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पद्य

मैं एक पौधा हूं
कविता

मैं एक पौधा हूं

ओमप्रकाश सिंह चंपारण (बिहार) ******************** मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ खाद उर्वरक की कमी से गुजरा हूँ मरूभूमि की खजूर सा लंबा शरीर वाला मतवाला हूँ ताड़ सा शब्द ब्रह्म का नशा देने वाला हूँ अगर मेरे नशा को पीकर कोई बनता मतवाला हो कल्पना की महानद मे गोता लगाने वाला हो आ जाए मेरे पास मैं वह परम तत्व देने वाला हूँ अप्प दीपो भव का वैराग्य देने वाला हूँ किसी बुद्ध की खोज में बेसहारा हूँ बोधि वृक्ष मैं बन पाऊं ऐसी मेरी कामनाएं है भावनाएं हैं मैं एक पौधा हूं बेसहारा हूँ पूनम की सर्द रात्रि में सत्य देने वाला हूँ शांति सौभाग्य का छाहँ देने वाला हूँ हर दिलो में है दुखों के गागर भरे मैं पी रहा हूं ग़मों के प्याले ने धीरे धीरे शून्य से उतर कर आ रही है सुजाता पुनः अमृत रूपी खीर की थाली लिए धीरे-धीरे परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा) ग्राम - गंगापीपर जिला - पूर्वी चंपारण ...
पुस्तकें
कविता

पुस्तकें

सुनीता पंचारिया गुलाबपुरा (भीलवाड़ा) ******************** जीवन का आदर्श, जीने का अंदाज, बच्चों में नव निर्माण, आदमी को इंसान, आदाब जिंदगी के सिखाती है पुस्तकें। राह दिखाती भूले को, तकदीर बनाती भटके की, लक्ष्य प्राप्ति तक पहुंचाती है पुस्तकें। गुणों का भंडार चरित्र का निर्माण , संस्कारों की खान, सद्गुणों का आधार, लाभ ही लाभ प्रदान करती है पुस्तकें। गमों को भुलाती, खुशियों को बढ़ाती जीत की हार की आज की कल की, कहानियां प्यार की होती है पुस्तकें। वाणी की मिठास, कवियों व संतो की जान, अनुभव से आभास, चंचल मन को शांत, सबसे अच्छा दोस्त होती है पुस्तकें। भाषा का ज्ञान ,कुछ नया ख्वाब, प्रेरणा का स्रोत, एकांत का साथी, मनोरंजन का आनंद करवाती है पुस्तकें। मैं हूं पुस्तक, किसी का सवाल, किसी का जवाब, ज्ञान का भंडार, ज्योति का पुंज, भवसागर से पार करवाती है पुस्तकें। परिचय : सुनीता पंचारिया शिक्षिका ...
वतन महान के लिए
कविता

वतन महान के लिए

रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) ******************** हैं सभी समान एक ज्ञानवान के लिए। मानता सदैव ईश के विधान के लिए। वक्त की पुकार है कि भेदभाव भूलकर, भारतीय एक हों वतन महान के लिए। कौन व्यक्ति है सही कृतित्व देखिए सदा, एक वोट खास है सही रुझान के लिए। राष्ट्र के हितार्थ अब कदम बढ़ें रुकें नहीं, शंखनाद कीजिए नये विहान के लिए। सोचिए कि देशद्रोह-रोग क्यों पनप रहा, खोजिए उपाय रुग्णता निदान के लिए। हौसले बढ़े रहें भले दुरूह मार्ग हों, कष्ट भी सहें अनेक कीर्तिमान के लिए। आन-बान-शान का हमें सदैव ध्यान हो, 'रवि' करें सदैव श्रेष्ठ कार्य मान के लिए। परिचय :- रामकिशोर श्रीवास्तव 'रवि' निवासी : कोलार रोड, भोपाल (म•प्र•) * २००५ से सक्रिय लेखन। * २०१० से फेसबुक पर विभिन्न साहित्यिक मंचों पर प्रतिदिन लेखन। * विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित। * लगभग १० साझा संकलनों में ...
समर्पण
कविता

समर्पण

रेखा दवे "विशाखा" इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** माँ भवानी तेरी पुत्री, मान तेरा बढ़ायेगी। भाल सिंदूर चढ़ाकर के, शत्रु का संहार करेगी। आज किया सुहाग समर्पित, करूँ कल आत्मज अर्पित। कर्तव्य कर्म से हो मन हर्षित, श्रद्धा, निष्ठा हो द्विगुणित। कर के कंगन से अस्त्र बनाकर, ध्वस्त करूँ आतंक के घर। तेरे मान के बलिदानों पर, समर्थशील सबला बनकर। तुझे रक्त तिलक करुँ । तेरा ही प्रतिबिम्ब बनूँ। आततायी का मरण करुँ। सर्वस्व तुझे समर्पित करूँ। परिचय :- श्रीमती रेखा दवे "विशाखा" शिक्षा : एम.कॉम. (लेखांकन) एम.ए. (प्राचीन इतिहास एवं अर्थ शास्त्र) निवासी : इंदौर (मध्य प्रदेश) वर्तमान में : श्री माधव पुष्प सेवा समिति कि सामाजिक कार्यकर्ता एवं श्री अरविन्द सोसायटी कि सदस्य व श्री अरविन्द समग्र शिक्षा अनुसन्धान केंद्र के अन्तर्गत नव विहान शिक्षा अकादमी कि पूर्व संचालिका। रूचि : अध्ययन, सृजन, श्र...
जय जवान! जय किसान!
कविता

जय जवान! जय किसान!

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** जय हिंदुस्तान! जय किसान, आप हो भारतवर्ष की शान। आबाद रहे सदा देश हिंदुस्तान, हरा-भरा रहे सदा खेत-खलिहान। किसान को कर्ज लेने की नौबत न आये कभी, सुखी, खुशहाल व सम्पन्न किसान हो जाये सभी। किसानों को समय से सही कीमत में बीज व खाद मिले, जिससे खेतों में समय से बोकर किसान का चेहरा खिले। लहराती फसलों को देख हर किसान खुशी से झूम उठे, बदहाली व भूखमरी से हमेशा-हमेशा के लिए पीछा छुटे। देश किसानों के लिए ऐसी कृषि विकास की योजना लाये, जिससे किसान की हालत अच्छी हो एवं आय बढ़ जाये। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रका...
भारत के पूत
कविता

भारत के पूत

धैर्यशील येवले इंदौर (म.प्र.) ******************** बहुत सो चुका मत लेटा रह आँखे मूंदे भीतर बाहर से ललकार रहा शत्रु तुझे मृत्यु खड़ी है द्वार पर। मृत्यु का तांडव होना जब निश्चित है कायर बन मृत्यु का वरण कर माँ की कोख क्यो करना चाहता है कलंकित चल शत्रु पर वार कर। उठ खड़ा हो ले शमशीर हाथों में दे कर अपना लहू कर रक्षा मातृभूमि की गायेगी तेरी शौर्य गाथाएँ जनता हिन्दुस्थान की लिख नया इतिहास अरिहंत अरि का अंत कर। लड़ ऐसा जैसे लड़े थे वीर गोविंद, शिवा और प्रताप गीदड़ की मौत मरने से अच्छा है, लड़ मरे केसरी की भांति रणभूमि पर। तू अकेला नही सम्पूर्ण राष्ट्र तेरे साथ है याद कर अपने इतिहास को इतिहास कायरों का नही लिखा जाता है, लिखा जाता है विरो का, रणबांकुरों का लाल बाल और पाल का होती है माताएं धन्य अपने लालो पर। तू भूल रहा लड़ी थी तेरी माँ तुझे अपनी पीठ पर बांधे झांसी में, रोक न पाए थे, शत्रु के परकोटे ...
ज़िंदगी…”एक मधुशाला”
कविता

ज़िंदगी…”एक मधुशाला”

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** चकाचौंध हैं मदिरालय में, बरपाते हंगामा हमप्याला, खींचतान पैमानों का ज़ोर, बिखर रही हैं जीवन हाला, बन साकी वो भटक रहा हैं, ख़ातिर औरो खुद को भूला, भर-भर मधुघट हैं पिला रहा, पर कम ना होती तृषा हाला... छलक रहे पैमानें फिर क्यू, रिक्त रहा है उसका प्याला? बज़्म भरी हैं रिंदों से पर, हैं तन्हा क्यू वो मतवाला? घुट घुट सब पी रहे पर, बुझती नही उर की ज्वाला, और और का शोर चहु ओर, रहा प्यासा क्यू फिर मतवाला? मन्दिर भटका मस्जिद छाना, कहलाया तब भी पीने वाला, लाख जतन किये समझाने को, उतरीं नही पर मन से हाला, उफ़न रही जीवन वारुणी, पर अब शेष रहा ना कुछ पीने को, ज्ञान सुरा के दो घुट लू चख मैं, मिल जाये कही "निर्मल" मधुशाला... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : ...
मेरी दीवानगी
कविता

मेरी दीवानगी

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** मेरी दीवानगी हद से परे गुजरने लगी है प्यार तुझसे दीवार किसी की गिरने लगी है चलते गये उन राहो पर जहां महक तेरी हे देखा रकीबो के राहें अब फिसलने लगी है मेरे ख़्वाब मे आना मुमकिन नही ओर का शब होते -होते नींदे मेरी सिमटने लगी है मै भी सूरत तेरी देख कर इतराने लगा सामने तेरे आइने की चमक मिटने लगी है मै खामोश था तो क्या हो गया अब आसमां से सूरत पर बिजली पड़ने लगी है हर शाम मेरी सिन्दूरी बने साथ "मोहन" प्यार की वो बरसात अब बरसने लगी है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच...
किसान
कविता

किसान

मईनुदीन कोहरी बीकानेर (राजस्थान) ******************** दुनियाँ का जो पेट भरता। वो सच्चा सेवक किसान है।। सरदी-गरमी को जो सहता। वो भारत का किसान है।। उसकी मेहनत रंग लाती। जब खेत मे होता धान है।। बिजली-पानी की कमी से। हताश हो जाता किसान है।। कभी सुका कभी ओला। मुश्किल मे रह्ता किसान है।। कष्ट सह-सह श्रम करता। सच्चा देश भक्त किसान है।। कर्ज तले जब दब जाता। खुद भूखा सोता किसान है।। पुरे मिलते नही फसल के दाम। मजबूरन संघर्ष करता किसान।। परिचय :- मईनुदीन कोहरी उपनाम : नाचीज बीकानेरी निवासी - बीकानेर राजस्थान घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशि...
किसानों के हमदर्द
कविता

किसानों के हमदर्द

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। हम जय जवान जय किसान कहेंगे शान से। आते हैं हम भी हलधरों के खानदान से।। प्यारे हैं सभी आप हमें अपनी जान से। परखेगें मगर अपने ही चश्मे से ज्ञान से।। कबत क कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। कीचड़ से निकालेंगे करो मत उधम, सुनो। खेती परंपरा की नहीं रखती दम, सुनो।। मत रोको रास्तों को नहीं हम भी कम सुनो। कानून को हाथों में न लो बन अधम सुनो।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। तुम टूट चुके क्या करोगे और बिखर कर। रोते रहे कम कीमतों को ले इधर-उधर।। खेती नहीं है लाभ का धंधा चलो शहर। पक्के मकान देंगे तुम्हें चैन उम्र भर।। कब तक कहोगे कर रहे हैं हम सितम यहां। सबसे बड़े किसानों के हमदर्द हम यहां।। ...
संबल देते रहो।
कविता

संबल देते रहो।

मनोरमा जोशी इंदौर म.प्र. ******************** मुझे तुम धैर्य बंधाते रहो, जुगनुओं की तरह ही सही, रौशनी हमको देते रहो। हम कठिन मार्ग पर चल सके, ऐसा विश्वास देते रहो। ये तो माना तूफान हैं, पंथ मे लाख व्यवथान है, पैर ठहरे न इनके लिये, तीव्र गति इनको देते रहो। ये अंधेरा घना हो रहा, पलक मूंदे ये जग सोता रहा, पल रूकेगा न इनके लिये चेतना इनको देते रहो। ये हवा तो विषेली हुई, बूँद भी तो नशीली हुई, प्राण घातक है इनके लिये आस्था इनको देते रहो। परिचय :-  श्रीमती मनोरमा जोशी का निवास मध्यप्रदेश के इंदौर में है। आपका साहित्यिक उपनाम ‘मनु’ है। आपकी जन्मतिथि १९ दिसम्बर १९५३ और जन्मस्थान नरसिंहगढ़ है। शिक्षा - स्नातकोत्तर और संगीत है। कार्यक्षेत्र - सामाजिक क्षेत्र-इन्दौर शहर ही है। लेखन विधा में कविता और लेख लिखती हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में आपकी लेखनी का प्रकाशन होता रहा है। राष्ट्रीय कीर्ति सम्मान स...
देश प्रेमी पथिक
कविता

देश प्रेमी पथिक

बुद्धि सागर गौतम नौसढ़, गोरखपुर, (उत्तर प्रदेश) ******************** प्रेम पथिक हूं अच्छे दिल का, प्रेम राह पर चलता हूं। कांटो की परवाह नहीं है, नहीं किसी से डरता हूं। तेरा सच्चा प्रेमी हूं मैं, तुम पर मैं तो मरता हूं। सारी दुनिया से लड़ने की, हिम्मत मैं तो रखता हूं। प्रेम पथिक हूं देश प्रेम का, प्रेम देश से करता हूं। मातृभूमि भारत का अपने, हर पल सेवा करता हूं। मानवता का पाठ पढ़ाता, गीत देश का गाता हूं। प्रेम कहानी मैं भारत का, सबको खूब सुनाता हूं। परिचय :- बुद्धि सागर गौतम जन्म : १० जनवरी १९८८ सम्प्रति : शिक्षक- स्पर्श राजकीय बालिका इंटर कालेज गोरखपुर, लेखक, कवि। निवासी : नौसढ़, गोरखपुर, उत्तर प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के...
क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा
ग़ज़ल

क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** क्या ख़बर थी कि हाँ कर के मुकर जाएगा। वो हवाओं की तरह छुप के गुज़र जाएगा। फूल की तरहाँ रहेगा अगर जहाँ में वो, हाथ लगते ही यहाँ पल में बिखर जाएगा। ये शरारत है सभी उसकी की गई लेकिन, इसका इल्ज़ाम किसी और के सर जाएगा। रास आ जायेगी जब फिर से हर खुशी उसको, तब से दिल उसका सभी ग़म से उभर जाएगा। जितनी यादों को बसा रखा है उसने दिल में, उनका चेहरा उसकी आँखों मे उतर जाएगा। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहान...
किसान
कविता

किसान

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जब बंजर धरती पे, अपनी मेहनत के हल से लकीरें खींच जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। कभी स्थितियों से कभी परिस्थितियों से, दो-दो हाथ कर जाता है। वो पालता है, पेट सबके। खुद आधा पेट भर के, मुनाफाखोरी के आगे, हाथ-पैर जोड़ता रह जाता है। हाथ की लकीरों से लड़ जाता है। जो जीवन को जीवन देता है। सबको अपनी मेहनत से ऊचाईयां देता है। उसकी महानता को, अगर समझें होते। कर्ज में डूबे किसान, फांसी पर यूं न चढ़ें होते।। आज अनशन लेकर, सड़कों पर क्यों खड़े होते। दीजिए सम्मान, उसे......जिस का हकदार है। वह धरा पर, जीवन धरा का प्राण है। डॉक्टर, इंजीनियर .....बनने से पहले, जीवन देने वाला है। अमृत सदृश रोटी हर रोज देने वाला है।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानि...
आरक्षण और नहीं
कविता

आरक्षण और नहीं

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** "आरक्षण और नहीं" से मैं सहमत नहीं! आरक्षण होना ही चाहिए मांँ की कोख में... कन्या-भ्रूण का! ताकि बीमार मानसिकता के लोग स्खलित ना कर दे उसे वहां से! सरसियों से खींच उसका सर धड़ से विच्छिन्न कर फेंक ना दें कूड़ेदान में!! कैंचियों से काट उसका अंग-प्रत्यंग बड़ी निर्ममता से गिरा न दे... अवांछित कचरे के डब्बे में!!! हर एक माँ-बाप और दादी-दादा बुआ चाची नानी के मन-मस्तिष्क में भली-भांँति बिठा दो यह बात कि सृष्टि वाहिनी कन्या का जन्म परम कल्याणकारी है! घर समाज राष्ट्र और जगती के लिए!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या शिशु के जन्म का! परम पावन आह्लादित मनसे: जननी कन्या का आह्वान करो! उसके प्रादुर्भाव का स्वागत करो!! दोनों बाहें पसार हर्षित नयन!!! आरक्षण होना ही चाहिए कन्या के राजकुमारों से लालन-पालन का... मांँ-बाप की यथाशक्ति! उसकी समुचित शिक्षा-दीक्षा क...
जिम्मेदारी
कविता

जिम्मेदारी

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** ये देश हमारा है बस इसी गुमान में मत रहिए देश से प्यार भी कीजिए, आपकी भी कुछ जिम्मेदारियां भी हैं उसका भी निर्वाह कीजिए। देश और देश के संसाधनों पर आपका भी हक है इसमें नया क्या है? देश के प्रति आपकी भी कुछ कर्तव्य भी उसे भी तो कीजिये। ये मत भूलिए कि देश आपका है आपसे नहीं है, आप देश से हैं देश आपसे नहीं है। गुरुर भर मत कीजिए कि देश हमारा है, अपनी जिम्मेदारी निभाइए देश को आगे बढ़ाइए देश को सबसे आगे ले जाना है एकता और विकास का परचम लहराना है, आइए !आप भी कंधे से कंधा मिलाइए हम सब अपनी अपनी यथोचित जिम्मेदारी निभायें तब कहें देश हमारा है तो हमारी जिम्मेदारी भी है। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरि...
दोस्तों की महफ़िल
ग़ज़ल

दोस्तों की महफ़िल

विकाश बैनीवाल मुन्सरी, हनुमानगढ़ (राजस्थान) ******************** अरसों बाद आज सजी दोस्तों की महफ़िल, मस्ती के गुबार फूटने लगे ख़ुश हुए दिल। ग़म-ए-हयात मिटाने बिच की खीज़ मिटाने, यार मेरे जो ख़फ़ा थे वो भी हुए शामिल। ज़िंदगी की हर चीज़ मना सकते चुटकी में, मगर रूठें अपने यार मनाने बड़े मुश्किल। आई उसकी याद चार चाँद लगा दिए ग़मों ने, इश्क़ की तर्ज़ छिड़ी तो भूल गए मंज़िल। शेरो-शायरी की भरमार ग़ज़लों की हुज़ूम, 'विकाश' उलझे ख़ुशी की या ग़म की महफ़िल। परिचय :- विकाश बैनीवाल पिता : श्री मांगेराम बैनीवाल निवासी : गांव-मुन्सरी, तहसील-भादरा जिला हनुमानगढ़ (राजस्थान) शिक्षा : स्नातक पास, बी.एड जारी है घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा ...
कोरा कागज
कविता

कोरा कागज

विकास शर्मा जयपुर (राजस्थान) ******************** मन में भरे अनगिनत विचार, लिखो तुम इन्हें कोरे कागज पर। मन भी हल्का हो जाए, जितने शब्दों के तुम समानार्थी ढूँढों। उतना ही कागज का अर्थ बढ़ जाये जितने तुमने छंद-अलंकार लगाये। शब्दों में प्रत्यय का भाव जगाओ, तो कहीं उपसर्ग से नए शब्द बनाओ। हिंदी और उसकी बिंदिया से । अपने मनोभावों को सजाओ, बने शुद्ध भाव कहीं अर्धविराम लगाने से देखों इन शब्दों की ताकत को। कागज की बनी भाषा में, उल्लास से निकले भाव मन में। भुल जाओ तुम दुख दर्द को, कागज पर पढ़ोगे जब अपने मन की लिखी भाषा को। परिचय :- विकास शर्मा निवासी : जयपुर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते ह...
उम्मीदों की भोर
कविता

उम्मीदों की भोर

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल मध्य प्रदेश ******************** निगल रहा अब अंधकार जग, होकर आदमखोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।। जंगी ताले ने जकड़ा है, दुनिया का चिंतन। शुष्क कूप में करते मेंढक, सरहद पर मंथन।। हर बैठक का फल खा जाता, छली केमरा चोर।। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।१ निर्जन में सम्पन्न भेड़िए, करते हैं कसरत। कम्बल ओढ़े चरती हैं अब, कुछ भेड़ें आहत।। शून्य कौर के आगे लगकर, करे पेट में शोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।२ भगा दिए हैं दर से शिल्पी, इन बाजारों ने। वस्त्र जंग के पहन लिए हैं, अब औजारों ने।। 'जीवन' का हर उत्सव भूला, इस जंगल का मोर। क्षितिज परे जाकर दुबकी है, उम्मीदों की भोर।।३ परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी...
मेरी दासताँ
कविता

मेरी दासताँ

जया आर्य भोपाल म.प्र. ******************** हस्ती मेरी मिटेगी नहीं अभी बहुत सी बातें करनी बाकी है अब भी बची हैं कुछ इश्क की बातें जो दिल में आग लगाती हैं। मेरे अफसानों को तुम करोगे याद कुछ तो फसाने हैं इनअल्फज़ों में यहीं जमीं पर पड़े पाये हैं मैने कुछ तो आस्मानों से चुरालाये हैं। आज भी इस भीड़ में जब अकेले होते हैं तो हर तरफ से आती है आवाजें कौन हो तुम कहां से आये हो क्यों सोये हुए जज़्बात जगाते हो। न जाने कितने दिलों पे राज किया है मैने हर दिल मेरे इर्द गिर्द घूमती है किस दिल से कहूं तुम मेरे हो हर दिल के जख्म सिए हैं मैने। ऐ खुदा तुझे पुकारते हैं हर दम तभी तो प्यार जिन्दा है मुझमें मैं रहूं न रहूं तेरी इस दुनियां में सांसे मेरी दासताँ सुनाएंगी हर दम। परिचय - जया आर्य जन्म : १७ मई १९४७ निवासी : भोपाल म.प्र. शिक्षा : तमिल भाषी अंग्रेज़ी में एमए. उपलब्धि : ग्रेड १, हिंदी उदघोषक आकाशवाणी मुम...
प्यासा पंछी
कविता

प्यासा पंछी

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। अपनी प्यारी वाणी में वह, कुछ है बोल रहा। संभवतः कर रहा निवेदन, सुमधुर भाषा है। उसकी कुछ अपनी चाहत है, कुछ अभिलाषा है। सुनने वालों के कानों में, मिसरी घोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। आदि काल से है मानव के, खग से प्रिय नाते। विहग संग पाकर घर-आँगन , सब जन सुख पाते। मानव जीवन में हर नभचर, नित अनमोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। उसके गाने में है सरगम, स्वर है मनमोही। धुन सीधे उर को छूती है, लय है आरोही। मधुर-मधुर स्वर लहरी द्वारा, उर पट खोल रहा। नेह नीर का प्यासा पंछी, आँगन डोल रहा। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ जन्म स्थान ~ महू ज़िला इन्दौर (म•प्र•) भाषा ज्ञान ~ हिन्दी, अंग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत शिक्षा ~ एम• ए• (हिन्दी और ...
बड़ी देर कर दी
कविता

बड़ी देर कर दी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन की राह में, नहीं चलती मर्जी, समय पर चलना, बड़ी देर कर दी। समय का पाबंध, नहीं हो खुदगर्जी, देरी न हो अच्छी, बड़ी देर कर दी। दर्द कभी ना दो, बनो नहीं बेदर्दी, देरी भ्रष्टाचार हो, बड़ी देर कर दी। गर्मी जब बीतती, फिर आती सर्दी, सावन भी कहता, बहुत देर कर दी। मरीज दम तोड़ता, चले डाक्टर मर्जी, नहीं लगती अर्जी, बहुत देर कर दी। अन्न पैदा न हुआ, कैसी खेती करली, बीज बोया देर से, बहुत देर कर दी। विद्यार्थी फेल हो, खूब लगाई अर्जी, सालभर पढ़ा नहीं, बहुत देर कर दी। युद्ध में हार गया, तत्परता न बरती, चारों ओर घिरता, बहुत देर कर दी। मरीज बीमार हो, लापरवाही बरती, रोग ठीक न हुआ, बहुत देर कर दी। बढ़ा हुआ प्रदूषण, हदें ही पार करली, अब भी वक्त बचा, बहुत देर कर दी। रोग बढ़ता जाएगा, जब लगी हो सर्दी, वक्त है बचाव कर, बहुत देर कर दी। जोह र...
ठोकरें खा के भी
ग़ज़ल

ठोकरें खा के भी

शरद जोशी "शलभ" धार (म.प्र.) ******************** ठोकरें खा के भी जो लोग संभल जाते हैं। मुश्किलों से कई वो लोग निकल जाते हैं।। नूर की बूँद ज़माने में बही जाती है। उसके जलवों से ज़माने भी बदल जाते हैं।। प्यार मिल जाए मुकद्दर से किसी का जिनको। उनके दिल में कई अरमान मचल जाते हैं।। बादलों पर सवार होके ना आया करना। परी समझते हैं बच्चे भी बहल जाते हैं।। हौसले और इरादे नहीं पक्के जिनके। आहटें होते ही वो लोग दहल जाते हैं।। शाख पर पत्तियां निकली नया मौसम आया। अब तो मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं।। दूर पर्वत पे "शलभ" देवता का डेरा है। उसके आगोश में पत्थर भी पिघल जाते हैं।। परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी "शलभ" कवि एवंं गीतकार हैं। विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल। प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्य...
मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै
कविता

मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै

अलका जैन (इंदौर) ******************** मौसम संमदर किनारा मेहबूब पैसै लोक डाउन ने सब पर पानी फेरा करोना जीते जी मार डाला यार मंझधार में साथ रहे किनारे पर वो अजनबी बन गया हाय रो मत दुनिया में होता लाख बहाने मरने के यार तू सिर्फ एक सहारा जिंदगी का बस मै नहीं तू ही तू कस्मे वादे प्यार वफा बेकार जिस्म की चाहते सबसे पहले नया दौर मेहबूबा चाहे इश्क नादानी करें महफ़िल यार दोस्त खुशी पैमाना दुनिया बदला पैमाना मंहगी वस्तु खुशी दे तेरा को देख खुश कोई लहू संग अश्क बह रहे अश्क बाहाये समझा कौन दर्द ए मुफलिस दर्द-दर्द और दर्द मुफलिस की जिंदगी हुनर को दाद दे कौन माया दिवानी कला को मान दे कोन हुनरमंद कैसे हूनर निखारे यारो अश्क तेरे ही नहीं दीवाने दुनियाभर की आंखों नम क्या तू क्या जाने अश्क पीता जा और जी मिलेगी मंजिल एक दिन तुझे भी भटक घूमना ना छोड़ हुनरमंद कलाकार मेहनत रंग लाएगी एक दिन परिचय :- इं...
देख मां
कविता

देख मां

मित्रा शर्मा महू - इंदौर ******************** अमिट कहानी लिख डाली है बेटों ने, तेरी लाज बचाने कदम बढ़ाए है बेटों ने। सोंधी खुश्बू तेरी माटी की महक गई , तेरे रक्षा के लिए जान भी कुर्बान गई। मनाते है हम दीवाली घरों में बैठकर, वो खेलते है होली सरहदों पर जाकर। जब दुश्मन अपनी पंख फड़फड़ाते है, तब वीरों ने डटकर अपना लहू बहाते है। दांव पेच खेलकर कायरों ने हराने को, शूरवीर हारते नहीं आंखे चार कराने को। परिचय :- मित्रा शर्मा - महू (मूल निवासी नेपाल) आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे ...