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पद्य

भक्तों के घर आती नवदुर्गा
कविता

भक्तों के घर आती नवदुर्गा

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** सिंह पर सवार होकर, नवदुर्गा, शरदकाल के नवरात्रि में जब आती, भक्तों के हर घर, हर आंगन में, ज्योत भक्ति भाव की, नियमित जलाती, देवी की पूजा पद्धति विधिवत करने की चौकी, माता की, भक्तों के घर सज जाती, अन्तर्मन में जगाकर प्रेम भक्ति का भाव विधिवत पूजा अर्चना का भरते भाव, श्रद्धालुओं में उमड़ता, मंत्रो का चाव समझते माता दुर्गा की शक्ति भक्ति भाव, कलश, दीप धूप रख करते भक्ति भाव विनती कर मैया से, जगाओ भक्ति भाव शारदीय दुर्गोत्सव की शुभ पावन बेला सुहावना, होता, भक्तिमय पल अलबेला आनंदित अंतरिम सुखमय मधुरिम भक्तिमय बन जाता, नवरात्रि का मेला मङ्गलमयदायक, प्रेरणादायक दुर्गा मेला विदाई में नम आंखे, खेलते सिंदूर खेला भक्ति गीत संगीत की तान ह्रदय में बजाती भावभक्ति से जगराते की रात जगाती मातारानी के नवरात्रि में शक्...
हृदय की बात
कविता

हृदय की बात

शिवदत्त डोंगरे पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) ******************* हृदय-हृदय की बात है हृदय-हृदय में रह गयी हृदय,हृदय मिला नहीं जीवन कभी खिला नहीं. हृदय को न सुना गया हृदय ने न आवाज़ की हृदय हृदय में गुम हुआ रहा अनकहा व अनसुना हृदय हृदय में ही मर गया खोपड़ी में गोबर भर गया जिंदा हैं, पर हम रहे नहीं मरते रहे कभी जीये नहीं हृदय को फ़िर भी भ्रम है ये धड़क रहा, धड़क रहा यह हृदय मेरा, हृदय तेरा ये भटक रहा, चटक रहा परिचय :- शिवदत्त डोंगरे (भूतपूर्व सैनिक) पिता : देवदत डोंगरे जन्म : २० फरवरी निवासी : पुनासा जिला खंडवा (मध्य प्रदेश) सम्मान : राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर द्वारा "समाजसेवी अंतर्राष्ट्रीय सम्मान २०२४" से सम्मानित घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष...
सपनों में झुका
कविता

सपनों में झुका

मानाराम राठौड़ जालौर (राजस्थान) ******************** भगवान ने सब कुछ दिया, दीये में दीया नहीं दिया। फिर अंधकार है। क्या, जो पथ भूल रुका नहीं, वह हार के आगे झुका नहीं। उपवन को लुट लिया वह माली, फूलों ने अपनी महक संभाली। लहरों के स्वर में कुछ बोलो, इस अंधड़ में साहस तोलो। कभी कभी जीवन में मिलता है। तूफानों का प्यार, कृष्ण-कदंब का वह प्रेम, गोपियों ने पाया, लोगों ने देखा, वृहत इतिहास में इसका लेखा। परिचय :- मानाराम राठौड़ निवासी : आखराड रानीवाड़ा जालौर (राजस्थान) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित...
युवाओं का वंदन
गीत

युवाओं का वंदन

प्रो. डॉ. शरद नारायण खरे मंडला, (मध्य प्रदेश) ******************** अंधकार में युवा शौर्य के, दीप जलाते हैं। देशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। चंद्रगुप्त की धरती है यह, वीर शिवा की आन है। राणाओं की शौर्य धरा यह, पोरस का सम्मान है।। वतनपरस्ती के आभूषण को, युवा सजाते हैं। देेशभक्ति के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। शीश कटा,क़ुर्बानी देकर, जिनने वतन सजाया। अपने हाथों से अपना ही, जिनने कफ़न सजाया।। भारत माता की महिमा की, शपथ निभाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित वे गाते हैं।। ख़ून बहा,क़ुर्बानी देकर, जिनने फर्ज़ निभाया। राष् का तो जज़्बा, जिनने भीतर पाया।। हँस-हँसकर जो फाँसी झूले, वे नित भाते हैं। आज़ादी के मधुर तराने, नित हम गाते हैं।। सिसक रही थी माता जिस क्षण, तब जो आगे आए। राजगुरू, सुखदेव, भगतसिंह, बिस्मिल जो कहलाए।। ब्रिटिश हुक़ूमत से लोहा लेने, निज प्राण ...
गाफ़िल रामधनी
कविता

गाफ़िल रामधनी

भीमराव झरबड़े 'जीवन' बैतूल (मध्य प्रदेश) ******************** रोप दिए हैं रम्य विपिन में, जब से नागफनी। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। कदम-कदम पर खड़े हुए हैं, पहरे आँखों के। उलाहनों ने जला दिये हैं, सब कस पाँखों के।। नैतिकता की सभी नीतियाँ, लगती खून सनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। समता के नारे सुन फूले, मन के गुब्बारे। पहुँच नहीं पाये पर घर तक, जय के हरकारे।। सुख की तलवारें दुखड़ों पर, रहती तनी-तनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। जनसेवा की पोशाकों में, कामी तन भक्षी। तान रहे हैं तम के तंबू, दिन के आरक्षी।। शहर मतों का लूट ले गई, शातिर आगजनी।। डरता खुद की परछाई से, गाफ़िल रामधनी।। परिचय :- भीमराव झरबड़े 'जीवन' निवासी : बैतूल मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कवि...
पिता हमारे हैं जनक
दोहा

पिता हमारे हैं जनक

पंकज शर्मा "तरुण" पिपलिया मंडी (मध्य प्रदेश) ******************** पिता हमारे हैं जनक, जिनके हम हैं अंश। इनका ऋण उतरे तभी, बढ़े हमारा वंश।। पूर्वज सारे तृप्त हों, ऐसा करें उपाय। संत सभी कहते यही, इनकी मानें राय।। श्राद्ध पक्ष में कीजिए, तर्पण कह श्री राम। पुण्य मिलेगा ज्यों किया, हमने चारों धाम।। स्वार्थ पूर्ति को त्याग कर, करते पूजा पाठ। उनके ही बढ़ते दिखे, सुख वैभव अरु ठाठ।। जपूं निरंतर आपको, शिव शंकर भगवान। विनती बस इतनी करूं, मिले भक्ति का दान।। सब ही पूर्वज पूज्य मम, रखना सिर पर हाथ। चरण कमल में है झुका, सब परिजन का माथ।। साधन अगणित हो गए, बिगड़ी सब की चाल। हर पल खोजे आदमी, कहां मिलेगा माल।। मानवता जीवित रहे, बढ़े परस्पर प्यार। अगली पीढ़ी को तरुण, देना यह संस्कार।। गौ रक्षा तो पुण्य है, कहते संत सुजान। इसकी सेवा कीजिए, खूब बढ़ेगी शान।। गलत राह से ...
मनमर्जी घातक होती है
कविता

मनमर्जी घातक होती है

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** अच्छी बात तुम्हें समझाते, कान खुलकर सुनना। मनमर्जी से नहीं रास्ता, तुम जीवन में चुनना। रावण भी मनमर्जी करके, सीता को हर लाया। मारा गया राम के हाथों, कुल का नाश कराया। कौरव दल ने मनमर्जी से, चीर हरण कर डाला। शेषसमय अपने जीवनका, किया भयंकर काला। करें अवज्ञा मात- पिता की, तिरष्कार करते हैं। कालकूट अपने हाथों से, जीवन में भरते हैं। जानबूझकर जो मनमर्जी, जीवन में करते हैं। पाप- ताप, संताप हृदय में, वे अपने भरते हैं। जिसने की मनमर्जी उसने,मर्मान्तक दुख पाया। मनमर्जी कर सारे जीवन, उसने कष्ट उठाया। मनमर्जी कर, कैकेयी ने, भेजे रघुवर वन में। पश्चाताप रहा अंतस में, दुखी रही जीवन में। मनमर्जी तुम कभी न करना, हर पल पछताओगे। सजा भयंकर मनमर्जी की, निश्चय ही पाओगे। परिचय :- अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्री...
पुरुष होने का दर्द
कविता

पुरुष होने का दर्द

प्रमेशदीप मानिकपुरी भोथीडीह, धमतरी (छतीसगढ़) ******************** पुरुष होने का दर्द क्या है कोई कैसे जाने उसको भी दर्द होता है कैसे कोई पहचाने कितनी सफाई से दर्द सीने में छुपा लेटा है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है मुस्कान लिए परिवार के सदा खटता है हर मुश्किल और संघर्ष में सदा डटता है जिम्मेदारी वश खुद को खुवार कर लेटा है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है दायित्व बोध पुरुष को जीने कहाँ देता है बिस्तर में पडा पर नींद उसे कहाँ आता है मन में अगले दिन का हिसाब कर लेता है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है भार धारित किया है सब रिश्ते-नातो का तनिक फ़िक्र नहीं है खुद कि जब्बतों का अपने सुख भी रिश्तो में कुर्बान कर देता है अंदर ही दर्द सह, मन को कैसे मार लेता है कभी पिता, कभी पति तो कभी बना भाई माता पिता कि सेवा तो कभी करे पहुनाई असहय वेदना को होंठो ...
ये मंजर क्यूँ है
कविता

ये मंजर क्यूँ है

डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके मनावर जिला धार (मध्य प्रदेश) ******************** तेरे इस संसार में ये मंजर क्यूँ है कहीं अपनापन तो कहीं पीठ पीछे खंजर क्यूँ है सुना है तू इस संसार के हर कण में रहता है फिर कहीं पर मंदिर कहीं मस्जिद क्यूँ है तेरे इस संसार में ये मंजर क्यूँ है जब रहने वाले दुनिया के हर बंदे तेरे है फिर कोई दोस्त कोई दुश्मन क्यूँ है तू ही लिखता है हर किसी का मुकद्दर फिर कोई बदनसीब और कोई मुकद्दर का सिकंदर क्यूँ है तेरे इस संसार में ये मंजर क्यूँ है कभी आंखों में खुशी कभी आंखे नम क्यूँ है एक रात अमावस की तो एक पूनम क्यूँ है जब हर एक दिन समान तो, एक पल में खुशी अगले ही पल गम क्यूँ है तेरे इस संसार में ये मंजर क्यूँ है परिचय : डाॅ. मिनाक्षी अनुराग डालके निवासी : मनावर जिला धार मध्य प्रदेश घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक ह...
यादें रेडियो की
कविता

यादें रेडियो की

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** क्या बताएं वो समय ही कुछ और था, तब मनोरंजन के लिए रेडियो का दौर था, स्टेशन खुलने से पहले बजते रोचक नये-नये गाने, जो होते थे बड़े ही सुहाने, बड़े अदब से किया जाता था नमस्कार, मन प्रफुल्लित होता सुन देश दुनिया का समाचार, आज के टी वी चैनलों की तरह कई स्टेशन सुनने को मिलते थे, पसंदीदा कार्यक्रम सुन दिल खिलते थे, मेरी दिनचर्या में रेडियो शामिल था अनवरत, हो चाहे ऋतु सर्दी, गर्मी, बारिश या शरद, होती थी रोज कृषि पर उपयोगी चर्चा, मुफ्त की सलाह बिना किये कोई खर्चा, स्वास्थ्य से संबंधित जब सलाह होते थे, बच्चे ट्यून बदलने के लिए रोते थे, कमेंट्री सुनते चक्कर लगा आते खेत का, तब दौर था राष्ट्रीय खेल हॉकी और क्रिकेट का, रेडियो सीलोन सुनाता बिनाका गीतमाला, न सुन पाये तो लगता समय खराब कर डाला, बी बी सी हिंदी, ...
रौद्र नाद
कविता

रौद्र नाद

गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर (मध्य प्रदेश)  ******************** हे पाखण्ड-खण्डिनी कविते! तापिक- राग जगा दे तू। सारा कलुष सोख ले सूरज, ऐसी आग लगा दे तू।। कविता सुनने आने वाले, हर श्रोता का वन्दन है। लेकिन उससे पहले सबसे, मेरा एक निवेदन है।। आज माधुरी घोल शब्द के, रस में न तो डुबोऊँगा। न मैं नाज-नखरों से उपजी, मीठी कथा पिरोऊँगा।। न तो नतमुखी अभिवादन की, भाषा आज अधर पर है। न ही अलंकारों से सज्जित, माला मेरे स्वर पर है।। न मैं शिष्टतावश जीवन की, जीत भुनाने वाला हूँ। न मैं भूमिका बाँध-बाँध कर, गीत सुनाने वाला हूँ। आज चुहलबाज़ियाँ नहीं, दुन्दुभी बजाऊँगा सुन लो।। मृत्युराज की गाज, काल भैरवी सुनाऊँगा सुन लो।। आज हृदय की तप्त बीथियों, में भीषण गर्माहट है। क्योंकि देश पर दृष्टि गड़ाए, अरि की आगत आहट है।। इसीलिए कर्कश-कठोर, वाणी का यह निष्पादन है। सुप्त रक्त क...
दूर-सुवासित कर दो मुझको
कविता

दूर-सुवासित कर दो मुझको

बृजेश आनन्द राय जौनपुर (उत्तर प्रदेश) ******************** दूर-सुवासित कर दो मुझको, क्या करना है तरु चन्दन को। मैं चाहूँ नैना भर देखूँ, कभी न चाहूँ आलिंगन को। पास नहीं तुम आज बाग में, गाए कैसे भ्रमर राग में? केवल सुरभि पवन तुम भेजो, अपने सारे मान सहेजो। तुम्हें पहुँचना ही था इक दिन, किसी देव के अभिनन्दन को। दूर-सुवासित कर दो मुझको, क्या करना है तरु चन्दन को। दूर कहीं मन्दर में तुम हो, किसी हृदय अंतर में तुम हो। सजी प्रेम-पूजा थाली में, अर्चन के मन्तर में तुम हो। तुम श्रद्धा के फूल वही हो, होते हैं जो बस वन्दन को। दूर-सुवासित कर दो मुझको, क्या-करना है तरु चन्दन को।। कुछ क्यारी में लगे फूल हैं, कुछ गमलों में लगे मूल हैं। कुछ काँटों संँग जीने वाले, जंगल के होते बबूल हैं। पर कब सेज सभी से सजते, होते हैं कुछ दृग-नन्दन को। दूर सुवासित कर दो मुझको क्य...
यादों की जंजीरें
कविता

यादों की जंजीरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** फिर एक बार याद आ गया कोई जहां मे हमसफ़र हजारों मिलते है बांटने दरदो गम कोई नहीं होता गुल ही गुल चाहतें है सब गुलिस्तां मे कांटों को कोई नहीं छुता। कहे किसे अपना इस ज़माने मे हर कोई शख्सा अपना नही होता। फिज़ा में खुशबु का ही डेरा हो ऐसा खुशनसीब हर कोई नहीं होता पल मे खड़े होतै हैं महल यादों के पतझड के पत्तों से बिखरते हे पल में यादों की जन्जीरे तोडना चाहा और अधिक जकड़ने का शुबहा होता है। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप शासकीय सेवा से निमृत हैं पीछेले ३० वर्षों से धार के कवियों...
अनमोल उपहार … बेटियाँ
कविता

अनमोल उपहार … बेटियाँ

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ******************** ईश्वर का अनमोल उपहार होती हैं बेटियाँ जीवन का संगीत और संस्कृति होती है बेटियां। दिलों को अंतहीन प्यार से भरने प्रभु द्वारा भेजी हुई देवदूत होती हैं बेटियाँ। शक्ति का प्रतिरूप बनकर, संघर्ष, साहस, सहनशीलता की फुलवारी में महकती रहती है बेटियां। सजता नहीं कोई घरौंदा बिना इनके घर का साज-श्रृंगार, चमक होती है बेटियां! जीवन मे भार नहीं जीवन का आधार होती हैं ये बहुत ही खास होती हैं बेटियां।। उड़ने दो इनको बांहें पसारे निर्द्वंद खुले आसमान में सपनों को पूरा करने का हौसला रखती हैं यही बेटियां, संदेह, डर, हिंसा, कि मत दो इनको बेड़ियाँ नियमों को ममता के गीत से समझती हैं बेटियाँ।। इनके जुनून, इनकी कमजोरी को संजो कर रखना होगा, इनकी रौशनी को मंद नहीं होने देना होगा, अविरत कल कल धारा सी बहती कुरीतियों ...
भौतिक सत्ता
कविता

भौतिक सत्ता

डॉ. राजीव डोगरा "विमल" कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) ******************** जिंदगी जोंक सी रक्त पान कर रही है। मौत के नगर में जिंदगी से खिलवाड़ कर रही है। काले उजले दिन में देश का गणतंत्र सुखे पत्ते की तरह ठिठुर कर अस्फुट हो शिकायत कर रहा है। भौतिकता का कंकाल महानगर की दहलीज लांघकर विक्षुब्ध कर सब को महाविनाश कर रहा है। देश की राजसत्ता पंख उखाड़ कर मध्य वर्ग के जनसत्ता के नाम पर रंगमहल का चुनाव कर रही है। परिचय :-  डॉ. राजीव डोगरा "विमल" निवासी - कांगड़ा (हिमाचल प्रदेश) सम्प्रति - भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं छायाचित्र के ...
गोष्ठी बुखार
छंद

गोष्ठी बुखार

विजय गुप्ता "मुन्ना" दुर्ग (छत्तीसगढ़) ******************** एक काव्य गोष्ठी में पिछले दिनों एक कवि मुख से उच्चारित हुआ, गोष्ठी से कुछ बुखार कम हो जाता है। विजय गुप्ता ने इस भाव को काव्य सूत्र में ताटंक छंद विधा में सृजित किया। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। जनता सत्ता आइना देखे, साधक बनकर गाता है। फिर गोष्ठी हलचल होने में, बुखार कम वो पाता है। कवित्व गुण का आधार यही, कई विधा का संगम हो। सृजन सेवा साधना तीर, से कुपथ्य का निर्गम हो। विवाद आंकड़े बने जमघट, कई वर्ग से उदगम हो। दशा दिशा के नेक तर्क में, फूहड़ बोली आलम हो। कविता धारा अब बहे कहां, उत्थान जहां गिराता है। कहने सुनने युग गुजर चुका, काव्य शोर मचाता है। कवि लेखक अपने चिंतन से, चाल चलन दरशाता है। संभव समर्थ समाधान तक, कलम खूब चलवाता है। आचार्यद्रोण शिक्षा समान, अल...
पितरों का श्राद्ध
कविता

पितरों का श्राद्ध

ललित शर्मा खलिहामारी, डिब्रूगढ़ (असम) ******************** आश्विन का मास पूर्वजों को करते तनमन से याद, करते श्रद्धा से पितरों का तर्पण करते उनका श्राद्ध, पूर्वजो के प्रति परिवारजन में जगाते श्रद्धा पितृपक्ष पर रहता मन मे श्राद्ध करने का विचार, पूर्वजो की श्रद्धा में श्रद्धापूर्वक करते पितृपक्ष की सेवा में श्रद्धा से श्राद्ध, भोजन से पूर्व तनमन से तर्पण गौओ, कोए को करते पहले अर्पण देते पहले ग्रास, पितृपक्ष पूर्वजो का एक सुंदर पर्व पूर्वजो की याद में पन्द्रह दिन तक परिवारजन निभाते अनुभव में करते गर्व, पूर्वजो के बिना अधूरा है जीवन पहचान है पूर्वज उनकी ही देन है उनके ही वंशज यही है अपना जीवन, पूर्वजो के प्रति करते है श्राद्ध समझते रहे है कर्तव्य प्रतिवर्ष करे श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध, पितरों को मुक्ति शांति मिले हम परिवारजनों ...
पथ कठिन पर चलना होगा
कविता

पथ कठिन पर चलना होगा

गोविन्द सरावत मीणा "गोविमी" बमोरी, गुना (मध्यप्रदेश) ******************** बन दीप अब जलना होगा, पथ कठिन पर चलना होगा। नही आयेगा तुम्हें उठाने कोई, गिरकर स्वयं सम्भलना होगा।। डरना नही देख उड़ती धूल, खिलते कांटे भी बनकर फूल। जो पाना है ग़र निश्चिय लक्ष्य, समय रहते सुधारो सारी भूल । हारा है हमेशा जो लड़ा नही, संकल्पों से कुछ भी बड़ा नही। क़िस्मत कर्मठशीलों की दासी, छूता है शिखर जो चढ़ा सही।। समय रहते सीखो ध्येय चुनना, पड़े न व्यर्थ कभी सिर धुनना। नाप लेते श्रमसाधक सिंधु भी, कर्तव्य पथ आता जिन्हें गुनना।। होगा जग में यशगान तुम्हारा, मुस्कायेगा फ़िर गुमान तुम्हारा। भुला बातें कल की सब कड़वी, करेगा इंसान गुणगान तुम्हारा।। उठो! करो!! सर संधान तुम, बड़े चलो बनकर तूफान तुम। सीख मिलेगी या फ़िर सफलता, छांटो तम, बन नव विहान तुम।। परिचय :- गोविन्द सरावत मीणा "गोवि...
नैया रूपी इस जीवन की
कविता

नैया रूपी इस जीवन की

पंकज शर्मा "तरुण" पिपलिया मंडी (मध्य प्रदेश) ******************** नैया रूपी इस जीवन की, एक तुम्हीं पतवार हो। तुम ही हो यह सुख का सागर, खुशी भरा संसार हो।। महक रहा जो घर का आंगन, हो माली इस बाग की। सजा सुरों में गीत मधुर जो, जय जय वंती राग हो।। मिला सती से जो शंकर को, वही एक आधार हो। तुम ही हो यह .... सहन किए हैं जो तुमने वह, पल संकट के याद हैं। उसी त्याग का है यह प्रतिफल, परिजन सब आबाद हैं।। आशिषों से भरी वर्षा का, मान रहे, आभार हो। तुम ही हो यह .... दया दृष्टि के वरदानों को, कभी न्यून करना नहीं। अत्याचारों की आंधी को, जीवन में सहना नहीं। नहीं नार हो तुम देवी, हम, पुरुषों का संसार हो।। नैया रूपी इस जीवन की, एक तुम्हीं पतवार हो। तुम ही हो यह सुख का सागर, खुशी भरा संसार हो।। परिचय :- पंकज शर्मा "तरुण" निवासी : पिपलिया मंडी (मध्य प्रदेश) घोषणा पत्र : म...
धरती आबा के वंशज
कविता

धरती आबा के वंशज

राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ (छत्तीसगढ़) ******************** जनाब कितने आये और कितने गये, पर हम आज भी वहीं हैं जहां थे भले ही न बन पाये आपके जैसे नये, बुरी नीयत रख हमारी कितनों जमीनें साल दर साल आप हड़पे मगर आज भी हम मालिक हैं अपने खिलखिलाते हरे भरे जंगल के, यहीं हम ढूंढ लेते हैं सारी खुशियां और जरूरतें जन मंगल के, हमें मिटाने की हर कोशिशों के बाद भी हम अडिग हैं जस के तस, हमारी हस्ती मिटा सको ये नहीं है आपके बस, जब मिटा नहीं पाते, हमें हमारी जगहों से हटा नहीं पाते तो हमें कहने लगते हो उपद्रवी या नक्सली, जिस मानसिकता के मिल जाएंगे आपके लोग हर चौराहे हर गली, लेकिन लगा देते हो हम पर इल्जाम, जग में करते हो हमें बदनाम, जो परिचायक है आपके क्रूर सामाजिक व्यवस्था का, लाभ उठाते रहते हो अपने सामाजिक, राजनीतिक अवस्था का, मत भूलो हम वाकिफ़ हैं जंगल ...
लहरें
कविता

लहरें

मालती खलतकर इंदौर (मध्य प्रदेश) ******************** उतुंग उठतीं सागर की लहरें समीर संग कुछ गा रही लहरें, लहरें नाच रही यामिनी का स्वागत करने। देखो नभ मे रवि ने सिन्दुरी चोला ओढ़ लिया अपनी पृतिबिम्बित आभा से लहरों को सिन्दुरी कर डाला। लता झुकी थी तरु पल्लव पर तरु हो अडग खड़ा मगर कहीं दूर से आया कोई रौंद गया तरू पल्लव। पृहर तिसरा बित चला था सागर की लहरों में हलचल दामिनी भी दमक रहीं थी खग वृंद रहा था भाग मचल। लहरों ने छोड़ किनारा। तट को आन्दोलित कर डाला कलकल करती सरिता का स्वर रात के सन्नाटों ने खो डाला। परिचय :- इंदौर निवासी मालती खलतकर आयु ६८ वर्ष है आपने हिंदी समाजशास्श्र में एम ए एल एलबी किया है आप हिंदी में कविता कहानी लेख गजल आदि लिखती हैं व आपकी रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मैं प्रकाशित होते हैं आप सन १९६८ से इंदौर के लेखक संघ रचना संघ से जुड़ी आप...
द्रोपदी
कविता

द्रोपदी

किरण पोरवाल सांवेर रोड उज्जैन (मध्य प्रदेश) ******************** क्या दोष मेरा था पांडु पुत्र, जो दांव पर मुझे लगाया है, क्या अबला समझकर मुझको तुमने दाँव पेच पर लगवाया है, क्यों मौन बैठे तुम रहते हो, कहा गया गांडीव धनुर्धर? भीम की गदा की शक्ति कहा, तलवार क्यों पडी धरा पर है। क्यो झुका हुआ हे मस्तक पितामह का? अधर्म की ओर आज झुका हुआ? बंधे राजधर्म की जंजीरो से, एक लाज द्रोपदी की लगी है आज। पासो मै हारी है द्रोपदी, द्रुत क्रीड़ा की पासे वो है, दुर्योधन अधर्मी बुद्धि, दुषाशन निर्वस्त्र करो तुम आज। पाँचो पाँडव हारे बैठे, द्रोपदी ने जब सबको पुकारा है, नही गांडीव चला अर्जुन का, नही गदा चली भीम की है। अधर्म के आगे धर्मराज, आज मौन हुये भीष्म पितामह है, द्रोपदी की लाज पे आच हे आज, दुशासन खींच रहा साडी आज। अबला की लाज बचाओ तुम, आ जाओ गिरिवर के धारी, द्रोपदी की लाज ...
निशिका मिलन कराती दिल का
कविता

निशिका मिलन कराती दिल का

अंजनी कुमार चतुर्वेदी "श्रीकांत" निवाड़ी (मध्य प्रदेश) ******************** है घनघोर गमों की, निशिका राह नहीं दिखती है। आज कहानी इस जीवन की, निशिका ही लिखती है। निशिका देख न तुम डर जाना, आगे चलते जाना। बीच राह में कभी न रुकना, गर मंजिल हो पाना। निशा-दिवस सुख-दुख के जैसे, आते हैं जाते हैं। गहराई में जाने वाले, ही मोती पाते हैं। आधी निशिका में ही जन्मे, कारागार कन्हाई। कान्हा पहुँच गए गोकुल में, बनी यशोदा माई। बीतेगी घनघोर यामिनी, सुखद भोर आएगी। देख अरुणिमा बाल सूर्य की, निशिका भी जाएगी। तमस उजाला दो पहलू हैं, इससे क्या घबराना। सब संघर्ष करें जीवन में, पार दुखों से पाना। स्याह पक्ष निशिका का देखा, धवल पक्ष अब जानें। चलना पड़ता हमें रात में, चाँद सितारे पानें। सदा स्वप्न आते निशिका में, नींद निशा में आती। जीवन की सारी दुख पीड़ा, निशिका दूर भगाती...
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कविता

हिन्दी भाषा

संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया भोपाल (मध्यप्रदेश) ******************** हिन्दुस्तान की भाषा हिन्दी, भारत मां के माथे पर बिंदी सम, हिन्दी भाषा सहज,सरल, विदेशों में परचम लहराती हिन्दी। हिन्दी रस हैं, अलंकार हैं, दोहा, सोरठा छंद, चौपाई, कुंडलिया हैं। हिंदी रामायण हैं, महाभारत हैं, गीता हैं, वेद हैं, पुराण हैं। हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की धरा हैं, हिन्दी उन्मुक्त गगन हैं, हिन्दी असंख्य तारे हैं, हिन्दी चंदन सम सुगंधित पवन हैं। हिन्दी हिन्दुस्तान की हैं आन-बान, मान-सम्मान, भारत का स्वाभिमान, हिन्दी भाषा हिन्दुस्तान की पहचान हैं, हिन्दी भाषा भारतीयों अभिमान हैं। परिचय :- श्रीमती संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया निवासी : भोपाल (मध्यप्रदेश) घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है। आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्...
घायल बलिया कि हुंकार
कविता

घायल बलिया कि हुंकार

अभिषेक मिश्रा चकिया, बलिया (उत्तरप्रदेश) ******************** घायल बलिया चीख रहा है चीख सुनाने मैं आया हूं, घायल बलिया के फटे हाल का रूप दिखाने आया हूं। मैं बलिया का शिक्षित समाज शिक्षा कि हाल बताने आया हूं, न बना है इंजीनियरिंग कॉलेज, न मेडिकल कॉलेज दिखता हैं, तब क्यों इस बलिया में टेक्नोलॉजी और एमबीबीएस डॉ. ढूंढता है। मैं बागी बलिया में मेडिकल व्यवस्था का स्थिति जानने आया हूं, सुनलों ए बलिया के वासी एक मरीज़ का दर्द बताने मै आया हूं। जब किसी का तबियत खराब हो कैसे पहुंचे हॉस्पिटल को, अस्पताल में व्यवस्था नहीं हैं रेफर करदे मऊ, बनारस को। पता चलता कि जान चली जाती मरीजों कि बीच रास्ते में, कहां से पहुंचे मरीज बेचारा इलाज कराने अपना बीएचयू में। यहां से आगे बढ़ जब निकला मैं बलिया शहर के सड़कों पे, तब जाकर मैं पहुंच गया बलिया के टाऊन हाल कि गलियों में। मैं बलिया के...