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गीतिका

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए
गीतिका, छंद

आज ऐसे क्रान्तिकारी चाहिए

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द में जो स्वयं कर्तव्य पथ की, साधना को साध लें। आपदा की आँधियों को, मुट्ठियों में बाँध लें। थरथरा उट्ठें कलेजे, नाम सुनकर पाप के। शब्द अपने आप उल्टे, लौट जाएँ शाप के।। क्रूर होकर जो अहं को, खूँटियों पर टाँग दें। हर प्रहर मुर्गे सरीखी, जागने की बाँग दें। जो हृदय इंसानियत के, राग के आगार हों। देश पर हर हाल मिटने, के लिए तैयार हों। वे पुरुष हों या कि नारी, चाहिए इस देश को। आज ऐसे क्रान्तिकारी, चाहिए इस देश को।। दूसरों के मुँह न ताकें, साथियों को साथ दें। जो गिरें उनको उठा लें, हाथ को निज हाथ दें। भारती माँ की न निन्दा, भूलकर भी सह सकें। देख कर बेचैन धरती, खुद न जिन्दा रह सकें । प्रेम को पूजा समझ कर, धर्म को आधार दें। जो हृदय की बीथियों में, व्योम सा विस्तार दें। क्या घृणा क्या...
अगणित व्याल
गीतिका

अगणित व्याल

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** छिप के बैठें हैं खादी में, गांधी!अगणित व्याल। धुँधला करने चित्र तुम्हारे, धूल रहे नित डाल।। नैतिकता अब अर्श छोड़ कर, चूम रही है फर्श। झूठ और हिंसा में बदले, तेरे सब आदर्श।। वैष्णव मन ही मानव तन की, खींच रहे हैं खाल।। जन - सेवा का चोला पहने, दुष्ट लुटेरे चोर। संविधान को काट खा रहे, रक्षक हुए अघोर।। बिंब-त्याग के,बने हुए सब, कलुष कर्म की ढाल।। फटी बिवाई छूना चाहें, छींके पर परचून। काग-भगोड़ा बन धमकाता, को कानून।। स्वर्ण-रजत के खेत काट के, जगमग हुए दलाल।। प्रायोजित दंगे जनती हैं, पूजा और नमाज। छल-छंदों से नभ छू लेना, हुआ आचरण आज।। करे गोड़से को सम्मानित, जनगण का प्रतिपाल।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
जौम्बी बना रहे
गीतिका

जौम्बी बना रहे

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार के कलुष रंग में, कण-कण सना रहे। इसीलिए तो कुंभकार मठ अब, जौम्बी बना रहे।। कुटिल वृत्तियों के मौसम ने, पाया अब विस्तार। लोकतंत्र की शाखाओं पर, चलने लगे कुठार।। जुगनू लगा रहे अब नारे, यह तम तना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। धूर्त कथानक रस्सी को ही, बता-बताकर सर्प। करते आएँ सदियों अपनी, छलनाओं पर दर्प।। संस्कृतियों के अंग-अंग में, नित रण ठना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। नव विहान ने फूँक दिए ज्यों, स्वर व्यंजन के शंख। विहग-वृंद ने खोले अपने, कोरे कोमल पंख।। मठाधीश जल उठे देख यह, बम दनदना रहे।। इसीलिए तो कुंभकार मठ, जौम्बी बना रहे।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
तामस की कारा
गीतिका

तामस की कारा

भीमराव 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** खपी पीढ़ियाँ सपनों में ही, हुआ न उजियारा। कब तक हो भिनसारा भाई, कब तक भिनसारा।। तेल चुका ढिबरी का सारा, बाती राख हुई। आसमान तक अँधियारे की, हँसमुख साख हुई।। सधन हुई है दिन-प्रतिदिन ही, तामस की कारा।। नकबज़नी में रोटी के, नख, घिस-घिस टूट गए। पुस्तक का घर मावस के कुछ, गुंडे लूट गए।। चौराहों पर बेकारी का, चीख रहा नारा।। श्वास-श्वास पर पूरब के हैं, प्रतिबंधित पहरे। जब-जब सोचे निकले बाहर, पाँव धसे गहरे।। खर्च हो गया भूख-प्यास पर, दम-खम था सारा।। स्वर्ण-श्रंखला में बँध घंटे, भूल गए बजना। आठ पहर विरुदावलियाँ ही, उनको जो भजना।। रुद्ध हुई गंगा यमुना की, समरस जलधारा।। परिचय :- भीमराव 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
आप का सानी नहीं
गीतिका

आप का सानी नहीं

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोल अद्भुत आप का है, देख हैरानी नहीं। आप जिसको काटते वह, माँगता पानी नहीं।। सेंक लेते हो चिता पर वोट की सब रोटियाँ, झूठ, धोखे, जाहिली में, आप का सानी नहीं।। ठीकरा नाकामियों का फोड़ते सिर और के, जानती हैं सच प्रजा सब, मान अंजानी नहीं।। मात्र मित्रों के भले को, पेट लाखों काट दें, और इतना निर्दयी कोई, यहाँ प्राणी नहीं।। वेदना कब नारियों की आप समझेंगे मियाँ, है सिंहासन पास में पर, साथ जब रानी नहीं।। आप ने अवतार लेकर, धन्य धरती को किया, आप-सा कोई खुराफाती व अभिमानी नहीं।। बरगलाना, बाँटना बस, हाँकना डींगे महज, ज़िल्लतें ही दी हमें अब, और शैतानी नहीं।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
दर्पण फूट गए
गीतिका

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहे हैं , सत्ता के घोड़े। मार दुलत्ती हटा रहे हैं, पथ के सब रोड़े।। चौखाने पर विषधर ही सब, हो रिक्रूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल...
सपनों का घर
गीतिका

सपनों का घर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** क्यों रहना है पीछे मैं भी, चलूँ अगाड़ी में। बना रहा है सपनों का घर, चिन्टू बाड़ी में।। पाँच दशक जीवन के फूँके, छप्पर-छानी में। टूटे काँधे, दुख ढो बदली, देह कमानी में।। जाग रही पर मृग मरीचिका, उभरी नाड़ी में।। बी पी यल का लाभ उठाने, चूल्हा अलग जला। रेत-सरीखा रिश्तों के, आँखों में रोज सला।। बेयरिंग-सा फँस के है खुश, जीवन-गाड़ी में।। चार माह तक रोज सचिव के, पूजे गए चरण। पाँच हजारी पूजा पाकर, पास हुआ प्रकरण।। घुला रेत, सीमेंट साथ ही, स्वयं तगाड़ी में।। किस्तों की आवाजाही में, उभरे अवरोधक। घात लगाकर बैठे जल में, आखेटक से बक।। प्राण-पखेरू ले डूबी पर, रिश्वत खाड़ी में।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
गाली भरे खजाने
गीतिका

गाली भरे खजाने

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शुद्धिकरण का मंत्र किये है मंशा मैली अपनी गंगाजल से धोते फिर भी रही अपावन कफनी रहे पूजते गोबर को नित मार गाय को डंडे नफरत के रोबोट बनाते वहशी हुए त्रिपुंडे सिखा रहे हैं भेदभाव की माला कैसी जपनी।। टांँग उठाकर श्वान मूतते फिर भी पूज्य ठिकाने देख वंचितों पर उड़ेलते गाली भरे खजाने सदियों सुख को पिये अघाने चखी न दुख की चटनी।। भरे हुए हर घट में इनके साजिश के सौ खोखे कपट दुर्ग में धन लाने के लाखों बने झरोखे स्वर्ग-नर्क के इनके दंगल देते रहे पटकनी।। ••• परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छाय...
बंद हैं संवेदना की सीपियाँ
गीतिका

बंद हैं संवेदना की सीपियाँ

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोपना सौहार्द के कुछ बीज प्यारे, बस बबूलों की बची हैं पीढ़ियाँ अब।। नागफनियों - से हुए सब धर्मधारी। विष बुझी है हाथ में जिनके कटारी।। लिख रहे कानून की वे कंडिकाएँ, काटते जो न्याय के पथ की फरारी।। रेत में चट्टान-सा साहस गला है। बंद हैं संवेदना की सीपियाँ अब।। कोसती दुर्भाग्य को ही भूख आदी। खा रही आश्वासनों की दी प्रसादी।। जनसुरक्षा का जिसे अधिकार सौंपा, खून से लगती सनी वह श्वेत खादी।। पीटती है ढोल जो कल्याणकारी, कटघरे में जा खड़ी वे नीतियाँ अब।। दिन ब दिन बढ़ती दलाली की अटारी। त्रस्त होरी के चढ़ी सिर तक उधारी।। सेवकों के द्वार पर की फूलझड़ियाँ, कर रही रंगीनियों से खूब यारी।। जोड़ती जो इस धरा को आसमाँ से, ध्वस्त सारी हो गयी हैं सीढ़ियाँ अब।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रद...
मौसम का जारी तांडव
गीतिका

मौसम का जारी तांडव

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** इस मौसम का जारी तांडव, देख रहे अब हम। रोज कथानक के नव बरछे, चलते पाँवों पर। नमक निचोड़ा हर मौसम ने, गलते घावों पर।। भूख-प्यास की आहें सुन के, सिल बैठे लब हम।। उफन रहे ज्वालामुखियों को, ठंडा करना है। लाशों के बदले लाशों से, लेखा भरना है।। प्रश्न, प्रश्न को मारे कैसे, सीख गए ढब हम।। सिंदूरी फंदों में उलझे, श्वासों के रेले। मावस-पूनम ले आती जो, छल-छंदी मेले।। मिथकों की गठरी के नीचे, सिसक रहे दब हम।। सामाजिक झंझावातों का, चखते स्वाद रहे। इस जीवट 'जीवन' के दम ही, हम आबाद रहे।। जब मुस्कानें सजी अधर पर, कुचले तब-तब हम।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
सूरज बेचें सूप
गीतिका

सूरज बेचें सूप

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तोड़ रहा रोटी का साहस, चटक हटीला धूप। महँगाई की छतरी ताने, सूरज बेचें सूप।। अमराई की छाँव ढूँढते, छाले पहने पाँव। दूर बहुत है थकी हवा का, निर्झर वाला गाँव।। मुख पर डाल नकाब व्यथित है, कोमल तन का रूप।। तान दिया दिनकर ने नभ तक, लू का शिविर अभेद। व्याकुल साँसें पंखा झल अब, ज्ञापित करती खेद।। तरस गया है बूँद-बूँद को, ढो प्यासे घट कूप।। आसमान को ताक रहा है, जंगल का वैराग्य। प्यासे अधरों के जागेंगे, कब तक रूठे भाग्य।। दे फुहार कब मेघ नयन को, देंगे दृश्य अनूप।। एसी कूलर के हंसों ने, भेज दिया फरमान। ठीक दोपहर में जाँचेंगे, रोटी की मुस्कान।। ऊँघ रहा पर ठंडा पीकर, इस मौसम का भूप।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित ...
आक्रोश की भट्टी
गीतिका

आक्रोश की भट्टी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** चल रहा मंथन विचारों में, जल उठी आक्रोश की भट्टी।। सलवटों ने डाल कर डेरा। मौन का ऊँचा किया घेरा।। भृकुटियों ने तन कटारी-सा, सुप्त हर दायित्व को टेरा।। वादियों का देखकर तेवर, शांति का संदेश है कट्टी।। धमनियों में बह रहा लावा। कर रहा विस्तार का दावा।। छोड़ दो बारूद के गोले, सूरमा करते न पछतावा।। वंचना के वार क्या सहना, खोल दो हर जख्म से पट्टी।। नैन में है क्रोध की ज्वाला। शत्रु लगता काल से काला।। चीख कर सिंदूर कहता है, ठोंक दो आतंक पर ताला।। सिर उठाएगा नहीं आगे, तोड़ दो दुर्दांत की नट्टी।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्...
वस्त्र पराली के
गीतिका

वस्त्र पराली के

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** धूम-धाम से घर में आये, दिन खुशहाली के। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थिरक रही कोने-कोने में, खुशियाँ मणिकांचन। श्रम-जादूगर ने बरसाया, खेतों में शुभ धन।। तपते दिन पर विहँस रहे, गुलमोहर डाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। दूल्हा बनकर चैता आया, बैसाखी के घर। गूँज रहे मंगलाचरण अब, पाखी के दर-दर।। दमके मुखड़े लगते ज्यों हो, दीप दिवाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। थर्मामीटर लेकर सूरज, नाप रहा पारा। फाँस रहा ले लू का फंदा, आतप हत्यारा।। गायब दरिया के अधरों से, लक्षण लाली के।। कृषक आग में झोंक रहा पर, वस्त्र पराली के।। तकनीकों ने उत्पादन को, बुस्टर डोज दिया। मगर लोभ ने जड़ के ऊपर, घातक वार किया।। मँडराती अब मौत स्वयं घर, आ रखवाली के।। कृषक आग में झोंक ...
दर्पण फूट गए
गीतिका

दर्पण फूट गए

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** तृषित घटों के नवाचार ही, पनघट लूट गए। कैसे हाथ मिलाएँ तट जब, पुल ही टूट गए।। कंकड़-पत्थर की दुनिया से, रूठी जलधारा। इस नभ के सूरज ने दे दी, सपनों को कारा।। आँखों से झरते फूलों पर, चल के बूट गए।। गाजर घास उगाए उर के, उर्वर उपवन में। स्वार्थ छिपे जा सिर की काली, टोपी अचकन में।। तनी हुई लाठी से डर के, दर्पण फूट गए।। जोत दिए कांवड़ में कंधे, पुण्य कमाने को। लगे हुए हैं हाथ स्वर्ग की, डगर सजाने को।। मंच माॅबलिंचिंग के, सच को, घर में कूट गए।। अश्वमेघ को घूम रहा है, श्रृद्धा का कोड़ा। मार ठोकरें हटा रहा है, पथ का हर रोड़ा।। हर धमनी में विष भरते जो, हो रिक्रूट गए।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। ...
डरा-डरा हिरना
गीतिका

डरा-डरा हिरना

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** शब्द दृगों से ऊलजलूल से। टपक रहे महुए के फूल-से।। बंधन की डोरी थी काटना। भूल गए खाई को पाटना।। ढँके रहे नभ में बन श्वेत घन, पटी उम्र दुखड़ों के धूल से। सूरज का वादा था झाग-सा। फैल गया जंगल में आग-सा।। हरी-हरी घास बिछी बाग में, डरा डरा हिरना पर रूल से।। आसपास काटों के गाँव हैं। हरे - भरे छालों के पाँव हैं।। नदी रखे तिनके से द्वेष अब, बह के हम दूर हुए कूल से।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
शक्ति का त्यौहार
गीतिका, छंद

शक्ति का त्यौहार

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** गीतिका छ्न्द शक्ति का त्यौहार है हम शक्ति का संचय करें। शक्ति के अस्तित्व को हम भक्ति से अक्षय करें।। लक्ष्य क्या उपलक्ष्य क्या है हम प्रथम यह तय करें। ध्यान रखकर शुभ-अशुभ का पन्थ का निर्णय करें।। साधना का एक ही यह मूल है निश्चय करें। कर्म को निष्काम सेवा मानकर तन्मय करें।। बात अनुभव सिद्ध गहरी है न कुछ संशय करें। धर्म की बस धारणा हर कर्म है निर्भय करें।। आइए स्वागत सहित संसार से परिचय करें। तामसी व्यवहार‌ को सब दम्भ तज विनिमय करें।। द्वेष त्यागें शुभ हृदय अनुराग का आलय करें। आपसी सम्बन्ध गाढ़े और करुणामय करें।। आइए करबद्ध परहित के लिए अनुनय करें। पुण्य को बोएँ परस्पर पापियों का क्षय करें।। देश दुर्गुण से बचे अच्छाइयांँ अतिशय करें। विश्व का कल्याण करते "प्राण"‌ ज्योतिर्मय करें।। प...
बकुल वीथिका के सौरभ में
गीतिका

बकुल वीथिका के सौरभ में

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** आधार छंद - सार छंद बकुल वीथिका के सौरभ में, प्रेम-पंथ महमाता। गंधसार तुम बन खंजन मैं, देख तुम्हें ललचाता।।१ विधुवदनी तुम पूरनमासी, बन छत पर जब आती, दृग-सागर में प्रणय-पुस्तिका, पढ़ मैं नित्य नहाता।।२ सांध्य दीप-सी ढ्योड़ी को तुम, जगमग ज्यों कर देती, हृदयांचल के मंदिर में मैं, तुम्हें सजा हर्षाता।।३ अवगुंठन की आड़ लिए तुम, मंद-मंद शर्माती, पाटल अधरों पर प्रियता का, चुंबन मैं धर जाता।।४ रति रंभा तुम परिरंभन की, आस लगा जब बैठी, यह मन वासव प्रमुदित होकर, ठुमके साथ लगाता।।५ प्यास पपीहे सा तड़पाती, मन के मरुथल को जब, तुहिन कणों को भर सीपी में, तुम्हें पिलाने आता।।६ सुधियाँ ओढ़े सो जाती तुम, सपनों के बस्ती में। चंचरीक मैं सारंगी पर, लोरी मधुर सुनाता।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्र...
अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस
गीतिका, छंद

अंतर्राष्ट्रीय नर्सेस दिवस

रेखा कापसे "होशंगाबादी" होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) ******************** आधार- हरिगीतिका छंद दीदी कहो सिस्टर कहो, या नाम दो परिचारिका। है नेक मन की भावना, जीवन समर्पित राधिका।। कहते इसी को नर्स भी, अब नाम आफीसर मिला। सम्मान से आह्लाद में, मुख दिव्य सा उपवन खिला।। सेवा बसी मन साधना, नित याचिका स्वीकारती। अपनी क्षुधा को मार के, वो मर्ज सबका तारती।। गोली दवाई बाँट के, नाड़ी सुगति लय साधती। मेधा चिकित्सक स्वास्थ्य के, ये रीढ़ के सुत बाँधती।। परिचारिका मन भाव से, सेवा सुधा मय घूँट दे । निज स्वार्थ को वह त्याग कर, परमार्थ का ही खूट दे।। ये दौर कितना है कठिन, नित काम ही है साधना। दिन रात का मत बोध है, बस मुस्कराहट कामना।। आओ करे शत् - शत् नमन, सेवा समर्पित भाव को। सम्मान से बोले वचन, नि:स्वार्थ कर्मठ नाव को।। पर रोग के उपचार में यह नींद अपनी त्याग दे। समत...
अब तक है शेष डगर साथी
ग़ज़ल, गीतिका

अब तक है शेष डगर साथी

आचार्य नित्यानन्द वाजपेयी “उपमन्यु” फर्रूखाबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** अब तक है शेष डगर साथी। आओ चलते मिलकर साथी।। यदि मानव हो तुम भी मैं भी, फिर क्यों इतना अंतर साथी।। तुम उच्च महल मैं हूँ झोपड़, पर मैं भी तो हूँ घर साथी।। उपयोग हमारा दोनों का, है बिल्कुल ही रुचिकर साथी। यदि तुमने वैभव पाया है, पाये नौकर चाकर साथी।। तो मैं आध्यात्म भक्ति सेवा, सत्कार वरित किंकर साथी। हो तुम अपूर्ण मैं भी अपूर्ण, पूरा केवल ईश्वर साथी।। फिर क्यों तन तान मदांध हुए। आओ मुड़कर भीतर साथी। यह जग तो केवल एक स्वप्न, इसमें क्यों मद मत्सर साथी। सबको जब जाना परमस्थल, उस परमात्मा के दर साथी।। फिर क्यों है इतना भेद भला, क्या सेवक क्या अफसर साथी। हम एक पिता की संतानें, है एक जगह पीहर साथी।। तुम 'नित्य' सही को भूल गये, है सबके जो अंदर साथी।। परिचय :- आचार्य...
भोर की ठंडी छुअन
गीतिका

भोर की ठंडी छुअन

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भोर की ठंडी छुअन-सी, प्रीति का अहसास हो तुम। चंद्र मुख पर खिलखिलाता पूर्णमासी हास हो तुम।।१ रूपसी हो देख कर, शृंगार भी तुमको लजाता, रत्नगर्भा पर सजा, सौंदर्य का मधुमास हो तुम।।२ बिन तुम्हारे सब तिमिर घन, आ खड़े हैं क्लेश लेकर, जिन्दगी का हो उजाला, हर्ष का आभास हो तुम।।३ शील संयम ज्ञान साहस, उर दया भरपूर लेकिन, भूख तन की प्यास मन की, प्राण का वातास हो तुम।।४ बन पपीहा मन पुकारे, मैं यहाँ पिय तुम कहाँ हो, द्वार सजती अल्पना हो, पर्व का उल्लास हो तुम।।५ रागिनी हो राग हो सुर ताल लय का तुम निलय हो, धड़कनों से छंद गाती, गीत का विश्वास हो तुम।।६ कुंज 'जीवन' का सुवासित आ करो मधुमालती बन, मोगरा, चम्पा, चमेली, कौमुदी से खास हो तुम।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा ...
सामाजिक कारा
गीतिका

सामाजिक कारा

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** हुई प्रस्फुटित ज्यों ही उर में, सहज प्रणय धारा। लगा तोड़ने मन का मधुकर, सामाजिक कारा।।१ स्वाभिमान का ध्वज ले हाथों, खड़ा प्रपंचक भी, भेदभाव की तपिश बढ़ा कर, नाप रहा पारा।।२ अनुरंजन से फलित धरा पर, सत्ता का लालच, सींच घृणा का जल बो देता, विष वर्धक चारा।।३ पिछड़ों के घर आग लगाकर, हाथ सेंकता जो, जोर-शोर से लगा रहा अब, समता का नारा।।४ प्रतिभा का सपना जब छीना, जालिम रिश्वत ने, पल भर में मीठी सुधियों का, स्वाद हुआ खारा।।५ अवसादों की गझिन तमिस्रा, में डूबा जब मन, छिटक खड़ा दिल अवलंबन से, 'जीवन' का हारा।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक...
चुनावी दीवाने
ग़ज़ल, गीतिका

चुनावी दीवाने

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** देखा जिसको, वो चुनावी दीवाने लगे, वे छोड़ धन्धा, गालों को बजाने लगे। देश-दुनिया का जिनको पता ही नहीं परिणाम, हार-जीत का, सुनाने लगे। घोषणाएं क्या रिश्वत का ऑफर नहीं एक हम हैं, लार अपनी टपकाने लगे। व्यवस्था में ये दल भी विवश हैं सभी झुन-झुने, अपने-अपने, दिखाने लगे। हम देश-राष्ट्र का, अन्तर भूले सभी दादा के संग संस्कृति भी जलाने लगे। सत्य को पुस्तकों में किया है दफन झूँठ को ही, कुतर्कों से सजाने लगे। जैसे पशु, मैं धरा पर, विचरता रहा, छोड़ डंडा, मुझको ग्वाले मनाने लगे। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -व...
झर्र बिलैया
गीतिका, बाल कविताएं

झर्र बिलैया

प्रमोद गुप्त जहांगीराबाद (उत्तर प्रदेश) ******************** टी ली, ली ली झर्र बिलैया। खा गई अक्षु, सारी मलैया। अम्मा से कट्टी क्यों कर लूं वह तो मेरी जय-जय मैया। करवाऊंगी, मैं सबकी पिट्टी जब भी आयेंगे, आबू भैया। किट्टू हैं, मेरी प्यारी दीदी संग-संग नाचें ता-ता थैया। मैं भी पढ़के दिखलाऊँगी- चाचा जी मेरे, बहुत पढैया। जब हम अच्छे काम करेंगे- तो फ्रेंड बनेंगे सभी सिपैया। रोज खिलाया करती हप्पा- जब-जब घर आती है गैया। परिचय :- प्रमोद गुप्त निवासी : जहांगीराबाद, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश) प्रकाशन : नवम्बर १९८७ में प्रथम बार हिन्दी साहित्य की सर्वश्रेठ मासिक पत्रिका-"कादम्बिनी" में चार कविताएं- संक्षिप्त परिचय सहित प्रकाशित हुईं, उसके बाद -वीर अर्जुन, राष्ट्रीय सहारा, दैनिक जागरण, युग धर्म, विश्व मानव, स्पूतनिक, मनस्वी वाणी, राष्ट्रीय पहल, राष्ट्रीय नवाच...
भव्य स्वप्न जागकर
गीतिका

भव्य स्वप्न जागकर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** भव्य स्वप्न जागकर निहारते चलो सखे। मूर्त रूप भूमि पर उतारते चलो सखे।।१ शीश मातृभूमि का तना रहे सदैव ही, भाव राष्ट्रप्रेम का निखारते चलो सखे।।२ सृष्टि हो समृद्ध प्राण तत्व हो यथेष्ट सब, लोभ, मोह, राग ,द्वेष मारते चलो सखे।।३ हो न भेदभाव के निशान सुक्ष्म भी कहीं, साम्य भाव का स्वभाव धारते चलो सखे।।४ पंख जो विकास का न छू सके अभी गगन, धैर्य, प्रीति से उन्हें सँवारते चलो सखे।।५ दासता न दीनता सकें पसार पाँव अब, हो समर्थ जन सभी पुकारते चलो सखे।।६ प्रेम तत्त्व ज्ञान तत्त्व से सजे मनुष्यता, बुद्ध मार्ग शुद्ध है विचारते चलो सखे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, ...
पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका
गीतिका

पानी के मुहावरों पर आधारित गीतिका

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** जल ही जीवन, तत्त्व प्रमुख है, जलमय है सारा संसार। उठ जाता है दाना-पानी, बिन जल मचता हाहाकार।।१ जल में रहकर बैर मगर से, करता कभी नहीं विद्वान, पानी फिर जाता है श्रम पर, मत पानी पर लाठी मार।।२ कच्चे घट में पानी भरना, अर्थ और श्रम का नुकसान, आग लगा देता पानी में, जिसने खुद को लिया निखार।।३ अधजल गगरी चले छलकते, जाने कब पानी का मोल, पानी भरना, पानी देना, पानी सा रखना व्यवहार।।४ चुल्लू भर पानी में मरना, नहीं चाहता है गुणवान, तलवे धोकर पानी पीना, सीख गया मन का मक्कार।।५ दूध-दूध पानी को पानी, करता सच्चे मन का हंस, हुक्का-पानी बंद न करना, कभी किसी का पानी मार।।६ घाट-घाट का पानी पीना, नहीं सभी के वश की बात, पानी पीकर कोस न 'जीवन', पानी की सबको दरकार।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतू...