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पद्य

तिरंगे के खातिर
कविता

तिरंगे के खातिर

रवि यादव कोटा (राजस्थान) ******************** जहाँ तिरंगे के खातिर वो सूली पर, चढ़ जाते हैं, जहाँ तिरंगे की खातिर, हंसते-हंसते मर जाते हैं, जहाँ तिरंगे के खातिर, जीवन अर्पण कर जाते है, जहां तिरंगे की खातिर भारत, दर्पण बन जाते हैं, उसी तिरंगे का भारत में, ऐसा हालात बना देखो, कहीं जलाकर फेंका है, ऐसा आघात करा दे, रोते होंगे राजगुरु, सुखदेव भगतसिंह आंखों से, जिनके लिए दिया जीवन, जलते देखा उन हाथों से, भगत सिंह कहते है....... हमने उसके लिए सदा, माँ-बाप को पीछे छोड़ा है, इसकी आजादी के हित, अपनों से चेहरा मोड़ा है, भूखे प्यासे रहकर भी, शोणित से नित श्रंगार किया, खुद हुए चुपचाप मगर, अपने हिस्से का प्यार दिया, परिवार हमारे भी थे, गर सोच बनाते जीवन में, छोड़ के आजादी सपना, गर मौज बढ़ाते जीवन में, गुलाम दासता जीते फिर, ऐसा आबाद नहीं होता, गर सोच जो ऐसी रखते तो, भारत आजाद नही होता।। परिचय - रवि ...
आलोक
कविता

आलोक

जया आर्य भोपाल म.प्र. ******************** बुझा हुआ है दिल का कोना आलोकित उसको कर दें, वक्त फागुनी आ गया है दिल का दिया जला ले। खोलें खिड़की और दरवाज़े खुली हवा में जी लें, वक्त फागुनी आ गया है मन आलोकित कर लें। सूरज ने भी किरण बिखेरी कीट पतंगे झूमे ईश्वर ने दुनिया रच डाला हम सब संग संग जी लें। नहीं भरोसा है राहों का अगले पल क्या होगा, जीवन के इस पगडंडी को हम आलोकित कर दें। परिचय - जया आर्य जन्म : १७ मई १९४७ निवासी : भोपाल म.प्र. शिक्षा : तमिल भाषी अंग्रेज़ी में एमए. उपलब्धि : ग्रेड १, हिंदी उदघोषक आकाशवाणी मुम्बई, जगदलपुर और भोपाल में कार्यरत। अध्यक्ष शांतिनिकेतन महिला कल्याण समिति। प्रख्यात उद्घोषिका होते हुए उभरते हुए उदघोषकों को प्रशिक्षित किया। जेलों में कैदियों पढ़ने लिखने हेतु प्रेरित किया, जेल मंत्री से सम्मानित। झुग्गी इलाकों में ९५० महिलाओं और बच्चो को साक्षर व्यावसायिक प्रशिक्ष...
सृष्टि की जननी
कविता

सृष्टि की जननी

निर्मल कुमार पीरिया इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** हो! पंचतत्व की वाहिनी तो, इस सृष्टि की जननी भी तुम, हर भाव समाहित हैं तुझमें, नव रसों की पोषनी भी तुम... बहता हैं निर्मल आब तुझमे, (वात्सल्य भाव) मन पुलकित हैं सुन रागिनी, (लोरी/ममत्व) हर ताप छूपा उर में महकी, (सहनशीलता ) थिरकी बन कभी तु मोरनी... (अर्पण/समर्पण) सप्त रंगों की तूलिका तुम, (निपूर्णता) उकेरे आँगन बनी दामिनी, (प्रगतिशील) स्याह हुआ, छाया तम तो, (मुसीबत) खिली बन तू फिर चाँदनी... (सृजनशील) नारी हो! या प्रकृति हो तुम, तू ही अवनि, तू ही जननी, कृति अंनत की, सबसे सुंदर, तुम ही हो, वो जीवनदायिनी... परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया शिक्षा : बी.एस. एम्.ए सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि. निवासी : इंदौर, (म.प्र.) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि र...
औरत की परिभाषा
कविता

औरत की परिभाषा

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** ऊंचे ऊंचे सपनों की उड़ान भरती है कभी डरती है कभी सहम् सी जाती हैं जीवन जीने का जो तरीका सिखाती है मुश्किलों में भी आशाओं का जो दीपक जलाएं रखती हैं यही नारी की परिभाषा कहलाती है.... मान सम्मान की जो हकदार होती हैं यह दुनिया जिसकी कर्जदार होती है कठिन मार्ग पर भी जो हंस के गुजरती हैं हर इच्छा को अपना जुनून बनाती हैं यही नारी की परिभाषा कहलाती है नारी है तो दो कुलों की शान है नारी से ही घर की रौनक हैं नारी ही अभिमान है नदी के दो छोरो को जो जोड़ना जानती है यही नारी की परिभाषा कहलाती है परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने...
महिला दिवस
कविता

महिला दिवस

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** "नारी रिश्तों की गरिमा है" मौन को जो शब्द दे सके ऐसी मुखरित वाणी है।। समूचे समंदर को एक बूंद में समाहित करना ही महिला दिवस की सार्थकता है नारी ईश्वर प्रदत्त एक नायाब तोहफ़ा है जगत नियंता द्वारा रचित नारी मात्र शब्द नहीं है झांसी की रानी लक्ष्मी बाई है नारी रानी पद्मनी के जौहर की पीड़ा है नारी राजपूताना गौरव पन्ना धाय है नारी असहाय देवकी की करूण गाथा है नारी नारी संसार है जगत जननी है नारी तीरथ है नारी मोक्ष है मैं इस मंच से यह विचार रखना चाहूँगी कि ईश्वर को भी धरा पर जब अवतरित होना होता है तो उसे भी नारी की कोख का सहारा लेना पड़ता है।। "आज महिला स्वविवेक से चुनौतियों को स्वीकार कर चौखट से चाँद तक जा पहुँची है" हर मौसम की बहार है नारी गुणों को बीच कचनार है नारी तन मन को जो कर दे शीतल मेघों से छलकी फुहार है नारी फूलो...
महिलाएं क्या चाहती हैं।
कविता

महिलाएं क्या चाहती हैं।

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** महिलाएं तो बस सम्मान चाहती है। बदलें में हर रिश्ते से, फर्ज निभाती हुई भी जब अपमान ही पाती है। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती है।। शक्ति स्तंभ होते हुए भी, समर्पित कर देती हैं खुद को। वह प्रेम में कहां.... कोई व्यापार चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं। बेटियां पराई है। बहू भी पराई है। वह अपने होने का एक अलग एहसास चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं। ना देह से आंकी जाए। ना वस्तु समझ कर जांची जाए। जो सृजक है पूरे संसार की, अपने संसार का अधिकार चाहती हैं। महिलाएं तो बस सम्मान चाहती हैं।। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने प...
चलो महिला दिवस मनाते हैं
कविता

चलो महिला दिवस मनाते हैं

ममता रथ रायपुर ******************** प्रतिवर्ष की भांति चलो फिर से महिला दिवस मनाते हैं नारी सशक्तिकरण के नारों से वसुंधरा को फिर से गुंजायमान करते हैं चलो एक बार फिर से संगोष्ठी, परिचर्चाओं में नारी को सम्मान देते हैं वेदों, पुराणों ग्रंथों में जो नारी है चलो आज फिर से उसका गुणगान करते हैं चलो महिला दिवस मनाते हैं यह रंग बदलती दुनिया है यहां सब अपने रंग दिखाते हैं कुछ दिनों नारी का सम्मान कर फिर वहशी, दरिंदें बन जाते हैं महिला दिवस पर जो समाज की वशिष्ठ महिला का सम्मान करते हैं वहीं फिर अपने घर की बेटी, बहन, मां, पत्नी के साथ दुर्व्यवहार करते हैं, और फिर महिला दिवस मनाते हैं परिचय :-  ममता रथ पिता : विद्या भूषण मिश्रा पति : प्रकाश रथ निवासी : रायपुर जन्म तिथि : १२-०६-१९७५ शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली...
इंसान बनो
कविता

इंसान बनो

सुधीर श्रीवास्तव बड़गाँव, जिला-गोण्डा, (उ.प्र.) ******************** जीवन भर हम खुद को मकड़जाल में उलझाए रखते हैं, सच तो यह है कि हमें बनना क्या है? ये ही नहीं समझ पाते। मृग मरीचिका की तरह भटकते रहते हैं, इंसान होकर भी इंसान नहीं रहते हैं। हम तो बस वो बनने की कोशिशें हजार करते हैं, जो हमें इंसान भी नहीं रहने देते हैं। हम खुद को चक्रव्यूह में फँसा ही लेते हैं, और इंसान होने की गलतफहमी में जीते रहते हैं। काश ! हम इतना समझ पाते इंसानी आवरण ढकने के बजाय वास्तव में इंसान बन पाते, काश ! हम अपने विवेक के दरवाजे का ताला खोल पाते जो बनना है वो तो हम बन ही जायेंगे मगर अच्छा होता हम पहले इंसान तो बन पाते। परिचय :- सुधीर श्रीवास्तव जन्मतिथि : ०१.०७.१९६९ पिता : स्व.श्री ज्ञानप्रकाश श्रीवास्तव माता : स्व.विमला देवी धर्मपत्नी : अंजू श्रीवास्तव पुत्री : संस्कृति, गरिमा पैतृक निवास : ग्राम-बरसैनिय...
स्वयं की खोज
कविता

स्वयं की खोज

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, (छत्तीसगढ़) ******************** महिलाएं कभी अपने आप को अबला और कमजोर ना समझे। उनमें हर प्रकार की क्षमता और ताकत निहित है जिसे उन्हें पहचानना है और विकसित करना है और इस राह में निर्णय लेकर मेहनत की राह पर अकेले चलने से कभी डरना नहीं है। सचमुच "डर के आगे जीत है" इस अनुभव से स्वयं को रूबरू कराना है। वो सृजनकर्ता हैं। ये गुण हर स्त्री के अंदर है। सबसे पहले तो महिलाएं सहारा लेना छोड़ दे, क्योंकि वह प्रकृति की सर्वोत्तम रचना है। उनके अंदर अनगिनत रंग भरे हुए हैं जिन्हें उनको समझ कर उन्हे निखारना होगा। शील की तरह स्त्री में भी निर्माण और विनाश की दोनों का गुण है। वो सृष्टिकर्ता है, सृजनकर्ता हैं। अपनी अहमियत समझ उनको अपनी इन गुणों को विकसित कर परिवार और समाज और राष्ट्र के निर्माण में अपनी मजबूत भूमिका निभाना है। स्त्री अपने इन गुणों में तभी निखार ला सकती है जब वह हर परि...
रंग
कविता

रंग

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** बीत गई पतझड़ की ऋतु आया है वसंत मौसम हुआ सुहाना शीत का हो गया अंत चहुँओर प्रकृति में छा गई है मादकता प्रीत की मृदु बयार लिए आ जाओ ना कंत कूके रे कोयलिया मानो पिए भंग है आम्र मंजरियों के बाण लिए अनंग हैं ठौर ठौर गली गली दहक उठे हैं पलाश इंद्रधनुषी आभा- से होली के रंग हैं देख! सब ओर सखी :फागुन की बयार बही पीतवर्णी बसंती परिधान में सजी मही मन के प्रेमिल भाव सब हो रहे हैं मुकुलित राग में भरकर राधा मोहन के कर गही परिचय : डॉ. पंकजवासिनी सम्प्रति : असिस्टेंट प्रोफेसर भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय निवासी : पटना (बिहार) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्र...
मध्यमवर्गीयों का दर्द
कविता

मध्यमवर्गीयों का दर्द

संजय जैन मुंबई (महाराष्ट्र) ******************** सोच-सोच कर रो रहा हूँ अपनी करनी पर। कैसा वक्त आन पड़ा अब सबको रोने को। चारो ओर मची है अब मंहगाई की मार । फिर भी कहते थक नहीं रहे अच्छे दिन आगये इस बार।। कहा से चले थे कहा तक आ पहुंचे। क्या इससे भी ज्यादा अच्छे दिन अब आयेंगे। जब मध्यमवर्गी लोगों को घर में भूखे ही मरवायेंगे। वैसे भी कौन करता परवाह इन मध्यमवर्गी परिवारों की। न तो वोट बैंक होते है ये और न होते है आंदोलनकारी। फिर क्यों करे चिंता सरकारे मध्यमवर्गी परिवारों की।। फंड मिलता है अमीरो से और वोट मिले गरीबों से। हाँ पर टैक्स सबसे ज्यादा देते ये ही मध्यमवर्गी परिवार। जिस पर यश आराम और राज करती है देश की सरकारें। सबसे ज्यादा अच्छे दिनों में लूट रहे मध्यमवर्गी परिवार। जाॅब चलेंगे नये नहीं है और हुए युवा देश के बेकार। फिर भी अच्छे दिन कहते-२ थक नहीं रही देश की सरकार। हाय हाय अच्छे दिन हा...
फूलों की बगिया
कविता

फूलों की बगिया

शिव कुमार रजक बनारस (काशी) ******************** फूलों की बगिया महकी है, चिड़िया चह - चह चहकी है एक फूल डाली से लटका, अंबर वसुधा देख रहा प्रेम दीवाना एक पागल मुझे तोड़न को सोच रहा मुझको तोड़ दिया हाथों में मन से पुलकित लड़की है । एक फूल माँ की गोदी से दूर कहीं ससुराल चली प्रेम पुष्प टूटा डाली से नयन अश्रु टपकाय चली अश्रु सिमट गए उन नयनों के वह बन गयी जब लक्ष्मी है। एक फूल कविता गीतों का शब्द शब्द से खेल रहा कलमकार के गीत ग़जल का जग में सबसे मेल रहा मिलन विरह की पीड़ाओं को लिखकर मैंने कह दी है। कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :- शिव कुमार रजक निवासी : बनारस (काशी) शिक्षा : बी.ए. द्वितीय वर्ष काशी हिंदू विश्वविद्यालय घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक म...
पचपन में बचपन की बातें
कविता

पचपन में बचपन की बातें

हंसराज गुप्ता जयपुर (राजस्थान) ******************** जब जब नववर्ष मनाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, हँस बच्चों संग बतियाते हैं. साथ मनाते दिन त्योहार, कहीं हाल पूछने जाते हैं, मोरपंख शंख हो बस्ते में, साथी मिल जाये रस्ते में, एक दूजे को खडे खडे, जीवन पूरा कह जाते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिलाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं। पहला प्यार, छाती की धार, सृजन का सुख, सारा संसार, रुदन उत्पात में दूध दुलार, सोई-जागी संग लोरी-मल्हार, सूखा मुझको, गीले में आप, सर्वस्व समर्पण,सोच ना ताप, गुस्सा, लात, दोष सब माफ, प्रतिकार मुझसे,कहलाता पाप. अब नन्हा-माँ दोनों शर्माते, दूध बोतल में, चाय पिलाते, तब दही छाछ,माखन खाते, पकडी बकरी,मुँह धार लगाते, हँसते सब धूम मचाते हैं, बीते पल सपनों में आते हैं, पचपन में बचपन की बातें, सच हैं, विश्वास दिला...
अपना है कौन…?
कविता

अपना है कौन…?

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** कहने को तो सब अपने हैं, लेकिन अपना है कौन? इस झूठ, फरेब की दुनिया में, लेकिन सच्चा है कौन? हमदर्द तो बहुतेरे है तेरे लेकिन जो दर्द को कम कर सके, वो है कौन? मुँह पर मीठे, पीछे बुरा कहते ऐसे तेरे अपने, ये तेरे अपने हैं कौन? जो तेरे दुख में बाहर रोते और भीतर मुस्कुराते, और तेरी खुशी देख कुड़कूड़ाते, ये तेरे ख़ास हैं कौन? ये सब कहने को तो तेरे अपने हैं,, लेकिन अपना है कौन? इस रँगबदलती दुनिया मे, कोई बेरंग सा, साफ दिल वाला है कौन? मत उम्मीद कर इन सबसे तू, इन सबको छोड़कर, बस खुद को देख कि तू है कौन? कहि इन्हीं में से एक तो नहीं? परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं। घोषणा ...
सुंदर मन है असली सुंदरता
कविता

सुंदर मन है असली सुंदरता

ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) धवारी सतना (मध्य प्रदेश) ******************** नही सौंदर्य की कोई परिभाषा तरतीब रहे या बेतरतीब। ये नजरिया होता है आँखों का कोई दूर रहे या कोई रहे करीब।। तन की सुंदरता से ज्यादा प्यारी है मन की सुंदरता। जब कोई मन से प्यार करे तब नही दीखती है कुरूपता।। ये निर्भर है भावों पर, कि, भाव हमारे हैं कैसे वही छबि हो मन में अंकित हैं, हमने भाव बनाये जैसे।। दिव्य गुणों के आगे कभी भी, ठहर न पाये तन का रूप। चाहे सँवारे या न सँवारे, फर्क न कोई पड़े अनूप।। माना, कि इस रूप की ज्योति सब के मन को भाती है। पर, जो होती सच्ची सन्दरता बिन सँवरे, भी लुभाती है।। अतः न होना चाहिये मान रूप रंग का इस जीवन में। जीवन की खुशबू बिखरे भाव से इस बात को समझें अब मन में।। परिचय :- ममता श्रवण अग्रवाल (अपराजिता) निवासी - धवारी सतना (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर...
परिवार
कविता

परिवार

संजय जैन मुंबई ******************** जोड़ जोड़कर तिनका, पहुंचे है यहां तक। अब में कैसे खर्च करे, बिना बजह के हम। जहां पड़े जरूरत, करो दबाकर तुम खर्च। जोड़ जोडक़र ......। रहता हूँ मैं खिलाप, फिजूल खर्च के प्रति। पर कभी न में हारता, मेहनत करने से । और न ही में हटता, अपने फर्ज से। पैसा कितना भी लग जाये, वक्त आने पर।। बिना वजह कैसे लूटा दू, अपने मेहनत का फल। सदा सीख में देता हूँ, अपने बच्चो को। समझो प्यारे तुम सब, इस मूल तथ्य को। तभी सफल हो पाओगे, अपने जीवन में।। क्या खोया क्या पाया, हिसाब लगाओ तुम। जीवन भर क्या किया, जरा समझ लो तुम। कितना पाया कितना खोया, सही करो मूल्यांकन। खुद व खुद समझ जाओगे, जीवन को जीने का मंत्र।। परिचय :- बीना (मध्यप्रदेश) के निवासी संजय जैन वर्तमान में मुम्बई में कार्यरत हैं। करीब २५ वर्ष से बम्बई में पब्लिक लिमिटेड कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत श्री जैन शौक स...
वासंती गीत
गीत

वासंती गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** वन-उपवन शोभायमान हैं, पर्ण-पर्ण आनन्दित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। हरी-हरी पत्तियाँ झूमकर, पुष्पों से कुछ कहतीं हैं। कलियाँ सुनकर उनकी बातें, भाव सरित् में बहती हैं। डाली-डाली तरु-पादप की, हुई सुसज्जित-शोभित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। रंग-बिरंगी विविध तितलियाँ, फूलों से मिलने आईं। उनका स्वागत हुआ सुखद तो, भावुक होकर मुस्काईं। सुन्दर सुमनों से चर्चा कर, तितली वृंद प्रफुल्लित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। कीट-पतंगो का मेला है, विहग दूर से आए हैं। सुमन समूहों ने सह स्वर में, स्वागत गीत सुनाए हैं। कोयल छेड़ रही है सरगम, भ्रमर गान भी गुंजित है। वृंत-वृंत पर फूल खिले हैं, और समीर सुगंधित है। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०१/०४/१९५१ ...
हरिभक्ति
गीतिका, छंद

हरिभक्ति

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, म.प्र. ******************** अँधियार चारों ओर बिखरा, सूझता कुछ भी नहीं। उजियार तरसा राह को अब, बूझता कुछ भी नहीं।। उत्थान लगता है पतन सा, काल कैसा आ गया। जीवन लगे अब बोझ हे प्रभु, यह अमंगल खा गया।। हे नाथ, दीनानाथ भगवन, पार अब कर दीजिए। जीवन बने सुंदर, मधुरतम, शान से नव कीजिए ।। भटकी बहुत ये ज़िन्दगी तो, नेह से वंचित रहा। प्रभुआप बिन मैं था अभागा, रोज़ कुछ तो कुछ सहा।। प्रभुनाम की माया अनोखी, शान लगती है भली सियराम की गाथा सुपावन, भा रही मंदिर-गली जीवन बने अभिराम सबका, आज हम सब खुश रहें। उत्साह से पूजन-भजनकर, भाव भरकर सब सहें। हरिगान में मंगल भरा है, बात यह सच जानिए। गुरुदेव ने हमसे कहा जो, आचरण में ठानिए।। आलोक जीवन में मिलेगा, सत्य को जो थाम लो। परमात्मा सबसे प्रबल है, आज उसका नाम लो।। भगवान का वंदन करूँ मैं, है यही बस कामना। प्र...
सबने टोका हमको
ग़ज़ल

सबने टोका हमको

नवीन माथुर पंचोली अमझेरा धार म.प्र. ******************** अक्सर सबने टोका हमको अपने हर हालातों में। आ जाते हैं हम लोगों की चिकनी-चुपड़ी बातों में। बात नहीं है ऐसी कोई जो हमको कमजोर करे, लेकिन हमने मात उठाई आकर कुछ जज्बातों में। तूफ़ानों की चर्चाएँ की समझा मेघों का गर्जन, छतरी ताने निकले फिर भी सावन की बरसातों में। इक जुगनू का पीछा करते रस्ता इतना पार किया, आख़िर भटके फिर भी हम तो चाँद खिली इन रातों में। सबका मज़ा-मज़ा था उसमें ,जाने जिस पर बीत रहीं, हाल हमारा वैसा जैसे दूल्हों का बारातों में। रोज़ यहाँ के लोग हमारी बेबाक़ी पर हँसते हैं, जीभ हमेशा कट जाती है रहकर बत्तीस दाँतों में। परिचय :- नवीन माथुर पंचोली निवास - अमझेरा धार म.प्र. सम्प्रति - शिक्षक प्रकाशन - देश की विभिन्न पत्रिकाओं में गजलों का नियमित प्रकाशन, तीन ग़ज़ल सन्ग्रह प्रकाशित। सम्मान - साहित्य गुंजन, शब्द प्रवाह, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक...
कहानी… मेरे पापा की
गीत

कहानी… मेरे पापा की

संजय जैन मुंबई ******************** पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ। उनके त्याग बलिदान को अपने बच्चो को सुनता हूँ। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। जन्म लिया उन्होंने ने बड़े जमींदार के घर में। बड़े बेटे बनकर उन्होंने निभाया अपना कर्तव्य। यश आराम से जिंदगी जी रहे थे परिवार के सब। भगवान की कृपा दृष्टि से सब अच्छा चल रहा था।। और भाई बहिन माता पिता का प्रेम बरस रहा था। ऐसे पापा जी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। भाई बहिन के प्रेम में वो ऐसे रहे थे। उन्हें उनके अलावा कुछ और नहीं दिखता था। भाई बहिन पर वो अपनी जान नीछावर करते थे। ऐसे पापाजी के चरणों में अपना शीश झूकता हूँ...।। पर समय परिवर्तन ने कुछ ऐसा कर दिखाया। भाई-बहिन और पिता ने मुँह मोड़ लिया बेटे से। कल तक जो सबको बहुत प्यारे भाई लगते थे। अब वो ही सब की आँखो में खटकने लगे। २६ सालों के साथ रहने का अब अंत हो...
अधूरी कहानी
कविता

अधूरी कहानी

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** जीवन है एक कहानी, सबने मानी जग जानी, दिल की दिल में रहे, जब करते हैं मनमानी, तमन्ना लेकर आते जन, हो ना पाती जब पूरी, इंसान चले जाते हैं, रह जाती अधूरी कहानी। एक बार की बात है, वृद्ध बता रहा खजाना, अंतिम घड़ी पास में, परिवार ने कहना माना, बताते-बताते साँस छूटी, रह गई अधूरी बात, मन की मन में रह गई, खजाना न लगा हाथ। मियां बीवी चले जा रहे, कार गति बढ़ाई थी, खुश होकर बातें करते, शादी खुशी मनाई थी, रास्ते में हो गई दुर्घटना, दोनों की हो गई मौत, दिल की दिल में रह गई, खामोश रह गये होठ। एक समय की बात है, राजा-रानी चले थे साथ, कहा राजा ने रानी से, बतलाऊंगा कल एक बात नींद में दोनो खो गये, छा गई अंधेरी काली रात, सुबह दोनों चिरनिद्रा में थे, रह गई अधूरी बात। वक्त समय पर काम हो, तब ना रहे अधूरी बात, नहीं पता किस मोड़ पर, हो जाती है मुलाकात...
संघर्षो के नाम किया है
गीत

संघर्षो के नाम किया है

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** हाथ उठाने वालों की तुम, लाइन में हमको मत रखना। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। ऊपर वाले ने जो हमको, सोच समझ की दौलत दी है। अच्छा और बुरा समझें हम, बुद्धि दी है ताकत दी है।। हमने कब अपना माना ये, उसका जीवन उसका माना। इसीलिए तो सारा जीवन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। अपमानों के लड्डू पेड़ों, से इज्जत की रोटी प्यारी। हमने मेहनत की खुशबू से, अपनी किस्मत सदा संवारी।। हाथ पसारे नहीं रहे हम, नहीं मांगकर हमने खाया। लम्हा-लम्हा हर परिवर्तन, संघर्षों के नाम किया है।। हमने जीवन का ये गुलशन, संघर्षों के नाम किया है।। आग लगाने वालों ने तो, हरदम आग लगाई बढ़कर। झुलसाकर अपने मधुबन को, हम ने आग बुझाई बढ़कर।। नहीं देखती आग राह के, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारों को। हमने सत्य न्याय का आंगन, स...
फागुन गीत
कविता

फागुन गीत

रशीद अहमद शेख 'रशीद' इंदौर म.प्र. ******************** उर अभिलाषी है रँगों का, इच्छुक है कल्पना गगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। होली की हुड़दंग मची है, दिशा-दिशा मस्ती छाई है। तन-मन में उल्लास बहुत है, सबके मन होली भाई है। झूम रहे हैं सब नर-नारी, खेल रही रँग सकल नगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। मुख रंगीन किया है तूने, गला और कर भी रँग डाले। पाँवों तक पँहुची रँगधारा, वसन हुए सारे रँगवाले। आशंका है मुझे आज तो, लग जाएगी बुरी नजरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। गली-गली में ढोल बज रहे, होली गीतों की सरगम है। नयन उमंगों से पूरित हैं, परिहासों का अगणित क्रम है। दूर हुए सन्नाटे सारे, हुरियारों से भरी डगरिया। तन तूने रँग डाला मेरा, अब मन भी रँग डाल सँवरिया। परिचय -  रशीद अहमद शेख 'रशीद' साहित्यिक उपनाम ~ ‘रशीद’ जन्मतिथि~ ०...
आज़ादी के मज़े
कविता

आज़ादी के मज़े

धैर्यशील येवले इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** न सुकून है न चैन है डूबा हूँ शोर शराबे में प्रजातंत्र के हल्ले गुल्ले में अभिव्यक्ति के घोर खराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में जिसे जो मन भाया कर रहा है समाजवाद की टोपी पूंजीवाद पहन रहा है असली चेहरे देखने को मन तरस गया है एक उतारो तो दूसरा मुखोटा मिल रहा है मजा ले रहे है लोग खून खराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में पिछोत्तर साल होने आये है फिर भी भरमाये हुये है सभी का अपना व्यक्तिवाद उसे ही समझ रहे राष्ट्रवाद कोई गा रहा वंशवाद के बारे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में देश का जो होना है होवे मेरे ऐश्वर्य में कमी न होवे अली बाबा अकेला जूझ रहा है चालीस चोर मचा रहे है शोर जल्दी लूटो होने वाली है भोर सोच रहे सब अपनी अपनी कौन सोचे देश के बारे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में पूरा मुल्क डूबा है शोर शराबे में परिचय ...
चंद्रशेखर आज़ाद
कविता

चंद्रशेखर आज़ाद

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** अपना नाम ... आजाद । पिता का नाम ... स्वतंत्रता बतलाता था। जेल को, अपना घर कहता था। भारत मां की, जय -जयकार लगाता था। भाबरा की, माटी को अमर कर। उस दिन भारत का, सीना गर्व से फूला था। चंद्रशेखर आज़ाद के साथ, वंदे मातरम्... भारत मां की जय... देश का बच्चा-बच्चा बोला था। जलियांवाले बाग की कहानी, फिर ना दोहराई जाएगी। फिरंगी को, देने को गोली...आज़ाद ने, कसम देश की खाई थी। भारत मां का, जयकारा ...उस समय, जो कोई भी लगाता था। फिरंगी से वो...तब, बेंत की सजा पाता था। कहकर ...आजाद खुद को भारत मां का सपूत, भारत मां की, जय-जयकार बुलाता था। कोड़ों से छलनी सपूत वो आजादी का सपना, नहीं भूलाता था। अंतिम समय में, झुकने ना दिया सिर, बड़ी शान से, मूछों को ताव लगाता था। हंस कर मौत को गले लगाया था। आज़ाद... आज़ादी के गीत ही गाता था।। परिचय :- प...