Sunday, December 14राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

पद्य

बेखबर
कविता

बेखबर

अनुराधा बक्शी "अनु" दुर्ग, छत्तीसगढ़ ******************** विचारों का बहाव बार-बार तुम्हारे तरफ मुड़ जाता है। जैसे यादों का सावन वहा बरस रहा हो और मैं यहां भीग रही हूं। परवाह किए बगैर कि तुम्हारे मन में मैं हूं या नहीं। तुम्हारे ना रहने से पूरा शहर ही वीरान हो जाता है। स्क्रीन पर तुम्हें देखने मोबाइल बार-बार उठाना। उंगलियों का मैसेज टाइप करके मिटाना। इस बात से बेफिक्र कि तुम्हें मतलब नहीं इन सब से। मन तुम्हें ही क्यों चाहता है। जिंदा है तुम्हारे हाथों की छुअन जो, अनजाने टकराया मेरे हाथों से। उस स्पर्श ने सिर्फ मुझे छुआ। इस बात से बिल्कुल बेफिक्र तुम। मैं सिर्फ तुम्हारे लिए और तुम बिलकुल...! बेखबर... ! बेखबर... ! बेखबर...! परिचय :- अनुराधा बक्शी "अनु" निवासी : दुर्ग, छत्तीसगढ़ सम्प्रति : अभिभाषक घोषणा पत्र : मैं यह शपथ लेकर कहती हूं कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं...
माता-पिता कहते हैं
कविता

माता-पिता कहते हैं

बबली राठौर पृथ्वीपुर टीकमगढ़ (म.प्र.) ******************** आज के जमाने में मैं सुखी हूँ कौन कहता है किसे गम ने नहीं सताया है क्या कोई ऐसा भी है जिसे दर्द कभी नहीं मिला है माता-पिता कहते हैं ऐसा इंसा खोजो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम आज मन में हरयाली है कल किसने देखा है आज तकदीर मेरी है कल तदबीर के हाथों दिल जला है छलक पड़े थे आँसूदेख यह कि किस्मत ये थी जो मेरी है माता-पिता कहते हैं ऐसा वक्त तराशो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम जिन्दगी की कहानी मुझ से कहती है रुकने का नाम क्यों लोग लेते हैं इक दिए की लव से सीखते सब हैं सपनों को साकार होते देखते हैं माता-पिता कहते हैं तकदीर से किस्मत तौलो तुम और नए सवेरे का इंतजार करना तुम कलियां खिली मुस्कराती देखी हैं क्या फूलों से खुशबू की ली है अपना दिल ये तराने गाता नजर आता है क्या ऐसी खुशी मिली है और दूर-दूर तक नाम तुम्हारा ऊँचा और जन्म...
खौफ साए में
कविता

खौफ साए में

विजय गुप्ता दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** खौफ साए में जिंदगी पल रही लक्ष्य विहीन मंजिल चल रही। श्रम योग ने कभी रखी शिलाएं अब घेर रही हैं विभिन्न बलाएं टीस देने लगी जो शेष आशाएं खीझ जन्य चाल तो खल रही भीत से सभी दिशाएं हिल रही खौफ साए में जिंदगी पल रही। लक्ष्य विहीन मंजिल चल रही।। याद आते मेहनतों के वो मंजर हल चलाए जहां भूमि थी बंजर सफल पीढ़ी कमान थामे सुंदर दीन बन कृतत्व कला गुम रही सीख समय की साहस भर रही खौफ साए में जिंदगी पल रही लक्ष्य विहीन मंजिल चल रही।। कार्यशाला पाठशाला संस्कार हर सूरत प्रावधानों का विचार सामर्थ्य अनुसार होता विस्तार हीन सा जीवन चाह भटक रही बीन बजाती जिंदगी सटक रही खौफ साए में जिंदगी पल रही लक्ष्य विहीन मंजिल चल रही।। कर्मक्रान्ति ने कई रंग दिखाए दिनचर्या सीमित परिधि आए निराश मन को अब मौन भाए सीप मोती से शिकायतें कर रही रीझकर कलम इबारतें रच रही खौफ साए में...
ज़िन्दगी
कविता

ज़िन्दगी

विरेन्द्र कुमार यादव गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) ******************** ज़िन्दगी जिन्दगी एक उददेश्य होती है, बिन उददेश्य की जिन्दगी बेकार होती है। जिन्दगी धूप होती है , जिन्दगी छाँव होती है। जिन्दगी में एक सपना होता है, कोई अपना होता है। कोई पराया होता है, कोई रिश्तेदार होता है। कोई दोस्त-यार होता है, कोई ना समझ और कोई समझदार होता है। कोई जिन्दगी में मझधार में रोता है, कोई पहुँच के उस पार हँसता है। जिन्दगी सुखों-दुखों का संगम है, हमको आपको चलते रहना हरदम है। जिन्दगी प्यार का गीत है हर एक को गुनगुनाना पड़ेगा, जिन्दगी गम का सागर भी है हर एक को उस पार जाना पड़ेगा। परिचय :- विरेन्द्र कुमार यादव निवासी : गौरा बस्ती (उत्तर-प्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय...
तेरे दर्शन की ख्वाहिश है
ग़ज़ल

तेरे दर्शन की ख्वाहिश है

मुकेश सिंघानिया चाम्पा (छत्तीसगढ़) ******************** ग़ज़ल - १२२२ १२२२ १२२२ १२२२ सुधारों अब दशा भगवन तेरे दर्शन की ख्वाहिश है पड़े हैं सुने सब मंदिर तेरे कीर्तन की ख्वाहिश है हुए बेचैन अब घर में ही रह हम बंदियों जैसे खुले वातावरण में अब जरा विचरण की ख्वाहिश है भरा है मन बहुत संवेदना हिन देख लोगों को व्यथित मन में बहुत अब शोर की क्रंदन की ख्वाहिश है हुई क्यूँ ऐसी ये दुनिया भला कारण है क्या इसका इसी पर अब मनन की और गहन चिंतन की ख्वाहिश है जगत जकड़ा हुआ अज्ञानता के घोर अंधेरों में उजालों की नयी किरणों के अब सृजन की ख्वाहिश है अजब सी इक हवा का डर है पसरा सबके हृदय में सभी खुशहाल और भयमुक्त हो ये मन की ख्वाहिश है तेरे चरणों में ही दिन रात मेरे जैसे हों गुजरे तेरे दर पर ही निकले दम मेरे जीवन की ख्वाहिश है मनाएँ फिर तेरा उत्सव बड़े हर्ष और उल्लासों से त...
जिंदगी इक सफ़र है
ग़ज़ल

जिंदगी इक सफ़र है

निज़ाम फतेहपुरी मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** ग़ज़ल - २१२ २१२ २१२ २१२ अरकान- फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन जिंदगी इक सफ़र है नहीं और कुछ। मौत के डर से डर है नहीं और कुछ।। तेरी दौलत महल तेरा धोका है सब। क़ब्र ही असली घर है नहीं और कुछ।। प्यार से प्यार है प्यार ही बंदगी। प्यार से बढ़के ज़र है नहीं और कुछ।। नफ़रतों से हुआ कुछ न हासिल कभी। ग़म इधर जो उधर है नहीं और कुछ।। घटना घटती यहाँ जो वो छपती कहाँ। सिर्फ झूठी ख़बर है नहीं और कुछ।। बोलते सच जो थे क्यों वो ख़ामोश हैं। ख़ौफ़ का ये असर है नहीं और कुछ।। जो भी जाहिल को फ़ाज़िल कहेगा 'निज़ाम'। अब उसी की कदर है नहीं और कुछ।। परिचय :- निज़ाम फतेहपुरी निवासी : मदोकीपुर ज़िला-फतेहपुर (उत्तर प्रदेश) शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित हैं आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परि...
प्रेम का सौन्दर्य
कविता

प्रेम का सौन्दर्य

मधु टाक इंदौर मध्य प्रदेश ******************** रेत पर घरौंदा जब बनाओगे चंद सीपों से गहने जड़वाओगे प्रीत में तेरी राधा सी बनकर मन में जब संदल महकाओगे मैं मिलूंगी तुम्हें वहीं प्रिये.......... नागफनी में भी फूल खिलाओगे छूकर मुझे तुम राम बन जाओगे आशा के तुम ख्वाब सजाकर जब जब मुझसे प्रीत निभाओगे मैं मिलुंगी तुम्हें वहीं प्रिये...... कोयल की कूक सुनाओगेे भवरें सी मधुर गुंजार करोगे अमावस की अंधेरी रातों में जुगनू से रोशनी ले आओगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये ...... हरी चुड़ियाँ जब तुम लाओगे आस के हंस को मोती चुगाओगे सावन में लहराने लगा मन मेरा प्रणय के गीत जब तुम गाओगे मैं मिलुँगी तुम्हें वहीं प्रिये ......... जब जब भी तुम याद करोगे चाँदनी को चाँद से मिलाओगे गुनगुनाती हवाओं के साथ साथ अहसासो में जब मुझे सवांरोगे मैं मिलूँगी तुम्हें वहीं प्रिये ......... परिचय :-  मधु टाक निवासी : इं...
व्यवस्था को फाँसी दो
कविता

व्यवस्था को फाँसी दो

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** अरे व्यवस्था को फाँसी दो नौनिहाल जो सींच रहे जिस पूंजी के लिये खोल माँ की तस्वीरें खीच रहे दौड़ रहे प्रभुता के पीछे अपनी, मर्यादा को भूल संस्कार आर्यों की धोकर चाट रहे पश्चिम की धूल उपभोक्ता संस्कृति नही थी अपने भारत की सन्तान इसको नंगा करके तुमने मिटा दिये अपनी पहचान आज अगर कानून बनाकर मृत्यु दण्ड तुम देते हो क्यों लगता है तुमको ऐसा समाधान कर लेते हो? नारी का सम्मान खरीदे भेज रहे आगे आगे मन की आखों से सोये दिखते बस जागे जागे अपनी सब पहचान छुपाते प्रतिकृति बन आधुनिक हैं पॉप सांग पर थिरक रहे हो कहते हो हम युनिक हैं। पूर्वज से मुख मोड़ चुके हो जग से नाता तोड़ चुके हो भाग दौड़ पैसो के खातिर बचपन सूना छोड़ चुके हो बालशुलभ मन को समझाए नैतिकता अब कौंन बताये आधी और अधूरी शिक्षा ये पागलपन और बढ़ाये। केवल बस सरकार बनाये नये खयालों की दीवार कहाँ-क...
दादी अम्मा तुम बहुत याद आती हो!
कविता

दादी अम्मा तुम बहुत याद आती हो!

मीना सामंत एम.बी. रोड (न्यू दिल्ली) ******************** धीर थी, गम्भीर थी, संतुलित सी भाषा थी, तुम आंगन की तुलसी थी, मैं तुम्हारी आशा थी। पहाड़ी नदियों की छल-बल नहीं, सागर सी सूरत थी। खारापन तुमको छू नहीं पाया, विनम्रता की मूरत थी। नदी, नालों से डरने वाली मैं, तुम ही मेरी नौका थी। महानगरों की तपिश नहीं, पहाड़ी हवा का झोंका थी। लंबे धान के खेतों में, सलीके से चलना सिखाती थी, थोड़े-थोड़े पैसों को गिनकर, मुझे दिखाती थी। मेरे स्वाभिमान के साथ, मुझे अपनाती थी। परछाई थी उसकी मै, जहां कहीं वो जाती थी। लाचार, बेबस महिला नहीं, सैनिक कुल की बेटी थी, दस भाई, बहिनों में सबसे दुलारी और चहेती थी। मुंह अंधेरे उठकर, धोती जब वो पहनती है, धोती के कोने में, एक छोटी गांठ लगाती है। चेहरा आज भी चमकता है, "संतोष" से खाती है, दांत आज भी असली हैं, कच्चे चावल चबाती है। परिचय :- मीना सामंत एम.बी. रोड...
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
कविता

हिंदी राष्ट्र धरोहर है

डॉ. भगवान सहाय मीना बाड़ा पदम पुरा, जयपुर, (राजस्थान) ******************** हिंदी है वैज्ञानिक भाषा, भारत की पहचान है। लिपि इसकी देवनागरी, देवों की यह शान है। ब्रह्म गुप्त कुटिल से जन्मी नागर, सरल व्याकरण, इसका सुन्दर वर्ण विधान है अष्टम् अनुसूची में हिंदी राजभाषा, अक्षर-अक्षर करती भारत का गुणगान है। हिंदी भारत मां की सुन्दर बिंदी, हिन्द हिंदी हिन्दुस्तानी, भारत का अभिमान है। युगों-युगों से दुनिया की शिक्षा हिंदी, हिंदी रक्षक अपने देश का संविधान है। गागर में सागर भरती हिंदी, हिंदी राष्ट्र धरोहर है, विश्व में इसका मान है। कबीर पद मानस चौपाई हिंदी, हिंदी है देवों की भाषा पावन इसका धाम है। दुनिया में हिंदी का परचम लहराये, अजर अमर हो हिंदी, यह भारत की जान है। हिंदी सिखाती संस्कृति जगत को, विश्व सरगम भारत, हिंदी इसका गान है। परिचय :- डॉ. भगवान सहाय मीना (वरिष्ठ...
प्यारे शिक्षक
कविता

प्यारे शिक्षक

डॉ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** प्यारे शिक्षक शिक्षक रूप है भगवान के दिखाते हैं रास्ते सन्मार्ग के सिखाते हैं, समझाते है और भरते हैं भंडार ज्ञान के शिक्षक रूप है भगवान के ऊंच-नीच का भेद मिटाकर देते है सबको एक ही ज्ञान ना कोई छोटा ना कोई बड़ा करते हैं काम इमान के शिक्षक रूप है भगवान के हर कदम पर जो दे साथ कठिन रास्तों में दिखाएं राह आसान यही है उनकी पहचान जो जलाते हैं दिए संस्कार के शिक्षक रूप है भगवान के गोविंद से बड़ा जिनका है नाम संसार दे जिन्हें ईश्वर रूपी सम्मान परम पूज्य ऐसे गुरुओं को मेरा प्रणाम जो दे सौगात शिक्षा रूपी उपहार के ऐसे शिक्षक रूप है भगवान के ऐसे शिक्षक रूप में भगवान के परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक ...
अध्यापक से मिली सीख
कविता

अध्यापक से मिली सीख

होशियार सिंह यादव महेंद्रगढ़ हरियाणा ******************** चंचल मन घूम रहे थे, नहीं कोई था डर, पढऩे जात स्कूल में, आते शाम को घर, रूखी सूखी चटनी छाछ, भोजन था प्यारा, थैला उठाकर जाते थे, पास स्कूल हमारा। शिक्षक मेरा शिव कुमार, बहुत कड़क था, लेख देख-देख डंडे मारता, जब भड़कता, पीट पीटकर कर दे लाल, डर लगता था, कोई शिकायत लेकर जाए, उसे घड़ता था। बहुत डर लगता पर, एक मजबूरी सामने, गरीबी हालात घर की, कागज कहां मिले, लेखनी कैसे चला पाऊं, हाथ मेरे बंधे थे, पर शिक्षक के व्यवहार, नहीं शिकवे गिले। उनकी एक ही शिक्षा, अपना लेख सुधारों, दस सफा लिखो राज के, ना समय गंवाओ, कलम, दवात, होल्डर, सभी को रखना पास, सुंदर लेख लिखकर, कक्षा पूरी को हँसाओ। शिक्षक आकर रोज कहे, लेख और सुधारो, मैं कहता गुरुजी डर लगता, डंडा मत मारो, फिर भी ५-७ मार डंडे के,पड़ पड़ वो पड़ते, बहुत उदास रहते देख, मन घुटता था हमारो। सोचा...
तुम्हारी बाहों मे
कविता

तुम्हारी बाहों मे

मनमोहन पालीवाल कांकरोली, (राजस्थान) ******************** तुम्हारी बाहों मे रहने को जी चाहता हे गेसूंओ मे तेरे सर छुपाने को जी चाहता हे जिंदगी के कानून तो हमने निभा ही लिये मुन्तज़िर हू उम्मीदें जताने को जी चाहता है नही शिकवे कोई, नही बाते हंसी की है कोई अब तो तुमसे दिल लगाने को जी चाहता है गुजर रहा ज़माना वक्त-ए-दौर बाकी अभी ऑसूं-ए-दरिया में बह जाने को जी चाहता है खुद की तीरगी से बाहर निकल कर झांकों साथ तुम्हारे जिस्त बिताने को जी चाहता हे चकोरी का चाँद से क्या रूठना है "मोहन" फिर भी न माने तो मनाने को जी चाहता है परिचय :- मनमोहन पालीवाल पिता : नारायण लालजी जन्म : २७ मई १९६५ निवासी : कांकरोली, तह.- राजसमंद राजस्थान सम्प्रति : प्राध्यापक घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, ले...
अपनी भाषा हिंदुस्तानी
कविता

अपनी भाषा हिंदुस्तानी

अख्तर अली शाह "अनन्त" नीमच ******************** सत्य अहिंसा न्याय दया की, रही सदा जो पटरानी। दुनिया में आला सबसे, हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। नस नस में है खून हिंद का, हिंदुस्तानी ऑन रहे। पले हिंद की भूमि में हम, हिंदी ही अभिमान रहे।। संस्कृति भाषा भूषा क, नहीं जहां सम्मान रहे। मानवता को दफनाने का, ही सचमुच सामान रहे।। है संकल्प यही हिंदी हित, देंगे हम हर कुर्बानी। दुनिया में आला सबसे , हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। अरबों की भाषा अरबी, यूनानकी जब यूनानी है। नेपाली नेपाल में है, जापानकी जब जापानी है।। जर्मनी रही है जर्मन की, इग्लैंड की इंग्लिशरानी है। क्योंकर भूल जाएंगे अपनी, भाषा जो सम्मानी है।। भाषा हिंदी भाल की बिंदी, नहीं करेंगे नादानी। दुनिया में आला सबसे, हिंदी भाषा हिंदुस्तानी।। तिब्बती भाषा है तिब्बत की, बर्मी बर्मा की सबजाने। पुर्तगाली है पुर्तगाल की, क्या इससे हैं अनजाने।। र...
हिंदी मेरी
कविता

हिंदी मेरी

रूपेश कुमार (चैनपुर बिहार) ******************** हिंदी मेरी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान ! हिंदी के हम कर्मयोगी, हिंदी मेरी पहचान, हिंदी मेरी जन्मभूमि, हिंदी हमारी मान, हम हिंदी कि सेवा करते है, हम जान उसी पे लुटाते है ! हिंदी हमारी मातृभाषा, हिंदी हमारी जान ! है वतन हम हिंदुस्तान के, भारत मेरी शान, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा, हिंदी हमारी एकता, हिंदी में हम बस्ते है , हिंदी मेरी माता ! हिंदी है हमारी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान ! हिंदी मेरी वाणी, हिंदी मेरा गीत, ग़ज़ल, हिंदी के हम राही, हिंदी के हम सूत्र-धार, हिंदी मेरी विश्व गुरु, हिंदी मेरी धरती माता ! हिंदी है हमारी मातृभाषा, हिंदी मेरी जान ! परिचय :- रूपेश कुमार शिक्षा - स्नाकोतर भौतिकी, इसाई धर्म (डीपलोमा), ए.डी.सी.ए (कम्युटर), बी.एड (महात्मा ज्योतिबा फुले रोहिलखंड यूनिवर्सिटी बरेली यूपी) वर्तमान-प्रतियोगिता परीक्षा की तै...
हिंदी ही आधार है
कविता

हिंदी ही आधार है

संजय जैन मुंबई ******************** जब सीखा था बोलना, और बोला था माँ। जो लिखा जाता है, हिंदी में ही सदा।। गुरु ईश्वर की प्रार्थना, और भक्ति के गीत। सबके सब गाये जाते, हिंदी में ही सदा। इसलिए तो हिंदी, बन गई राष्ट्र भाषा।। प्रेम प्रीत के छंद, और खुशी के गीत। गाये जाते हिंदी में, प्रेमिकाओ के लिए। रस बरसाते युगल गीत, सभी को बहुत भाते। और ताजा कर देते, उन पुरानी यादें।। याद करो मीरा सूर, और करो रसखान को। हिंदी के गीतों से बना, गये इतिहास को। युगों से गाते आ रहे उनके हिंदी गीत। गाने और सुनने से, मंत्र मुध हो जाते।। मेरा भी आधार है, मातृ भाषा हिंदी । जिसके कारण मुझे, मिली अब तक ख्याति। इसलिए माँ भारती को, सदा नमन करता हूँ। और संजय अपने गीतों को हिंदी में ही लिखता है। हिंदी में ही लिखता है।। मातृभाषा हिंदी को, शत शत वंदन में करता हूँ। और अपना जीवन हिंदी को समर्पित करता हूँ। हिंदी को समर्...
यायावर
कविता

यायावर

माया मालवेन्द्र बदेका उज्जैन (म.प्र.) ******************** कुछ अपने कुछ अपनों के सपने पूरे करने थे, किये। उसकी सपनों की दुनिया में वह भी थी, आई यायावर भाई का था, भाई बेचारा था उसको किसी बाला ने आहत किया कुंवारा था। यायावर बहन का था, बहनोई आवारा था यायावर ने बहन को दुलारा था। यायावर माँ का प्यारा था नौ महिने का कर्ज संवारा था। यायावर मित्रो का था सखा संग बचपन गुजारा था। यायावर उन सभी गुणा भाग जोड़ घटाव के रिश्तों का प्यारा था। ऊंची चढ़ती सीढ़ी में वह सबके लिए न्यारा था। जिद, दम्भ, श्रम, धन, वैभव कीर्ति सब साथ हुए अछूता रह गया वह मन वह सपनों की दुनिया जो जीवन भर साथ चली छलता गया कर्त्तव्य, अधिकार फर्ज के नाम पर यायावर जीवन भर चलती साथ लाठी को अवमानित करता रहा उसके सपनों को अपनों को जोड़ने का जो सबसे बड़ सहारा था। मूक ह्रदय मौन समर्पण करती रही उसने अपना जीवन हारा था। परिचय :- नाम -...
मैं हिंद की बेटी हिंदी
कविता

मैं हिंद की बेटी हिंदी

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** भारत के, उज्जवल माथे की। मैं ओजस्वी ......बिंदी हूँ। मैं हिंद की बेटी .....हिंदी हूँ। संस्कृत, पाली,प्राकृत, अपभ्रंश की, पीढ़ी-दर -पीढ़ी ....सहेली हूँ। मैं जन-जन के, मन को छूने की। एक सुरीली .......सन्धि हूँ। मैं मातृभाषा ........हिंदी हूँ। मैं देवभाषा, संस्कृत का आवाहन। राष्ट्रमान ........हिंदी हूँ।। मैं हिंद की बेटी..... हिंदी हूँ। पहचान हूँ हर, हिन्दोस्तानी की.... मैं। आन हूँ हर, हिंदी साहित्य के अगवानों की........मैं।। मां, बोली का मान हूँ...मैं। भारत की, अनोखी शान हूँ......मैं।। मुझको लेकर चलने वाले, हिंदी लेखकों की जान हूँ ....मैं। मैं हिंद की बेटी..... हिंदी हूँ। मैं राष्ट्र भाषा .........हिंदी हूँ। विश्व तिरंगा फैलाऊँगी। मन-मन हिन्दी ले जाऊँगी।। मन को तंरगित कर। मधुर भाषा से। हिंदी को, विश्व मानचित्र पर, सजा कर आ...
देववाणी तेजस्विनी हिंदी
कविता

देववाणी तेजस्विनी हिंदी

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** भाषाओं के नभ में शोभित शशि-सम तेजस्विनी हिंदी संस्कृत इसकी दिव्य जननी यशश्विनी इ दुहिता हिंदी राष्ट्र की संस्कृति-वाहक भारत की सिरमौर हिंदी सरस्वती वीणा से झंकृत देववाणी है यह हिंदी व्याकरण इस का वैज्ञानिक परिष्कृत प्रांजल है हिंदी हर अभिव्यक्ति में सक्षम सशक्त सरल संप्रेषणीय हिंदी स्वर-व्यंजनों से सुसज्जित अयोगवाह अलंकृत हिंदी रस छंद अलंकार से मंडित बह चली सुर-सरिता हिंदी विश्वस्तरीय औ कालजयी साहित्य-सृजन-सक्षम हिंदी तुलसी सूर मीरा निराला के हृदय की रानी हिंदी हिंद की साँस में बसती यह जन जन की प्यारी हिंदी कश्मीर से कन्याकुमारी श्वास-श्वास-बसी हिंदी बहुभाषा भाषी हैं हम, तो सबको मान देती हिंदी सभी भाषाओं को एक ही सूत्र में पिरोती हिंदी दोनों ही बाँहें फैलाए सभी को अपनाती हिंदी अंँग्रेजी उर्दू सब बोली को बिन दुर्भावना वरे हिंदी...
हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन
कविता

हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन

राजकुमार अरोड़ा 'गाइड' बहादुरगढ़ (हरियाणा) ******************** हिन्दी, हिन्द का ह्रदय स्पन्दन तिरंगे सी महान,एकता की पहचान, देवभाषा की संतान हिन्दी ने सदभाव खूब बढ़ाया है। हिन्दी हिन्द का गौरव है, जिसकी सरलता और व्यापकता ने पूरे विश्व में परचम लहराया हैं।। अंग्रेजी-अंग्रेजी रटने वालो, तुमने स्वयं ही तो, मातृभाषा का मान घटाया है। क्या कभी अंग्रेजों ने, अपने देश में, किसी भी तरह, अंग्रेजी दिवस मनाया है।। हिन्दी, मनभावन हिन्दी, प्यारी हिन्दी, दुलारी हिन्दी, हिन्दी हिन्द की ह्रदय स्पन्दन। आओ लिखें हिन्दी, पढ़े हिन्दी, बोलें हिन्दी, यही तो है, हिन्दी का पूर्ण अभिनन्दन।। साहित्य, सिनेमा, सोशल मीडिया, दूरदर्शन में, हिन्दी प्रयोग से मिट गई हैं, सब दूरियां। हिन्दी को ह्रदय में बसा लो, अपना बना लो, फिर मिट जायेंगी, सब मजबूरियां।। हिन्दी है, हमारे ह्रदय की, धड़कन, ये धड़कती धड़कन, है हमारा अमिट प्यार...
जब निर्णय लेना मुस्किल हो
कविता

जब निर्णय लेना मुस्किल हो

माधवी मिश्रा (वली) लखनऊ ******************** जब जीवन के दोराहों पर, असमंजस के चौराहों पर कोई निर्णय लेना मुस्किल हो, और साथ मे अंधी मंजिल हो जब मन मस्तक मे द्वंद छिड़े, हृदय विवेक लड़े झगड़े फिर किसको कैसे समझाऊँ किस ओर कहां मैं झुक जाऊँ यह मूल समस्या जीवन की, अविराम रही उलझी उलझी पथ जाने कितने मोड़ मुड़े पर दिल दिमाग ये नही जुड़े सालीन विवेकी राहो मे काँटो के निर्मम तार के मिले हृदय गवाही दिया जिसे उसमे रखे औजार मिले ऐसी दुविधा ही बनी रही जब भी जितने भी कदम चले अब तक कोई ना हुआ अपना सबने मिलकर विस्वास छले।। परिचय :- माधवी मिश्रा (वली) जन्म : ०२ मार्च पिता : चन्द्रशेखर मिश्रा पति : संजीव वली निवासी : लखनऊ शिक्षा : एम.ए, बीएड, एलएल बी, पीजी डी एलएल, पीजीडीएच आर, एमबीए,। प्रकाशन : तीन पुस्तकें प्रकाशित अनेक साझा संकलन, काव्य, लेख, कहानी विधा पत्र पत्रिकाओं रेडियो दूरदर्शन पर-प्रकाशन, प्रसा...
चंपा का फूल
कविता

चंपा का फूल

संजय वर्मा "दॄष्टि" मनावर (धार) ******************** चंपा के फूल जैसी प्रिये काया तुम्हारी मन को आकर्षित कर देती जब तुम खिल जाती हो चंपा की तरह। तुम भोरे, तितलिया के संग जब भेजती हो सुगंध का सन्देश वातावरण हो जाता है सुगंधित और मै हो जाता हूँ मंत्र मुग्ध। प्रिये जब तुम सँवारती हो चंपा के फूलो से अपना तन जुड़े में, माला में और आभूषण में तो लगता स्वर्ग से कोई अप्सरा उतरी हो धरा पर। उपवन की सुन्दरता बढती जब खिले हो चंपा के फूल लगते हो जैसे धवल वस्त्र पर लगे हो चन्दन की टीके। सोचता हूँ क्या सुंदरता इसी को कहते मै धीरे से बोल उठता हूँ प्रिये तुम चंपा का फूल हो। परिचय :- संजय वर्मा "दॄष्टि" पिता :- श्री शांतीलालजी वर्मा जन्म तिथि :- २ मई १९६२ (उज्जैन) शिक्षा :- आय टी आय व्यवसाय :- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग) प्रकाशन :- देश - विदेश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं में रचनाएँ व समाचार पत्रों में न...
मुद्दे उठाए जाते हैं
कविता

मुद्दे उठाए जाते हैं

प्रीति शर्मा "असीम" सोलन हिमाचल प्रदेश ******************** मेरे देश में, मुद्दे उठाए जाते हैं। जिंदगी के असल सच से, लोगों के ध्यान हटाए जाते हैं। घटना को, घटना होने के बाद, देकर दूसरा ही रुख। असल घटनाओं पर, पर्दे गिराए जाते हैं। मेरे देश में मुद्दे उठाए जाते हैं। जिंदगी किन, हालातों में बसर करती है। पंचवर्षीय सरकारों में, अमीर- गरीब के मापदंडों में, मध्यवर्ग को, बस वायदे ही थमाए जाते हैं। मेरे देश में, मुद्दे उठाए जाते हैं। जागे.....असल पहचानिए। जो कानों को, सुनाया जाता है। आंखों को दिखाया जाता है। दो रोटी कमाने के लिए, हम और आप कितनी लड़ाई लड़ते हैं। हमें मुद्दों में, कितना बहलाया जा रहा है। परिचय :- प्रीति शर्मा "असीम" निवासी - सोलन हिमाचल प्रदेश आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय ह...
खुशियों का पैगाम
कविता

खुशियों का पैगाम

रुचिता नीमा इंदौर म.प्र. ******************** किसी की याद जब हद से गुजर जाए तो कोई क्या करें.... कोई दूर रहकर भी बहुत याद आये तो कोई क्या करे.... न मिलना हो मुमकिन, न भूलना हो मंजूर.... कोई फितूर बनकर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तो मदद कर या तो मिला दे उसको या फिर ज़ेहन से ही मिटा दे क्योंकि होश के बादल जब छाए तो कोई क्या करे अब जीना भी हुआ मुश्किल और मौत भी आती नहीं ऐसे में बेहोशी अगर छा जाए तो कोई क्या करे ये खुदा!!!!! अब तू ही राह दिखा वरना हर तरफ जब अंधेरा ही दिखाई दे तो कोई क्या करे अब तो हर तरफ बिखेर दे उम्मीदों की लड़ियाँ.... क्योकि मायूसी अगर छा जाए तो कोई क्या करें।। अब बस बहुत हुआ.... अब तो बस कोई खुशियों का पैगाम ही आये, दिल ये दुआ करे परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस...
विश्वास
कविता

विश्वास

डॉ. पंकजवासिनी पटना (बिहार) ******************** विश्वास की टूट गई है रीढ़! अपनापन नहीं रह गया अब दृढ़!! सदाशयता को हुआ पक्षाघात! अविश्वास देत है नित आघात!! संबंधों की खो गई ऊष्मा! भावनाओं की पूँजी ना जमा!! चहुंँ दिशि हुआ घनीभूत स्वार्थ! निरंतर छीजन ग्रसित परमार्थ!! संस्कारों की डोर पड़ी झीनी! उद्दंडता ने सब लज्जा छीनी!! आंँधी चली है पाश्चात्य की! जड़ें उखड़ी हैं पौर्वात्य की!! आत्मीयता को ग्रस रहा राहू! अपनों को तृषित हो रहे बाहू!! विश्वास का हुआ चतुर्दिक अभाव! घृणा वैमनस्य का बढ़ा प्रभाव!! निष्ठा त कहीं पड़ी हैं मृतप्राय! विश्वास की पूंँजी गलती जाय!! नेह, विश्वास, त्याग, करुणा तज! युग वरे अहं, स्वार्थ, घृणा अज!! विद्वेष का आँचल बढ़ता जाए! सौहार्द्र न अब मन को लुभाए!! संवेदनाओं की गागर रीती! भावुक मन पर, पूछो क्या बीती!! प्रभु! ऐसी कोई हवा चल जाय... युग की नस में ही नेह ढल जाय...