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ग़ज़ल

यार से दूर
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यार से दूर

=============================== रचयिता : डॉ. इक़बाल मोदी संभल कर चलता हूँ गिरती हुई दीवार से दूर। हाँ मगर शहर में रहता हूँ मै दो चार से दूर। हर वक़्त कदम दर कदम धोके है इस जहान में, हमेशा जीत की कोशिश करे, रहे हार से दूर। सियासत हर किसी को यूं ही नही आती है रास, हम अपनी बस्ती में रहते है सरकार से दूर। गुलशन में फूलों के बीच गुजर है मेरी अक्सर राह में हर तरफ बचकर चलता हूं खार से दूर। गैर तो गैर है अपनो पे भरोसा नही इक़बाल भहकाये कोई तो मत जाना अपने यार से दूर। परिचय :- नाम - डॉ. इक़बाल मोदी निवासी :- देवास (इंदौर) शिक्षा :- स्नातक, (आर.एम्.पी.) वि.वि. उज्जैन विधा :- ललित लेखन, ग़ज़ल, नज्म, मुक्तक विदेश यात्रा :- मिश्र, ईराक, सीरिया, जार्डन, कुवैत, इजराइल आदि देशों का भ्रमण दायित्व :- संरक्षक - पत्र लेखन संघ सदस्य :- फिल्म राइटर एसोसिएशन मुंबई, टेलीविजन स्क्रीन राइटर एसोसिएशन मुंबई प्रत...
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================================= रचयिता : प्रेम प्रकाश चौबे जब कोई भूखा सोता है। दिल ये ज़ार ज़ार रोता है। ये भी नहीं आखिरी मौका, ऐसा बार-बार होता है। हैवानियत प्रभावी हो तो, रिश्ता तार-तार होता है। चिनगारी गर भड़क उठे तो, झगड़ा आर-पार होता है। "प्रेम" जुबां से, या तीरों से आखिर वार, वार होता है। लेखक परिचय :  नाम - प्रेम प्रकाश चौबे साहित्यिक उपनाम - "प्रेम" पिता का नाम - स्व. श्री बृज भूषण चौबे जन्म -  ४ अक्टूबर १९६४ जन्म स्थान - कुरवाई जिला विदिशा म.प्र. शिक्षा - एम.ए. (संस्कृत) बी.यु., भोपाल प्रकाशित पुस्तकें - १ -"पूछा बिटिया ने" आस्था प्रकाशन, भोपाल  २ - "ढाई आखर प्रेम के" रजनी  प्रकाशन, दिल्ली से अन्य प्रकाशन - अक्षर शिल्पी, झुनझुना, समग्र दृष्टि, बुंदेली बसन्त, अभिनव प्रयास, समाज कल्याण व मकरन्द आदि अनेक  पाक्षिक, मासिक, त्रैमासिक पत्रिकाओं में कविता, कहानी,...
‘ताज’ वतन का वंदन कर 
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‘ताज’ वतन का वंदन कर 

======================== रचयिता : मुनव्वर अली ताज हर  दुख  का अभिनंदन  कर चिंता मत कर चिंतन  कर खुशियों के पल निकलेंगे दुख सागर का मंथन  कर हर मानव को गंध मिले तन मन धन को चंदन  कर जिन शब्दों से दिल ख़ुश हो उन शब्दों का चुंबन  कर भँवरा बन कर ग़ज़लों का सारे जग में गुंजन कर जाना है उस पार अगर मौजों का उल्लघंन कर प्यार का शुभ  संदेश है ये 'ताज' वतन का वंदन कर लेखक का परिचय :- मुनव्वर अली ताज उज्जैन आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर मेल कीजिये मेल करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें … और अपनी कविताएं, लेख पढ़ें अपने मोबाइल पर या गूगल पर www.hindirakshak.com खोजें...🙏🏻 आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरु...
काँटों के बगीचों में
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काँटों के बगीचों में

********** नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. कि काँटों के बगीचों में गुलों की खेतियाँ भी हैं। जहाँ  भौरें  मचलते  हैं वहाँ कुछ तितलियाँ भी हैं। घटायें देख सारे आसमाँ से डर गए कितने, कि काले बादलों के संग सुहानी बदलियाँ  भी हैं। जहाजों से  सफ़र करना समन्दर पर   रहा आसाँ, करें ग़र जान   मारी तो वहाँ पर कश्तियाँ भी हैं। जहाँ  चीखें  उभरती हैं रुलाई  की रिवायत में, वहाँ छुपकर गमें हालात गाती सिसकियाँ भी है। तुम्हारी याद सारी हर घड़ी पल साथ रहती है, अगर भूलूँ  मुझे  फिर से मिलाती हिचकियाँ भी हैं। लेखक परिचय :- नाम ...नवीन माथुर पंचोली निवास.. अमझेरा धार मप्र सम्प्रति... शिक्षक प्रकाशन... देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान... साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ...
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======================== रचयिता : शरद जोशी "शलभ" उसको रूदाद सुनाने की ज़रूरत क्या है। इतनी हमदर्दी कमाने की ज़रुरत क्या है। जो किसी रस्म को जाने , न जो हमराह चले। राब्ता उससे बढ़ाने की ज़रुरत क्या है।। वो अगर दुनिया से डरता है तो घर में बैठे। उसको घर जा के मनाने की ज़रुरत क्या है।। मुश्किलें उलझने मजबूरियाँ क्या हैं उसकी। इसका अन्दाज़ लगाने की ज़रुरत क्या है।। लौट कर जाना है जब एक ही मंज़िल पे "शलभ" फिर किसी और ठिकाने की ज़रुरत क्या है।। परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प...
पलट गया हूँ मैं
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पलट गया हूँ मैं

रचयिता : शरद जोशी "शलभ" ======================================== पलट गया हूँ मैं तमाम रिश्तों से नातो से कट गया हूँ मैं। निकल के दुनिया से ख़ुद में सिमट गया हूँ मैं।। किसी की चाह न बाक़ी न राबता बाक़ी। तलब की राह से अब दूर हट गया हूँ मैं।। ये रोशनी तो दिया बुझने के क़रीब की है दिये के तेल से घट- घट के घट गया हूँ मैं।। किसी भी शक्ल में घर लौटना नहींं मुमकिन। हज़ारों लाखों करोड़ों में बट गया हूँ मैं।। पलट के जाना था इक दिन ख़ुदा की सम्त"शलभ" कि आज ही से उधर को पलट गया हूँ मैं।।   परिचय :- धार जिला धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। आप विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं। म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आ...
बुझ गई इस तरह
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बुझ गई इस तरह

रचयिता : नवीन माथुर पंचोली =========================================================================================================== बुझ गई इस तरह बुझ गई इस तरह अब लगी। जिस तरह घूँट भर तिश्नगी। _________________________ वक़्त ने जब इशारा किया, तब चली दो क़दम जिंदगी। __________________________ किस तरह दूर रक्खें नज़र, भा  गई  यार  की सादगी। _________________________ जब  तलक़  वो रहे सामने, उनसे  होती  रही दिल्लगी। __________________________ रात थी, नींद  थी,ख़्वाब थे, आँख लेकिन जगी की जगी। __________________________ है उन्हीं की दुआ का असर, जिनकी  करते  रहे  बन्दगी। लेखक परिचय :- नाम : नवीन माथुर पंचोली निवास : अमझेरा धार मप्र सम्प्रति : शिक्षक प्रकाशन : देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन। तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान : साहित्य गुंजन, शब्द प्रव...