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गीत

अगर प्रधानमंत्री मैं होता
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अगर प्रधानमंत्री मैं होता

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** जरूरतें सब पूरी करता, नहीं भीख को कर फैलाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। लक्ष्य आर्थिक आजादी का, रखते मेरे साथी रहबर। पक्के भवन खड़े इठलाते, नहीं दीखते कच्चे छप्पर।। शहरों की निर्भरता होती, कमतो कृषक सभी सुख पाते। नहीं पलायन होता मिलकर, गांवों को ही स्वर्ग बनाते।। दूध दही की नदियां बहती, भारत जग में गौरव पाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। घर-घर में उद्योग चलाता, गांव-गांव कलपुर्जे ढलते। विकेंद्रित करता उत्पादन, कम पूंजी में काम निकलते।। श्रमको मिलता पूरा प्रतिफल, बेकारी का नाम ना होता। साहूकारों के चक्कर में, घर आंगन नीलाम ना होता।। धन पर पूरा अंकुश होता, खुदपर निर्भर देश बनाता। अगर प्रधानमंत्री मैं होता, सबको अपने हक दिलवाता।। हर तरह की स्वतंत्रता का, भोग यहां पर जनता करती। समानता जन-जन मे...
मानव से मानव को जोड़े
गीत

मानव से मानव को जोड़े

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** नफरत की दीवारें तोड़ें। मानव से मानव को जोड़ें।। यकसांखून बनाया सबका, यकसां जान बनाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हमको जन्म मिला यूं प्यारा, जन-जन को दें सदा सहारा। जितने भी प्राणी हैं जग में, दर्जा सबसे अलग हमारा।। कोई भी हम मजहब माने। मानवता के सभी खजाने।। कभी किसी में वैर भाव की, दिखी नहीं परछाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। प्यार सिखाते हैं सब मजहब, नफरत किसने सिखलाई कब। किसने दर्द नहीं समझा है, पैरोंकार दया के हैं सब।। पर पीडा को कौन बढ़ाता। हिंसा से किसका है नाता।। धरती पे दुख कैसे कम हों, सबने अलख जगाई है। स्वीकारें ये इसमें लोगों, सबकी छिपी भलाई है।। हम मजहब के लिए नहीं हैं, कहो नही क्या बात सही है। हमें जरूरत मजहब की तो , अपने हित के लिए रही है।। कैसे जीवन अपना तारें। दीनो दुनिया यहां...
मैं तो चला सफर पर
गीत

मैं तो चला सफर पर

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** अनदेखी, अनजान डगर पर, तुमसे बिना बताये, बोले, मैं तो चला सफर पर अपने मेरे यार! सदा खुश रहना... ध्यान रहे कितनी सर्दी, गर्मी झेली गुलशन लहकाया, खून-पसीने से, मिलजुलकर कलियों का आँचल महकाया; कभी न मेरी याद, उदासी का साया इनको छू पाये, इन पर इतना प्यार लुटाना, मेरे प्यार! सदा खुश रहना... एक दूसरे में घुलमिलकर कितने सपन सलोने सींचे, आसमान के तारे तोड़े, कितने चाँद उतारे नीचे; इन्हें कभी एहसास न होने पाये कोई चाँद सपन है, अब सब भार तुम्हारे काँधे, मेरे यार! सदा खुश रहना.... कितनी मुसकानें मुसकाईं, कितना हँसे हँसी के मेले, इतराते, इठलाते गुजरे कितनी मनुहारों के रेले; अब मुझको भी खुद में पाना, खुद से ही हँसना, बतियाना, पूरनकाम समझना खुद को, मेरे यार! सदा खुश रहना.... यद्यपि अपने वादे थे हम साथ जियेंगे, साथ मरेंगे, सदा सामना हर मुश्कि...
भारत की कुर्बानी को
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भारत की कुर्बानी को

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** मानवता के महायज्ञ से, उपजी अमिट निशानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। करी तेरहवी, तेरह दिन में, बंगलादेश बनाया है। हमने पाकिस्तानी सेना, को घुटनों पर लाया है।। 'विजय दिवस' सोलह दिसंबर, को यूँ देश मनाता है। भारत की सेना के आगे, कौन भला टिक पाया है।। सजा मिली है इस दुनिया में, हर हरकत शैतानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भारत की कुर्बानी को।। इंदिरा की आँधी ने उसको, दो टुकड़ों में बांट दिया। बंगलादेश अलग करके धड़, पाकिस्तानी काट दिया।। दुनिया ने इंदिरा को समझा, था नाजुक अबला नारी। उसने ही दुनिया को अपना, दिखला रूप विराट दिया।। हमने लोगों बेमतलब की, कुचल दिया मनमानी को। नहीं भुला पाएगी दुनिया, भरत की कुर्बानी को।। सैनिक तानाशाह याहिया, खां का सपना तोड़ दिया। दुनिया के नक्शे में बंगला, देश नया एक जोड़ दिया।। तिराणवे...
पीड़ा की हांडी
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पीड़ा की हांडी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** उबल रही पीड़ा की हांडी, घर के कोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।। फटी हुई किस्मत की पत्तल, पर चावल पसरे। दाल मित्रता करके जल से, दिखलाती नखरे।। नमक मिर्च ने हाथ बटाया, जादू टोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।१ चिन्ता के उपलों ने धुआँ, ठूँस दिया घर में। रोगी चूल्हा खाँस खाँस कर, दुबका बिस्तर में।। घात लगाकर बैठा है घुन, स्वर्ण भगोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में।।२ सुख की सँकरी पगडंडी पर, है भव के बंधन। दूध दही घी से तर पत्थर, घर भूखें नंदन।। सुख मिलता ढोंगी संतों को, दुखड़े बोने में। मिला दर्द का हिस्सा ज्यादा, हमको दोने में ।।३ माल मुफ़्त का खा पघराये, कुर्सी एसी में। हम तो अपनी जान लुटाते, सस्ते देशी में।। 'जीवन' उल्टा सुख दोनों का, मन भर सोने में। मिला दर्द का हिस्सा ...
बहिष्कार
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बहिष्कार

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सत्य, अहिंसा और प्रेम का परिष्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टिकोण का बहिष्कार करना है सब को। जीवन शैली सरस सरल हो। सुधा सुलभ हो लुप्त गरल हो। नहीं विकल हो मानव कोई,। स्नेह-शान्ति धारा अविरल हो। कुटिल तामसिकता का जग में तिरस्कार करना है सब को। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। रोटी, कपड़ा और निकेतन। प्राप्त करें जगती पर जन-जन। न हों अभावों की बाधाएँ, सुख-सुविधा पूरित हों जीवन। छोड़ स्वार्थ सब परहित पर भी अब विचार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। निर्मित करने हैं विद्यालय। अधिक बढ़ाने हैं सेवालय। जहाँ विषमता की खाई है, वहाँ बनें उपकार हिमालय। मानव हितकारी शुभ उपक्रम बार-बार करना है सबको। नकारात्मक दृष्टि कोण का बहिष्कार करना है सबको। जन-जन का उत्थान ज़रूरी। जन हित के अभियान ज़रूरी। हो व्...
किसको दर्पण दिखा रहा हूं
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किसको दर्पण दिखा रहा हूं

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कहता हूं नाचीज स्वयं को, रुतबा कितना जता रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। मैं किस खेतकी मूली हूं जो, अपना भाव बढ़ाया मैंने। कोल्हू का हूँ बैल फकत मैं, पका पकाया खाया मैंने।। क्यों हजार का नोट बना मैं, भार बदन का बढ़ा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। अपनी मर्जी से ना जन्मा, नहीं मरण हाथों में मेरे। क्यों अंगारे उगल रहा हूँ, हैं अंधियारे मुझको घेरे।। क्यों घमंड है इतना मुझको, क्या सूरज का सगा रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखारहा हूँ।। खुद अपनीतारीफ करूं क्यों, क्या चरने को अकल गई है। गंदे कतरे से यह जीवन, है लोगों क्या बात नई है।। क्यो आकाश उठाके सिर पे सबको उल्लू बना रहा हूँ। किस पर करता हूँ घमंड मैं, किसको दर्पण दिखा रहा हूँ।। उंगली पकड़ेबिना चला कब, कंध...
दंभ करना छोड़ दे
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दंभ करना छोड़ दे

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** देश के विपरीत विषयों पर अकड़ना छोड़ दे। तू हवाओं में जहर की गंध भरना छोड़ दे।।१ जोड़ सबको प्रेरणा दे रख बुराई पर नजर, तू अगर चारण गुणी तो आज लिखना छोड़ दे।।२ नेकियाँ कर बाँट खुशियाँ मात्र बन इंसान तू, भेद करते धर्म के पथ, पाँव रखना छोड़ दे।।३ स्वार्थ की सीमा बना तू, बाँट मत इंसान को, मत मियां मिट्ठू बने अब व्यर्थ बकना छोड़ दे।।४ है व्यवस्था दोगली ये सच नहीं क्या बात यह, तू विरासत का धनी तो अब बहकना छोड़ दे।।५ ज्ञान है अपनत्व भी पर वास्तविकता है नहीं, मात्र आभासी जगत में तू विचरना छोड़ दे।।६ मिल गये जल वायु नभ भू अग्नि सब उपहार में, बाँट तू सौहार्द 'जीवन', दंभ करना छोड़ दे।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
आशावादी गीत
गीत

आशावादी गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** हिन्दू-मुस्लिम, सिख-ईसाई, बांधे सबको स्नेहिल डोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। अभी आस्था का सागर है, अभी भरोसा मरा नहीं है। सकल विश्व में कोरोना है, फिर भी मानव डरा नहीं है। गीत अभी हैं आशावादी, गेय अभी है घर-घर लोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। नित्य बांसुरी की तानों से, जंगल में मंगल होता है। चंदन चाचा के बाड़े में, मल्लों का दंगल होता है। जीवन सिर पर ले जाती है, गाँवों में पनघट से गोरी। साथ मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। राखी लेकर कमली काकी, चाँदू चाचा के घर आती। सलमा आपा दीवाली पर, दीपू से सौग़ातें पाती। पीपल नीचे चर्चा करते, हर दिन हस्सू एवम् होरी। साध मनाते मिलजुल कर सब, ईद-दिवाली, क्रिसमस-होरी। संचालित हैं पुण्य कर्म कुछ, चलते हैं सहयोग निरन्तर। जीवित हैं कुछ परम्परा...
सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा
गीत

सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** सुखप्रदायिनी सूर्य-प्रभा का, स्वागत करता आँगन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। चाह बढ़ी ऊनी वस्त्रों की, भूले बरसाती-छतरी। शांत हो गए कूलर-ए• सी•, पंखों पर आलस ठहरी! गीज़र का जल अच्छा लगता, हीटर अब मनभावन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। पारे का नित पतन हो रहा, शिष्टाचारी ताप हुआ । काले-काले मेघों का दल, लुप्त कहीं चुपचाप हुआ। अधिक आवरण का अभिलाषी, हुआ आजकल हर तन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। बर्फ़-मलाई कुल्फी शर्बत, घर-घर से निर्वासित हैं। कपड़ों की तो बात करें क्या, बिस्तर भी परिवर्तित हैं। शीतकाल के स्वागत में अब, आतुर बचपन-यौवन है। हल्की-हल्की ठंड लिए ऋतु, आई शरद सुहावन है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म...
चलो चलें अब सर्दी आई
गीत

चलो चलें अब सर्दी आई

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चलो चलें अब सर्दी आई, इसका भी तो लाभ उठाएं। सौ रूपये के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएंं।। लाभ उठाना अपना मकसद, जीवन धन्य बनाएं ऐसे। रामबाण है दिल खुश करना, खुशियों को हम लाएं ऐसे।। आज प्रदर्शन का युग भाई, नहीं बुरा दो दें सौ पाएं। सौ रूपये के कंबल बांटे, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। ले तो नहीं रहे कुछ उनसे, क्या बिगड़े जो ढाल बनालें। मदद भले छोटी है उनकी, अपनी भी तो प्यास बुझालें।। दुनिया है बाजार बडा ये, बुद्धिमान हैं लाभ कमाएं। सौ रुपए के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। नहीं जुबां होती निर्बल के, यह "अनंत" जग जान रहा है। बोलो तो बूरा भी बिकता, इस सच को पहचान रहा है।। हम हैं ऊंचे बोलने वाले, अखबारों में आओ छाएं। सौ रूपये के कंबल बांटें, दोसौ के फोटो खिंचवाएं।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ ...
बड़े बाबा की भक्ति
गीत, भजन

बड़े बाबा की भक्ति

संजय जैन मुंबई ******************** विधा : गीत भजन तर्ज : (हम मेहनत कस इस दुनिया से अपना .....) श्री आदिनाथ की भक्ति को श्रुत धाम हम जाएंगे। एक बार नही सौ बार नहीं हम जीवन भर जाएंगे। हम आदिनाथ की......।। माया के चक्कर में पड़कर अपना जीवन तू गवा रहा। और झूठ फरेब करके तू दौलत बहुत कमा रहा। ये दौलत साथ न जायेगे जिस दिन तू मर जायेगा। तब तुझे बड़े बाबा याद आएंगे पर तेरा सब कुछ मिट जाएगा।। श्री आदिनाथ की भक्ति को श्रुत धाम हम जाएंगे। एक बार नही सौ बार नहीं हम जीवन भर जाएंगे। हम आदिनाथ की......।। क्यों अपने मनुष्य जीवन को तू युही गंवा रहा। मिला है तुझे मनुष्य जीवन तो कुछ दया धर्म भी करता जा। यही सब तेरे साथ में जाने वाला है तो तू क्यों इसे गंवा रहा।। श्री आदिनाथ की भक्ति को श्रुत धाम हम जाएंगे। एक बार नही सौ बार नहीं हम जीवन भर जाएंगे। श्री आदिनाथ की......।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश...
सह भइये
गीत

सह भइये

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** भूखा प्यासा, अपने ही घर, रह भइये। पीर हृदय की, नहीं किसी से, कह भइये।।१ उसका सूरज, वही उगाता, रोज यहाँ, मान न इसको, झूठ सत्य है, यह भइये।।२ वही रेफरी, और गोल का, कीपर भी, गेंद तुल्य तू, मार यहाँ पर, सह भइये।।३ तस्वीरें वह, रोज यहाँ की, बदल रहा, अधिकार उसे, है नेक यहाँ, वह भइये।।४ आसमान से, बहुत बड़ा है, दिल उसका, पकड़ न पाया, उसकी कोई, तह भइये।।५ धमकाता वह, डरती उससे, यह जनता, साथ हमेशा, वह रखता बम, छह भइये।।६ ठान न उससे, रार चार दिन, 'जीवन' के, साथ-साथ में, पानी के तू, बह भइये।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा स...
छली गई शाम
गीत

छली गई शाम

डॉ. कामता नाथ सिंह बेवल, रायबरेली ******************** टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम। पीपल की फुनगी पर जा बैठा घाम।। कौन यहाँ मेरा है, समझ नहीं पाई, चन्दा सूरज किसकी करते भरपाई; बार बार अपनों से छली गयी शाम।। नियराते दिन का तो टूट गया चक्का, पीछे से रजनी भी मार रही धक्का; कहाँ ठौर खोजे अब बेचारी शाम? चलना जीवन है, चलते रहना है, लेकिन कब तक यों ढलते रहना है; चल-चल के, थक-थक के अब हारी शाम।। टुकुर टुकुर ताक रही जीवन की शाम।। परिचय :- डॉ. कामता नाथ सिंह पिता : स्व. दुर्गा बख़्श सिंह निवासी : बेवल, रायबरेली घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हे...
अब भोर हर नवेली
गीत

अब भोर हर नवेली

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** अब भोर हर नवेली, हमको उड़ान देगी। हर सांझ स्वप्न को अब, अपने वितान देगी।।१ हर चाह पूर्ण होगी, आजाद है वतन अब। बस कर्म शक्ति हमको, कर में कमान देगी।।२ अधिकार है सभी को, शिक्षा स्वतंत्र समता। यह है सदी हमारी, खुशियाँ समान देगी।।३ धारण करो सदाशय, सौहार्द नित बढ़ाओ। ये गुण फकीर को भी, ऊँची मचान देगी।।४ तलवार झूठ की पर, गर्दन सटी भले हो। इंसानियत हमेशा, सच ही बयान देगी।।५ माँ के सरिस लगेगी, तब यह धरा हमें भी। जब राष्ट्र प्रेम की उर, गरिमा उफान देगी।।६ अब सोच को निखारो, मत द्वेष रंज पालो। हर निम्न सोच 'जीवन', उर पर निशान देगी।।७ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर...
माँ के लिए
गीत

माँ के लिए

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** ईश्वर से अनाथ बालक की विनती मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। मैने देखी ही नहीं …। माँ का आँचल आँखों का काजल मीठे से सपने जैसे खो गए हो अपने बिन माँ के लगता है कोरा संसार। मैने देखी ही नहीं.... ऊपर वाले ओ रखवाले अंधेरों में भी देता उजियाले मेरी विनती सुन, दे माँ का प्यार बिन माँ के कहाँ से पाउँगा माँ का प्यार। मैने देखी नहीं, माँ की सूरत कहाँ से पाउँगा, माँ का प्यार माँ करती है, प्यार-दुलार ये बतियाते है मुझसे-यार मै अनाथ ये क्या जानूँ क्या होता है माँ का प्यार बिन माँ के लगते सूने त्यौहार। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन...
हिन्दू हूँ… मैं हिन्दू हूँ…
गीत

हिन्दू हूँ… मैं हिन्दू हूँ…

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** हिन्दू हूँ, मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। सबका सोचूं मैं मंगल हो न किसी का अमंगल कण कण में विश्वास है देश को अर्पण सांस है धर्मनिष्ठ का बिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। राम नाम का सहारा है सारा जगत हमारा है अहिंसा परमोधर्मः है योगक्षेमं मेरा कर्म है गंगा का जलबिन्दू हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। गीता के ज्ञान से दूर हूँ अज्ञान से तुलसी सूर के गाऊ गीत राम कृष्ण है मेरे मीत पुष्प पर दवबिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। सत्य ही मेरा शिव है सुंदर हर एक जीव है सदाशिव में रमता हूँ बंधुभाव से रहता हूँ करुणा का चरम बिन्दु हूँ हिन्दू हूँ मैं हिन्दू हूँ प्रेम दया का सिंधू हूँ।। राष्ट्र मेरी माता है गोद मे हर कोई सोता है वन्य जीव से नाता है वनांचल मुझे भात...
आशीष मिला तो….
गीत, भजन

आशीष मिला तो….

संजय जैन मुंबई ******************** तेरा आशीष पा कर, सब कुछ पा लिया हैं। तेरे चरणों में हमने, सर को झुका दिया हैं। तेरा आशीष पा कर .....। आवागमन गालियां न हत रुला रहे हैं। जीवन मरण का झूला हमको झूला रहे हैं। आज्ञानता निंद्रा हमको सुला रही हैं। नजरे पड़ी जो तेरी, मानो पापा धूल गए है। तेरा आशीष पा कर.....।। तेरे आशीष वाले बादल जिस दिन से छाए रहे हैं। निर्दोष निसंग के पर्वत उस दिन से गिर रहे हैं। रहमत मिली जो तेरी, मेरे दिन बदल गये है। तेरी रोशनी में विद्यागुरु, सुख शांति पा रहे है। तेरा आशीष पा कर ....।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक से लेखन में सक्रिय हैं और इनकी रचनाएं राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच (hindirakshak.com) सहित बहुत सारे अखबारों-पत्रि...
सुख दुख है जीवन में दोनों
गीत

सुख दुख है जीवन में दोनों

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कभी सुरों की सरिता बहती, कभी जिंदगी कांव-कांव है। सुख दुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी अंधेरे कभी उजाले, से होकर जाना पड़ता है। जीवन का रथ उबड़खाबड़, रास्तों से आगे बढ़ता है।। कोई फूल बिछाए पथ में, कोई कांटे बिछा रहा है। कोई टांग खींचता नीचे, कोई ऊपर उठा रहा है।। कभी मखमली गद्दो पर है, कभी धूल में सना पांव है। सुख दुख हैं जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। कभी कहीं है सर्दी गर्मी, जीवन नित्य बदलने वाला। कभी श्वेत वर्णी जीवननभ, कभी हुआ है देखो काला।। कभी-करी उत्तीर्ण परीक्षा, कभी फेलका मजा चखाहै। हानिलाभ से ऊपर उठकर, जिसने जीवन यहां रखा है।। उत्तम वही तो मनआँगन है, नहीं रहे जिसमें तनाव है। सुखदुख है जीवन में दोनों, कभी धूप है कभी छांव है।। आशा और निराशा के जो, दो पैरों पर नाच नचाए। कठपुतली ये बना, जिंदगी, कभी...
दुख देते हैं जानबूझ कर
गीत

दुख देते हैं जानबूझ कर

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** दुख देते हैं जानबूझ कर, दुखियारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। देश जूझता आज तुम्हारा, मजधारों में पल पल। बढ़ते हैं विपरीत दिशा में, छलिया करते हैं छल।। बेच रहे हैं धनवानो को, निर्धन के हक सारे। श्रमजीवी मजबूर हो गए, फिरते मारे मारे।। गिरवी रखनेको आतुर घर, दीवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। व्यक्ति पूजा करने वाले, देशभक्त कहलाते। देशभक्त बेबस लगते हैं, देश निकाला पाते।। रहे प्रिय जो भारतमां को, अपमानित होते हैं। मनकी कहने किससे जाएं, मन ही मन रोते हैं।। करते तेज अहिंसावादी तलवारों को बापू। महिमामंडित करते हैं हम, हत्यारों को बापू।। सत्य अहिंसा सत्याग्रह के, अब लाले पड़ते हैं। देशद्रोहियों के सीनों पर, हम मेडल जड़ते हैं।। देश उसी का माना जाता, जिसने अपना माना। नाम भले कुछ धर्म भले कुछ, ज...
चाहे जैसी यार देख लो
गीत

चाहे जैसी यार देख लो

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** चाहे जैसी यार देख लो , नई पुरानी कलम मिलेगी। जूते सीती रेदासी या, चंवर ढुलाती कलम मिलेगी।। पेबंदों से इज्जत ढकती, ममतामयी लिए दो आंखें। बच्चों के भूखे पेटों में, लुकमें देती कलम मिलेगी।। सीमाओं की रखवाली में, रत कलमो के साथसाथ ही। कभी प्यारमें कभी भक्तिमें, डूब दीवानी कलम मिलेगी।। कामुकताके कीचड़ में गुम, किए हुए श्रंगार कीमती। कोठों की गौरव गाथाएं, तुमको गाती कलम मिलेगी।। जूते सजते शोकेसों में, ये दस्तूरे दुनिया है अब। फुटपाथों पर राह देखती, मेडल वाली कलम मिलेगी।। कुछ आवाज बनी जनताकी, झोपड़ियों से बाहर आकर। कुछ बंगलोंमें मक्खन खाती, नौकरशाही कलम मिलेगी।। कागज पर चलने वाली तो, "अनंत" बिखरी देखोगे तुम। मगर दिलों पर चलने वाली, कम ही दानी कलम मिलेगी।। परिचय :- अख्तर अली शाह "अनन्त" पिता : कासमशाह जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई ...
मन वियोगी
गीत

मन वियोगी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** आधार छंद- सार्ध मनोरम मापनी- २१२२ २१२२ २१२२ समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ, मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ। मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१ याद में जलने लगा है मन मरुस्थल, वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२ अनमना शृंगार तन को टीसता अब, बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३ हो गई गायब हँसी इस आरसी की, रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४ छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा, प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५ कल्पना की डोर थामे आज 'जीवन', सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्...
रंगों से रंगी दुनिया
गीत

रंगों से रंगी दुनिया

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** मैने देखी ही नहीं रंगों से रंगी दुनिया को मेरी आँखें ही नहीं ख्वाबों के रंग सजाने को। कौन आएगाआँखों में समाएगा रंगों के रूप को जब दिखायेगा रंगों पे इठलाने वालों डगर मुझे दिखाओं जरा चल सकूँ मै भी अपने पग से रोशनी मुझे दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... याद आएगा, दिलों मे समाएगा मन के मित को पास पाएगा आँखों से देखने वालों नयन मुझे दिलों जरा देख सकूँ मै भी भेदकर इन्द्रधनुष के तीर दिलाओं जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... जान जायेगा, वो दिन आएगा आँखों से बोल के कोई समझाएगा रंगों को खेलने वालों रोशनी मुझे दिलाओं जरा देख सकूँ मै भी खुशियों को आँखों मे रोशनी दे जाओ जरा ये हकीकत है कि क्यों दुनिया है खफा मुझसे मैने देखी ही नहीं .... परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पित...
छोटा कलमकार
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छोटा कलमकार

अवधेश कुमार 'कोमल' जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) ******************** जो दिल में आता है साहब, बस कहने की कोशिश करता हूं। मैं छोटा सा कलमकार हूं, बस लिखने की कोशिश करता हूं।। मैं लिखता हूं मातृ भूमि पर, गद्दरों से आहत होकर। मैं लिखता हूं धर्म के ठेकेदारों से घायल हो होकर।। मैं लिखता हूं खद्दर धारी नेताओं के बारे में। जिसने विष रस घोल दिया है, गांव गली-चौबारे में।। मैं कहता हूं भारत के उस अद्भुत पी.एम नरवर से। मैं कहता हूं भारत के उस अटल अलौकिक नव स्वर से।। जिसने हटा तीन सौ सत्तर, कश्मीर देश में मिला दिया। वर्षों का वनवास राम का एक ही छण में मिटा दिया।।   परिचय :- अवधेश कुमार 'कोमल' पिता : शिव बालक यादव निवासी : जमोलिया, बाराबंकी (उ.प्र.) उद्घोषणा : यह प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
दिल के रिश्ते
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दिल के रिश्ते

संजय जैन मुंबई ******************** अपने बचपन की बातें आज याद कर रहा हूँ। कितना सच्चा दिल हमारा तब हुआ करता था। बनाकर कागज की नाव, छोड़ा करते थे पानी में। बनाकर कागज के रॉकेट, हवा में उड़ाया करते थे। और दिल की बातें हम किसी से भी कह देते थे। और बच्चों की मांग को सभी पूरा कर देते थे।। न कोई भय न कोई डर, हमें बचपन में लगता था। मोहल्ले के सभी लोगों से जो लाड प्यार मिलता था। इसलिए आज भी उन्हें में सम्मान देता हूँ। और उन्हें अपने परिवार का हिस्सा ही समझता हूँ।। जो बचपन की यादों से अपना मुँह मोड़ता है। और उन सभी रिश्तों को समय के साथ भूलता है। उससे बड़ा अभागा और कोई हो नहीं सकता। जो अपने स्वर्णयुग को कलयुग में भूल रहा है।। सगे रिश्तो से बढ़कर होते मोहल्ले के रिश्ते। तभी तो सुख दुख में सदा ही खड़े हो जाते है। और अपनों से बढ़कर निभाते सभी रिश्ते। इसलिए मातपिता जैसे वो सभी लोग होते है। और हमें ये लो...