जीवन का खेला बहुत ही अलबेला है
विशाल कुमार महतो
राजापुर (गोपालगंज)
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प्यारे-प्यारे लोगों का लगता
इस जग में मेला है,
देख तमाशा जीवन का,
ये खेला ही अलबेला है।
ये खेला ही अलबेला हैं।
शदियों की बात पुरानी है,
ना मानो तो ये कहानी है ।
मिला है जो कुछ भी हमकों,
सब अपनो की मेहरबानी है।
पहन मुखवटा धर्म का,
सबने किया झमेला है,
देख तमाशा जीवन का,
ये खेला ही अलबेला है।
ये खेला ही अलबेला हैं।
दोष नहीं है वेद पुराण की,
जब कमी हुई गुणगान की।
ये गजब लीला भगवान की,
क्यों कद्र नहीं इंसान की।
दूर होगा अब अंधियारा कैसे,
इस जग का दीपक अकेला हैं।
देख तमाशा जीवन का,
ये खेला ही अलबेला है।
ये खेला ही अलबेला हैं।
अपनी कीमत खुद से पूछो,
पानी की कीमत प्यासे से।
बन जाओगे शिकार कभी,
बच के रहना झूठी झांसे से।
कंकड़, पत्थर रास्ते में आये,
मंजिल तक आते ढेला है।
देख तमाशा जीवन का,
ये खेला ही अलबेला है।
ये खेला ही अलबेला हैं।
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