बिरहनी
ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)
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बिरहनी इस चांदनी में
ज्योति पुंज से तू खड़ी हो।
इस धरा पर विपुल स्वर्ग सा
मलयानिल फिर मंद गति से।
रुक रुक कर बहती है।
विरहनी इस धवल चांदनी में
ज्योति पुंज सी तू स्थिर हो।
बोलो सदियों की चुप्पी तोड़ो
कब से मौन व्रत में तुम?
चंचलता को रोक खड़ी हो।
सृष्टि तो अविराम गति से
सदियों से गतिमान बनी है।
तुम प्रेरक हो जीवन सुधा की
चांदनी फिर सकुचाई देखो।
देखो चंपा जूही बेला
रजनीगंधा ने ली अंगड़ाई।
तेरी बंदन में मग्न रजनी है।
नीले अंबर के तारक गण भी
बिखरे हैं नभ में अति सुंदर।
सुदूर क्षितिज में उज्जवल तारे
तुझे देखकर विहंस रहे हैं।
नीले अंबर के नीचे" विरहनी"
नील मणी सी तू अति सुन्दर
हर पल नूतन दिखती हो।
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परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम - गंगापीपर
जिला -पूर्वी चंपारण (बिहार)
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