तुलसी आँगन की
मीना भट्ट "सिद्धार्थ"
जबलपुर (मध्य प्रदेश)
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चाँद खिला दिव्य निशा,
आस पिया आवन की।
प्रीति चकोरी कहती,
बूँद गिरी सावन की।।
रात हुई याद करूँ,
श्याम गले आज लगा।
रूठ गये स्वप्न सभी,
गीत सुना प्रेम जगा।।
भोर हुई चैन मिला,
पंख लगे ग्वाल सखी।
वेणु बजे प्रीति निभा,
ढूँढत गोपाल सखी।।
प्रेमिल बाजे धुन भी,
बात करे साजन की।
वंशी की तान कहे,
यौवन के तीर चले।।
रास रचा आज मिलें,
रात कभी ये न ढले।।
सोलह शृंगार किये,
झूमत गोरी कहती।
बाजत है कंगन भी,
कुंतल वेणी सजती।।
दुग्ध धवल धार बहे,
बात करें पावन की।
प्राण पिया काम बसे,
वाण चले हैं छलिया।
प्रेम सुधा आज पिला,
अंतस् में हो रसिया।।
सांस मिले साँस पिया,
बंधन तोड़ो सजना।
घूँघट को खोल पिया,
देख रही हूँ सपना।।
नित्य निहारे छवि भी,
ये तुलसी आँगन की।
परिचय :- मीना भट्ट...