फ़िर से शेर दहाड़ा है
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रचयिता : डॉ. बी.के. दीक्षित
काश्मीर की घाटी में फ़िर से शेर दहाड़ा है।
आतंकी बिल में छुपे हुए है,ढंग से उन्हें पछाड़ा है।
कल तक जो गुर्राती थी,हाथ जोड़ कर कहती है।
घर में हो गई नज़रबन्द, आंखों से नदिया बहती है।
भौंक रहे हैं नहीं कहीं भी,,,,,श्वान आज कश्मीर में।
स्वाद नहीं आ रहा उन्हें अब पकवानों या खीर में।
घोर विरोधी भी होकर जो ,,,,,,,एक साथ गुर्राते थे।
नफ़रत फ़ैलाकर नेता,,,, वो देशभक्त कहलाते थे?
खुद की संतानों को जिनने,,, बड़ा किया विदेशों में।
खौफ़ जहर की खेती करके,फ़सल उगाई खेतों में।
हिन्दू मुस्लिम कभी न लड़ते,लड़ती सदा सियासत है।
चैन अमन अब लौटेगा,,,,,,क्यों कहते हो आफ़त है?
अमित शाह, मोदी जी की जोड़ी के हाल निराले हैं।
पहली बार लगा है सबको,,,ये भारत के रखवाले हैं।
पैंतीस ए तो ख़त्म हो गई,राज्य केंद्र के आधीन हुआ।
पूरी तरह कश्मीर हमारा,समझो ...