सेनेटाइजर की कमी नही मुझे भले तू चीख मुझे मारों ना यार बस भी कोरोना। ऋषि मुनियों का है ये देश एकांत रहना ही है हमारा परिवेश नही हो सकता तेरायहा समावेश नर्क से आये हो वही जा सडो ना यार बस भी करो ना। बंध गए है हम एकसूत्र में जन्मे हो चाहे किसी गोत्र में एकता की सुगंध नही किसी इत्र में आतताई प्रस्थान अब करो ना कोरोना कोरोना कोरोना यार बस भी करो ना। . परिचय :- नाम : धैर्यशील येवले जन्म : ३१ अगस्त १९६३ शिक्षा : एम कॉम सेवासदन महाविद्याल बुरहानपुर म. प्र. स...
यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी
कविता

यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** प्रार्थना है, नमन है, अरदास भी! यत्न है,आशा भी है विश्वास भी! महामारी की लहर है हर जगह है हर डगर है विश्वव्यापी हो गई यह, चाल भी इसकी प्रखर है! था नहीं इसका तनिक आभास भी! यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी! दीन सह धनवान पीड़ित सबल-निर्बल सब प्रभावित संक्रमण कब देखता है निरक्षर अथवा सुशिक्षित स्वामी भी चिन्तित हैं एवं दास भी! यत्न है, आशा भी है, विश्वास भी! है अधिक गंभीर रोग मरण से अच्छा वियोग लाकडाउन कुछ दिनों का नहीं निकलें घर से लोग कर रहे हैं मूर्ख कुछ उपहास भी! यत्न है, आशा भी है विश्वास भी! प्रार्थना है, नमन है, अरदास भी! यत्न है, आशा भी है विश्वास भी! . परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ ए...
हम इस देश के वीर जवान हैं
कविता

हम इस देश के वीर जवान हैं

आयुष गुप्ता इंदौर म.प्र. ******************** हम इस देश के वीर जवान है..... परं शक्ति के और जाने वाले वीर जवान है... इस वक़्त जो घर में रह गया वो भी वीर जवान है... कयूं डरता है ए-इंसान एक वायरस से, मातृ भूमि के लिए समर्पित लाखो वीर जवान है... क्या बिगाड़ लेगा वायरस हम भी वीर जवान है... तूझसे लड़ेंगे और मरेंगे कुछ ऐसी हमारी पहचान है... विश्वास नहि होता तो आ लड़ हम से, दीखला देंगे तुझको, यह नया हिंदुस्तान है...।।।यह नया हिंदुस्तान है।।।... सलाम है सेवा करते उन इंसान रूपी भगवानो का, जो इस देश के सच्चे वीर जवान है।।।... देखना हो तुझको माटी का दम सीना ले के खड़े हम हिंदुस्तानी जवान है।।।।।।...   परिचय :- रचनाकार का नाम आयुष गुप्ता हैं आप एक ऑप्टॉमट्रिस्ट हैं, ११ कक्षा के बाद इन्हे कविता लिखने की प्रेरणा मिली और तभी से आप तरह-तरह के विषयों पर कवितायें लिख चुके हैं… आप भी अपनी कवि...
हम दोनों के बारे में
कविता

हम दोनों के बारे में

आशीष तिवारी "निर्मल" रीवा मध्यप्रदेश ******************** स्याह रात में तू रोती है, मैं रोता हूँ दिन के उजियारे में, ये दुनिया वाले क्या जानें? यार हम दोनों के बारे में! एक तेरी ही यादों में, मैं तो अक्सर ही खोया रहता हूँ, खुश हो जाता है दिल जब तू दिखती है गलियारे में! नींद हो चुकी है गायब अब तो, रात-रात भर आखों से कर रहा चांद में दीदार तेरा, तू देख रही मुझे तारे में! दिल से दिल के रिश्ते जुड़ जाते हैं बड़ी आसानी से, एक दूजे को ही सोचते रहते खड़े-खड़े अंगनारे में! दोनों को ही जुदा कर सके वो हिम्मत नहीं जमाने में, चाहे लाख जुर्म कर लें सब, मुझमें और तुम्हारे में!   परिचय :- कवि आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपक...
इश्क़ ऐ राह
कविता

इश्क़ ऐ राह

श्याम सिंह बेवजह नयावास (दौसा) राजस्थान ******************** इश्क़ ऐ राह इश्क के राह में मंज़र हजार देखे हर चीज दौलत में बिकते बाजार देखे संभल ऐ खुदगर्ज़ इंसां यू शिकायत ना कर माशूका के साथ बदलते यार देखे लुटा दिया था जग सारा जिस हँसी पे गुफ्तगूं करते ऐसे संसार देखे बदलाव की आँधी ने हमे बहुत कुछ दिया यूँ हँसी वादियाँ हमने नदियों के पार देखे पढ़ी है कहानियां हज़ार उसने हम ने तो सिर्फ उनके सार देखे मर मिटे जिस शख्स पे हुस्न ऐ तारीफ काबिल ना कभी इस दुनिया मे ऐसे दिलदार देखे तमन्ना ऐ दिल मिल जा एक बार नैना तरस गए वो सच्चा प्यार देखे नुमाइश ऐ खुदा सलामत रख उस शख्स को "श्याम सिंह बैरवा" ने ख्वाब में जो हार देखे   परिचय :-  श्याम सिंह बेवजह निवासी : नयावास (दौसा) राजस्थान आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, ह...
परिमार्जित व्यवहार
कविता

परिमार्जित व्यवहार

राम प्यारा गौड़ वडा, नण्ड सोलन (हिमाचल प्रदेश) ******************** कोविड - १९ के प्रभाव से, हैंं सभी हैरान, घर में बैठे कर रहें, इष्ट देव का ध्यान। प्रकृति से जुड़ा है नाता, श्रद्धा वश झुक रहा माथा। आपा-धापी, भागम-भाग....... क्षीण हुआ जल्दबाजी का राग। अस्तित्व बोध हुआ है भारी, दूर होगी मिलकर महामारी। डॉक्टर नर्सें, पुलिस कर्मचारी ...... समस्त प्रशंसा के अधिकारी। सेवा भाव जिन्होंने दर्शाया, जीवन में पुण्य प्रचुर कमाया। एकता, सौहार्द का स्वभाव, अनुशासन संयम और सद्भाव, क्षीण करेगा कोरोना प्रभाव। मानव का परिमार्जित व्यवहार,,,, करेगा महामारी पर प्रहार।।   परिचय :-  राम प्यारा गौड़ निवासी : गांव वडा, नण्ड तह. रामशहर जिला सोलन (सोलन हिमाचल प्रदेश) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविता...
दिया जरूर जलाना है
कविता

दिया जरूर जलाना है

डॉ. प्रभा जैन "श्री" देहरादून ******************** की मनमानी हर क्षण अब तो संभल जाओ सताया जीवों को बहुत पेट को कब्रिस्तान बनाया। आज छाया घोर अंधेरा मुश्किल हो गया साँस लेना, घर के अन्दर सब बन्द है पशु-पक्षी ख़ुश है। हटाओ, फैला जो अंधेरा हवन यज्ञ पूजा दान, कुछ अच्छा कर जाओ आज दिया जरूर जलाना है। प्राण वायु को करो शुद्ध शुद्ध जल का करो सेवन ज़िंदगी के तम को हरना हैं दिया जरूर जलाना है। . परिचय :- डॉ. प्रभा जैन "श्री" (देहरादून) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमेंhindirakshak17@gmail.comपर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी...
परिवार
कविता

परिवार

पवन मोहनलाल रायकवार खंडवा (म .प्र.) ******************** अनमोल है डगर, अनमोल है परिवेश, थाम ले अपनो का हाथ जिसे कहते है परिवार का द्वार। यही है स्वर्ग, यही है अमृत जीवन का मर्म, जो बांधे रखता है एक डोर में जीवन की भौर। देता यह छाया, हर लेता सबके दुःख, रहती इसमें आशा, दूर हो जाती निराशा। जैसे पेड़ की छाया, जैसे शीतल हवा, रखता सबका ध्यान, जैसे नीर और गगन। है जीवन का अंग, जीवन का सार, मन की आशा, उद्देश्य की अभिलाषा। रक्षक है करते दुखों का अंत, जिसे कहते है परिवार, है एक ऐसा वंश। अम्बर जैसी विशालता, धरती जैसी विनम्रता, जैसे बंधी हो एक डोर, जिसे कहते है परिवार व। . परिचय :- पवन मोहनलाल रायकवार निवासी : खंडवा (म.प्र.) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित...
आ अब लौट चलें
कविता

आ अब लौट चलें

श्रीमती लिली संजय डावर इंदौर (म .प्र.) ******************** आ अब लौट चलें.... संकट के इस समय में फुरसत के इन पलों में आओ मिलकर सोचें और विचार करें कि... इस जीवन का आदि क्या था? अंत कहाँ कैसा होगा ? जिस रस्ते से चलकर आये क्या वहीं पुनः जाना होगा? कितने शूल-फूल के पथ से ये जीवन आया होगा, अब तक का जो सफर किया क्या आगे भी वैसा होगा? क्यों कि.. अब मंज़िल अनजानी है कठिन हुई जिंदगानी है, कदम कदम पर खतरा है ये दुनिया तो फानी है। जाना कहाँ है...समझ ना आये लेकिन इतना जान लिया, कि जीवन तो एक यात्रा है सच्चाई को मान लिया। अब तक जो मनमानी की मर्ज़ी की जिंदगानी जी, उसमें अब परिवर्तन होगा चिंतन और मनन होगा। पाषाण युग से चलते चलते हम जा पहुंचे अंतरिक्ष तक, जंगल की गुफाओं में रहते रहते आशियाना बना लिया मंगल तक। एक वानर जाति के जीव से होमोसेपियंस, आधुनिक मानव बनने का सफर तो तय हो गया, और अब मानव .... विक...
मनोव्यथा
कविता

मनोव्यथा

मंजुला भूतड़ा इंदौर म.प्र. ******************** न तुम घर से निकलना न हम, दूर से देखकर ही मुस्कुराएंगे तुम-हम। बहुत याद आएगा यह मंजर भी, अजीब से रिश्ते कर दिए हालात ने। फुरसत में तो हैं मानो सब, पर मिलने का नहीं कोई सबब। कुदरत का कहर झेल रहा इन्सान, जोखिम उठाकर चिकित्सक निभाते अपना ईमान। कुछ सिरफिरों को नहीं दिखता इनमें भगवान, सफाईकर्मी, पुलिस वाले फिक्र में हैं, बचाने निकले हैं हर जान। कोरोना का भय है,सब सुरक्षित घर में, नमन है उन कर्मवीरों को, जो लगे हैं बीमारी के दमन में। परिचय :-  नाम : मंजुला भूतड़ा जन्म : २२ जुलाई शिक्षा : कला स्नातक कार्यक्षेत्र : लेखिका और सामाजिक कार्यकर्ता रचना कर्म : साहित्यिक लेखन विधाएं : कविता, आलेख, ललित निबंध, लघुकथा, संस्मरण, व्यंग्य आदि सामयिक, सृजनात्मक एवं जागरूकतापूर्ण विषय, विशेष रहे। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक समाचार पत्रों त...